हर बार नयी शुरुआत करो तुम ,
क्या रखा है गम की बातो में,
दिनकर भी हर बैठ जाता है
स्याह भरे सन्नाटों में !!
_ प्रशांत
29 अप्रैल 2015
संदीप जी, आपने शुरुआत कर दी है...आशा करते हैं 'शब्दनगरी' से आप इसी तरह जुड़े रहेंगे और नित नई रचनाएँ करते रहेंगे...धन्यवाद !
29 अप्रैल 2015