बिहार की राजधानी पटना। पटना शहर का एक अलग ही खूबसूरती है। इस शहर के तो अलग ही कैहने है। यहाँ अलग-अलग जाती धर्म के लोग और अलग-अलग रीति रिवाज देखने को मिल ही जाता है। अनेकों प्रकार के अच्छे बुरे लोगों से भरा पड़ा है पटना शहर। चोरी अपहरण लूट मारपीट जैसा जुर्म इस शहर के खूबसूरती को बिगाड़ कर रख दिया है। फिर भी ये शहर अपने आप में मस्त और व्यस्त है। अपने आप में ही अस्त व्यस्त रहने के वावजूद भी इस शहर में एक अजीब सा हलचल रैहता है। यहाँ का हर एक छोटा शहर हर एक छोटा गली अपना अलग ही कहानी को दर्शाता है। अपना अलग ही खूबसूरती को बयां करता है। अपना अलग ही पैहचान को बताता है। यही पर है एक मीठापुर शहर जो काफी प्रसिद्ध है। और इसी शहर के एक छोटी सी गली में पल रहा है एक छोटा सा बच्चा मोहन। बारह वर्ष का मोहन शक्ल सूरत से देखने में उतना अच्छा नहीं है। थोड़ा वेवकूफ है पर उसे इतना समझ जरूर है कि वो क्या है और क्यों है। बच्चा जरूर है लेकिन नादान और बेहोश नहीं। हाँ अपने भूलने की बीमारी से थोड़ा परेशान रैहता है लेकिन उसका इलाज चल रहा है। ऐसों आराम में कट रहा मोहन का जीवन अपने आप में ही अस्त-व्यस्त है। सुबह उठते ही अपना सारा क्रियाकर्म करने के बाद दो-दो ट्यूशन पढ़ना। फिर नहा धोकर तैयार होना आधा अधूरा खाना ख़ाना और स्कूल के लिए दौर पड़ना। स्कूल से आने के बाद फिर से अपने घर में बन्द हो जाना। फिर शाम को दो-दो ट्यूशन पढ़ना रात को देर तक जागकर रट्टा मरना और सुबह तक सब कुछ भूल जाना। पता नहीं उस छोटे से मोहन से इतना पढ़ाई क्यों करवाया जा रहा था। उसके माता पिता के द्वारा उसपर पढ़ाई का बहुत अधिक बोझ डाल दिया गया था। ऐसा लगता था कि दुनिया भर का पढ़ाई उसे ही करना है। बेचारे मोहन को न तो ठीक से खेलने का समय मिलता था और न ही ठीक से खाना खाने का। उसके माता पिता हमेशा पढ़ाई-पढ़ाई का रट लगाते रैहते थे। मोहन के सर पर भी हमेशा पढ़ाई करने का ही तनाव दिखता था। उसे उसकी ऐसी जिंदगी से उसे अपने आप से ही चिढ़ होने लगा था। वो अपने ही घर में एक कैदी जैसा महसूस करने लगा था। मोहन को अपनी आजादी से कुछ भी करने का अनुमति नहीं था। यहाँ तक कि वो अपने दोस्तों के घर भी नहीं जा सकता था। जिसके कारण अपने माता पिता के ही प्रति मोहन के दिल में नफरत बढ़ता जा रहा था। उसके अमीर बाप को हमेशा उसी का चिंता सताते रैहता था। उसका अमीर बाप हमेशा फिकर में रैहता था की कही उसके बच्चे को कुछ हो न जाए। उसके बाप के मन में हमेशा डर बना रैहता था की कहीं कोई उसके बच्चे को अपहरण न कर लें। मोहन अपने माँ बाप का इकलौता वारिस था। इकलौता कैहने का मतलब वो भाई में अकेला था। और शायद इशिलिए उसका बाप उसपर कुछ ज्यादा ही नज़र रखता था। पता नहीं उसे अपने बच्चे का फिकर था या फिर अपने पैसे का। बच्चा अगर इकलौता हो तो लाज़मी है माँ बाप को ज्यादा फिकर होता है। बढ़ रहे जुर्म को देखते हुए माँ बाप को अपने बच्चे की फिकर अवश्य करनी चाहिए। पर इतना भी नहीं की जाने अनजाने में