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मेरी बात

8 दिसम्बर 2016

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मनुष्य की प्राथमिक चार प्रकार की आवश्यकताए है l शारीरिक : रोटी, कपड़ा और मकान l मानसिक : निर्भयता, प्रीति और स्वाभिमान l सामाजिक : परिवार, समाज और राष्ट्र l आत्मिक : धर्म, मुक्ति और भगवान l दूसरी बात संसार के लोगों की स्थिति भी सदैव चार प्रकार की रहती हैं l चाहे वे किसी भी धर्म व सम्प्रदाय के क्यों न हो l न. 1 आर्त, दुखी यानी दुःख से छुटकारा चाहने वाले l न. 2 अर्थार्थी, संसार है किन्तु और अधिक संसार के साधनों की मन में वासना रखने वाले l न. 3 जिज्ञासु, चीज़ो को जानने व उन्हें समझने की इच्छा रखने वाले l न. 4 मुमुक्षु, अपने आत्म कल्याण की भावना रखने वाले [ पाप क्षमा और पुण्य की प्राप्ति वाले ] l आवश्यकताओं की पूर्ति तथा स्थितियों को बदलने के लिए ज्ञान + स्वास्थ्य + साधन- संसाधन जुटाने के साथ साथ शुभ कर्म करने अति आवश्यक होते हैं l साधारण व्यक्ति को आजीविका, अवस्था एवं भविष्य की चिंता हमेशा सताती रहती है l तीनों चिंताओं से छुटाकारा, स्थितियों में बदलाव और आवश्यकताओं की पूर्ति का समाधान ज्ञान + विज्ञान + राज + श्रम के द्वारा संभव हैं l अब ज्ञान कैसा हो ? व्यवस्था कैसी हो ? सच्चा दर्शन कोनसा है ? श्रम के बटवारे की प्रणाली कोनसी उचित है ? राजा के पास शक्तियाँ होती हैं इसलिए सबसे अधिक जिम्मेदारी राज चलाने वालोँ की बन जाती है l उन्हें चाहिए कि वे ज्ञान को निर्धारित करे विज्ञान की गति प्रगति पर नजर रखें और प्रचलित जीवन दर्शनों को परख कर जनता के सामने सच्चा जीवन दर्शन लाए l श्रम का बटवारा योग्यताओं के आधार पर करे l सभी बातें चारों कसोटी पर खरी उतरनी चाहिए बातें वैज्ञानिक हो, व्यावहारिक हो, शास्त्रानुसार हो (शास्त्र से मेरा अर्थ यहाँ यह है की जो बातें पहले स्वीकृत थीं क्या वे अब भी जन, जीव तथा जीवन के हित में स्वीकार्य हैं ) बातें सार्वभौमिक भी हो l जनता को संविधान ने अधिकार दिया है कि वह राष्ट्रहित में अपनी बात राज व्यवस्था को कहे बस मैं अपनी बात कहकर अपने अधिकार का उपयोग कर रहा हूँ l आपसे निवेदन करता हूँ कि यदि मेरी बातें जनहितकारी हैं तो मेरा नहीं मेरी बातोँ का समर्थन करें l एक पहल विवादों को सुलझाने की ...! पुरुस्कार लौटाकर अथवा समाज में असहिष्णुता बढ़ रही है यह बताकर कुछेक लोग विवादों को सुलझाना चाहते हैं या चीजों को और उलझाना चाहते है l पता नहीं ! विवाद क्या है ? ..........................हर रोज़ tv व अखबार में एक नया शापा ! कभी धर्म का कभी अधर्म का कभी भोग का कभी योग का, कहीं व्यक्ति तो कहीं अभिव्यक्ति कहीं अधिकार तो कहीं सम्पति l पाप - पूण्य की सहीं गलत परिभाषा व विश्वास - अंधविश्वास में तेरे – मेरे अंतर के फर्क को मिटाना l व मत की आड में भावनाओं से खिलवाड़ कर झूठ के सहारे अपने किसी गुप्त मंतव्य को पूरा करना l आओ तेर-मेर को छोड़कर मर्म पर विचार करें और इस विवाद को यहीं पर समाप्त करें ! उपरोक्त बातोँ के साथ - साथ, धर्म विशेष की महिला को घर नहीं दिया, धर्म विशेष के व्यक्ति को नोकरी नहीं दी, धर्म विशेष के लोंगों को खाने के लिए गाय का माँस नहीँ मिलता l हर आतंकवादी हमलें में उनका ही नाम क्यों लिया जाता हैं ? ऐसे विषयों पर चर्चा करवाकर कई चैनल समाज को पता नहीं क्या सन्देश देना चाहते हैं ? न्याय का ? शांति