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लोग क्या कहेँगे

19 अप्रैल 2022

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मैं, मेरी माँ और मेरे पिताजी अपने घर के दूरवा( घर के बाहर ) उस गर्मी के दिनों में चांदनी रात की आनंद वहीं रेगिस्तान में पानी की अनुभूति थोड़ी थोड़ी चलने वाली हवाओं से हो रही थी, बिजली तो नई नई हमारे गाँव में पहुंची थी लेकिन हमारे घर अभी डिबिया ही उजाला का प्रमुख श्रोत थी। मैं अपने गाँव में पढ़ने लिखने वाले लडके की श्रेणी में आता हूँ, मुझे लोग एक समझदार व्यक्ति के नजर से देखते हैं उसी का हमें गुमान भी, आधी रात गुजर गई, मेरी कॉपी किताब को चांदनी रातो से शेष बचे डीबियों से इंजौरा प्राप्त हो रही है, तभी मेरे बिताजी का नींद वाले दबा हुआ आवाज आया बेटा सो जा बहुत रात हो गई। लेकिन मेरे मन में कुछ और ही तलब है मुझे वहाँ जाना है जहाँ पुरे गाँव वालों ने पैसा इक्क्ठा करके नई नई आई बिजली के खुशी में टीवी लगाए हैं, मैंने डरते हुवे अपने पिताजी से कहा बाबू क्या मैं टीवी देखने जाऊं , हाँ जाव मगर जल्दी आ जाना मेरे पिताजी ने कहा मेरी माँ दबे हुवे स्वर में कहा रास्ता में ठीक से जाना ये लो टोर्च, वो टोर्च हमारा जयजात था, पिताजी बोले इसे संभाल जर रखना, मैं डरते हुए उस जगह पहुंचा जहाँ कुछ लोग निचे लेटे हुए, कुछ लोग खटिया में, और कुछ लोग बोरा में लेटे हुए टीवी देख रहे हैं, सबकी आँखे बंद हैं और टीवी में चलने वाले सिनामा का आनंद ले रहे हैं, मैं देख सोच रहा था कि सबो की आँखे बंद हैं और सिनेमा का आनंद ले रहे रहे हैं यदि मैं आँखे खोल कर सीनेमा का आनंद लेता हूँ तो लोग क्या कहेँगे, मैं भी बैठ गया और रात भर आँखे बंद करके सिनेमा का आनंद लिया।

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