"हस्ताक्षर तो तुझे करना ही है ,या तो ऐसे ही कर दे या फिर हम चारों मिलकर तेरा हुलिया बिगाड़े तब कर ,सोच ले कैसे करना पसंद करेगा !!....."
"छोड़ो मुझे,,, पैर हटाओओओ ,, मैंने कहा ना कि नहीं करूंगा तो नहीं करूंगा!!...." वो अपने चचेरे भाई का जूते वाला पैर हटाने का असफल प्रयास करते हुए बोला था...।
"हम्म् मतलब हुलिया ही बिगाड़ना पडे़गा ......"कहते हुए उसके चारों चचेरे भाई उसे बेतहाशा मारने लगे थे और वो --आहाआआ,हाआआआआ ,, छोड़ो मुझे.....दर्द से चीख रहा था....
ये सब देखकर भय से चमेली तो भाग खड़ी हुई थी कहते हुए --"ममम मैं अभी जाती हूं,बाद में आकर अपना हिसाब कर लूंगी...."
"हस्ताक्षर कर ,कर ,ले कर ,कहते हुए चारों चचेरे भाई उसे बेरहमी से पीटते जा रहे थे मगर मार खाता ,दर्द से चीखता वो हस्ताक्षर करना तो दूर अपने हाथ में कलम भी नहीं ले रहा था।
मार खाते-खाते उसके मुंह से खून निकलने लगा था।
"बड़ा ढीठ बन रहा है ना मगर हस्ताक्षर तो हम करवा कर ही रहेंगे......"कहते हुए उन चारों ने उसे मारना बंद ही नहीं किया तब उसने कलम लेकर हस्ताक्षर कर दिए थे और अर्धमूछित अवस्था में पहुंच गया था,,, उन चारों को तो यही लगा था कि वो मर गया ,मगर उसकी ऐसी स्थिति हो गई थी कि उसे सुनाई सब पड़ रहा था मगर वो कोई क्रिया प्रतिक्रिया व्यक्त करने की स्थिति में नहीं था।
उन चारों की आपस की बातचीत उसके कानों में पड़ रही थी --" ये तो मर गया!! पर कोई बात नहीं, कागजों पर हस्ताक्षर तो हो गए ।"
"हां मगर इसका क्या करें!!इसे ठिकाने तो लगाना पड़ेगा!!..."
"हां, इतने वर्षों से इसके उस सौतेली के विरुद्ध कान भरते रहने का परिणाम अब हाथ लगा है ,हा हा हा हा हा..."
"सही कहा, सौतेली मां के आगे सौतेली का ठप्पा वैसे भी लगा रहता है,वे बेचारी बच्चे के लिए सबकुछ करने में, ऐड़ी चोटी का जोर लगा दें तब भी इस ठप्पे को हटा ही न पाती हैं हा हा हा हा हा..."
"अच्छा बातें बहुत हो गईं ,अब इसके लिए अर्थी तैयार कर इसे कफन देकर यहीं कहीं किसी झाड़ी में फेंक देते हैं....."
"ना ना यहां पकड़े जाने का भय है,इसे तो बनारस के गंगा घाट के आसपास डाल कर आते हैं, वहां जो भी देखेगा लावारिस शव जानकर गंगा में प्रवाहित कर देगा ...."
"यही करते हैं " कहकर उन चारों ने उसे अर्थी पर लिटाकर कफन ओढ़ाकर बांध दिया था और उसके बाद उसे ,,, कुछ होश ही कहां रहा था ,,, उसकी आंखों के सामने चलचित्र की भांति सब चलने लगा था ---सुजाॅय दूध नहीं पियोगे तो ताकत कैसे आएगी!!.... सुजाॅय परीक्षा में अच्छे नम्बर लाने हैं ना!! तुम देर रात तक जग कर पढ़ो और मैं भी तुम्हारे साथ जग रही हूं यहीं तुम्हारे पास बैठे हुए तो निश्चित होकर पढ़ो.......
सुजाॅय मुझे तुम्हारे तलवों की मालिश करने दो तुम नींद से जग क्यों गए!! तुम सोते रहो और मैं तुम्हारे तलवों की मालिश करती रहूंगी जिससे तुम्हारी खेल के अभ्यास के कारण दौड़ने की सारी थकान दूर हो जाएगी,, सुजाॅय.............कब वो पूर्णतः मूर्छित हो गया था उसे पता ही नहीं चला था.......