का ? प्रेम का ? आशा का ? अधिकार का ? या किसी छुपी हुईं मंशा अथवा किसी गुप्त एजेण्डा के अंतर्गत यह सब हो रहा है, पता करें ? कैसे...! यदि ये चैनल सच में ईमानदार हैं तो उन्हें अब... विवादों पर नहीं विवाद के मर्म पर बहस करवानी चाहिए l विवाद का कारण क्या हैं ? अधिकतर विवाद मेरे – तेरे विश्वास को लेकर ही उठते हैं और विश्वास धर्म की देन है तब क्यों न विवादों को सुलझाने के लिए अब धर्म पर एक ईमानदारी से चर्चा की जाए l धर्म की आवश्यकता क्या है ? धर्म क्या करता है ? धर्म कैसा हो ? धर्म का क्षेत्र कहाँ तक है ? धर्म कब से है ? धर्म मनुष्य के द्वारा या ईश्वर के द्वारा स्थापित है इतने सारे धर्म संसार में क्यों ? विषय यह है कि : अब धर्मों की विभिन्नताओं को सुलझाने के लिए क्यों न व्यापक चर्चा करके चीजों को ठीक करने की एक पहल की जाए l मेरी समझ से सर्वजन का कल्याण अपने – अपने धर्म को श्रेस्ठ स्थापित करने में नहीं बल्कि धर्म के मर्म को, धर्म के कार्य को, धर्म के क्षेत्र को समझने व समझाने से संभव है l साधारण जन तो इस मर्म को नहीँ समझ सकते हैं l किन्तु आप थोड़ा सा प्रयत्न करेगें तो इस रहस्य को पहले समझकर फिर साधारण जन को उनकीं भाषा में समझाकर अवश्य ही बहुतों का कल्याण कर जाओगे l .....हेतु विषय को समझने के लिए कुछ बिन्दु आप तक पहुँचा रहा हूँ l पानी कैसा होता है ? क्या काम आता है ? किसी भी धर्म के किसी भी व्यक्ति में कोई मतभेद नहीं है l पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि जैसे है, सभी धर्म के सब लोग उन्हें वैसा ही मानते हैं, जैसे वे है l रेल कैसे चलती है l कार कैसे दोड़ती है l हवाई जहाज़ आसमान में कैसे उड़ता है l कोई नहीं कहता मेरे धर्म के अनुसार रेल ऐसे चलनी चाहिए, कार वैसे दोड़नी चाहिए, किसी को कोई एतराज नहीं है l मोबाइल कैसे कार्य करता है l इंटरनेट की उपयोगिता व उसकी कार्य पद्धति पर किसी भी धर्म का किसी से कोई प्रश्न नहीं है l विश्व के किसी भी पदार्थ की बनावट व गुणवत्ता को लेकर धर्मों में कोई मतभेद नहीं ? सौरमंडल हो या आकाशगंगा, निहारिका हो या ब्लेकहोल, पेड़ - पौधे हो या जीव - जंतु उनके नाम व कार्य को लेकर किसी भी मत का किसी अन्य मत से कोई वाद - विवाद नहीं है l प्रकृतिक नियमों पर भी किसी का किसी से कोई मन मुटाव नहीं हैं l जैसे सूर्य के उदय – अस्त के समय पर, चंद्रमा के 15 दिनों तक छुपे रहने या 15 दिनों तक लगातार दिखाई देते रहने पर, सर्दी के बाद गर्मी, गर्मी के बाद वर्षा, यहाँ तक गर्भ में किस योनि का प्राणी कितने समय व दिन रहेगा इत्यादि बात पर कोई वाद – विवाद नहीं है l अग्रेज़ी, जापानी, जर्मन, अरबी, चीनी, हिन्दी, तमिल, गुजराती, बंगाली, पंजाबी, उर्दू भाषाएँ भिन्न – भिन्न हैं, अक्षरोच्चारणं एवं अक्षरों की बनावट अलग – अलग है फिर भी सबने अपनी उन्नति के लिए red को लाल, sweet को मीठा, man को आदमी मान ही लिया यानी भाषाओं की विभिन्नताओं को जब मनुष्य अपनी उन्नति के लिए सुलझा सकता है l तब परमपिता परमेश्वर यानि रचयिता और जीवन को लेकर इतनें सारे मतभेद क्यों ? जन्म और मृत्यु के बीच निभाने वाले संस्कारों में इतनी सारी विभिन्नताएं तथा मृत्यु के बाद व जन्म से पहले के जीवन एवं ईश्वर की उपासना पद्धति में इतना अंतर क्यों ? जबकि अन्य प्राकृतिक चीजों में उनका कुछ भी वाद - विवाद नहीं ...