मै असभ्य हूँ,
क्योंकि हिंदी बोलता हूँ ।
और अनपढ़ भी,
क्योंकि हिंदी बोलता हूँ ।
वाहय् संस्कृति से भ्रमित,
पथभ्रष्ट और कुचरित्र,
लोगों के कुण्ठित मन को,
झकझोरता हूँ ।
मैं असभ्य हूँ........
देववाणी से है उद्धृत,
भारत को करती अलंकृत ,
हिन्दीरूपी मधुरस को,
जनहृदय में घोलता हूँ ।
मै असभ्य हूँ..............
बोलियां हैं इसकी ऐसे,
वृक्ष की शाखाएं जैसे,
मनका मनका साथ रखकर ,
एक माला जोड़ता हूँ ।
मै असभ्य हूँ..............