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मां तुम ही हो --भाग तीन

19 सितम्बर 2024

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अकस्मात उसके कंधे पर किसी ने पीछे से हाथ रखा था ....उसने मुड़कर देखा तो सुजाॅय के गुजरे हुए पिता के मित्र का बेटा था ।

"परिमल तुम ...."

" चाची भीतर चलिए मैं सारी सूचना ले आया हूं...." परिमल ने फुसफुसाते हुए उसकी तरफ देखकर अपने हाथ पीछे बांधकर कहा था।



"परिमल तुम्हें क्या पता चला!!......" वो कमरे में आकर बिस्तर पर बैठते हुए अधीरता से बोली थी।

परिमल के पिता सुजाॅय के पिता के अभिन्न मित्र होने के साथ-साथ उनके पारिवारिक अधिवक्ता भी थे और उन्हीं से उन्होंने अपनी वसीयत रजिस्ट्रर्ड करवा कर एक काॅपी उन्हें सौंप दी थी जब वे अपनी अंतिम सांसें गिन रहे थे।

परिमल अपने पिता के निर्देशन में वकालत सीख रहा था और उसका सच्चा विश्वासपात्र भी था।

"चाची , आपका शक सही था,सुजाॅय के चचेरे भाई बहुत बड़ा षड्यंत्र रच रहे हैं,,, वो उसके लिए जो रिश्ता लाए हैं उस लड़की का अपना कोई परिवार है ही नहीं,, क्योंकि वो तो ...........कोठे वाली है...... आगे की बात उसने पूरी की थी जिसपर परिमल ने सहमति में सिर हिलाया था।

"चाची लगता है कि सुजाॅय आ रहा है, मैं पीछे के दरवाजे से जा रहा हूं उसने मुझे देख लिया तो सही नहीं होगा..............." परिमल तेजी से पीछे के दरवाजे से निकलने के लिए मुड़ा था ,,,

परिमल तुम यहां अब मत आना, मैं नहीं चाहती कि तुम सुजाॅय के चचेरे भाईयों के शक के घेरे में आ जाओ और वो तुम्हारे साथ कुछ गलत कर बैठें ....... जाते हुए परिमल से उसने अपनी आशंका प्रकट करते हुए यहां आने से मना कर दिया था।


सुजाॅय कमरे में आया था।

"सुजाॅय मेरे बच्चे, मैं तुम्हारे लिए बहुत अच्छी लड़की खोजकर तुम्हारा विवाह उससे करूंगी,तुम इस रिश्ते के लिए कभी हां मत कहना, ईश्वर साक्षी है कि मैंने तुम्हें सदा प्यार ही किया है,याद करो मेरा स्नेह,मेरी तुम्हारे प्रति परवाह!!!"वो सुजाॅय का हाथ पकड़कर विनती करने लगी थी।

" हां बचपन से लेकर आज तक आपने मेरी बहुत परवाह की ,,, मानता हूं क्योंकि बकरे को काटने से पहले उसे सहलाया जाता है ना!! ......." वो अवाक होकर सुजाॅय का मुंह देखने लगी थी।

क्या वो समझ नहीं रही थी कि सुजाॅय के मुंह में ये शब्द कौन भर रहा है!!

"मैं भी देखती हूं कि तुम अपने चचेरे भाईयों के द्वारा लाए गए रिश्ते को कैसे स्वीकार कर विवाह करते हो !! मैं ये विवाह नहीं होने दूंगी तो नहीं होने दूंगी,,सुन लो कान खोलकर......."क्रोध से चीख पड़ी थी वो और सुजाॅय फिर पैर पटकते हुए कमरे से निकल गया था।

"देखा हमने कहा था ना कि सौतेली नहीं चाहती कि तुम्हारा विवाह हो!! तुम्हारा विवाह हो गया तो सारी चल और अचल संपत्ति तुम्हारे नाम हो जाएगी और उसके हाथ तो कुछ नहीं आएगा!! 

तुम ये विवाह न करो इसलिए तुम्हें समझाने हेतु सौतेली उस लड़की को कोठे वाला तक कहने से न चूकेगी , विश्वास न हो तो बात करके देख लो कि आपको इस रिश्ते से क्या दिक्कत है!!" दरवाजे के पीछे छुपे खड़े उसके चचेरे भाईयों ने उसे कंधे से पकड़कर घर के बाहर बरामदे में ले जाते हुए कहा था।

"अच्छा!! मैं ये भी स्पष्ट करके देख ही लूं, दादा आप लोग यहीं रहिएगा मैं आता हूं....." 

