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मैदान-ए-जंग

9 मार्च 2019

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ज्येष्ठ मास की दोपहर थी। चिलचिलाती धूप में जमीन तवे की

तरह तप रही थी। गर्म लू के थपेड़े शरीर में एक चुभन पैदा कर रहे

थे। सूरज की तपिश से पसीना भी बाहर आने से डरता था। आसमान

में परिंदों का नाम ना था। उस आग बरसाते हुए आसमान के नीचे

रियासतों की पलटनों में कोहराम मचा था। हर तरफ लाशें कटे हुए

पेड़ों की तरह गिर रही थी। लू के चलते परिंदों ने भी दावत उड़ाने

का ख्याल छोड़ दिया था और वे भी चट्टानों पर बैठकर दर्शकों का

किरदार निभा रहे थे। हर हथियार खून का स्वाद जानने को बेकरार था।

घायलों और शहीदों की खोज-खबर लेने वाला कोई ना था। आज कोई

भी शिकार न था, हर तरफ बस शिकारी थे। कहीं जवानी का जोश

था, कहीं सालों का अनुभव । समय के हर पल से निर्दयता झलक

रही थी। हर शिकारी चिलचिलाती धूप में पानी की बजाय रक्त का

प्यासा था। रियासतों के युद्ध हार-जीत के लिए लड़े जाते रहें हैं और

लड़े जाते रहेंगे। मगर इनमें जिन रिश्तों का खून होता है उसका कोई

हिसाब नहीं होता। इसी तरह बेकसूर सैनिकों की रक्त स्याही से लिखे

एक और युद्ध की गाथा इतिहास के पन्नों में गुम हो रही थी।


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मैदान-ए-जंग

9 मार्च 2019
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ज्येष्ठ मास की दोपहर थी। चिलचिलाती धूप में जमीन तवे कीतरह तप रही थी। गर्म लू के थपेड़े शरीर में एक चुभन पैदा कर रहेथे। सूरज की तपिश से पसीना भी बाहर आने से डरता था। आसमानमें परिंदों का नाम ना था। उस आग बरसाते हुए आसमान के नीचेरियासतों की पलटनों में कोहराम मचा था। हर तरफ लाशें कटे हुएपेड़ों की तरह गि

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यादों का मानसून

10 मार्च 2019
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शाम को ऑफिस से घर जा रहा था कि तभी चिलचिलाती गर्मी के दरवाजे पर मानसून ने दस्तक दी। बारिश होने लगी और सड़क पर चलते लोग बचने के लिए आड़ ढूंढने लगे। मगर मुझे कुछ अलग महसूस हुआ ऐसा लगा कि जैसे इस पल को मैं पहले जी चुका हूं। फिर कुछ पल याद आए जो आज फिर से जीवंत होते लगने लगे। दोस्तों के साथ बिताए पल

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दंपत्ति

11 मार्च 2019
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मेरे पुराने मित्र शर्मा जी किसी पुराने पंडित की तरह धर्म क्रियाओं के पीछे भागने वालों में नहीं हैं, वो तो अपनी ही कपोल-कल्पनाओं में गुम रहने वाले स्वतंत्र विचारों के प्राणी हैं। उनकी अर्धांगिनी जी भी उन्हीं के प्रकार की हैं मगर भिन्नता

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मेरे देश का किसान

12 मार्च 2019
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किसी ने उसे हिंदु बताया,किसी ने कहा वो मुसलमान था,खुद को मौत की सजा सुनाई जिसने,वो मेरे देश का किसान था।जिसकी उम्मीदाें से कहीं नीचा आसमान था,मुरझाकर भी उसका हौंसला बलवान था,जब वक्त ने भी हिम्मत और आस छोड़ दी,उस वक्त भी वो अपने हालातों का सुल्तान था।किस्मत उसकी हारी हुई बाजी का फरमान था,बिना मांस की