वो खुद ही अपने बच्चों का बचपन छीन ले। यूं तो अपनी औलाद के लिए लोग पैसा को पैसा नहीं समझते। लेकिन हत्या जैसे जुर्म को देखकर उनके मन में एक डर बना रैहता है। एक खौफ बना रैहता है। और शायद इसी वजह से मोहन के पिता के मन में भी एक डर बैठ गया है। एक खौफ बैठ गया है। उनका डरना लाज़मी है। आजकल जुर्म कुछ ज्यादा ही बढ़ रहा है। जुर्म को और जुर्म करने वालो को कुछ ज्यादा ही बढ़ाबा मिल रहा है। बिहार ही क्या हर शहर हर गली हर राज्य में हत्या चोरी अपहरण बलात्कार जैसे जुर्म हो रहे है। और निकम्मी सरकार कान में तेल डालकर बैठी है। गुनहगार खुले आम घूम रहे है। और बेगुनाह फाँसी पर झूल रहे है। सजा किसी और को मिलना रैहता है और मिलता किसी और को है। दिन दहाड़े बहनों बेटियों का इज़्ज़त लूट लिया जाता है और इंसाफ नहीं मिलता। जिसकी वजह से हर माता पिता के मन में एक दैहशत का माहौल रैहता है। और शायद ऐसा ही माहौल है मोहन के परिवार में। लेकिन नादान मोहन ये सब क्या जाने और उसे इन सब से क्या लेना देना। वो तो बस खुलकर जीना चाहता है। खुली हवा में घूमना चाहता है और खुलकर सांस लेना चाहता है। अपने दोस्तों के साथ खेलना चाहता है और वक़्त बिताना चाहता है। मोहन को ये घुटन भरा जिंदगी कतई बर्दाश्त नहीं है। कैहते है की बच्चे चंचल होते है और वो हँसते खेलते रैहते है तो सबको अच्छा लगता है। लेकिन मोहन की जिंदगी में वो हँसी वो चंचलता नहीं था। उसके चेहरे का हँसी कही खो गया था। क्या खूब कहा है किसी ने ये बचपन है इसे खेलने दो। पर मोहन के जिंदगी में बचपन का ये सुख कहां। जाने अनजाने में ही सही पर मोहन का बचपन उससे छीन लिया गया था। जुर्म से डरकर उसके माता पिता ही बहुत बड़ा जुर्म कर रहे थे। किसी बच्चे का बचपन छीन लेना बहुत बड़ा जुर्म है। लेकिन निकम्मी पुलिस और निकम्मी सरकार के आगे माता पिता भी क्या ही करें। मजबूरन उन्हें ये कदम उठाना ही पड़ता है। मोहन अपनी जिंदगी से तंग आ चुका था। वो इस कैद के जिंदगी से आज़ाद होना चाहता था। वो खुलकर जीना चाहता था। वो अपने बचपन का एक-एक पल खुलकर बिताना चाहता था। लेकिन उसे जल्दी ये आज़ादी मिलने वाली नहीं थी। वो अपने ही परिवार में अपने ही घर में गुलाम जैसा जिंदगी बिताने पर मजबूर था। एक बारह साल के लड़के पर कितना बोझ था। एक नादान सा बालक जो अपनी ही मुस्कुराहट को भूल चुका था। और उसे अपने ही घर में इधर-उधर ढूंढता फिर रहा था। एक छोटा सा बालक कितना मजबूर था घुट-घुट कर जीने के लिए। गुलामी भरा जीवन जी रहे मोहन को अभी तक ये पता नहीं था कि आजादी का कीमत क्या होता है। और पता भी कैसे चले जन्म से लेकर आज तक निगरानी में जीता आया है। बेचारा मोहन को जब समझ में आएगा की आजादी क्या होता है तब क्या होगा। तब तो वो और भी घुटन महसूस करने लगेगा। अपने ही घर में दम घुट जाएगा उस बेचारे का। क्या कभी मोहन के जिंदगी में आजादी का वो पल आएगा भी या नहीं। क्या मोहन कभी आजादी का कीमत समझ पाएगा या नहीं। आखिर कब वो समय आएगा जब मोहन को