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मैंने चोरी नहीं की--भाग एक

11 सितम्बर 2024

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आंगन में झाडू़ लगाती हुयी वह बोली-"आपकी अंगूठी बहुत खूबसूरत है साहब।"
"क्यों री कमला!मैं जब भी ये अंगूठी पहनता हूं ,तू यही कहती है,मेरी अंगूठी को नज़र न लगा ,ये मेरे बाबू जी ने मेरे सेवाभाव से प्रसन्न होकर मुझे दी थी"अपनी अंगूठी को प्यार से निहारते हुये सेठ जमुना प्रसाद बोले।
"बाबू जी ,जो अंगूठी मेरे मायके से आपको मिली थी ,वो भी कुछ कम नहीं,तभी तो आप उसे पहने ही रहते"उनकी बडी़ बहू ने इठलाकर बोला तो वे आक्रोश से बोले"वो रोज पहनता इसकी मतलब ये नहीं कि उसकी बराबरी मेरे बाबू जी की अंगूठी से हो जायेगी।मेरे बाबू जी की अंगूठी मेरे लिये बहुत अनमोल है तभी मैं उसे किसी विशेष अवसर पर ही पहनता हूं।
विशेष अवसर ही था ,उनके दूसरी पत्नी की बेटी अनामिका अपने पति के साथ ससुराल से आ रही थी।
सेठ जमुना प्रसाद की पहली पत्नी से दो बेटे थे।उनकी मां की इच्छा थी कि घर में एक बेटी होनी चाहिए।उनका मानना था कि घर तब तक पूरा न होता जबतक आंगन में बेटी न खेले।उनकी पत्नी शिप्रा के दोनों बेटे आॅनरेशन से हुये थे।तीसरा बच्चा अब हो न सकता था ,दिक्कत थी कुछ।पर उनकी मां को बेटी चाहिये थी तो उन्होने जमुना प्रसाद की दूसरी शादी करा दी,उनकी इच्छा न होते हुये भी।
खैर उनकी इच्छा पूरी हुयी और बेटी आ गयी ।दादी मां की लाड़ली ,सबकी प्यारी बिटिया पूरे घर में चहकते घूमती।
जमुना प्रसाद अपनी पत्नी शिप्रा से बहुत प्यार करते ।उनका समय शिप्रा व दोनों बेटों संग ज्यादा बीतता।दूसरी पत्नी घर में लाना मां की इच्छा थी ।इस बात से जया अंदर ही अंदर कुढा़ करती।प्यार वो अनामिका से बहुत करते थे,बहुत लाड़ करते उसका पर जया को लगता कि इन्हें बेटे प्यारे हैं सारी संपत्ति अपने बेटों को देंगे,मेरी बेटी के हाथ कुछ न लगेगा।शिप्रा दिल की निहायत शरीफ और स्वच्छ थी वह जया को छोटी बहन के जैसे मानती थी।
जमुना प्रसाद ने उसका विवाह बहुत धूम धडा़के से किया था पर जया का मुंह बना ही था।अनामिका भी बहुत रूखे स्वभाव की थी।उसे कुछ चाहिये होता तभी वह स्नेह की बारिश करती जमुना प्रसाद पर।वो सब समझते मगर अनदेखा कर देते थे।
दोनों बेटों की शादी भी अच्छे घर में हुयी थीं।दोनों के घर से वो अंगूठी पाये थे मगर बाबू जी की अंगूठी के आगे उनकी कोई कीमत न थी।
अनामिका अपने पति के साथ आ गयी थी और शिप्रा दौड़ दौड़ कर उनकी आवभगत में ऐसे लगी थी कि एक बार को दामाद जी को ये लगा कि अनामिका की असली मां यही हैं।
चाय पानी चल रहा था।दामाद जी की निगाहें जमुना प्रसाद की अंगूठी पर गयीं।ये देख जमुना प्रसाद बडे़ रौब से बोले "मेरे बाबू जी ने मेरी सेवा से प्रसन्न होकर मुझे दी थी।"दामाद जी मुस्कुरा दिये और कमला हां साहब की अंगूठी बहुत खू...कहते कहते वो रुक गयी कि वो फिर न उसे झिड़क दें।