है l जब भाषाओं की विभिन्नताओं को मनुष्य का हित किस में है, यह जानकर बुद्धिमत्ता से मनुष्य के द्वारा ही मनुष्य के लिए विभिन्नताओं को मिटाया जा सकता है और वैज्ञानिक सिद्धांतों को जैसे है वैसे ही स्वीकार कर लिया जाता है तब जीवन और ईश्वर से संबंधित बातोँ में भी, मनुष्य के उद्धार के लिए एक समरसता क्यों नहीं लाई जा सकती है ? यह कार्य कठिन अवश्य है परन्तु असंभव बिल्कुल भी नहीं है l हर धर्म में के कुछ तथाकथित धार्मिक लोग इसे सुलझाने नहीं देंगे क्योंकि वे धर्म को कल्याण का नहीं आजीविका और मौज मस्ती का स्रोत समझते हैं l साधारण जन सुलझा नहीं पाएगा क्योंकि वह आजीविका में उलझा हुआ हैं l फिर इस समस्या का निवारण कौन कर सकता है ? इस समस्या का समाधान वहीं लोग ढूढ़ सकते है जिनके पेट भरे हुए हैं और वे मन में जन कल्याण का विचार रखते हैं यानि आप जैसे सच्चे धर्मी लोग ही यह महान कार्य कर पाएंगे l आपसे अच्छा सहयोगी और कौन हो सकता है क्योंकि प्रभु ने आपको आशीवार्द भी दिया है और जन कल्याण की भावना भी आप में है l तब धर्मों की विभिन्नताओं को सुलझाने के लिए क्यों न अब मिलकर एक पहल की जाए l हम तो आप सबसे, इस से भी आगे एक और बात कहना चाहते है कि यदि आप किसी कारणवश यह कार्य करने में समय नहीँ निकाल पा रहे है तो सभी धर्मों के किसी न किसी कार्य में जब – तब सहायता व टांग अड़ाने वाली सरकार को पत्र लिखकर परामर्श अवश्य दे कि वह अब एक डेमोक्रेसी नैतिक धर्म अर्थात् एक नैतिकता वालीं विचारधारा अथवा एक ऐसी संस्कृति लाए जिससें सबका कल्याण सुनिश्चित हो और जिसमें सब का भला निहीत हो l आने वाली पीढ़ी भारत का भाग्य है इसमें कोंई संदेह नहीँ किन्तु भविष्य के भारत की नीव रखने वाले विधाता तो आज के रहनुमा यानी आप ही है l आइए भारत का भाग्य बनाने से पहले लोगों के मनों से भय निकालने के लिए धर्म में से भ्रम निकालकर मर्म प्रस्तुत करने वाले एक शुभकार्य का शुभारम्भ करें l राजनैतिक, धार्मिक और मीडिया के लोग तथा आप और हम सभी मिलकर लोगों के मनों से भय, भ्रम निकालकर समाज में शान्ति लाकर उन्हें तनाव से मुक्त कर सदा के लिए शोषित होने से बचा ही नहीं सकते बल्क़ि उन्हें उतरोत्तर विकास की प्रक्रीया से प्रसार होने में और गति प्रदान कर सहायता पहुँचा सकते हैं l आज समाज में तनाव है, लोगों में भय और भ्रम फैला हुआ है भोले – भाले लोगों तथा बच्चों का शोषण निरन्तर होता रहता है l इसका कारण और निवारण क्या है ? आओ जानकर समाज में सोहार्द उत्पन्न करें l संसार के लोगों की स्थिति सदैव चार प्रकार की रहती हैं l चाहे वे किसी भी धर्म व सम्प्रदाय के क्यों न हो l न. 1 आर्त, दुखी यानी दुःख से छुटकारा चाहने वाले l न. 2 अर्थार्थी, और अधिक संसार के साधनों की मन में वासना रखने वाले l न. 3 जिज्ञासु, चीज़ो को जानने व उन्हें समझने की इच्छा रखने वाले l न. 4 मुमुक्षु, अपने आत्म कल्याण की भावना रखने वाले [ पाप क्षमा और पुण्य की प्राप्ति वाले ] l इन स्थितियों से बाहर आने के लिए लोग धार्मिक लोगों की शरण में जाते है l ऐसे में वे कई बार गलत लोगों के चक्कर में फसकर बरबाद हो जाते है l जब सरकार राष्ट्र के नागरिकों का सम्पूर्ण विकास व उनकी सुरक्षा का दावा करती है तो इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आत्मिक चारों प्रकार के उत्थान उसमें निहित होते है l सरकार की यह जवाबदेही बनती है कि वह अपने नागरिकों की हर प्रकार की आवश्यकता की पूर्ती करें l अन्य सभी विषयों पर कई – कई विद्वान