खुली हवा में खुलकर सांस लेने का मौका मिलेगा। खुलकर जीने का मौका मिलेगा। अब वो वक़्त तभी आएगा जब स्कूल की छुट्टी पड़ेगी। और मोहन अपने नानी के घर अपने नानी के गांव जाएगा। लेकिन स्कूल का छुट्टी पड़ने में अभी काफी समय शेष था। मोहन तो यूं ही हमारी आपकी तरह एक आम बच्चा है। सिवाय उसके एक रहस्य और उसके एक अनोखे आदत को छोड़कर। वो भी आम बच्चे की तरह ही है। अच्छा कपड़ा पहनने का शौक रखने वाला,अच्छा खाना खाने का शौक रखने वाला। प्रकृति और पेड़ पौधे को पसंद करने वाला फूलों से प्रेम करने वाला और पेड़ पौधे लगाने का शौक रखने वाला। लेकिन मोहन में एक चीज़ खाश है की वो (समलैंगिक) गे है। और उसे भूलने का भी बीमारी है। कभी-कभी तो मोहन का ऐसा दिमाग फिर जाता है कि वो अपने परिवारवालों को भी नहीं पहचानता। अपने माँ बाप को भी नहीं पहचानता। एक बार तो उसने अपने माँ को ही नहीं पहचाना। माँ खाना खाने के लिए जैसे ही मोहन को बोली वैसे ही मोहन सब कुछ भूल चुका था। और उसने अपने माँ से ही सवाल कर दिया कौन हो तुम। शुक्र है मोहन का इलाज चल रहा था। आज तुमने फिर दवाई नहीं लिया झुंझलाकर मोहन की माँ बोली।
और लाल रंग के बोतल से दो ढक्कन दबाई उन्होंने मोहन को पिला दिया।
मोहन के घर में छः लोग रैहते थे। और सभी का अपना अलग ही किरदार था। छः लोगों का मोहन का ये परिवार वाकई कमाल का था। मोहन के परिवार में उसके दादा-दादी माता-पिता और एक बहन थी। मोहन की बहन अंजलि हमेशा एक दूसरे का दिमाग की दही बनाती रैहती थी। हमेशा टीवी सिरियल में डूबी रैहने वाली अंजलि का ध्यान बिल्कुल भी पढ़ाई में नहीं लगता था। अजीब किरदार था उसका भी। मोहन और अंजलि में कोई बड़ा छोटा नहीं था। दोनों जुड़बा थे। मोहन की माँ भी अपनी बेटी की तरह हमेसा टीबी सीरियल में डूबी रैहती थी। टीबी देखने का उनकी जिंदगी में कोई लिमिट ही नहीं था। खाना बना या न बना किसी ने खाना खाया या भूखा है इसका उनपर कोई फर्क नहीं पड़ता था। हमेसा ही सीरियल देखने वाली मोहन की माँ को यह समझ नहीं था की बच्चों पर इसका क्या असर पड़ेगा। बच्चों के पढ़ाई पर इसका क्या असर पड़ेगा। उन्हें इस बात का कोई चिंता नहीं था कोई फिकर नहीं था। जिस घर में टीबी हो और दिन रात चले उस घर के बच्चे कहाँ पढ़ पाने वाले है। और मोहन के पिता अपने मन में मोहन को डॉक्टर बनाने का सपना सजाकर बैठे है हद है।
मोहन के पापा तो अपने आप में ही अस्त-व्यस्त थे। ट्यूशन का फीस स्कूल का फीस घर का खर्चा बिजनेस का टेंशन पता नहीं और ऐसे किस-किस चीज़ के तनाव में डूबे रैहते थे। मोहन और अंजलि पर नज़र बनाये रखना। अपने साथ ही स्कूल तक छोड़ने जाना और साथ ही स्कूल से वापस लाना। बस यही सब काम था मोहन के पापा का। वो एक पल भी अपने बच्चों से दूर नहीं होते थे। और इसी में अपना बिजनेस भी देखते थे। एक पल का चैन नहीं था उनके जीवन में। हमेसा बेचैन से रैहते थे। चैन की नींद तक नहीं आती थी उन्हें। मोहन के दादी का अधिकतर समय रसोईघर में बीतता था। सुबह उठकर सबके लिए