गिरते पड़ते मंज़िल पर पहुँच ही जाएँगे ....
बस हमें हौंसला अडिग बनाए रखना है
शीर्ष शिखर पर हम चढ़ ही जाएँगे
बस मंज़िल की चाह बनाए रखनी है
ऊँचाई को देख परिंदा ग़र पहले से ही डर जाता
फिर उन्मुक्त नील गगन में कैसे विचरण कर पाता
मंज़िल वही पाता है जो सौ बार गिरकर भी उठता है
तरु धरा पर गिरकर ज्यों सौ अंकुर लेकर उठता है