shabd-logo

मेहंदी

20 मार्च 2019

119 बार देखा गया 119

शाम का समय था। अंधेरा ढलना शुरु हो चुका था। एक जलती-बुझती स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठा मोची अपना काम बढ़ाने की तैयारी में था। पास रखी किराये की लाईट में वो अपने पैसे गिन रहा था। मैं भी उस समय बस पकड़ने के लिए तेजी से बस स्टैण्ड की तरफ भागा जा रहा था। उसे देखकर आज फिर से मुझे अपने जूते की उधड़ी हुई सिलाई याद आई। कई दिन टालने के बाद मैंने सोचा आज इसे ठीक करवा ही डालता हूं। ये सोचकर मैं रुक गया और मोची से अपनी समस्या का समाधान करने को कहा। सुनकर उसने जूता मांगा। उसकी भाषा सुनकर ही पता लग गया कि वो दिल्ली का रहने वाला नहीं था। मैंने जूता उतारकर उसे दे दिया और उसी की एक चप्पल पर पैर रखकर पास के एक बड़े पत्थर पर बैठ गया। मोची अपने थैले को लाईट की रोशनी में करके मेरे जूते के रंग से मिलता धागा ढूंढने लगा। सामने सड़क पर गाड़ियां सरपट दौड़ रही थी। बाजार के मुहानेपर खड़े फल बेचने वाले चिल्लाकर अपने फल बेच रहे थे। मगर इतने शोर में भी मोची पूरी एकाग्रता के साथ काम कर रहा था।

तभी 7-8 साल की एक लड़की आई और मेरी बुद्धि के दायरे से बाहर की भाषा में कुछ बोलने लगी। कोई बात समझ में ना आने के बावजूद लड़की के मोची से बोलने के अंदाज से मैं समझ गया कि ये दोनों बाप-बेटी हैं। वो बार-बार बाजार के मुहाने की तरफ ईशारा कर कुछ कह रही थी। मुझे लगा कि शायद वो कुछ खाने को मांग रही थी। तभी मोची ने उसे डांटने वाले लहजे में कुछ कहा और लड़की सहम कर पास के पत्थर पर चुपचाप बैठ गई। मैंने देखा कि लड़की अभी भी स्कूल के कपड़ों में ही थी। मैले-कुचैले, मरम्मत किए हुए कपड़े थे। पैरों में पुरानी सी चप्पलें थी। काम चलाने के लिए चप्पलों की जरूरत से ज्यादा ही मरम्मत की गई थी।

मैं लड़की को लगातार देखता रहा। फिर मैंने मोची से पूछा कि उसकी बेटी क्या कह रही थी। तो उसने बताया कि उसकी बेटी मेहंदी की कुप्पी खरीदने के लिए पैसे मांग रही थी। ये सुनकर जब मैंने लड़की की तरफ देखा तो उसे मेरी तरफ देखते हुए पाया। मैंने अपनी जेब से पैसे निकालकर उसे देने चाहे मगर मोची ने मना कर दिया और खुद ही उसे पैसे दे दिये। लड़की भागकर मेहंदी वाले के पास गई और एक कुप्पी ले आई। आते ही कुप्पी की नोंक को खोल दिया और अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ पर बड़े ही ध्यान से एक लकीर खींचने लगी। आकृति तो मेरी समझ में नहीं आई मगर मैं समझ गया कि लड़की फूल की आकृति बनाना चाह रही थी।

जब वो दूसरी कोशिश करने लगी तो मैंने उसे टोक दिया और मेहंदी लगाने के लिए इशारे से अपने पास बुलाया । मेरी बात सुनकर उसे कुछ समझ में नहीं आया इसलिए उसने अपने पिता की तरफ देखा, तो पिता ने अपनी भाषा मे जाने के लिए कहा। लड़की मुस्कुराती हुई मेरे पास आ गयी। मैंने उसकी छोटी-सी हथेलियों पर अपनी कलाकारी का एक छोटा-सा नमूना दिखा दिया। कुछ इंच की उसकी हथेलियों पर चित्रकारी करने में मुझे भी बड़ा ही आनंद आ रहा था। मैं ये काम करीब पंद्रह मिनट तक करता रहा और मुझे समय का होश ही नहीं रहा।