तथा सामाजिक कार्यकर्ता एवं राजनैतिक लोग कार्य करने में लगे हुए है l किन्तु आत्मिक विषय के अंतर्गत् आने वाली समस्याओं तथा प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए सरकार की ओर से कोंई भी कार्य नहीँ हो रहा है l लोग उपरोक्त चारों समस्याओं के चलते ही तथाकथित धार्मिक लोगों के पास व धार्मिक आयोजनों और तीर्थस्थलो में जाते हैं l मेरा पहला आरोप यहीं है कि सरकार के द्वारा अपना कर्तव्य ठीक से न निभाने के कारण लोग जोखिम उठाते है l अपनी कमाई लुटवाते है और विश्वासघात के शिकार होते है तथा उनका सभी प्रकार का शोषण निरन्तर होता रहता है l जीवन का उद्धेश्य और रचयिता की मंशा क्या है ? यह सरकार के द्वारा स्पष्ट न करने की वजह से ही कुछ स्वार्थी तत्व अपने लाभ के लिए भोले - भाले लोगों का शोषण कर, साथ में भय, भ्रम और समाज में तनाव फैलाते रहते हैं l ऐसी स्थिति के चलतें सरकार ही सभी तनाव व हादसों की सीधे – सीधे जिम्मेदार है यदि सरकार अपना फर्ज सहीं – सहीं निभाती यानि उपरोक्त समस्याओं के उत्तर लोगों को पहले से सुझा देती तो इतना बड़ा भय, भ्रम, शोषण और तनाव समाज में कभी भी उत्पन्न ही नहीं होता l सरकार का इतना कहकर पीछा छुड़ा लेने से सत्य छुप नहीँ सकता कि धर्म लोगों का व्यक्तिगत मामला हैं l जबकि सरकार लोगों के इसी व्यक्तिगत कार्य में निरन्तर हस्ताक्षेप करती आ रही है l मैं इसके कई उदाहरण दे सकता हूँ l एक करोड़ के आस-पास साधू – सन्यासियों व पण्डे – पुजारियों के होते हुए भी क्या समझकर सरकार कई मंदिरों का संचालन स्वयं करती है ? सरकार हज यात्रियों को क्या समझकर उन्हें हज यात्रा के लिए अनुदान राशी प्रदान करने पर तुली हुई है, जबकि उनके विश्वास के अनुसार हज में यह राशी हराम है l सरकार का यह कार्य लोगों के धार्मिक कार्य में हस्तक्षेप नहीं तो और क्या है ? धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाकर सरकार सबको आदर्श नागरिक बनाना चाहती है न जाने यह धर्मविहनता की कौनसी सोच है l किन्तु अल्प सख्यंक का राग अलाप कर हरेक के धार्मिक कार्यो में हाथ डालने वाली सरकार का क्या यह भी कर्तव्य नहीं बनता है कि वह बुनयादी आवश्यकताओ के साथ-साथ लोगो के चरित्र का निर्माण करते हुए उनके मनों में उठ रहे प्रश्नों का उत्तर भी दे l अब तो हद ही होगई क्योंकि सरकार लोगों के व्यक्तिगत जीवन में भी लिविंग रिलेशन जैसे कानून बनाकर सीधे-सीधे हस्ताक्षेप करने लगी है l सरकार का अपने नागरिकों के प्रति कुछ कर्तव्य बनता है और आपकी भी यहीं राय है तो सरकार से अनुरोध करे कि वह हमारी उपरोक्त समस्याओं का निवारण करते हुए हमारे मनों में उठ रहे इन प्रश्नों का उत्तर वैज्ञानिक, व्यवहारिक, शास्त्रानुसार और सभी का कल्याण हो सके ऐसी रीति से दे.....l १. मैं कौन हूँ ? २. कहां से आया हूँ ? ३. मेरा जन्म इस पृथ्वी पर क्यों हुआ है ? ४. मैं किसी कार्य विशेष के लिए आया हूँ /भेजा गया हूँ तो उस कार्य को अब कैसे जान सकता हूँ अर्थात मेरे जीवन का कोई उद्धेश्य यानी मेरा कोई भविष्य है की नहीं यदि है तो वह किन- किन बातों पर निर्भर करता है ? ५. जीवन के उद्धेश्य की पूर्ति होने या न होने की स्थिति में यानी दोनों ही प्रकार की परिस्थितियों के परिणाम क्या - क्या होंगे अर्थात मेरा मृत्यु के बाद का जीवन कैसा होगा ? ६. मुझे यहां भेजने वाला कौन है ? ७. यह संसार क्या है तथा कैसे और किसने, कब एवं क्यों बनाया है ? ८. दुःख और दुःख का कारण तथा उसका निवारण क्या है ? मैं इस बात की तरफ आपका ध्यान इसलिए ला रहा हूँ कि सब साधन – संसाधनों को अपने नियंत्रण में रखकर सरकार ने उपरोक्त प्रश्नों एवं उपरोक्त समस्याओं के समाधान के लिए (सरकार ने) लोगों को लोगों के ऊपर छोड़ दिया है l यह ठीक नहीं है न ही यह राजा का कार्य हैं l जबकि पहले ऐसा नहीँ था l राजा ऋषि – मुनियों के जीवन की रक्षा और आजीविका का ध्यान रखते थे और ऋषि - मुनि राजा तथा प्रजा का उनके उत्तरोत्तर विकास में मार्गदर्शन ही नहीँ करते थे बल्कि नए-नए अनुसन्धान करके लोगों के जीवन को आनंदित और सुरक्षित बनाते रहते थे l जब सरकार की ओर से प्रत्येक व्यक्ति की चारों समस्याओं तथा उनके प्रश्नों का निवारण कर दिया जाएगा तो भोले भाले लोग कई प्रकार की मुश्किलों से बच जाएगे l पहली बात तो यह कि धार्मिक जनता की धर्मनिरपेक्ष सरकार क्यों ? यदि किसी कारणवश हो गयी तो क्या प्रजातंत्र में धार्मिक जनता क़ी धर्म निरपेक्ष सरकार से कुछ उम्मीद रखना कोंई गलत बात है..... ? उत्तर नहीं है ... तब तो यह सरकार हमारे प्रश्नों का उत्तर दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे ..............हमारी समस्याओं का निवारण करें करें करें ............क्योंकि सरकार ने आज तक ऐसा नहीं किया इसलिए वह ही बार – बार होने वाले व्यक्तिगत, परिवारिक, सामाजिक, सामूहिक तनाव व हादसों तथा गिरती नैतिकता जैसे धर्म के क्षेत्र में आने व होने वाली शोषणकारी व जीवन जाने जैसी घटनाओं की जिम्मेदार है l कुछ लोग अपनी राय मीडिया की सुनकर बनाते हैं तो कुछ दूसरो की बातें मानकर किन्तु मैं विश्वास करता हूँ कि आप अपनी राय चीजों का मूल्यांकन करके निश्चित करते होंगे l यदि मैं ठीक कहा रहा हूँ तो इस सत्य का इतना प्रचार करें कि सरकार लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं के हल के साथ – साथ इन समस्याओं के समाधान के लिए भी कोंई ठोस कदम उठाए ताकि भविष्य में और कोंई तनावपूर्ण दुर्घटना न हो l राजा और प्रजा की एक ही धारणा राष्ट्र में शान्ति लाती है l सरकार इस विचार को अपने संज्ञान में लेकर ऐसे विभाग का निर्माण करें जो व्यक्ति की अभिव्यक्ति एवं मनुष्य के सम्मान और गरिमा को ध्यान में रखकर एक डेमोक्रेसी (धर्म) दर्शन की संस्थापना की संभावनाओं का पता लगाकर उसे स्थापित करे जिससे लोगों की मूलभूत धार्मिक आवश्यकताओं की पूर्ती भी सरलता से होती रहें l पुनः पुनः विवेचना व पुनः पुनः संस्थापना अर्थात् रिफोर्म एक लगातार होने वाली प्रक्रीया है इससें भागना कोंई समझदारी नहीँ बल्क़ि इससें भागकर नई –नई मुशिकलों को निमंत्रण देना है l एक बार सरकार ऋषि-मुनियों की मंडली बनाकर उनके जीवन की रक्षा तथा आजीविका की सुरक्षा का प्रबंधन करके यह कार्य उन्हें देकर तो देखें वे जमीन पर स्वर्ग नहीँ उतार लाए तो मुझे कहना l डेमोक्रसी धर्म के रूप में पुन:धर्म के संस्थापन की आवश्यकता क्यों ? सभी धर्म समयों के अंतराल और देश, काल, तथा परिस्थितियों की विभिन्नताओ के साथ अलग - अलग धर्म प्रवर्तकों की अलग - अलग पृष्ठभूमियो में अलग - अलग भाषा बोलियों के द्वारा अस्तित्व में आए है l यह सभी धर्म मनुष्य के कल्याण की बाते कहते है और वे उस समय सुधार का अगला कदम थे l यदि हम सभी धर्मो की जिन समयों के अंतराल और देश, काल, तथा परिस्थितियों में वे अस्तित्व में आए और उन तथ्यों को मद्देनजर रखकर अध्ययन करेंगे जो उस