अपने पन की बगिया है ,खुशहाली का द्वार
जीवन भर की पूंजी है ,एक सुखी परिवार
खुशहाली वह दीप है यारों ,हर कोई जलाना चाहता है
खुशहाली वह रंग है यार्रों ,हर कोई रमना चाहता है
खुशहाली वह दौर था यारों ,कागज़ की नावें होती थीं
मिट्टी के घरौंदे थे ,छप्पर की दुकानें होती थी
कहीं सुनाई देती थी रामायण ,कहीं रोज अजानें होती थी
खुशहाली को नजर लग गयी ,अब मद सब पर छाया है
खुशहाली कहीं दब गई ,इंसानों ने इसे हराया है
यह बदकिश्मती है खुशहाली की ,हर रोज दंगा होता है
गणतंत्र यहाँ चौराहों पर ,रोज रोज ही रोता है
जो शासक है वो ईश्वर से ,खुद की तुलना करते हैं
और नेता आज के दौर का बस ,गिरगिट सा रंग बदलता है
खुशहाली को कोई समझ न पाया ,यह दौलत से नहीं मिलती है
खुशहाली को नजर लग गई ,अब वह रुदन करती है ||