जब काम खत्म हुआ तो डिजाईन देख कर लड़की बड़ी खुश हुई। काम खत्म करके मैंने कुप्पी लड़की की पुरानी स्कर्ट की जेब में डाल दी। मोची ने भी मेरा जूता सीलकर रख दिया था और अपने सामान को समेटने लगा। मैंने जूता लेकर उसे एक बार जांचकर पहन लिया और उसे पैसे दे दिए। पैसे लेकर मोची अपने बचे हुए सामान को समेटकर चलने को तैयार हो गया। थोड़ी देर तक मैं वहीं बैठा रहा और मोची से बातें करता रहा और लड़की के मुस्कुराते चेहरे को देखता रहा।

सब सामान समेटने के बाद मोची खड़ा हुआ और अपना थैला अपनी साईकिल पर लादकर घर की तरफ चल पड़ा। लड़की अपने हाथों को संभालते हुए पैदल ही अपने पिता के साथ चल पड़ी। वो बार-बार अपने पिता को अपने हाथ दिखा रही थी और साथ ही अपनी भाषा में भी कुछ कहती जा रही थी। उसके शब्दों को तो मैं नहीं पकड़ सका मगर मुझे अंदाजा हो गया कि लड़की बहुत खुश थी। मैं उन दोनों को जाते हुए देख रहा था। बाप-बेटी के बीच होती बातों केसाथ प्रेम और खुशी का दृश्य बड़ा ही मनोरम था। थोड़ा दूर जाने पर लड़की ने मुड़कर मेरी तरफ देखा और अपना हाथ हिलाया, बदले में मैंने भी अपना हाथ हिला दिया। मेरी तरफ देखकर लड़की एक बार मुस्कुराई और अपने रास्ते चल दी। मैं भी अब अपनी बस के छूटने का दुःख मनाता हुआ बस स्टैण्ड की तरफ चल पड़ा।


सौरभ शर्मा की अन्य किताबें

1

मैदान-ए-जंग

9 मार्च 2019
0
0
0

ज्येष्ठ मास की दोपहर थी। चिलचिलाती धूप में जमीन तवे कीतरह तप रही थी। गर्म लू के थपेड़े शरीर में एक चुभन पैदा कर रहेथे। सूरज की तपिश से पसीना भी बाहर आने से डरता था। आसमानमें परिंदों का नाम ना था। उस आग बरसाते हुए आसमान के नीचेरियासतों की पलटनों में कोहराम मचा था। हर तरफ लाशें कटे हुएपेड़ों की तरह गि

2

यादों का मानसून

10 मार्च 2019
0
0
0

शाम को ऑफिस से घर जा रहा था कि तभी चिलचिलाती गर्मी के दरवाजे पर मानसून ने दस्तक दी। बारिश होने लगी और सड़क पर चलते लोग बचने के लिए आड़ ढूंढने लगे। मगर मुझे कुछ अलग महसूस हुआ ऐसा लगा कि जैसे इस पल को मैं पहले जी चुका हूं। फिर कुछ पल याद आए जो आज फिर से जीवंत होते लगने लगे। दोस्तों के साथ बिताए पल

3

दंपत्ति

11 मार्च 2019
0
0
0

मेरे पुराने मित्र शर्मा जी किसी पुराने पंडित की तरह धर्म क्रियाओं के पीछे भागने वालों में नहीं हैं, वो तो अपनी ही कपोल-कल्पनाओं में गुम रहने वाले स्वतंत्र विचारों के प्राणी हैं। उनकी अर्धांगिनी जी भी उन्हीं के प्रकार की हैं मगर भिन्नता

4

मेरे देश का किसान

12 मार्च 2019
0
0
0

किसी ने उसे हिंदु बताया,किसी ने कहा वो मुसलमान था,खुद को मौत की सजा सुनाई जिसने,वो मेरे देश का किसान था।जिसकी उम्मीदाें से कहीं नीचा आसमान था,मुरझाकर भी उसका हौंसला बलवान था,जब वक्त ने भी हिम्मत और आस छोड़ दी,उस वक्त भी वो अपने हालातों का सुल्तान था।किस्मत उसकी हारी हुई बाजी का फरमान था,बिना मांस की

