क्या हूँ?
रोजगारों के मेले में बेरोजगार!?!
क्या हूँ ?
बिल्डिंगों के बीच गिरी इमारत का मलबा!?!
या हूँ?
उसमें दबी इच्छाओं , आशाओं और उम्मीदों की ख़ाक !?!
कौन हूँ मैं ?
क्यूँ हूँ मैं ?
क्या हूँ मैं ?
क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...
क्या हूँ ?
भीड़ भरी सड़क के किनारे लगे लैंप पोस्ट का फ्यूज बल्ब !?!
जो भीड़ से अपने अस्तित्व को छिपाने की कोशिश में है !?!
या हूँ ?
सुनसान राहों की टिमटिमाती बिजली ,
जो स्वयं अपनी रोशनी का अर्थ खोज रही है !? !
कौन हूँ मैं ?
क्यूँ हूँ मैं ?
क्या हूँ मैं ?
क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...
क्या हूँ ?
बारिश के बाद सड़क के किनारे भरा ,
पानी का छोटा सा गड्ढा !?!
जो किसी गाड़ी के गुजरने पर,
फिर से बरसने की चाह में बिखर जाता है ,
या पकड़ लेता है दामन किसी का धुल जाने तक !?!
या हूँ ?
भुट्टे का खाली ठूँठ ,
जो बस ,.... एक रात ,... मोची के वीरान छप्पर के नीचे गुजारना चाहता है !?!
कौन हूँ मैं ?
क्यूँ हूँ मैं?
क्या हूँ मैं?
क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...
क्या हूँ ?
ऊँची इमारतों के बीच पड़ी दरारें !?!
जो सफेदी के बाद भी न छिप सकी ,...
या हूँ?
पत्थर के नीचे की सूखी ज़मीन ,...
जो बारिश के बाद भी न भीग सकी !?!
कौन हूँ मैं ?
क्यूँ हूँ मैं?
क्या हूँ मैं?
क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...
- मनोज कुमार खँसली " अन्वेष "