थोड़ी देर और मस्ती करने दो
क्योंकि आज रविवार है
सपनों की दुनिया में खोने दो
क्योंकि आज रविवार है
जिंदगी बहुत हैं शिकवे तुमसे
चल रहने दे छोड़ सब
क्योंकि आज रविवार है
मुझे मालूम है ये ख्वाब झूठे और ख्वाहिशें अधूरी हैं
मगर जिंदा रहने के लिए कुछ चिंतन जरुरी है
आज ख़ुशी व चिंतन का वार है
क्योंकि आज रविवार है
समझो तो कोई पराया नहीं
खुद न रूठो ,सबको हंसा दो
यही जीवन का सार है
क्योंकि आज रविवार है
हफ्ते भर बाद फिर आएगी छुटटी
चलो सुख की छांव में ,मुकाम कर ले
पोंछ कर रोते लोगों के आंसू
खुद बने कृष्ण खुद को राम कर लें
आओ बहा दें मिल प्यार की सरिता
सूरज बाबा ने दिया हमको यह उपहार है
क्योंकि आज रविवार है
सबको जाना है ,जाने से पहले
प्रभात लेखन की दुनिया में ,अपना नाम तो कर ले
लिख रहा हूँ ,साहित्य को मेरा उपहार है
क्योंकि आज रविवार है...
प्रभात पांडेय की अन्य किताबें
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व समाचार - पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं
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