चाँद खड़ा था छत पर अपने,हमको भी दीदार हुआ ।
पंडित बोलें है शनिवार,मैं बोला मेरा ईद हुआ ।
धर्म-जाति के बंधन को,मन तोड़ कबीरा मस्त हुआ ।
चल अब हम दुख-दर्द बँटायें,यही हमारा धर्म हुआ ॥
20 नवम्बर 2015
5 फ़ॉलोअर्स
कोई कहता है हम लिखते नही बकवास करते है, कोई कहता है हम जीवन का ही अरदास करते है, हमे खुद भी नही मालूम हम करते है क्या यारों, जिया है हमने जो जीवन उसी की बात करते हैं ॥D
मित्रों "मेरा धर्म" आप लोगों को पसन्द आया हार्दिक अभिनन्दन |
22 नवम्बर 2015
बहुत खूब, रवीश जी !
21 नवम्बर 2015