सौंधी - सौंधी सी महक है मिट्टी के मैदानों में|
मॉनसून की पहली बारिश है फूस के कच्चे मकानों में|
उसके बदन से चिपकी साड़ी,
माथे से बहकर फैले कुमकुम,
या केशों से टूटकर गिरते मोतियों कि कैसे करूँ बात???...रूमानी अफ़सानों में ?!!!?
जब बैठकर गुजरी है,...यहाँ रात,
भीगने से बचाते बिछौना बच्चे का, ...फूस के कच्चे मकानों में ?!!!?
भीनी - भीनी सी खुश्बू है मय में , मयखानों में |
मॉनसून की पहली बारिश है फूस के कच्चे मकानों में |
उधर हैं ,...वो पकौड़ियों की लज्जत,
वो कचौड़ियों की खसखसाहत,
पास के नुक्कड़ की चाय की दुकानों में,
इधर हैं,... पानी रोकने को बनाते मेढ़ मिट्टी के देहली पर,
और बैठें हैं पाये तक डूबी खाटों पे,..फूस के कच्चे मकानों में?!!!?
भीगी- भीगी रातों में,...ऐसी बरसातों में,...कैसा लगता है इन तूफानों में???
मॉनसून की पहली बारिश है फूस के कच्चे मकानों में|
वहाँ,...बिजली से घबरा,...पिया से लिपटने के बहाने हैं,
बरसात में भीग,...डूबकर रोमांस के कुछ भिन्न ही पैमानें हैं,
यहाँ ,... भरभराकर ढही दीवार से,... दबकर मर गया वो,
बाहर बर्तनों से उड़ेलता पानी,...फूस के कच्चे मकानों में?!!!?
अन्वेष,...मॉनसून की पहली बारिश है फूस के कच्चे मकानों में ?!!!?...
(मनोज कुमार खँसली "अन्वेष" )