अचानक जमुना प्रसाद उठे और बोले "याद आया शिप्रा ,जब मैं लाॅकर में अंगूठी रख रहा था तब कमला मेरे कमरे से जूठे बरतन उठाने आयी थी ,मुझे जया ने आवाज दी ,मैं फौरन चला गया तब कमला कमरे से निकली न थी ये नौकरजात का कोई भरोसा न होता,जिस थाली में खाते उसी में छेद करते हैं"कहते हुये वो गुस्से में भरकर बाहर चिल्लाते हुये निकले -कमला!कमला कहां है तू?
कमला दौडी़ दौडी़ आई और बोली "जी साहब"।
जमुना प्रसाद बोले-"कहां है मेरी अंगूठी।"
कमला -"ककक कौन सी अंगूठी साहब?"
कमला घबरा कर बोली।
"कौऔऔऔन सी अंगूठी साहेब "वह मुंह बनाते हुये बोले-
ये अनजान बनने का नाटक बंद कर ,मुझे पता है ,अंगूठी तू ने ही चुराई है।मैं जब लाॅकर में अंगूठी रख रहा था तब तू वहीं थी ।
शिप्रा-"ये क्या कह रहे हैं आप?कमला ऐसा क्यों करेगी?"
जमुना प्रसाद चीखते हुये बोले -"तुम चुप रहो ,इसी ने मेरी अंगूठी चुराई है,ये लोग अपनी औकात दिखाने से चूकते नहीं"।
कमला बोली "पर आपके कमरे से निकलते ही आपके पीछे ही पीछे मैं भी बाहर आ गयी थी ।मैंने कोई अंगूठी न चुराई साहब ।
देख सच सच बता दे ,मुझे और गुस्सा न दिला ,जब भी मैं बाबू जी की अंगूठी पहनता था तू कहती थी साहब आपकी अंगूठी बहुत अच्छी है ,मुझे न पता था कि तेरी नज़र है उस पर ।
"मैं सच कह रही हूं ,मैंने चोरी नहीं की ।"वह रोआसी होकर बोली।
"कमला सच सच बता मेरी अंगूठी चुराकर अपने उस आवारागर्दी करते लड़के को दे आई है न ?"तू ने ही चोरी की ।
"मैंने कोई चोरी न की साहब "वह हाथ जोड़कर गिड़गिडा़ते हुये बोली।
शिप्रा ने कहा" मेरी बात सुनिये ,वो कह रही है उसने चोरी नहीं की तो नहीं की ।"
शिप्रा तुम इन नौकरों को जानती नहीं हो ,इनके ईमान का कोई भरोसा न होता ।
जया घर पर नहीं थी ।उसने जमुना प्रसाद को बुलाया था ये पूछने के लिये कि मैं अपनी सहेली के यहां चली जाऊं,अनामिका चली गयी तो मन न लग रहा है और उन्होंने परमीशन दे दी थी ।उन्हें वैसे भी उसके होने न होने से फर्क न पड़ता था।
कमला बता दे मेरी अंगूठी क्यों चुराई वरना, उनका हाथ उठ गया था पर उसके औरत होने का ध्यान आते ही रुक गया था।
वह गिड़गिडा़ते हुये बोली" मैं सच कह रही हूं साहब मैंने आपकी अंगूठी नहींईईई चुराई ,मैंने चोरी नहींईईई की "हंआआआं वह फूट फूट कर रोने लगी।
"तू ऐसे नहीं मानेगी ,रुक मैं पुलिस को बुलाता हूं।"
"साहब पुलिस को मत बुलाइये ,मैं बरबाद हो जाऊंगी ,मेरा दस साल का बेटा ,उसका कौन ध्यान रखेगा ?किसका बाप तो दारू पी पी कर मर गया ।उसका मेरे अलावा और कोई नहीं है।"
मैं कुछ न जानता ,कहकर वो पुलिस को फोन करने लगे।
"साहब पुलिस मत बुलाइये ,मैं मेरे एकलौते बच्चे की कसम खाती हूं ,मैंने चोरी नहीं की।मैंने चोरी की हो तो मेरा बच्चा अभी मर जाय "।हांआआआं हांआआआ ।