5

जिंदगी

15 मार्च 2019
0
0
0

जिंदगी एक मौका है कुछ कर दिखाने का,एक बढ़िया रास्ता है खुद को आजमाने का,मत डरना कभी सामने आई मुसीबत से,कुदरत का इंसान पर किया एहसान जिंदगी है।धर्म-जात में बाँट दिया संसार को कुछ शैतानों ने,दिलों को बाँट दिया नफरत की हदों से,सहुलियत के लिए बनाई थी ये सरहदें हमने,मगर इंसान को मिली असली पहचान जिंदगी है।

6

चलता रहा मैं

17 मार्च 2019
0
1
0

उम्मीदों के साए में पलता रहा मैं,अपने जख्मों पर मरहम मलता रहा मैं,जिंदगी गोल राहों पर घुमाती रही मुझे,और चाहत का हाथ थामकर चलता रहा मैं।हर चाहत के लिए पतंगे सा जलता रहा मैं,मुट्ठी भर जीत के लिए मचलता रहा मैं,हीरे-सी तेज चमक लेकर भी आंखों में ,हर श्याम को सूरज सा ढलता रहा मैं।दर्द को खामोशी से कुचलता

7

नन्ही परी

18 मार्च 2019
0
0
0

जिंदगी की खिड़की पे सुबह हुई,खुशियों की एक किरण हमें जगाने आई है।ख्वाबों के फूल खिलते हैं यहां,इस बागबान को मोहब्बत से सजाने आई है।यादों को भुला देते हैं हम वक्त के साथ चलते हुएअब हर लम्हें को यादगार बनाने आई है।जिंदगी में कोई कमीं महसूस ना हुई हमें,अब सच्ची खुशियों का राज बताने आई है।हारी-थकी हुई थी

8

मेहंदी

20 मार्च 2019
0
0
0

शाम का समय था। अंधेरा ढलना शुरु हो चुका था। एक जलती-बुझती स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठा मोची अपना काम बढ़ाने की तैयारी में था। पास रखी किराये की लाईट में वो अपने पैसे गिन रहा था। मैं भी उस समय बस पकड़ने के लिए तेजी से बस स्टैण्ड की तरफ भागा जा रहा था। उसे देखकर आज फिर से मुझे अपने जूते की उधड़ी हुई सिलाई य

9

आतंकवादी चूहा

1 अप्रैल 2019
0
0
0

मासूमियतका असली मतलबआप किसी भीबच्चे या जानवर कीनजरों से नजरेंमिलाकर पता करसकते हैं। शायदइसी सच्चाई से प्रेरितहोकर हमारे पूर्वजोंने इंसान काशरीर और जानवरोंकी गर्दनों को जोड़करभगवानों की कल्पनाकी थी। इसीके चलते हमेंये भगवान बड़े भातेहैं जैसे - गणेशजी। मगर इनकेवाहन मूषक राज कोभगवान की मोहरलगने के बादभी स

10

उधार

5 अप्रैल 2019
0
1
0

पूरे दिन बरसकर मेघराज सांस लेने के लिए थम गए थे। अब कीड़े-मकोड़ो के लिए उत्सव का समय था। ढलता हुआ सूरज किसी खुशहाल किसान की तरह सीना फुलाए अपने घर की तरफ एक खूबसूरत गीत गुनगुनाता हुआ बढ़ रहा था। बादल रहने से अंधेरा ज्यादा जल्दी होता हुआ प्रतीत होता था। श्याम के 6 बजे थे। मगर मुझे घर जाने की कोई जल्दी न

11

मन का प्रेत

21 अप्रैल 2019
0
0
0

मन का प्रेतरामा को इस समय पैर बड़े भारी लग रहे थे। हर कदम मन भर का लगता था। बाबा सुबह से खेतों में काम कर रहे थे, दोपहर का खाना तो माँ दे आई थी लेकिन रात का खाना रामा को लेकर जाना था। माँ ने खाना रामा के हाथ में देकर सात बजे ही रवाना कर दिया ताकि वो जल्दी ही बाबा को खाना पहुंचा कर वापस आ जाए। मगर राम

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए