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मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष" की डायरी

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

14 अध्याय
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manoj kumar khasali anvesh quot ki dir

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पुस्तक के भाग

1

अजन्मा रुदन (बालिका भ्रूण हत्या पर)

23 जून 2017
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अजन्मा रुदन(बालिका भ्रूण हत्या) वर्तमान आधुनिक भारतीय समाज में घर - घर में भीतर तक व्याप्त बेटे प्राप्त करने की

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मैं कहाँ गज़ल लिखता हूँ ???

26 जून 2017
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मैंने कब कहा मैं गज़ल लिखता हूँ ?मैं तो जो भी जीता हूँ , बस वही हर पल लिखता हूँ ! आज फिर शहीदों की गर्दन में घोंप कर कलम,

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किस्साग़ोई

6 जुलाई 2017
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अन्वेष .....किस्सा-दास्ताँ हूँ ,... किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ | जो भी ज़ख़्म दिखते हैं , उन्हें अपनी रचना में सजा लेता हूँ | पहले ख़ुद खोदता हूँ कब्र अपनी, फिर खुद को ही काँधे पे उ

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बाज़ार (भारतीय उप-महाद्वीप के सेक्स वर्करों का रोज़नामचा)

11 जुलाई 2017
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खनकते है घुँघरू,रोती हैं आँखें,तबले की थाप पे ,फिर सिसकती हैं साँसें| हर रूह प्यासी,हर शह पे उदासी,यहाँ रोज़ चौराहे पे, बिकती हैं आँहें| ना बाबा,ना चाचा ,ना ताऊ,ना नाना,ना भाई यहाँ है,ना कोई अपना,...!?!... बस एक रिश्ता ,बस एक सौद

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विडम्बना

14 जुलाई 2017
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भूमिका : यह रचना मेरे हृदय के बहुत निकट है| यह कविता मैंने अपनी स्नातक (ग्रेजुएशन) के दौरान नवभारत टाइम्स में छपी ख़बर से

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झोपड़े का मॉनसून

31 जुलाई 2017
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सौंधी - सौंधी सी महक है मिट्टी के मैदानों में| मॉनसून की पहली बारिश है फूस के कच्चे मकानों में| उसके बदन से चिपकी साड़ी,माथे से बहकर फैले कुमकुम,या केशों से टूटकर गिरते मोतियों क

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कहना चाहता हूँ कुछ ऐसा

11 अगस्त 2017
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कहना चाहता हूँ कुछ ऐसा ,...

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कहना चाहता हूँ कुछ ऐसा

11 अगस्त 2017
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भावार्थ - यहाँ रचियता अपनी प्रेयसी के हृदय में अपना घर करने की चाह में नाना प्रकार की उपमाओं का प्रयोग कर रहा है| कभी वह उससे चाँद, तारों, स्वप्नों, कल्पनाओं की बात कर उसके मन म

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बलि

30 अगस्त 2017
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भावार्थ : - भारत में आज भी बलि-प्रथा ब- दस्तूर जारी है एवं जारी है आज के शिक्षित वर्ग का उसम

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मुझे चाँद चाहिए

13 नवम्बर 2017
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तोड़ लूँ,... उस नक्षत्र को जिस ओर कोई इंगित करे, मुझे वो उड़ान चाहिए,हाँ - हाँ मुझे चाँद चाहिए | नीले क्षितिज पे टंगी छिद्रों वाली,उस काली चादर का

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अस्तित्व

9 फरवरी 2018
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क्या हूँ?रोजगारों के मेले में बेरोजगार!?! क्या हूँ ?बिल्डिंगों के बीच गिरी इमारत का मलबा!?! या हूँ? उसमें दबी इच्छाओं , आशाओं और उम्मीदों की ख़ाक !?! कौन हूँ मैं ?क्यूँ हूँ मैं ?क्या हूँ मैं ?क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...क्या हूँ ?भीड़ भ

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कहाँ से लाऊँ ???

5 मार्च 2018
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संध्या

4 अगस्त 2018
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जवाँ हूँ , जवाँ रहने को हूँ , मचलता, शाम होते ही,मैं अगली सुबह को करवटें बदलता| मालूम है रही ज़िन्दगी ,तो नई सुबह खींच देगी, मेरे चेहरे पे एक और लकीर, गफलत में हूँ, पुरानी मिटाने को,मैं रातों को सँवरता| देर-सवेर ही सही | एक रोज़ तो उसे आना है| फिर,...कहीं ...???भर,...

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दर्द

15 फरवरी 2019
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दर्द जाने क्या दर्द से मेरा रिश्ता है!?!जब भी मिलता है बड़ी फ़ुर्सत से मिलता है||

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