कुछ ऐसा दुर्भाग्य कहें या इत्तेफाक कहें , उसका कहना ही था कि उसके पडो़स का कोई आदमी दौड़ता हुआ आया और बोला "कमला जल्दी चल गजब हो गया ,तेरे लड़के को सांप ने काट लिया और वह मर गया।"
"देखा ,देखा शिप्रा ,झूठ बोलने का नतीजा ,तुरंत फल मिल गया।अपने लड़के की झूठी कसम खाई ,तभी लड़का मर गया ,अब तो यकीन हुआ ,अंगूठी इसी ने चुराई है।"जमुना प्रसाद चीखते बोले तब तक पुलिस आ चुकी थी।
जमुना प्रसाद बोले पुलिस से "सर इसने मेरे बाबू जी की दी अंगूठी चुरा ली ,पर स्वीकार न कर रही ,देखो अपने लड़के की झूठी कसम तक खा गयी और वह मर गया।
"चिंता मत करिये ,जहां एक रात लाॅक -अप में रहेगी सब उगल देगी।"वह जमुना प्रसाद के कान में फुसफुसाये
खबर सुनते ही कमला,किशनवा हाआआय, कहते हुये दरवाजे की तरफ भागती कमला को देख और उसे गिरफ्तार कर लिया।
मैंने चोरी नहीं कीईईईई ,मुझे जाने दीजियेऐऐऐऐ ,मेऐअ मेऐऐअ मेरा कि कि किसनवाआआ हाहा
हाआआ मैं मैं मैंने चो चो चोरी नन ही कककी।हांहाहाहा
शिप्रा बेबस थी और जमुना प्रसाद के क्रोध का पारावार न था।
पुलिस कमला को ले गयी और वह हिचकियां भरते ,चिल्लाते चिल्लाते हाथ जोडे़ कहती गयी "मुझे छोड़ दो साहब ,मुझे एक बार मेरे बच्चे को देख लेने दो,मैंने चोरी नहीं की ,नहीं की ,नहीं की।
कमला को जेल में डाल दिया गया और वो जेल की सलाखों पर अपना सिर पटकती रही ,रोती रही पर सुनने वाला कौन था।
कमला के जीवन में ऐसी रात हो गयी थी जिसकी कोई सुबह न थी।
दो दिन हो गये थे ।तीसरी सुबह अनामिका अपने पति के साथ आई ।उसे एक दिन पहले ही रात को पता चला था कि वो मां बनने वाली है तो वह जया से मिलने आई थी ।
सब बैठे चायनाश्ता कर रहे थे ,अचानक जमुना प्रसाद ने दामाद जी के हाथ की उंगली में अपने बाबू जी की अंगूठी देखी तो वह चौंक कर खडे़ हो गये तब तक दामाद जी अनामिका से बोले -"तुम बैठो मैं अपने एक दोस्त से मिलकर आता हूं जो यहीं पास में रहता ,फिर तुम्हें लेने आ जाऊंगा।"
उनके जाते ही जमुना प्रसाद ने अनामिका से पूछा "मेरे बाबू जी की अंगूठी ,दामाद जी की उंगली में कैसे आई?"
"वो मुझसे कई बार कह चुके थे ,तुम्हारे पापा की अंगूठी बहुत अच्छी लगती है ,तो मैंने ही उस दिन जाने से पहले आपका लाॅकर खुला देख कर निकाल कर उन्हें दे दी थी ।अब आपसे मांगती तो आप मना थोडे़ न करते ।"
शिप्रा जमुना प्रसाद के मुंह की तरफ एकटक देखे जा रही थी ।जमुना प्रसाद का मुंह खुला का खुला रह गया था ।
समाप्त।
इस कहानी से मैं घर के उन नौकरों को कहना चाहूंगी जो वास्तव में ऐसा काम करते हैं ,कि आपके ऐसे काम करने की वजह से कोई सच्चे व ईमानदार लोगों पर भी विश्वास न कर पाता।
आजकल घर के नौकर ही घर चौपट करने में अहम भूमिका निभाते हैं जिसकी बहुत घटनायें सुनी हैं पर सब उनके जैसे नहीं होते।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'