याद मेरी तुम्हे रहे न रहे ,जिक्र मेरा कोई करे न करे ..मर्सिया मैं ही अपना लिखवाऊं ,कौन जाने कोई लिखे न लिखे ...
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मेरी धर्मपत्नी श्रीमती शिक्षा द्वारा विवाह के लगभग 18 वर्ष पश्चात पुनः नए सिरे से तैयारी व् कड़ी मेहनत से सरकारी अध्यापिका की नौकरी प्राप्त करने पर उन्हें मेरी ओर से कविता के रूप मैं एक तुच्छ भेंट .....