“मेरी शैतान बेटी” ( लघु कथा )
मेरी लड़की भाग्यवति बहुत ही शैतान है । उसे अक्सर ही मुझसे डांट पड़ते रहती है, कभी मैं उसे गुस्से में थप्पड भी लगा देता हुं। पर उसकी शैतानी ज़रा भी कम नही होती। मै आज मुझे नयी नौकरी हेतु इन्टरव्यूह देने शन्ताक्रुज से दादर जाना था । पर सुबह उठते ही ड्राइंग रूम में मेरे बांये पैर में कांच गड़ गया । जिसके कारण मुझे चलने में तकलीफ़ होने लगी । वास्तव में फ़र्श पर एक टूटे हुए कांच के ग्लास का टुकड़ा चारों तरफ़ फ़ैला था । मुझे अहसास हो गया था कि कांच के ग्लास को मेरी लड़की ने ही तोड़ी होगी । और ग्लास को तोड़ने के बाद न उस जगह को साफ की न ही किसी को बताई । मैं मन ही मन अपनी लड़की को कोसने लगा । सुबह सात बजे मैं घर से निकल गया और लोकल ट्रेन पकड़ कर 9 बजे दादर स्टेशन पहुंच गया । मुझे वहां से 1 किमी दूर पैदल चलकर एलबान कंपनी के आफ़िस हर हाल में 9;30 तक पहुंचना था । स्टेशन से बाहर आने में मुझे 15 मिनट्स और लग गये । अब मेरे पास 15 मिनट्स थे । चूंकि आफ़िस बहुत ही पास था अत: इतनी कम दुरी के लिए कोई आटो वाला वहां जाने को तैयार नहीं हुआ । तब मैंने पैदल चलना ही मुनासिब समझा । कुछ दूर चलने के बाद मेरे बांये पैर का तलवा,जहां कांच का टुकडा गड़ा था, बहुत दर्द करने लगा । और मुझे वहीं फ़ुटपाथ पर बैठना पड़ा । कुछ देर बैठने के बाद मुझे लगा कि अब फिर पैदल आगे बढा जा सकता है तो मैंने फिर पैदल चलना प्रारंभ किया । जैसे तैसे मैं एलबान आफ़िस के सामने 9 बज कर 40 मिनट में पहुंचा तो देखता हूं कि आफ़िस के सामने बहुत सारे लोगों की भीड़ लगी है और पोलिस वालों ने उस आफ़िस को चारों तरफ़ से घेर लिया है । सारे पोलिसवाले अपने अपने रायफ़ल निकाल चुके थे और वहां कुछ एनाऊंस किया जा रहा था। पूछने पर पता चला कि आफ़िस की बिल्डिंग में 4 आतंकवादी घुस कर वहां उपस्थित बहुत सारे लोगों को मार डाला है और कुछ लोगों को बंधक बना लिया है । वे सरकार के सामने अपनी कुछ मांग रख रहे हैं । एलबान आफ़िस के हालात देखकर मैं तुरंत ही वापस अपने घर की ओर लौट पड़ा । मेरे पैरों में अब भी दर्द हो रहा था । चलने में बहुत मुश्किल हो रही थी लेकिन आज मैं अपनी बेटी भाग्यवति को धन्यवाद देते हुए उसका गुणगान कर रहा था कि उसके ही कारण आज मैं एल्बान आफ़िस देर से पहुंचा । अगर मेरे पैर में समस्या नहीं होती तो मैं बहुत जल्द ही एल्बान आफ़िस पहुंच जाता और फ़िर मेरा क्या होता कोई नहीं जानता । आज पहली बार मुझे अपनी बेटी के द्वारा किये गये शैतानी पर खुशी मिल रही थी और सुकून मिल रहा था ।
( समाप्त )
थी ।