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लॉक डाउन संवाद 1

7 सितम्बर 2021

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लॉकडाउन संवाद - भाग 1

नहाने के बाद वाड्रोब खोलकर बनियान को हाथ लगाया ही था कि टीशर्ट चहक पड़ी...

साहेब कौन सा महीना चल रहा है?

चल हट पगली!!! मर्दों से ऐसा सवाल पूछा जाता है कहीं? थोड़ा पेट क्या बाहर निकल आया तू तो मसखरी पर उतर आई!!

आप तो नाराज हो गए साहेब!!! हम तो पूछे थे कि कौन सा कलेंडर मन्थ चल रहा है? इधर हैंगर पर लटके लटके कमर दुखने लगी। गर्मी आ गई हो तो हमका भी पहिन लो एक आध बार।

अरे नहीं पगली तू उधर ही टँगी रह। अभी गर्मी नहीं आई। अभी तो ओले पड़ रहे हैं इधर उधर। कोरोना जैसे ओले पड़ रहे हैं। गर्मी आएगी तो तुझे ही पहना करूँगा। तू चिंता मत कर।

अच्छा साहेब... भूलियेगा मत। 

टी शर्ट की पकर पकर बन्द हुई ही थी कि सफारी सूट चिल्लाया...

ये मनमानी नहीं चलेगी नहीं चलेगी!! हम लेकर रहेंगे आजादी!! ये अत्याचार अब और ना सहेंगे...

अबे चुप कर कन्हैया की औलाद... क्या बकवास कर रहा है? कैसी आजादी? कौन सा अत्याचार??

साहेब आप अभी टीशर्ट को कहे कि गर्मी आएगी तो तुझे पहनूंगा। आप हमका काहे नहीं पहिनियेगा?? हम भी तो हैंगर पर लटका हूँ पिछली गांधी जयंती से। लास्ट टाइम आपने हमका 2 अक्टूबर को पहिना था और उसके बाद आजतक हमरी तरफ आँख उठा कर ना देखा। नहीं सही जाती आपकी यह बेरुखी साहेब.... 😢

ओ बस कर पगले अब रुलाकर ही मानेगा क्या!!! तू मेरी मजबूरी समझ यार। पिछले एक महीने से सन्डे के बाद सन्डे सन्डे आये जा रहे हैं। बाहर पूरा लॉक डाउन है। अब तू ही बता तुझे पहनकर कहाँ जाऊं? छत पर जाता हूँ तो तेरी मालकिन पीछे पीछे आ जाती है कि छत पर क्यों गए? अब तू ही बता तुझे पहनकर क्या बैड पर लेटा रहूँ? अबे सिलवटों से भर जाएगा तू सिलवटों से....

ओह मालिक!!! आप कितने अच्छे हैं!! आप कितना ख्याल रखते हैं मेरा!! मेरी ही मति मारी गई थी जो बेवजह आप पर शक करने लगा। माफी साहेब माफी।।

तभी एक कोने से जुराब की मिमियाती हुई आवाज सुनाई पड़ी... हमरा भी ध्यान रखना मालिक। जब सन्डे खत्म हो जाएं तो हमें भी याद कर लेना।। बहुत दिन हो गए जूतों से मुलाकात ही नहीं हुई हमरी। पता नहीं जूते जिंदा हैं भी या कहीं छोड़ आये आप उन्हें पुलिस से बचकर भागते हुए। 

अले अले अले!! मेरी छुटकी रानी.... ऐसा नहीं बोलते। जूते जिंदा भी हैं और सही सलामत भी हैं। मंडे आने दो। जब जूते चटकारता घूमूंगा तो तुम्हीं को साथ लेकर घूमूंगा।

तभी पैंट के गुर्राने की आवाज आई... रुमाल से आपको बहुत प्यार हो गया है आजकल साहेब!!! उसे तो रोज घुमाने ले जाते हो और हमको महीने भर से इधर लटका कर रखा है!!! और ये पेट देख रहे हो साहेब अपना??? हमें तो नहीं लगता कि मंडे आने पर हमें पहन पाओगे? बत्तीस कमर थी आपकी जब हमें सेल में से लेकर आये थे अब आपकी कमर छत्तीस हो गई... हमें तो ना लगता अब हम आ पाएंगे आपके उस कमरे पर। पटक आओगे हमें किसी दर्जी की दुकान पर कि बना दो इसे छत्तीस 😢😢

अब कमर 32 से 36 हो गई तो इसमें मेरा क्या दोष? ये तो उनसे पूछो ना जो सन्डे के बाद सन्डे सन्डे भेजे जा रहे हैं... तुम्हें तो बस अपनी पड़ी है!! तुम क्या चाहती हो तुम्हें पहनकर पौछा लगाऊं? या तुम्हें पहनकर गमलों में पानी दूं? या तुम्हें पहनकर बर्तन माँजू? चलकर देखो मेरे साथ किचन में कितनी गर्मी होती है। दस मिनट में पसीने से ना भीग गई तो कहना... तुम्हें पहनकर किचन में काम करके बाहर आऊंगा तो लोग यही समझेंगे कि पैंट में...... दिया।

वार्तालाप चल ही रहा था कि चड्ढी के ठहाके लगाने की आवाज आई... हमारे तो मजे हैं। हम तो रोज नहाते भी हैं। रोजाना धूप भी खाते हैं और हवा भी... पूरी वाड्रोब में बस चड्ढी ही खुश दिखाई दी। चड्ढी इससे आगे कुछ बताती तब तक बाहर से आवाज आई... अजी सुनते हो!!! जल्दी आओ नाश्ता लग गया है।


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