0.0(0)
5 फ़ॉलोअर्स
4 किताबें
चाँद खड़ा था छत पर अपने,हमको भी दीदार हुआ ।पंडित बोलें है शनिवार,मैं बोला मेरा ईद हुआ ।धर्म-जाति के बंधन को,मन तोड़ कबीरा मस्त हुआ ।चल अब हम दुख-दर्द बँटायें,यही हमारा धर्म हुआ ॥
जमाना खूब तरक्की कर गया है,आज जाना मैंं ।बैठ कर पब में कहते है,भजन कीर्तन में सामिल ॥
कोई नन्हॉ सा बन्दा,आज फिर चलने को निकला है |कोई मासूम परिन्दा,आज उड़ने को निकला है |उसे कुछ भी नही है,इल्म मौसम और हवाओं का |कोई भोला सा बच्चा, आज अपनी जिद पे निकला है ||