अंगूठी वास्तव में बहुत खूबसूरत थी जिसमें दशरथ जी के पैर दबाते राम जी की तस्वीर खुदी थी।
अनामिका शाम तक चली गयी और अंगूठी लाॅकर के अंदर पहुंच गयी।
कोई न कोई अवसर आता ही रहता,कभी बहू की अनाई कभी बेटी की विदाई ,कभी उनका गांठजोड़ कर जन्मदिवस ,अंगूठी पहनी जाती फिर लाॅकर में पहुंच जाती।
ऐसा ही अवसर आया जब उनके पोते का जन्मदिवस था ।वे अंगूठी पहने घूमते आंगन भरे में रौब से और कमला काम करती उनके बचपने पर मुसकुराती जाती।
अनामिका भी अपने पति के साथ आई थी।
कमला को बरसों हो गये थे उनके यहां काम करते करते इसलिये उसे सबसे बहुत स्नेह हो गया था।वह जया से कुछ पूछने जाती तो वह कहतीं जीजी से पूछो,मालकिन तो वही हैं न।अनामिका से कुछ कहती तो वह रूखेपन से कहती दोनो भैया ,भाभी से पूछो ,उनके सबकुछ तो वही हैं।वह सुनलेती और अपना काम करती जाती।
जन्मदिन निपट गया था।जमुना प्रसाद अपनी अंगूठी लाॅकर में रख ही रहे थे कि जया ने आवाज लगाई और वह अलमारी जल्दबाजी में खुली ही छोड़कर उसकी बात सुनने चले गये।
शाम हो गयी थी ।अनामिका अपने घर जा चुकी थी।
"देखो,लापरवाही में अलमारी,लाॅकर सब खुला छोड़ गये,जया की बात सुनने की खातिर,सही भी है उसको शिकायत का कोई मौका न दें वही सही है ,वह नाहक ही रूठी रहती "कहते हुये शिप्रा अलमारी बंद ही कर रही थी कि जमुना प्रसाद आ गये।अलमारी ,लाॅकर खुला देख वह घबरा कर दौडे़ और अलमारी का लाॅकर देख कर परेशान हो चीखे "मेरी अंगूठी कहां है?"
"ठीक से देखिये,उसी में होगी"शिप्रा ने कहा।
"नहीं है अंगूठी ,शिप्रा "वह पूरा लाॅकर खंगालते हुये रोआसे से बोले।
"आपने यहीं रखी थी?"
"यहीं रखी थी का क्या मतलब है?मैं हमेशा या तो अंगूठी पहने होता हूं या लाॅकर में रखता हूं ,मुझे अच्छे से याद है मैंने अंगूठी रखी तब तक जया ने आवाज लगाई और मैं सुनने चला गया।मेरी अंगूठी चोरी हो गयी शिप्रा।"वो सिर पकड़ कर बोले।
अंगूठी चोरी हो चुकी थी।कौन चुरा सकता था अंगूठी.....
शेष अगले भाग में
प्रभा मिश्रा 'नूतन'
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मैंने चोरी नहीं की
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मेरी ये कहानी पूर्णतया काल्पनिक है । मेरी इस कहानी में एक व्यक्ति जिसे अपने पिता की दी हुई अंगूठी से अत्यधिक लगाव होता है ,उसकी वो अंगूठी चोरी हो जाती है और वो अंगूठी चोरी का इल्ज़ाम घर की नौकरानी जिसका नाम कमला है ,उसे जेल भिजवा देता है। क्या सच में अंगूठी कमला ने चुराई थी!!, जानने के लिए पढ़िए मेरी कहानी-- मैंने चोरी नहीं की

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