माँ तुम्हारे आँचल में ममता का भंडार है
तूने दिया मुझे यह जीवन यह तेरा उपकार है।
अद्भुत है तेरी काया तू मोक्ष का व्दार है।
यह कहता हूँ मैं तेरे चरणों में वसा संसार है।
तू वो है गागर जिसमें,
भरा है ज्ञान का सागर।
तूने दिया मुझे जीवन का आधार है।
इस लिए ईश्वर ने दिया
तुझे प्रथम गुरु का अधिकार है।
खुद भूखी सो जाती,
पर हमें खाना खिलाती थी।
खुद सोती थी गीले बिस्तर पर,
हमें सूखे मे लिटाती थी।
बचपन से निकला आयी जवानी थी।
प्यार मोहब्बत की रचाई कहानी थी।
हुई शादी माँ को भूल गये।
मानो उस प्रेम की छाती,
गाण कई शूल दिये।
आज हमने देखा है।
पार की नफरत की रेखा हैं।
माँ पहुंच गई वृध्दा आश्रम।
और घर में आवारा।
कुत्तों को पलते देखा है।
जिसने पाला है चार - चार को।
आज उनसे एक माँ नहीं समलती।
चंद सिक्कों के लिए आज
माँ बाप के आचल पर दुनिया मूग
दलती हैं।
अपनी खुद गार्जी के लिए।
दुनिया क्या क्या न करती है।
माँ के सुहाग के गहनों को।
निज स्वार्थ के लिए निगलती है।
फिर भी उस माँ के मन मंदिर में।
प्रेम की ज्योति जलती है।
माँ फिर भी कहती लाल मेरा खुश रहे।
जीवन में न तुझे कभी दुख रहे।
माँ की उपमा सिर्फ माँ है
दूजा कोई और नहीं।
माँ के चरणों में चारों धाम है
इससे बढ़कर दूजा कोई और धाम नही।
माँ की ममता अनमोल है।
क्या इस का मोल दे पाएगे
गुजर जाएगा युगों युगों का जीवन।
फिर भी इसका मोल न चुका पाएगे।
मैं दुनिया की हर माँ से बस यह कहता हूँ।
मै तेरा ही लाल हूँ जो हर दिल में रहता हूं।
तुम जब भी नज़र घुमावगी।
मुझे अपने मोक्ष रुपी चरणों में पाओगी।
माँ अम्बर की बूंद हैं, है धरा की वो माटी।
जिसकी महिमा इन शब्दों में न कही जाती।
माँ की छाती वो छाती है।
जिसमें वसे है मथुरा और काशी।।
( अनुज कुमार कश्यप नौली कन्नौज)