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जिंदगी

15 मार्च 2019
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जिंदगी एक मौका है कुछ कर दिखाने का,एक बढ़िया रास्ता है खुद को आजमाने का,मत डरना कभी सामने आई मुसीबत से,कुदरत का इंसान पर किया एहसान जिंदगी है।धर्म-जात में बाँट दिया संसार को कुछ शैतानों ने,दिलों को बाँट दिया नफरत की हदों से,सहुलियत के लिए बनाई थी ये सरहदें हमने,मगर इंसान को मिली असली पहचान जिंदगी है।

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चलता रहा मैं

17 मार्च 2019
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उम्मीदों के साए में पलता रहा मैं,अपने जख्मों पर मरहम मलता रहा मैं,जिंदगी गोल राहों पर घुमाती रही मुझे,और चाहत का हाथ थामकर चलता रहा मैं।हर चाहत के लिए पतंगे सा जलता रहा मैं,मुट्ठी भर जीत के लिए मचलता रहा मैं,हीरे-सी तेज चमक लेकर भी आंखों में ,हर श्याम को सूरज सा ढलता रहा मैं।दर्द को खामोशी से कुचलता

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नन्ही परी

18 मार्च 2019
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जिंदगी की खिड़की पे सुबह हुई,खुशियों की एक किरण हमें जगाने आई है।ख्वाबों के फूल खिलते हैं यहां,इस बागबान को मोहब्बत से सजाने आई है।यादों को भुला देते हैं हम वक्त के साथ चलते हुएअब हर लम्हें को यादगार बनाने आई है।जिंदगी में कोई कमीं महसूस ना हुई हमें,अब सच्ची खुशियों का राज बताने आई है।हारी-थकी हुई थी

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मेहंदी

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शाम का समय था। अंधेरा ढलना शुरु हो चुका था। एक जलती-बुझती स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठा मोची अपना काम बढ़ाने की तैयारी में था। पास रखी किराये की लाईट में वो अपने पैसे गिन रहा था। मैं भी उस समय बस पकड़ने के लिए तेजी से बस स्टैण्ड की तरफ भागा जा रहा था। उसे देखकर आज फिर से मुझे अपने जूते की उधड़ी हुई सिलाई य

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आतंकवादी चूहा

1 अप्रैल 2019
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मासूमियतका असली मतलबआप किसी भीबच्चे या जानवर कीनजरों से नजरेंमिलाकर पता करसकते हैं। शायदइसी सच्चाई से प्रेरितहोकर हमारे पूर्वजोंने इंसान काशरीर और जानवरोंकी गर्दनों को जोड़करभगवानों की कल्पनाकी थी। इसीके चलते हमेंये भगवान बड़े भातेहैं जैसे - गणेशजी। मगर इनकेवाहन मूषक राज कोभगवान की मोहरलगने के बादभी स

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उधार

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पूरे दिन बरसकर मेघराज सांस लेने के लिए थम गए थे। अब कीड़े-मकोड़ो के लिए उत्सव का समय था। ढलता हुआ सूरज किसी खुशहाल किसान की तरह सीना फुलाए अपने घर की तरफ एक खूबसूरत गीत गुनगुनाता हुआ बढ़ रहा था। बादल रहने से अंधेरा ज्यादा जल्दी होता हुआ प्रतीत होता था। श्याम के 6 बजे थे। मगर मुझे घर जाने की कोई जल्दी न

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मन का प्रेत

21 अप्रैल 2019
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मन का प्रेतरामा को इस समय पैर बड़े भारी लग रहे थे। हर कदम मन भर का लगता था। बाबा सुबह से खेतों में काम कर रहे थे, दोपहर का खाना तो माँ दे आई थी लेकिन रात का खाना रामा को लेकर जाना था। माँ ने खाना रामा के हाथ में देकर सात बजे ही रवाना कर दिया ताकि वो जल्दी ही बाबा को खाना पहुंचा कर वापस आ जाए। मगर राम

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