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मित्रता

6 फरवरी 2015

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""पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया, जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा :मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा, दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है अब मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा और दूध से पहले पानी उड़ता जाता है जब दूध मित्र को अलग होते देखता है तो उफन कर गिरता है और आग को बुझाने लगता है, जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से मिलाया जाता है तब वह फिर शांत हो जाता है पर इस अगाध प्रेम में थोड़ी सी खटास (निम्बू की दो चार बूँद ) डाल दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं...... थोड़ी सी मन की खटास अटूट प्रेम को भी मिटा सकती हैं|".
राजेश साहू

राजेश साहू

कमलेश जी इतनी अच्छी रचना प्रकाशित करने के लिए बधाई, काश आज इस बिषय को हम सब लोग समझ पाते

18 अप्रैल 2015

अमित

अमित

अजी वाह अतीव ...

18 अप्रैल 2015

रमेश कुमार सिंह

रमेश कुमार सिंह

अच्छा है प्रेरक प्रसंग

18 अप्रैल 2015

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यही है जीवन

6 फरवरी 2015
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रिश्ता.... "रिश्ता" दिल से होना चाहिए, शब्दों से नहीं,"नाराजगी" शब्दों में होनी चाहिए दिल में नहीं!सड़क कितनी भी साफ हो "धुल" तो हो ही जाती है, इंसान कितना भी अच्छा हो "भूल" तो हो ही जाती है!!! आइना और परछाई के जैसे मित्र रखो कयोकीआइना कभी झूठ नही बोलता और परछाई कभी साथ नही छोङती......खानेमें कोई '

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मित्रता

6 फरवरी 2015
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""पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया, जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा :मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा, दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है अब मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा औ

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