कभी कभी कुछ पंक्तियाँ याद आ जाएँ तो......
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मै असभ्य हूँ, क्योंकि हिंदी बोलता हूँ ।और अनपढ़ भी, क्योंकि हिंदी बोलता हूँ ।वाहय् संस्कृति से भ्रमित, पथभ्रष्ट और कुचरित्र,लोगों के कुण्ठित मन को, झकझोरता हूँ । मैं असभ्य हूँ........ देववाणी से है उद्धृत, भार
वो परिंदा जो हथेली पर उड़ता था कभी, पंखों पर आया, तो वापस ना आया।