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मेरा गांव

13 अक्टूबर 2015

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गांव अब पहले जैसे नहीं रहे ,जब में छोटा था तो चारो और हरियाली थी ,बस से उतरते ही शहर को में भूल जाता था ,बड़े बुजर्गो के पैर छूते छूते में गांव में घुसता दादी -दादा ,ताई -ताऊ ,चाचा -चाची ,सब के चेहरे पर मुस्कान होती थी ,गांव में बिजली नहीं थी ,पर लोगो के दिलो में रौशनी थी,फ़ोन नहीं होते थे ,पर हर कोई खेर- खबर लेता था, चारो और लोग खेतो में आते जाते दिखाई पड़ते थे ,बच्चे गुली- डंडा,छुपम -छुपाई ,कंचे खेलते दिखाई देते थे ,भाभियाँ हंसी मजाक करती ,पोस्टमेन मिलता ,मजाक में कहता तुम चिट्टी क्यों नहीं भेजते ,चाची रोज पूछती है,छटी आई क्या ! न जाने अब क्या हो गया !गांव में हरियाली कुछ कम हो गई ,बड़े बुजुर्ग मिलते तो है,पर रुखे- रुखे रहते है, पेरो की तरफ बड़ो ,तो रहने दो ,नमस्कार बहुत है, कह कर चल देते है,अब दादी -दादा ,ताई -ताऊ ,चाचा -चाची ,सब के चेहरे पर मुस्कान नहीं होती ,अरमान होते है ,की काश वह भी शहर चले जाते ! खुसर- फुसर सुनाई देती ,लड़के को शहर की हवा लग गई है,देखो चलता कैसे है,कपड़े कैसे है.गांव मैं अब बिजली आ गई ,इंटरनेट आ गया ,केबल टी वी आ गया ,बच्चे टी वी में मस्त है.खेतो में जाने का समय बदल गया !किसे बात करने की फुरसत है! गांव पहुँचते ही दिल करता है ,वापस चलु !फिर सोचता हूँ आच्छा हुआ बिजली, इंटरनेट, मोबाइल के जमाने से पहले जनम लिया ,वरना वो प्यार और दुलार कहा मिलता ,प्रकर्ति के संग खेल कर बड़े हुए ,आज तो टी वी , कंप्यूटर और मोबाइल पर ही खेलना पड़ता !वो गाये -भैसें चुगाने का आनंद ,वो चोरी से फल चुरने का आनंद ,नदीयों में नहाने का आनंद अब कहा !स्कूल से छुपने का आनंद ,गुरुजी का डर ,मित्रो अब वो बात कहा!

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वर्तिका

वर्तिका

आपका लेख पढ़कर सचमुच गाँव की याद ताज़ा हो गयी! सच में, आज के इंटरनेट युग में वो बात कहाँ!

14 अक्टूबर 2015

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

हा महावीर जी , अब गाँव भी शहर बनते जा रहे हैं । वो मस्ती गाँव वाली अब देखने को नहीं मिलती । हमे भी याद है की छोटे मे कैसे सब पलटन के साथ घूमा करते थे। तालाब मे जा के मछ्ली पकड़ते, घंटो घूमा करते थे .... अब वो सब बातें याद आती हैं ...

14 अक्टूबर 2015

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मन कहता है.

13 अक्टूबर 2015
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पहली बार हिंदी की साइट  का पता मिला,मेरा मन भी मचल गया,अन्दर तो आ गया ,पर अब समझ नहीं आ रहा क्या  लिखू,क्या  नेट की लिखी भगवान भी  देखता होगा  ,चलो में  मान  लेता हूँ,भगवान भी देखते होंगे ,आप  सब में भगवान है,जब हम सब  में  भगवान है तो  फिर हमरा मन क्यों भटकता  है ,क्या ढूंढ़ता  फिरता हूँ  पता  नहीं,

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मेरा गांव

13 अक्टूबर 2015
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गांव अब पहले जैसे नहीं रहे ,जब में छोटा था तो चारो और हरियाली थी ,बस से उतरते ही शहर को में भूल जाता था ,बड़े बुजर्गो के पैर छूते छूते में गांव में घुसता दादी -दादा ,ताई -ताऊ ,चाचा -चाची ,सब के चेहरे पर मुस्कान होती थी ,गांव में बिजली नहीं थी ,पर लोगो के दिलो में रौशनी थी,फ़ोन नहीं होते थे ,पर ह

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मन कहता है.

14 अक्टूबर 2015
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पहली बार हिंदी की साइट  का पता मिला,मेरा मन भी मचल गया,अन्दर तो आ गया ,पर अब समझ नहीं आ रहा क्या  लिखू,क्या  नेट की लिखी भगवान भी  देखता होगा  ,चलो में  मान  लेता हूँ,भगवान भी देखते होंगे ,आप  सब में भगवान है,जब हम सब  में  भगवान है तो  फिर हमरा मन क्यों भटकता  है ,क्या ढूंढ़ता  फिरता हूँ  पता  नहीं,

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मेरा गांव

14 अक्टूबर 2015
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गांव अब पहले जैसे नहीं रहे ,जब में छोटा था तो चारो और हरियाली थी ,बस से उतरते ही शहर को में भूल जाता था ,बड़े बुजर्गो के पैर छूते छूते में गांव में घुसता दादी -दादा ,ताई -ताऊ ,चाचा -चाची ,सब के चेहरे पर मुस्कान होती थी ,गांव में बिजली नहीं थी ,पर लोगो के दिलो में रौशनी थी,फ़ोन नहीं होते थे ,पर ह

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मन कहता है.

14 अक्टूबर 2015
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पहली बार हिंदी की साइट  का पता मिला,मेरा मन भी मचल गया,अन्दर तो आ गया ,पर अब समझ नहीं आ रहा क्या  लिखू,क्या  नेट की लिखी भगवान भी  देखता होगा  ,चलो में  मान  लेता हूँ,भगवान भी देखते होंगे ,आप  सब में भगवान है,जब हम सब  में  भगवान है तो  फिर हमरा मन क्यों भटकता  है ,क्या ढूंढ़ता  फिरता हूँ  पता  नहीं,

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युग कर्म

15 अक्टूबर 2015
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युग कर्म

15 अक्टूबर 2015
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वर्तमान

16 अक्टूबर 2015
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vkt dy]

2 दिसम्बर 2015
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