वक्त वहां थे तो आपको उनमे कुछ भी गलत दिखाई नहीं देगा l न ही उनकी पूजा पद्धतियों में, न ही वेश- भूषा में, न ही खान -पान व मान्यताओं तथा विश्वासों एवं नामो में कुछ भी बुराई दिखाई देगी l फिर भी एक विवाद हमेशा रहा है कि अपने धर्म को श्रेष्ठ दूसरे के धर्म को बकवास समझना, इसी नादानी के चलते बहुत से धर्मयुद्ध हुए और उनमे सबसे अधिक निर्दोषों का खून बहाया गया है l सब जानते है, लापरवाह लोगों के मध्य इतिहास अपने आपको दोहराता है l हमें इतिहास से सीख लेनी चाहिए कि भविष्य में फिर से वह स्थिति उत्पन्न न हो जो पहले हो चुकी है, इसलिए तटस्थ रहकर अपने विवेक से धर्मतंत्र के वास्तविक कार्य और अर्थ को समझना अति आवश्यक है l वाद- विवाद का कारण धर्म नहीं, धर्म की आधी -अधूरी जानकारी है, पूरी सच्चाई यह है कि परमपिता परमात्मा ने कारण विशेष के चलते इस ब्रह्माण्ड की प्राकृतिक और आध्यात्मिक चीजो को बनाया ही कुछ इस प्रकार से है कि समय के अंतराल के साथ उनमे विकार उत्पन्न होने लगता है और हमारी विडम्बना यह है कि हम पुरानी चीजों में इतने आसक्त हो जाते है, जब वह किसी माध्यम से उन्हें पुन: संस्थापित करने लगता है तब सहयोग देने के स्थान पर विरोध करने लगते है l अज्ञानता से उत्पन्न हुआ विवाद ही भय, भ्रम, तनाव तथा इन युद्धों व निर्दोषों का खून बहाने का कारण बना जाता है l यदि पुराने को ही सदा के लिए स्थापित कर देता और उसके स्वयं के द्वारा पुराने को ही पकडवाए रखना होता तो वह आदम के बाद अब्राहम को नहीं भेजता और अब्राहम के बाद मुसा को और मुसा के बाद ईसा को और ईसा के बाद पैगम्बर को ...! न ही वह गीता में कहता की :- यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिभर्वती भारत, अभ्युत्थानामधर्म्स्य तदात्मानं सृजाम्यहम ! परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम, धर्म्संस्थापनाथार्य संभवामि युगे युगे !! न ही रामायण में तुलसीदास लिखते :- जब - जब होई धर्म की हानि, बाढहिं आसुर अधम अभिमानी ! तब -तब धरि प्रभु विविध सरीरा, हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा !! चोबीस तीर्थकर और बोधिसत्व दस गुरुओं का आना क्या दर्शाता हैं ? आजकल की भाषा में चीजो को समझे तो इस प्रकार से समझिए की चीजो को समय -समय पर अपडेट करते रहना हमारी आवश्यकता और उसकी प्रकृति की प्रकृति यानीं स्वभाव है ! मनुष्य को पूर्णता की प्राप्ति आसानी से हो सके और वह पृथ्वी पर किसी बड़ी मुश्किल में न पड़े इसलिए धर्म + राज + विज्ञानं नाम के तीन तंत्रों को रचयिता ने आरम्भ से ही यहाँ पृथ्वी पर स्थापित कर रखा है l तीनो का अपना -अपना स्थान व कार्य है :- धर्मतंत्र [संस्कृति ] का कार्य है :- व्यक्ति के मन में उठ रहे सभी प्रश्नों का सरल, स्पष्ट और सही तथा सटीक उत्तर देना और पृथ्वी पर शांति को बनाए रखना, लोगों के लोक -परलोक दोनों को सुधारना तथा पूर्णता का फार्मूला बतलाकर उन्हें उतरोत्तर विकास की प्रक्रीया से सफलतापूर्वक प्रसार करके परमानन्द तक पहुचाना है ! राजतन्त्र [ राजनीति ] का कार्य है :- व्यवस्था को बनाए रखना, प्राकृतिक और आध्यात्मिक संसाधनों का उचित बंटवारा तथा जीवन की सुरक्षा करना, ज्ञान [धर्म ]और विज्ञानं में सही -सही तालमेल बैठाकर, लोगों को उनके उत्तरोतर विकास की प्रक्रिया में सहायता प्रदान करना है ! विज्ञान तंत्र [अर्थनीति अर्थात् साधननीति]का कार्य है :- अंतर्मन की व्याधि के निवारण के