"महाराज आपकी अनुमति हो तो आज से हर लावारिस शव का अंतिम संस्कार मैं करना चाहूंगी,बस मुझे इसमें किसी की मदद चाहिए होगी जो मुझे न केवल सूचित करे कि लावारिस शव मिला है अपितु वो शव को श्मशान घाट तक ला सके ....." उसने संत महाराज से दूर खड़े होकर हाथ जोड़कर अनुमति की याचना की और संत महाराज ने मुस्कुराकर हाथ उठा दिया था।
उस दिन के बाद से ही तो जहां कहीं भी लावारिस शव मिलता ,संत महाराज के शिष्य श्मशान घाट पहुंचाकर संत महाराज के आश्रम के सेवकों को सूचित करते और वे उसे और वो चल पड़ती उसका अंतिम संस्कार करने .....
एक सेविका तो उसके पास कोई न कोई बनी ही रहती थी ।
समय गुजरते संत महाराज ब्रह्मलीन हो गए थे और उसे संत महाराज की गद्दी और 'साध्वी मां 'की उपाधि मिल गई थी.....
अतीत में खोए हुए वो श्मशान घाट पहुंच गई थी जहां भूमि पर वो लावारिस शव पड़ा हुआ था --
सफेद कफन से आपादमस्तक बंधा हुआ.....
साध्वी मां उस पार्थिव देह के समीप बैठ गई थीं,मन में अजीब सी हिलोरें उठने लगी थीं ,,, ऐसा क्यों प्रतीत हो रहा था कि इस पार्थिव देह से उसका कोई रिश्ता रह चुका है!!
उनके हाथ सिर की तरफ कफन पर बढ़े उसे हटाने को फिर उन्होंने हाथ पीछे खींच लिया.....
ये कैसी अनुभूति थी !! जो वो समझ नहीं पा रही थीं ...
जाने क्या सोचकर उन्होंने अपना सिर शव के ह्रदय पर रखा और वो आश्चर्यचकित रह गईं !!
उसकी तो धड़कन चल रही थी!!
इसका अर्थ कि ये मृत देह नहीं है!! इसमें अभी प्राण हैं !!
उन्होंने शीघ्रातिशीघ्र उसके सिर से कफन हटाया और उसका चेहरा देखते ही विस्मय से उनके मुंह से निकला ---सुजाॅय!!....
आंहा! आंहा! आंहा!!.... साध्वी मां मर्णासन्न सुजाॅय के समीप से अकस्मात उठकर खड़ी हुई तीव्र गति से श्वांस लेने और छोड़ने लगी थीं.....और एक बार पुनः अतीत उनके सामने खड़ा हो गया था........
"सुजाॅय,, समझने का प्रयत्न करो ! ये जो तुम्हारे विवाह के लिए रिश्ता लाया गया है ये तुम्हारे लिए सही नहीं है,,, लड़की की सुंदरता ही सबकुछ नहीं होती !! उसका घर-परिवार कैसा है,उनकी मानसिकता कैसी है,उनका रिश्ता जोड़ने के पीछे मकसद क्या है इस सबपर ध्यान देना सर्वप्रथम आवश्यक है!!....."
"हां आपको ये रिश्ता क्यों सही लगेगा भला!! क्योंकि ये रिश्ता तो मेरे चचेरे भाई जो लाए हैं!!......."
"सुजाॅय मुझे तुम्हारे चचेरे भाईयों से कोई दुश्मनी तो नहीं है ना!! और मैं तुम्हारी मां हूं,जो कहूंगी उसमें तुम्हारा हित ही होगा!!...."
" मां नहीं, ......मेरी मां तो तब ही गुजर गई थी जब मैं दसवी कक्षा में था,, मेरे पिता उसके बाद आपको ब्याह कर घर ले आए तो आप उनकी दूसरी पत्नी हुईं मगर मेरी मां आप नहीं हैं और न कभी होंगी!! आप सौतेली थीं, हैं और रहेंगी,ये बात मुझे आपको और कितनी बार बतानी पड़ेगी!!!......."क्रोध में
पैर पटकते हुए सुजाॅय कमरे से बाहर निकल गया था और वे धम्म से बिस्तर पर जैसे गिर सी गई थीं....
उफ !! बचपन से इसके चचेरे भाईयों ने इसके भोलेपन का लाभ उठाकर इसके मन मस्तिष्क में मेरे प्रति कितना विष भर दिया है!!