अपना सिर उनकी गोद में रखा देखकर,उनके गीले नेत्र देखकर वो कुछ कहता उसके पहले ही स्वर सुनाई दिया ---" क्या बात है,, तू मरा नहीं जीवित है!!लगता है कि ईश्वर से विशेष रूप से ज्यादा उमर लिखाकर लाया है ,,,, हममममम "
"अरे कोई बात नही,तब नहीं मरा तो अब मार देंगे,, हम तो तुझे मरा जानकर यहां गंगा घाट के पास झाड़ी के सामने डालकर जा ही रहे थे कि देखा कि कोई दो संयासी जो उधर से आ रहे थे उन्होंने तुझे उठाया और लेकर जाने लगे तो सोचा कि चलो तुम्हारा अंतिम संस्कार भी देख लें तब ही घर वापसी करें मगर यहां तो तू जीवित निकला!!"
"पर अब जीवित नहीं छोड़ेंगे " कहकर वे चारों उसके चचेरे भाई उसकी तरफ बढ़ने लगे ।
"वहीं रुक जाओ , खबरदार जो मेरे बच्चे की तरफ एक कदम भी बढा़या!!......"साध्वी मां सुजाॅय का सिर अपनी गोद से भूमि पर रखते हुए अपने दाहिने हाथ की उंगली उन चारों को दिखाती हुई तेज स्वर में बोलीं।
"हा हा हा हा हा हा तू एक अकेली और वो भी औरत हम चारों आदमियों को रोक सकेगी !!
अच्छा,रोक कर दिखा दे .... कहकर वे चारों सुजाॅय के पास आने लगे ।
"मैं कहती हूं वहीं ठहर जाओ ,रुक जाओ ...." वे चेतावनी देती रहीं और वे चोरों सुजाॅय के समीप आ गए थे और उनमें से एक उसके सीने पर बैठ गया और दूसरा उसके पैरों पर बाकी दोनों उसकी गर्दन को दबाने के लिए हाथ बढ़ाए और ये देखकर साध्वी मां उन चारों पर झपट पड़ी थीं,आज चाहे प्राण चले जाएं मगर एक मां अपनी आंखों के समक्ष अपने बच्चे की जान जाते कैसे देख सकती थी !!
सुजाॅय को उन चारों से अलग करने की जद्दोजहद कुछ ऐसी प्रतीत हो रही थी जैसे शेर के जबड़े में फंसे अपने बच्चे को छुडा़ती हुई मां.....
स्त्री देह से कोमल होती है और कहा जाता है कि मर्द की गर्द भली ,,, उनपर वे चारों भारी पड़ रहे थे और जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो वे समीप जलती एक चिता से दोनों हाथों में दो जलती लकड़ी उठा लाईं और पूरी ताकत से चीखीं --" दूर हटो मेरे बच्चे से वरना चारों को जीवित जलाकर भस्म कर दूंगी......"
" गीदड़ भभकी!!हा हा हा,कहकर वे सुजाॅय की गर्दन पर अपने हाथ और जोर से दबाने लगे और वे पसीने से तरबतर दोनों जलती लकड़ी उनके बिल्कुल सामने लाकर फिर चीखीं --हटो वरना जला डालूंगी........"
तब तक आश्रम के कुछ संयासी वहां पहुंच गए थे जिन्हें चिंता हो रही थी कि साध्वी मां अभी तक क्यों नहीं आईं --
अपने चेहरों के बिल्कुल सामने जलती लकड़ी देखकर वे चारों भयभीत होकर सुजाॅय को छोड़कर अलग हो गए।
"साध्वी मां!! ......." एक संयासी हैरान होकर बोला।
उन संयासियों ने साध्वी मां का ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा था , उन्हें क्या पता था कि साध्वी मां एक मां भी हो सकती हैं,इस समय एक साध्वी नहीं एक मां ही तो खड़ी थी चार दानवो के समक्ष काली का रूप धारण किए जैसे!!!
उन संयासियों ने आकर बस ये दृश्य देखा था, उन्हें नहीं पता था कि साध्वी मां का इस कफन पड़े जीवित जन से कोई रिश्ता भी है!!
उन संयासियों के आ जाने से स्थिति को भांपकर और भय के कारण चारों वहां से भाग खड़े हुए।
साध्वी मां के हाथ से एक संयासी ने वो दोनों जलती लकड़ियां लेकर वापस चिता में रख दीं और साध्वी मां बोझिल कदमों से सुजाॅय की तरफ बिना दृष्टि डाले कहती हुई आश्रम की तरफ बढ़ चली थीं --"इसे खोलकर वैद्य जी के पास ले जाइए...."
सुजाॅय की आंखों से अश्रु ढुलक गए और वो उन्हें जाते हुए देखता तो रहा मगर अभी बोल पाने ऐसी स्थिति में वो नहीं था।
संन्यासी उसे उस अर्थी से मुक्त कर वैद्य जी के पास ले गए और साध्वी मां आश्रम पहुंची ........
शेष अगले भाग में।
प्रभा मिश्रा ' नूतन '