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एक कल्पित नगर की निशुल्क यात्रा

29 सितम्बर 2016

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एक कल्पित नगर की निशुल्क यात्रा

आप इस यात्रा क इसके लिए आप अपने आरक्षण की बिलकुल चिंता न करें | वह तो आपकी जन्म तिथि के आधार पर आपके आवेदन के बिना ही हो चुका है | बस जैसे ही आपकी बारी आयेगी वाहन स्वम् उस दिन आपके द्वार पर पहुँच जायेगा | मित्रो ! इस यात्रा का वाहन न समय से पूर्व आता है , न विलम्ब से अपने यात्री को उसके गन्तव्य पर ले जाता है | हाँ ! यात्रा में अधिक सामान साथ ले जाने की अनुमति नहीं है | केवल अपने अच्छे कर्मों की गठरी ही कोई अपने साथ ले जा सकता हैं | मानवता इस यात्रा में सुविधा पत्र का काम करती है और प्यार परिचय पत्र का | चलिए हम सभी निश्चिन्त होकर पूरे सच्चे मन व् लगन से अपनी इस महत्वपूर्ण निशुल्क यात्रा के लिए आज से ही अपनी सर्वोत्तम तैयारी में जुट जाएँ | खूब प्यार बाँटें , मानवता प्रदर्शित करनें का कोई अवसर हाथ से न जाने दें | सबको सहानुभूति दें , अपनापन दें , और हर सम्भव दुखी जनों की थोड़ी सी आहें कराहें कम करनें का प्रयास करें | जिससे हमारी यह लम्बी यात्रा पूरी तरह निर्विघ्न और सभी सुख सुविधाओं से सुसज्जित हो |

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वीरेंद्र मिश्र की कुछ पंक्तियाँ

9 सितम्बर 2016
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पवन सामने है न तुम गुनगुनाना , कली ने कहा पर भ्रमर ने न माना मुझे पार जाना , नहीं डूब जाना तरनि ने कहा प रलहर ने न माना मुझे लक्ष्य पाना नहीं क्षण गवांना पथिक ने खा पर डगर ने न माना

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एक कथन

11 सितम्बर 2016
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अच्छे सम्बन्ध इस बात पर निर्भर नहीं करते कि हम एक दूसरेको कितना समझते हैं | बल्कि इस बात परनिर्भर करते हैं कि हम एक दूसरे के प्रति मन में उत्पन्न होंने वाली गलत फहमियोंको कितना नकारते हैं | --- --- --- --- --- ---

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दो रुबाई

12 सितम्बर 2016
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खुद पसंदी है फितरते इन्सा ,जो अपनी कमियों को भूल पाता हो देख कर खुद को आइने में आप कौन है जो न मुस्कुराता हो नजर बरनी सालहा साल की तलाश के बाद जिन्दगी के चमन से छांटे हैं आपको चाहिये तो पेश करूं मेरे दामन में चंद कांटे हैं | नजर बरनी

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बलवीर सिंह रंग

16 सितम्बर 2016
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न छेड़ो मुझे मैं सताया गया हूँ ,हंसाते हंसाते रुलाया गया हूँ |करो व्यंग कितने तुम मेरे मिलन पर ,मैं आया नहीं हूँ , बुलाया गया हूँ | २ ओ जीवन के थके पखेरू बढ़े चलो हिम्मत मत हारो ,पंखों में भविष्य बंदी है ,मत अतीत की ओर निहारो |क्या चिता धरती यदि छूटे , उड़ने को आकाश बहु

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एक कल्पित नगर की निशुल्क यात्रा

29 सितम्बर 2016
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एक कल्पित नगर की निशुल्क यात्रा आप इस यात्रा क इसके लिए आप अपने आरक्षण की बिलकुल चिंता न करें | वह तो आपकी जन्म तिथि के आधार पर आपके आवेदन के बिना ही हो चुका है | बस जैसे ही आपकी बारी आयेगी वाहन स्वम् उसदिन आपके

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गांधी बाबा के स्वराज में ,

30 सितम्बर 2016
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गांधी बाबा के स्वराज में ,सुरा बहुत है राज नहीं है |राज बहुत खुलते हैं लेकिन ,खिलता यहाँ समाज नहीं हैं |यह देखो कैसी विडम्बना , राजनीति में नीति नहीं है |और राजनैतिक लोगों को , नैतिकता से प्रीति नहीं है | गोपाल प्रसादव्यास

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माता जी ----- प्रेम अपनी प्रकृति में

11 अक्टूबर 2016
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प्रेम अपनी प्रकृति में अपने आप को दूसरों को देने कीअभिलाषा है | या यह कहें कि दूसरों को आत्मसात करने की प्रवृति है | यह सत्ता केसाथ सत्ता का क्रिया व्यवहार है | प्रेम ऐसीप्यास है जिसे कोई मानवी सम्बन्ध कभी नहीं बुझा सकता |

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अनमोल वचन ---- योगी अरविन्द (पांड्चेरी

12 अक्टूबर 2016
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यदि सौदर्यगत संतुष्टि ही सब कुछ होती तो महज सुषमा यासम्मोहन वाली नारी के प्रति चाहत व् आकर्षण भावनात्मक संतुष्टि के खो जाने पर भीभली भांति न बने रहते | जब झुर्रियां उसकेचेहरे पर उम्र का लेखा प्रगट करती या जब कोई दुर्घटना उसकी सुन्दरता पर आघात करतीतो यह चाहत क्षीण ह

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केवल प्रेम और मृत्यु ही सब वस्तुओं को बदलते हैं

13 अक्टूबर 2016
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मेरा घर मुझसे कहता है --`` मुझे मत छोड़ | क्योंकितेरा अतीत यहीं है | `` और मेरा रास्ता मुझसे कहता है --`` मेरे पीछे पीछे चल |क्योंकि मैं तेरा भविष्य हूँ |`` पर मैंअपने घर और रास्ते से कहता हूँ ---`` मेरा न कोई अतीत है और न कोई भव

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13.11 .16 को मोदी जी का गोवा मैं देश से वादा---

11 दिसम्बर 2016
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अगर 30 दिसम्बर के बाद कोई मेरी कमी रह जाये , कोई गलती निकल जाये , आप जिस चौराहे में खड़ा करोगे मैं खड़ा होके देश जो सजा कहेगा मैं भुगतने के लिए तैयार हूँ | 30 दिसम्बर के बाद आपने जैसा हिंदुस्तान चाहा है , मैं देने का वादा करता हूँ

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जीव और जगत

22 दिसम्बर 2020
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जीव तुझमें और जगत में, है फरक किस बात की,ज्यों थोड़ा सा फर्क शामिल,मेघ और बरसात की।वाटिका विस्तार सारा , फूल में बिखरा हुआ,त्यों वीणा का सार सारा, राग में निखरा हुआ।चाँदनी है क्या असल में , चाँद का प

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जात आदमी के

18 जनवरी 2021
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आसाँ नहीं समझना हर बात आदमी के,कि हँसने पे हो जाते वारदात आदमी के।सीने में जल रहे है अगन दफ़न दफ़न से ,बुझे हैं ना कफ़न से अलात आदमी के?ईमां नहीं है जग पे ना खुद पे है भरोसा,रुके कहाँ रुके हैं सवालात आदमी के?दिन में हैं बेचैनी और रातों को उलझन,संभले नहीं संभलते हयात आदमी के।दो गज

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