प्रेम अपनी प्रकृति में अपने आप को दूसरों को देने की
अभिलाषा है | या यह कहें कि दूसरों को आत्मसात करने की प्रवृति है | यह सत्ता के
साथ सत्ता का क्रिया व्यवहार है |
प्रेम ऐसी
प्यास है जिसे कोई मानवी सम्बन्ध कभी नहीं बुझा सकता |
माता जी ( श्री
अरविन्द आश्रम )