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मां तुम ही हो -भाग छह -अंतिम भाग

19 सितम्बर 2024

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"साध्वी मां ये चार और अनाथ बच्चे मिले हैं तो इन्हें भी यहां ले आया हूं.." एक संयासी चार मासूम छोटे , उदास बच्चों के साथ खड़ा उनके सिर पर हाथ फेरते हुए उनसे बोला।

"अच्छा किया, इनकी भी बाकी अनाथ बच्चों के साथ गुरु से शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था करो ,ये भी बाकी अनाथ बच्चों के साथ धर्म की , संस्कारों की , सभ्यता, चरित्र निर्माण की शिक्षा ग्रहण करें जो बहुत आवश्यक है ताकि ये सभ्य सुसंस्कृत इंसान बनें........"कहते हुए वे अपने कक्ष में चली गई थीं।

एक तरफ वैद्य जी के द्वारा चिकित्सा पाकर सुजाॅय उत्तरोत्तर स्वास्थ्य लाभ ले रहा था और दूसरी तरफ साध्वी मां अपने कार्यों में व्यस्त थीं -- विधवाओं, परित्यक्ताओं,को स्वावलंबी बनाने में,अनाथ बच्चों को शिक्षा दीक्षा दिलवाने में, लावारिस पार्थिव देह का स्वयं अंतिम संस्कार करने में, नित्य दोनों समय यज्ञ पूजन करने, दान-धर्म करने में.....

फिर एक दिवस ----


"साध्वी मां वो जिस युवक का वैद्य जी के संरक्षण में उपचार चल रहा था वो पूरी तरह सही हो गया है और अब आपसे भेंट करने का इच्छुक है!!" एक संयासी युवती ने आकर जाप करती साध्वी मां से हाथ जोड़कर कहा था।

"हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ.... भेज दो उसे परंतु जब तक उसका और मेरा वार्तालाप यहां कक्ष में चले तब तक कोई भी मेरे कक्ष के समीप भी नहीं आना चाहिए....." साध्वी मां ने जपमाली रख दी थी और उसे हाथ दिखाकर जाने का संकेत करते हुए बोलीं।

उन्हें पता था कि सुजाॅय उनसे क्यों भेंट करना चाहता है...

कुछ देर बाद सुजाॅय उनके कक्ष में आया और आसन पर विराजमान साध्वी मां के चरणों से लिपटकर अश्रुजल से उनके चरण धोता हुआ बोला --"मां मुझे क्षमा कर दीजिए, मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया,मुझसे पाप हो गया,एक मां का अपमान करने का घोर पाप ...... दुनिया में एक मिथक है कि सौतेली मां, सौतेली होती है,वो कभी पति की पहली पत्नी के बच्चे को अपने बच्चे की तरह प्यार नहीं करती,,, और मुझे तो इस मिथक पर विश्वास कराने के लिए चार चचेरे भाई थे !!

मैंने ये क्यों नहीं सोचा कि सौतेली मां भी मां हो सकती है, अपवाद तो हर रिश्ते में होते हैं,पर एक मां बस होती है और कुछ नहीं...
मां मैं आपकी क्षमा के लायक नहीं हूं पर फिर भी मां मुझे क्षमा कर दीजिए, मां घर वापस चलिए ,,, मां घर वापस चलिए!!!......"

"अब मेरा यही घर है सुजाॅय......." तटस्थ भाव से साध्वी मां सुजाॅय के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं ।

"ठीक है, तो जहां मेरी मां है मैं भी वहीं रहूंगा, जिस संपत्ति के लिए इंसान इस हद तक गिर जाता है उस संपत्ति का भोग भी मैं नहीं करूंगा,सारी चल और अचल संपत्ति यहीं आश्रम में जरूरतमंद लोगों के लिए, दान-धर्म इत्यादि के समर्पित करके घर-गृहस्थी से मोह त्यागकर आपकी भांति आपके साथ संयासी जीवन व्यतीत करूंगा,यही मेरा पश्चाताप होगा ......"सुजाॅय साध्वी मां की गोद से अपना आंसुओं भरा चेहरा उठाकर उनकी तरफ देखते हुए दृढ़ संकल्प लेते हुए बोला।

साध्वी मां उसकी तरफ एकटक देखने लगी थीं।

"  ऐसे क्या देख रही हो मां, जानती हो मां,अपने पिता की जीवन भर की कमाई हुई संपत्ति के कागजों पर मैंने अपने वास्तविक हस्ताक्षर नहीं किए मां, वो तो हस्ताक्षर के नाम पर चिड़िया बैठा दी थी,अब वे क्या जाने कि ये सुजाॅय के वास्तविक हस्ताक्षर नहीं हैं और इनके आधार पर सारी चल और अचल संपत्ति उन चारों के नाम होने से रही !!वो तो अभी भी मेरे नाम ही है ......." 

हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ साध्वी मां कहते हुए उठ खड़ी हुई थीं।


सुजाॅय को अपनी करनी का पश्चाताप हो गया था और  वो उनके कक्ष से निकलकर संत महाराज के पास गया--

"महाराज मैं भी आपके आश्रम में रहकर एक संत के रूप में जीवन व्यतीत करना चाहता हूं मगर उसके पूर्व मेरे साथ जिन लोगों ने अमानुषिक आचरण किया उनको उनके कृत्यों की सजा दिलवाना चाहता हूं पर कैसे!! मुझे मार्ग दिखाइए ....."सुजाॅय संत महाराज के चरणों में हाथ जोड़कर बैठ गया था।

संत महाराज मुस्कुरा कर बोले --" जो करना है वो ईश्वर करेगा ,सब वही तो करता है!!किसको सजा देनी है ,किसको नहीं!! हर व्यक्ति को उसके कर्मों की सजा अवश्य मिलती है अतः सब उस ईश्वर पर छोड़ दो और संतत्व गृहण करना है तो पूरे मन से करो वरना संसार और संयासी जीवन के मध्य झूलते रह जाओगे और कहीं शांति न पाओगे!!....."

"जो आज्ञा महाराज "कहकर सुजाॅय ने सब ईश्वर पर छोड़कर 
संयास लेकर साध्वी मां के कार्यों में अपनी भागीदारी देनी प्रारंभ कर दी और उधर  परिमल को उस रात नींद न आई थी और वो सुजाॅय के घर पहुंच गया था देखने के लिए कि सब ठीक है या नहीं, वहां उसने सुजाॅय के साथ जो उसके चचेरे भाइयों ने किया वो देख लिया मगर स्वयं भीतर जाने से अच्छा उसने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना सही समझा क्योंकि भीतर जाने पर वे उसे भी मार सकते थे!!
भोर होते ही उसने सुजाॅय के चारों चचेरे भाईयों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई थी।
पुलिस उसके घर पहुंचती इसके पूर्व ही वे चारों उसे लेकर लेकर झाड़ियों के पीछे डालने चले गए थे।

श्मशान घाट में जो घटित हुआ उसका किसी ने वीडियो बनाकर वायरल कर दिया था और उस सबके आधार पर चारों को धरदबोच कर उनके सारे जघन्य अपराध पर सजा सुनाकर सलाखों के पीछे डाल दिया गया था ।




समाप्त।

प्रभा मिश्रा ' नूतन '
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रचनाएँ
मां तुम ही हो
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मैं आप सबके लिए एक नई कहानी लेकर आई हूं--'मां तुम ही हो'। मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । मेरी इस कहानी में दिखाया गया है कि सौतेली मां भी सगी मां की तरह बच्चे को प्यार दे सकती है ये एहसास एक व्यक्ति को होता है । बहुत खूबसूरत कहानी आपको पढ़कर अच्छा लगेगा । पसंद आए तो अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दें 😊🙏
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मां तुम ही हो -भाग एक

19 सितम्बर 2024
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"साध्वी मां,,,, एक लावारिस पार्थिव देह अपने अंतिम संस्कार की बाट जोह रही है......" संयासिनी के वेश में एक बालिका ने आकर हाथ जोड़कर, सूचित किया था।आश्रम के एक कक्ष में स्वस्थ काया की , गौर वर्ण, लम्बे

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मां तुम ही हो --भाग दो

19 सितम्बर 2024
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"महाराज आपकी अनुमति हो तो आज से हर लावारिस शव का अंतिम संस्कार मैं करना चाहूंगी,बस मुझे इसमें किसी की मदद चाहिए होगी जो मुझे न केवल सूचित करे कि लावारिस शव मिला है अपितु वो शव को श्मशान घाट तक ला सके

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मां तुम ही हो --भाग तीन

19 सितम्बर 2024
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अकस्मात उसके कंधे पर किसी ने पीछे से हाथ रखा था ....उसने मुड़कर देखा तो सुजाॅय के गुजरे हुए पिता के मित्र का बेटा था ।"परिमल तुम ...."" चाची भीतर चलिए मैं सारी सूचना ले आया हूं...." परिमल ने फुसफुसाते

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मां तुम ही हो --भाग चार

19 सितम्बर 2024
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कोई जल लाओ शीघ्र...... वो सुजाॅय के पास बैठते हुए तेज स्वर में बोलीं फिर अगले ही क्षण याद आया कि मैं तो यहां अकेले आई थी!!तेजी से उठते हुए वो श्मशान घाट से बाहर पानी लेने दौड़ गई थीं और कुछ क्षण

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मां तुम ही हो --भाग पांच

19 सितम्बर 2024
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"हस्ताक्षर तो तुझे करना ही है ,या तो ऐसे ही कर दे या फिर हम चारों मिलकर तेरा हुलिया बिगाड़े तब कर ,सोच ले कैसे करना पसंद करेगा !!.....""छोड़ो मुझे,,, पैर हटाओओओ ,, मैंने कहा ना कि नहीं करूंगा तो नहीं

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मां तुम ही हो -भाग छह -अंतिम भाग

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