साथ - साथ जिन्दगी को सरल और आसान बनाना, पृथ्वी पर के जीवन में आई मुश्किलों का समाधान करना तथा साधनों का सदुपयोग कर एवं करवा के आवश्यकताओं की पूर्ती करना और कराना विज्ञानं का कार्य है ! यह तीनों तंत्र एक - दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि पूरक है फिर भी कुछ लोग कभी एक कभी दूसरे को एक - दूसरे के विरोधी और अनावश्यक बताते रहते है, जो ठीक बात नहीं है ! धर्म दान से, राज कर से और विज्ञान मूल्यं से चलता है ! धर्म [संस्कृति] , राज [राजनीति], विज्ञान [अर्थनीति ] इन तीनों का राष्ट्र की स्थिरता और समाज के विकास के लिए परस्पर समन्वय + सामंजस्य अति अनिवार्य है, कभी इनमें से एक भी अस्थिर होता है तो उस समय परिणाम बड़े ही दुःखदाई आते है l मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताए है :- शारीरिक : रोटी, कपड़ा और मकान l मानसिक : निर्भयता, प्रीति और स्वाभिमान l सामाजिक : परिवार, समाज और राष्ट्र l आत्मिक : धर्म, मुक्ति और भगवान l शांति और विकास को गति देने अर्थात व्यवस्था को बनाएं रखने व सुनिश्चित परिणाम को लाने के लिए राष्ट्र में एक संविधान और उस विधान में योग्यताओं की मांग के आधार पर व्यक्ति को स्थिति व जिम्मेदारीपूर्ण कार्य प्रदान करने के साथ – साथ प्रोत्साहन देना निश्चित होता है तथा उसका उलंघन करनेवाले व्यक्ति को सजा देने का प्रावधान भी होता है l यह सब सुनिश्चित परिणाम लाने के लिए अनिवार्य है l एक कार्य को करने अर्थात सुनिश्चित परिणाम को लाने के लिए इहलोक में एक रीति स्थापित है वह रीति यह है कि सुनिश्चित परिणाम लाने के लिए सहीं सिध्दांत का सहीं समय पर सहीं प्रयोग का होना अति आवश्यक है l क्योंकि रचयिता ने एक कार्य की पूर्ति के लिए एक समय, एक सिद्धांत (तरीका) और एक साधन यानी प्रत्येक कार्य को पूर्ण करने के लिए उसका एक नियम सुनिश्चित कर रखा है l रोटी, कपड़ा और मकान विज्ञानं से, निर्भयता, राष्ट्र और स्वाभिमान राज से, परिवार और समाज विधान से किन्तु स्वाभिमान, निर्भयता, प्रीति और मोक्ष (मुक्ति) तथा भगवान धर्म से समझ में आता है l रचयिता का एक नियम यह भी है कि मनुष्य को पृथ्वी पर पूर्णता की प्रक्रिया से ठीक - ठीक प्रसार होने व करने के लिए इन तीनों तंत्रों में आए विकार को समय - समय पर पुन: - पुन: संस्थापन करना, हमारी आवश्यकता के साथ - साथ उसका नियम भी है l शारीरिक विकास तो उचित भोजन मिलने पर प्रकृति के नियमानुसार होता रहता है किन्तु बौद्धिक विकास हमें निरन्तर करते रहना पड़ता है l हमने ऊपर देखा है की विरासत को संभालते हुए चीजों को अपडेट करते रहना चाहिए क्योंकि चीजों को अपडेट न करने पर हमारी प्रगति रूक जाती है l अपने रहने के कमरे से तथा अपनी अलमारी या आँख पर लगाने वाले चश्मे एवं पहनने वाले कपड़ो से आप स्वयं अपडेट यानि पुन: संस्थापन के महत्व कों बड़ी आसानी से समझ सकते है l अब इन तीनों में से एक धर्म में आए विकार को, डेमोक्रेसी धर्म के नाम से पुन: संस्थापन करने के लिए राजनैतिक, धार्मिक व मीडिया के लोगों के साथ – साथ आकर अर्थात् हम सबको भी अपना – अपना कर्तव्य निभाना चाहिएं l परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है l जो समय को पहचान कर उसके साथ चलते है वे सुखी भी रहते है और विकास भी करते है l परन्तु ! मैं एक बात की ओर आपका ध्यान अवश्य खीचना चाहता हूँ कि "अस्थियाँ उठने से पहले आस्था, चिता में चढ़ाए जाने से पहले चेतना जाग्रत कर लेने में ही समझदारी है" ! ..................