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मां तुम ही हो --भाग चार

19 सितम्बर 2024

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कोई जल लाओ शीघ्र...... वो  सुजाॅय के पास बैठते हुए तेज स्वर में बोलीं फिर अगले ही क्षण याद आया कि मैं तो यहां अकेले आई थी!!

तेजी से उठते हुए वो श्मशान घाट से बाहर पानी लेने दौड़ गई थीं और कुछ क्षणों बाद अपनी अंजुली में लाया पानी उसके मुंह पर डाला ....


आह आह आह..... कराहते हुए उसकी आंखें खुल गईं।

सामने वो बैठी हुई थीं ,, गीले नयन लिए हुए,उसका सिर अपनी गोद में रखे हुए.....

उन्हें देखकर उसने अपने आसपास देखा,स्वयं को कफन से लिपटे हुए देखा ,स्वयं को श्मशान घाट में देखा और वो अतीत में पहुंच गया..........

हुंह् चमेली !! चमेली,, ये कहां चली गई!!...... एक रात को यकायक नींद खुलने पर अपनी नवविवाहिता चमेली को पास न पाकर बुदबुदाते हुए वो पूरे घर में उसे खोजते हुए लाॅन की तरफ चला गया था और वहां उसने अपने चचेरे भाईयों और चमेली को खड़े कुछ बात करते हुए सुना था,,, 

ये चमेली यहां क्या कर रही है!!और ये लोग क्या बात कर रहे हैं!! थोड़ा पास जाकर सुनता हूं..... बुदबुदाते हुए वो थोड़ा आगे बढ़कर सुनने लगा था ---

"उसके दूध के ग्लास में अच्छी तरह नींद की दवा मिलाई थी !! वो दूध पीकर सो गया तब ही आई हो या ऐसे ही!!....."

"क्या बाबू ! चमेली कच्चा काम नहीं करती , मैंने अच्छी तरह दूध में नींद की दवा मिलाकर उसे पिला दिया था,वो उसके असर से गहरी नींद में सो गया तब आई ,,, .......".

"वो सब छोड़ो , ये बताओ जिस काम के लिए तुम्हें यहां लाया गया वो काम कब तक होगा !!वर्ष भर हो गया है तुम्हारा सुजाॅय से विवाह हुए और अभी तक हरी झंडी नहीं दिखाई!!......" 

"आप लोगों को क्या लगता है कि मैं उसके साथ बस शादी शादी खेलने में व्यस्त हूं!! अरे अपनी अदाएं दिखाकर ,झूठे प्यार से रिझाकर, अप्रत्यक्ष रूप से सारी चल और अचल संपत्ति अपने नाम करने को कही मगर उसके कान पर जूं तक न रेंगी !! तो मैं क्या करूं!!"

" तुम कुछ मत करो ,अब जो करना है हम लोग ही करेंगे....भोर होते ही जबरन सारी सम्पत्ति सीधे सीधे अपने नाम करवाने के लिए कहेंगे, सीधे-सीधे माना तो ठीक वरना फिर.......


उसे अपने कानों और आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था!!, 

अभी जो उसने देखा, सुना वो सच था या वो स्वप्न देख रहा था!!


अच्छा ही हुआ कि मेरे दूध के ग्लास में मक्खी गिर गई थी जो मैं देख न पाने के कारण घूंट मुझे में भरा ही था कि मुझे एहसास हुआ और मैंने सारा दूध अपने सिरहाने रखे पौधे में डाल दिया था जो चमेली ने देखा न था वरना तो मैं नींद में सो रहा होता और ये सब पता न चलता!!

सोचते हुए लड़खड़ाते हुए वो बचा जिसके कारण लाॅन के पास उसके पीछे रखा गमला गिर गया और उसकी आवाज से उन लोगों ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे खड़ा पाया था।


इधर सुजाॅय अतीत में खोया हुआ था और उधर वे भी उन क्षणों में पहुंच गई थीं ---
"किसको क्या करना है? ईश्वर स्वयं निर्धारित करता है,समय आने पर..... देवी के रहने का प्रबंध कर दो इस बरामदे से लगे प्रथम कक्ष में......" मुस्कुरा कर उससे कहते हुए वे किसी सेवक को आदेश देते भीतर चले गए थे।

वो उनके पीछे जाते हुए बोली थी--" महाराज, महाराज, मेरी बात सुन लीजिए --कहकर सारी बात बताते हुए वो हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोली थी--" महाराज मैं अपने बच्चे सुजाॅय को उन स्वार्थी,बेरहम इंसानों उसके चचेरे भाईयों के मध्य छोड़कर आई हूं,मेरे बच्चे को कुछ हो गया तो मैं अपने इहिलोकगामी पति को वहां जाकर क्या मुंह दिखाऊंगी!! 

