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अस्तित्व

9 फरवरी 2018

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क्या हूँ?

रोजगारों के मेले में बेरोजगार!?!

क्या हूँ ?

बिल्डिंगों के बीच गिरी इमारत का मलबा!?!

या हूँ?

उसमें दबी इच्छाओं , आशाओं और उम्मीदों की ख़ाक !?!

कौन हूँ मैं ?

क्यूँ हूँ मैं ?

क्या हूँ मैं ?

क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...



क्या हूँ ?

भीड़ भरी सड़क के किनारे लगे लैंप पोस्ट का फ्यूज बल्ब !?!

जो भीड़ से अपने अस्तित्व को छिपाने की कोशिश में है !?!

या हूँ ?

सुनसान राहों की टिमटिमाती बिजली ,

जो स्वयं अपनी रोशनी का अर्थ खोज रही है !? !

कौन हूँ मैं ?

क्यूँ हूँ मैं ?

क्या हूँ मैं ?

क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...



क्या हूँ ?

बारिश के बाद सड़क के किनारे भरा ,

पानी का छोटा सा गड्ढा !?!

जो किसी गाड़ी के गुजरने पर,

फिर से बरसने की चाह में बिखर जाता है ,

या पकड़ लेता है दामन किसी का धुल जाने तक !?!


या हूँ ?

भुट्टे का खाली ठूँठ ,

जो बस ,.... एक रात ,... मोची के वीरान छप्पर के नीचे गुजारना चाहता है !?!

कौन हूँ मैं ?

क्यूँ हूँ मैं?

क्या हूँ मैं?

क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...



क्या हूँ ?

ऊँची इमारतों के बीच पड़ी दरारें !?!

जो सफेदी के बाद भी न छिप सकी ,...

या हूँ?

पत्थर के नीचे की सूखी ज़मीन ,...

जो बारिश के बाद भी न भीग सकी !?!

कौन हूँ मैं ?

क्यूँ हूँ मैं?

क्या हूँ मैं?

क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...





- मनोज कुमार खँसली " अन्वेष "






मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष" की अन्य किताबें

कुसुम लता

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कौन हूँ मैं...क्यूँ हूँ मैं....क्या हूँ मैं ...वास्तव में आपकी रचनात्मकता से कोई तुलना नहीं कर सकता अन्वेष जी अवसाद के क्षणों को जीवंत कर दिया आपने सचमुच कितना ऑरिजिनल व अचंभित कर देने वाला लिखते हैं आप गजब.

7 मार्च 2018

Bhagwan Bhura

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सार्थक एवं सशक्त रचना !

27 फरवरी 2018

उमा शंकर पल

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मार्मिक कृति साहब . भावविभोर होने को विवश कर दिया . आपको समर्पित एक शेर - " उमर इतनी तू अता कर मेरे फ़न को ऐ ख़ालिक़ ... मेरा दुश्मन मेरे मरने की ख़बर को तरसे " ..

20 फरवरी 2018

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

क्या हूँ मैं,,, सचमुच सोचने पर बिवश कर दिया। भुट्टे का खाली ठूंठ, या पत्थर के नीचे की सूखी ज़मीन,,,,, सच मे हम अस्तित्व विहीन हो चुके हैं। बहुत मार्मिक रचना।

17 फरवरी 2018

रेणु

रेणु

प्रिय मनोज -- सबसे पहले आपके मंच लौटने पर बहुत खुश हूँ | आशा है आपकी चोट ठीक हो गई होगी | यदि कुछ कसर है तो लापरवाही मत करना | अपना ख्याल रखना | आज बहुत दिन के बाद आपकी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है | बेरोजगारी से त्रस्त और आक्रांत मन की छटपटाहट को बहुत ही अछे शिल्प में पिरो कर बेहतरीन सृजन किया है | बहुत ही सार्थक प्रतीकों ने रचना को बहुत प्रभावी बना दिया है | ये प्रखर लेखन है | लैंप पोस्ट का फ्यूज बल्ब , पानी का छोटा सा गड्ढा , भुट्टे का खाली ठूँठ और पत्थर के निचे जैसी जमीन के रूप में मौलिक प्रतीक और बिम्बों से रचना बहुत सशक्त बन गयी है | लिखते रहिये -- मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं |

15 फरवरी 2018

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

यह बहुत ही सुंदर व् सशक्त रचना है | इस समय चार करोड़ से अधिक शिक्षित युवक ही नहीं अधिकांश देश यही सोच रहा है वह कौन है ,उसका क्या अस्तित्व है ,उसका जन्म क्यों हुआ है | उसके सामने दू र तक केवल तम ही तम है | प्रकाश की कहीं धुंधली सी एक किरण दिखाई नहीं दे रही है |

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