मन का डर ( कहानी प्रथम क़िश्त)
धर्मेन्द्र वर्मा जी सीएसईबी के फ़ायनेन्स सेक्शन में एक सिनियर क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं ।उनकी पत्नी हेमा वर्मा एक घरेलू महिला हैं । हेमा जी हार्ट की बीमारी से ग्रसित हैं । उनका पुत्र सुनील 12 साल की है और पुत्री सुजाता 22 वर्ष की है । धर्मेन्द्र जी ने नौकरी करते करते रिसाली में अपना एक छोटा सा घर बनवा लिया था ।
सुजाता की मम्मी अपनी बीमारी के कारण अधिकांश समय बिस्तर पर आराम करती रहती थी । इसलिए सुनील की देखभाल सुजाता ही करती थी । सुजाता खुद ही इतिहास विषय में एमए कर रही थी । सुनील और सुजाता के बीच बेहतर लगाव और तालमेल था । इसके अलावा सुनील पूरी तरह से अपने हर काम के लिए सुजाता पर आश्रित था । कभी सुजाता बीमार पड़ती थी तो सुनील का संपूर्ण रूटीन अस्त-व्यस्त हो जाता था । वह ऐसे समय स्कूल भी नहीं जा पाता था । उसे हर समय यह डर बना रहता था कि भविष्य में कभी सुजाता उससे दूर चली जायेगी तो वह किसके सहारे जीयेगा । यह डर धीरे धीरे उसके मन में एक स्थायी गांठ बन कर रह गया था । समय गुज़रता गया ।
एक दिन बहुत ही दुखद घटना हुई । उनके पिता धर्मेन्द्र जी आफ़िस से वापस आते वक़्त स्कूटर के फ़िसलने के कारण नीचे गिर गये । उनके सिर पर गंभीर चोट लगी थी
उन्हें हास्पीटल ले जाया गया पर उन्हें बचाया नहीं जा सका । अब तो उनके परिवार के सारे लोग अपने आप को बेसहारा समझने लगे थे। यह तो ग़नीमत थी कि उनका ख़ुद का घर था । साथ ही धर्मेन्दर जी की पेन्शन की आधी राशि सुनील की माताजी को मिलनी ही थी । उस राशि से उनके घर का ख़र्चा जैसे तैसे चल ही जाता था ।
कुछ समय बाद सुजाता को बीएसपी शिक्षा विभाग में शिक्षिका की नौकरी लग गई । उसकी पोस्टिंग सेक्टर 8 स्कूल में हो गई। 1 महीने गुज़रे होंगे कि उनकी माता जी स्वर्ग सिधार गई ।अब परिवार में 2 ही सदस्य रह गये सुनील और सुजाता । अब घर की सारी ज़िम्मेदारी सुजाता के ही उपर आ गई। साथ ही उनकी माताजी को मिलने वाली पेन्शन भी बंद हो गई । सुजाता अपनी नौकरी और घर की ज़िम्मेदारियों को अच्छे से निभाती रही । उधर सुनील के मन का डर और बढते जा रहा था । वह अपनी बहन से जब तक दूर रहता बहुत ही ज्यादा तनाव में रहता । डरते रहता कि कहीं ऐसा न हो जाए , कहीं वैसा न हो जाए। उसके डर को सुजाता भी बहुत अच्छे से समझती थी।
इसी बीच एक और घटना हो गई । सुजाता- सुनील के मामा श्री दुर्योधन जी जो मिलिटरी में एक मोटर मैकेनिक के बतौर भर्ती हुए थे । उन्हें कुछ साल की नौकरी के बाद अपराधिक गतिविधि में संलग्न होने के कारण मिलेट्री से बर्खास्त कर दिया गया । हालाकि उनकी उम्र 55 वर्ष हो गई थी पर उन्होंने अभी तक विवाह के बारे में सोचा भी न था । उनका और कोई रिश्तेदार इस दुनिया में नहीं था । अत: वे रिसाली आकर सुजाता और सुनील के घर में ही रहने लगे । उनके रिसाली आने से सुजाता और सुनील को एक सहारा तो मिल गया पर घर का ख़र्च भी बढ गया, क्यूंकि मामा जी ने कभी पैसा बचाना सीखा ही न था । साथ ही वे टर्मिनेट हुए थे ।अत: उन्हें पेन्शन भी नहीं मिलती थी । हां फ़ाइनल पेमेंट के रूप में उन्हें कुछ पैसा मिला था । जिन्हें मामा जी ने बहुत ही तेज़ी से अपनी अय्याशी में खर्च कर दिया था । साथ ही मिलेट्री में रहते हुए उन्हें शराब पीने की आदत भी पड़ गई थी । जिसका ख़र्च लगभग सौ रुपिए था । इस खर्च को भी सुजाता को ही उठाना पर रहा था । किसी तरह उन तीनों की ज़िन्दगी चल रही थी । घर का खर्च भी किसी तरह से सुजाता की तन्ख़्वाह के सहारे चल रहा था ।
जिस तरह से एक डर का भाव सुनील के मन में बैठ चुका था , लगभग वैसा ही डर उनके मामा दुर्योधन के मन में भी बैठने लगा था । वे अक्सर सोचते थे कि कल को अगर सुजाता का विवाह हो जाता है और वह अपने ससुराल चली जाती है , तो मेरा खर्च और सुनील का खर्च कौन उठायेगा । मामाजी को यह भी मालूम था कि सुनील पढाई में बहुत कमज़ोर है । इसलिए उसे कोई अच्छी नौकरी तो मिलने से रही । उनके मन में कभी कभी यह खयाल भी आता था कि काश सुजाता की शादी ही न हो । ऐसे में ही वह जीवन भर हम दोनों के साथ रहेगी ।
समय गुज़रता गया । सुजाता अपने स्कूल और घर की ज़िम्मेदारियां बहुत अच्छे से निभाती रही । सारे ख़र्च काटकर वह कुछ पैसे बचा लेती थी । जिन्हें वह बैंक में जमा कर देती थी । उसकी सोच थी कि भविष्य में पैसों की जाने कब ज़रूरत पड़ जाये ।
( क्रमशः)