महाराज कुछ ऐसा करिए जिससे सुजाॅय की आंखों पर पड़ी पट्टी खुल जाए ,उसे अपने चचेरे भाइयों का वास्तविक चेहरा दिख जाए और,और कुछ ऐसा कि उसके चचेरे भाई उसका बाल भी बांका न कर पाएं और......" सुजाॅय की चिंता में वो बोलती जा रही थी और उसे शांत रहने का संकेत करते हुए संत महाराज मुस्कुरा कर बोले थे --"शांत ,......देवी..... शांत .......न कोई किसी का अनिष्ट कर सकता है और न कोई किसी की रक्षा क्योंकि करने वाला तो वो ऊपर बैठा है ,हम इंसान कुछ नहीं करते हैं,, इसलिए सब उसपर छोड़कर उसके चरणों में ध्यान लगाते हुए दिन व्यतीत करो ,वो जो करेगा अच्छा ही करेगा .......कहते हुए संत महाराज भीतर चले गए थे........


................ अच्छा तो तुझ पर नींद की दवा ने असर नहीं किया और तूने यहां आकर सारी बातें सुन लीं,,,, अच्छा ही है,, वो कहते हैं ना कि काल्ह करे सो आज कर आज करे सो अब... मैंने इसी दिन के लिए पहले से कागज तैयार करके रखे थे जिसमें लिखा है कि मैं अपने पूरे होशो-हवास में अपने पिता द्वारा प्रदत्त अपनी सारी चल और अचल संपत्ति अपने चारों चचेरे भाइयों में बराबर बराबर बांट रहा हूं, चल भीतर चल और उन कागजों पर अपने हस्ताक्षर बैठा दे .....कहते हुए एक चचेरे भाई ने उसे पीछे से गरदन पकड़ी थी और घर के भीतर ले जाने लगा था और बाकी तीनों चचेरे भाई और चमेली पीछे पीछे घर के भीतर आए थे।

घर के भीतर हाॅल में उसे बीचोंबीच पटक कर वो कागजात और कलम लाकर उसके हाथ में देते हुए बोले थे --"ले इन पर अपने हस्ताक्षर बैठा......"


"मैं नहीं करूंगा,,, ये तुम सबकी चाल थी !! सम्पत्ति तुम चारों हथियाना चाहते थे!!उसके लिए इतना बड़ा षड्यंत्र रचा!!
बचपन से मुझे तुम चारों पट्टी पढा़ते रहे कि..........अरेएए चुउउउउउउप !!बंद कर अपनी बकवास!!

हमारे पास इतना समय नहीं है कि तेरी ये बकवास सुनें......"

हां और मेरे पास भी इतना समय नहीं है,साल भर वैसे भी बर्बाद हो गया और एक फूटी कौड़ी भी अभी हाथ नहीं लगी , मुझे मेरा हिस्सा मिले और मैं भी अपने रास्ते जाऊं......"

उसकी बात को बीच में काटकर उसके चचेरे भाई बोले थे और उनके बाद चमेली अपना रोना लेकर बैठ गई थी।

"मैंने कहा ना कि मैं कहीं भी किसी भी कागज पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा......"वो जमीन से उठते हुए बोला था और एक चचेरे भाई ने उसे फिर जमीन पर गिराकर उसके कंधे पर अपना जूते वाला पैर रख लिया था .......... शेष अगले भाग में।

प्रभा मिश्रा ' नूतन '
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रचनाएँ
मां तुम ही हो
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मैं आप सबके लिए एक नई कहानी लेकर आई हूं--'मां तुम ही हो'। मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । मेरी इस कहानी में दिखाया गया है कि सौतेली मां भी सगी मां की तरह बच्चे को प्यार दे सकती है ये एहसास एक व्यक्ति को होता है । बहुत खूबसूरत कहानी आपको पढ़कर अच्छा लगेगा । पसंद आए तो अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दें 😊🙏
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