इसे हर वो बात अहितकर लगती है जो मैं कहती हूं!!
आह ! सुजाॅय के पापा , जो उम्मीद मुझसे रखकर आप मुझे ब्याह कर लाए थे उसपर मैं कैसे खरी उतरूं!!
स्वयं से कहते हुए वो एक बार फिर अतीत में पहुंच गई थी ---
"देखिए ये मेरी इकलौती पौत्री है, मैं इसका हाथ आपके हाथ में देने से पूर्व ये चाहता हूं कि आप इससे एक बार एकांत में वार्तालाप करके इसकी इच्छा भी जान लें , यदि ये आपसे विवाह को इच्छुक हो तो मुझे ये रिश्ता करने में कोई आपत्ति नहीं है...."
"मैं आपके बाबा साहब के कहेनुसार आपका मन जानना चाहता हूं,मैं एक बच्चे का पिता हूं,मेरी पत्नी गुजर गई है और मेरे पिता द्वारा प्रदत्त मेरी अकूत संपत्ति का अकेला वारिस मेरा पुत्र सुजाॅय है जो बेहद भोला है और मुझे इसी बात का भय है कि उसके भोलेपन का लाभ उठाकर उसके चचेरे भाई मेरी , संपत्ति उससे भविष्य में हथिया न लें, आपके बाबा साहब बहुत संत व्यक्ति हैं तो उनकी पौत्री भी उन्हीं के समान ह्रदय की होगी ये सोचकर मैं आपको अपनी धर्मपत्नी बनाने का इच्छुक हूं ताकि आप मेरे सुजाॅय को एक मां का प्यार देने के साथ ही उसके बालिग होने तक और उसके उपरांत भी सारी संपत्ति का रख-रखाव करें ।"
"मुझे आपसे विवाह करना स्वीकार्य है।"
"एक बात और स्पष्ट करना चाहूंगा...."
"आपको कहने की आवश्यकता नहीं है, मैं समझ गई कि आप क्या चाहते हैं,आप निश्चित रहें मैं सुजाॅय को अपने बच्चे जैसा प्यार दूंगी जैसे वो मेरी कोख से ही जना हो ...."
जब से ब्याह कर आई हूं तब से तो सुजाॅय को लाड़-प्यार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उसे मां का पूरा प्यार दे सकूं इसलिए अपनी कोख से बच्चा जनने का विचार भी मन में नहीं लाई ,मगर मैं जो भी करती हूं,उसके चचेरे भाई उसे उसमें उसका अहित होगा, पट्टी पढ़ा ही देते हैं!!पर मैं हार नहीं मानूंगी, बिल्कुल नहीं मानूंगी ....
सुजाॅय के चचेरे भाई अपने मकसद में कभी सफल नहीं होंगे,, ये रिश्ता तो कभी नहीं होने दूंगी......सोचते हुए वो अलमारी से उसके पिता की वसीयत की काॅपी निकाल कर एक बार फिर पढ़ने लगी थी ---- सुजाॅय के बालिग होने के पश्चात उसके विवाह उपरांत मेरी सारी चल-अचल संपत्ति का इकलौता वारिस मेरा पुत्र सुजाॅय होगा ।
यही तो चाहते हैं उसके चचेरे भाई कि अपने लाए रिश्ते से उसका विवाह करा दूं ताकि सुजाॅय के नाम सारी संपत्ति आने पर उसे बहलाफुसला कर सारी संपत्ति हथिया सकूं!!
बाहर से आते तेज स्वर से उसके कदम स्वर आने की दिशा में कमरे से निकल कर घर के लाॅन वाले बरामदे में चले गए थे और वो बरामदे में छुपकर खड़ी सुनने लगी थी ---
" सूचित कर दिया, अच्छा किया बाकी वो सौतेली चाहती ही नहीं है कि तुम्हारा विवाह हो !!
क्योंकि तुम्हारा विवाह हो गया तो सारी संपत्ति तुम्हारे नाम पर आ जाएगी ,,जब तक विवाह नहीं होता है तब तक तो सारी संपत्ति की मालकिन वही है ना!!"
"सही कह रहे हैं दादा आप लोग, मैं भी देखता हूं कि वो सौतेली मेरा विवाह कैसे नहीं होने देती है!!........"
शेष अगले भाग में।
प्रभा मिश्रा ' नूतन '