हम अंधविश्वास नहीं विश्वास करते है, सृष्टिकर्ता के द्वारा सृष्टि की रचना के पीछे के कारण को वैज्ञानिक मानते है l चीजो तथा प्रत्येक घटनाओं की जानकारी के हर पहलू की जांच परख पूरी तरह से करते है और पूर्वाग्रह को भूलाकर व्यक्ति हो या तथ्य वे जैसे है उनको वैसे ही स्वीकार कर आगे बढ़ते जाते है l *भूल को सुधारते हुए, आज में जीते है, कल को कभी न भूलते हुए, हम जीवन के उद्देश्य की पूर्ति को सर्वोपरी मानते है l * राष्ट् का विकास अनिवार्य है, क़ानून व्यवस्था तथा राष्ट्र की सुरक्षा उससे भी अधिक आवश्यक किन्तु चरित्र की रक्षा किए बिना इन सबका क्या अर्थ ? * हाँ राष्ट्र के लोगों के चरित्र निर्माण की १००% जिम्मेदारी धर्म की है किन्तु ज्ञान [धर्म] +विज्ञानं में तालमेल बैठना तो राष्ट्र की सरकार यानी राज का ही कार्य है ! जब राष्ट्र में एक डेमोक्रसी सरकार और एक डेमोक्रसी संविधान है तो राष्ट्र के अन्दर एक समान डेमोक्रसी नागरिक संहिता क्यों नहीं ? यानी राष्ट्र में एक डेमोक्रसी दर्शन [धर्म] भी होना चाहिए l • मेरी समझ से शान्ति और राष्ट्र के विकास के लिए यह अत्यंत आवश्यक है l • इसका लाभ यह होगा कि सभी संप्रदायों में जो ढोंगी एवं तथाकथित धार्मिक बहरूपियों के भेष में छुपे बैठे छद्म लोग है उन ठगों से भोली – भाली जनता लूटने बच जाएगीं l • सामूहिक हत्या / आत्महत्या हो रहीं है उनमें कमी आएगीं l • मेरा धर्म श्रेष्ठ है उसका बकवास यह विषय ही नहीं बचेगा जिससें समाज में बारम्बार उत्पन्न होने वाले धार्मिक तनाव से हमेशा के लिए छुटाकारा मिल जाएगा l अब हम सबको मिलकर यह पहल करनी होगी कि उपरोक्त चारोँ समस्याओं तथा अंतर्मन में उठ रहे सभी प्रश्नों का उत्तर देनेवाले एक माध्यम को ढूढें l जिसका स्वरूप- प्रारूप हम सब हीं को मिलकर समुन्द्रमंथन् की तरह मंथन करके तैयार करना होगा और इसके लिए आपके सुझाव भी आमंत्रित है l व्यक्ति को यह पता चल जाएगा कि उसके जीवन का उद्धेश्य संसार नहीं बल्क़ि वह नियति है जो रचयिता ने उसके लिए सुनिश्चित की है और वह केवल धर्म के मर्म को जानने से ही प्राप्त होतीं है l भेड़चाल की तरह भीड़ के पीछे जाकर रिस्क लेने की उसे कोई आवश्यकता नहीं व्यक्ति तक जब यह सच्चाई पहुंचेगी कि उसका कल्याण प्रभु का नाम लेने और भले काम करने से ही हो जाएगा तो क्या वह व्यक्ति जोखिम उठाएगा ? नहीं... l बेशक लोग रिस्क ले किन्तु अपने और अपनों तथा लोगों की भलाई के लिए ले, ऐसा रिस्क सराहनीय होगा l सृष्टि की रचना का कारण तथा रचयिता और जीवन के उद्धेश्य का ज्ञान सपष्ट होते ही अर्थात् आध्यात्मिक विषय में एक नई विचारधारा के स्थापित होते ही बहुत से वाद – विवाद अपने आप समाप्त हो जाएंगे l तन, मन व धन की सुरक्षा के साथ – साथ आपसी वाद – विवादों के सुलझने तथा सुदृढ़ चरित्र निर्माण के बाद क्या भय, भ्रम, शोषण, और तनाव समाज में टीक पाएगा ? उत्तर है नहीं ! जब राष्ट्र में एक डेमोक्रसी सरकार और एक डेमोक्रसी संविधान है तो राष्ट्र के अन्दर एक समान डेमोक्रसी नागरिक संहिता क्यों नहीं ? यानी राष्ट्र में एक डेमोक्रसी दर्शन [धर्म] भी होना चाहिए l आओ इस विषय पर विचार विमर्श कर विवादों को यहीं समाप्त करें l धन्यवाद ! आपका सत्यदर्शीश्री मो० 07056748111 e-mail subesinghyadav2009@gmail.com

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