एकबार फिर सुजाॅय उसके सामने खड़ा था।

"क्या आप बता सकती हैं कि आपको इस रिश्ते से क्या दिक्कत है!!...... कोई मजबूत वजह हुई तो मैं आपकी बात पर विचार करूंगा....." अपने हाथ आगे पेट पर बांधे हुए ही सुजाॅय बोला था।

" हां क्योंकि वो लड़की कोठे वाली है!! ये वजह पर्याप्त नहीं है!!......" वो तैश में बोल गई थी।

"वाह , नहीं मतलब वाह !! सही कह रहे थे मेरे दादा लोग,,, मैं ये विवाह न करूं इसलिए आप एक मासूम लड़की को कोठे वाला बनाने से भी नहीं चूकेंगी!!........"सुजाॅय तीर की गति से कमरे से निकल गया था और फिर परिमल कमरे में आया था।


"तुम फिर आ गए!! मैंने तुम्हें मना किया था फिर...."

"चाची जानती हैं मैं पीछे के दरवाजे से बाहर निकल कर सामने से होते हुए जब बाहर जा रहा था तो मैंने देखा कि सुजाॅय के चचेरे भाई आपके कमरे के दरवाजे से चिपके हुए खड़े थे...." परिमल ने बिस्तर पर सिर पकड़कर बैठी उससे कहा था।

"ठीक है परिमल अब जो होगा मैं देख लूंगी मगर तुम यहां नहीं आओगे, तुम्हें मेरी शपथ" ।

परिमल सहमति में सिर झुकाकर चला गया था।

उसकी आंखों से आंसू ढुलक गए थे ,उसे परिमल को यहां न आने की शपथ देनी पड़ी थी क्योंकि उसे आभास हो गया था कि आगे क्या होने वाला है .....



"दादा अब आप लोग ही बताइए ना कि मैं क्या करूं!! उस सौतेली के रहते तो मैं विवाह कर न पाऊंगा!!......"रात में मुट्ठी बांधे सुजाॅय लाॅन में चहलकदमी करते हुए बोला था और वो छत से ये सारी चीजें देख सुन रही थी।

वे इस बात से अंजान उसके कन्धे पर हाथ रखकर बोले थे --"अब ये भी हमें ही बताना पड़ेगा!! धक्के मारकर निकालो सौतेली को घर से!!तभी तुम विवाह कर सकोगे और अपनी सारी चल और अचल संपत्ति पा सकोगे वरना तो ये सौतेली कुण्डली मारे बैठी रहेगी संपत्ति के ऊपर......."

सुजाॅय तेज कदमों से मुट्ठी बांधे हुए ही लाॅन से भीतर आ रहा था और वो सीढियां उतरकर नीचे.....

"सौतेलीईईईईई ,,, कहां है तू!! बहुत हो गया तेरा अब तो तू इस घर से निकल ......" पूरे घर में जैसे सुजाॅय की चीख गूंज गई थी।

"मैं यहीं हूं, चीखने की आवश्यकता नहीं है और मैं इस घर से कहीं नहीं जाने वाली...." उसने सीढ़ियों के अंतिम पायदान पर खड़े होकर कहा था।

"तू जाएगी और तेरे बाप भी जाएंगे,सीधे से निकल जा मुझे कुछ करने पर विवश मत कर !!....."सुजाॅय की आंखों में उतरे खून को देखकर एक बार तो वो भयभीत हो उठी थी मगर अगले ही पल संभलकर बोली थी --" अपनी मां से कोई ऐसे बात नहीं करता है!! मैं तुझे छोड़कर नहीं जाऊंगी,,, तू मेरा बच्चा है ...." वो कहती रह गई थी और सुजाॅय  उसे उसके बालों से खींचते हुए ले जाने लगा था जिसमें वो गिर गई थी --"सुजाॅय छोड़ो!! मुझे दर्द हो रहा है,, अपने चचेरे भाइयों के बहकावे में आकर तू सही नहीं कर रहा है!!आहह सुजाॅय मेरे घुटने छिल जाएंगे मुझे छोड़........."मगर सुजाॅय ने उसे उसी तरह घसीटते हुए घर के बाहर धकेल कर भीतर से दरवाजा बंद कर लिया था और वो दरवाजा पीटते हुए बिलखते हुए कह रही थी --"सुजाॅय दरवाजा खोल मेरे बच्चे,,, तू अपनी बरबादी को न्योता दे रहा है,,, मैं ऐसा नहीं होने दे सकती ,, मैं तेरे पिता को क्या मुंह दिखाऊंगी!!........."मगर दरवाजा नहीं खुला तो नहीं खुला था................. जारी है।

प्रभा मिश्रा 'नूतन '
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रचनाएँ
मां तुम ही हो
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मैं आप सबके लिए एक नई कहानी लेकर आई हूं--'मां तुम ही हो'। मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । मेरी इस कहानी में दिखाया गया है कि सौतेली मां भी सगी मां की तरह बच्चे को प्यार दे सकती है ये एहसास एक व्यक्ति को होता है । बहुत खूबसूरत कहानी आपको पढ़कर अच्छा लगेगा । पसंद आए तो अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दें 😊🙏
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