चाय नाश्ता बनाना, खाना बनाना कपड़े धोना रात दिन यही काम करना। थक हारकर रात को बच्चों को कहानी सुनाकर सो जाना। बस यही सब था मोहन के दादी के जिंदगी में। वाह रे जमाना घर में बहु के होते हुए भी सारा काम सास को करना पड़ता है क्या किस्मत है। सास भी कमाल है और बहू भी कमाल है। मोहन के दादाजी भी कुछ अजीब ही थे। नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद किताबों और अखबारों में जिंदगी को ढूंढते फिरते थे। और गरीबों पर अमीरी का जहर उगलना। उन्होंने अपना पेशा बना लिया था। अमीरी के घमंड में चूर मोहन के दादाजी गरीब को इंसान नहीं जानवर समझते थे। कोई गरीब उनके दहलीज़ पर कदम रखे ये उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था। मोहन के दादाजी जी को ऊंचा बोलने का आदत था और ऊंचा सुनने का भी। मोहन के दादाजी अगर मोहन को किसी गरीब बच्चे के साथ गलती से भी देख लेते थे तो उनका तरबक लहर कपार चढ़ जाता था। ऐसा लगता था कि वो मोहन को चीर-फार कर रख देंगे। पता नहीं उन्हें गरीबों से इतना नफरत क्यों था। पता नहीं गरीबो से क्यों चिढ़ था उन्हें। क्या वो इंसान नहीं होते जानवर होते है। क्या उन्हें लोगों से मिल जुलकर रैहने का कोई हक नहीं है। क्या गरीब किसी से दोस्ती नहीं कर सकते। गरीब भले ही मेहनत मजदूरी करके कमाते खाते है पर वो किसी से नफरत नहीं करते। किसी को नफरत की नज़र से नहीं देखते, किसी को हीन भावना से नहीं देखते। गरीब लोगों को भले ही दो वक्त में से एक ही वक़्त का रोटी नसीब होता है लेकिन उनका दिल बहुत बड़ा होता है। वो किसी से जलते नहीं है किसी से ईर्ष्या नहीं करते। गरीब भले ही गरीब है पर बुरे नहीं है जानवर नहीं है। फिर पता नहीं अमीरों के दिल में गरीबो के लिए इतना नफरत क्यों है। सारे अमीर मोहन के दादाजी की तरह नहीं होते है। पर कुछ होते है और उन्हें लोगों को नीचा दिखाने में सुकून मिलता है। जबकि गरीबो से ही उनका अस्तित्व होता है। हमेसा अमीरी में जीने वाले मोहन के दादाजी क्या जाने गरीबी क्या होता है। गरीबी का दर्द क्या होता है। गरीब होने का मतलब एक गरीब ही अच्छे से जान सकता है। गरीबी कैसा दर्द है एक गरीब ही अच्छे से बता सकता है। न कि मोहन के दादाजी। मोहन की बढ़ती शिक्षा से उसका अक्ल भी बढ़ने लगा था। हालांकि उसे भी अपने अमीर होने पर घमंड था। लेकिन तब उसका घमंड चूर-चूर हो गया जब उसने अपना खास चीज़ को खो दिया। कैहते है सबसे बड़ा रिश्ता दोस्ती का रिश्ता होता है। और मोहन ने अपने दोस्त को खो दिया था।
स्कूल में मोहन का दोस्ती एक गरीब बच्चे से हो गया था। नन्हा सा प्यारा सा और मासूम सा बच्चा। जो इस दुनिया के राजनीति से बिल्कुल ही अनजान था। जिसे धोखा और फरेब का कोई जानकारी नहीं था। घमंड क्या होता है इसकी कोई जानकारी नहीं रखने वाला उस ग्यारह साल के बच्चे का नाम था प्रवीण। मोहन और प्रवीण एक ही स्कूल के एक ही कक्षा में पढ़ते थे। दोनों का दोस्ती का रिश्ता काफी हद तक आगे बढ़ गया था। दोनों एक दूसरे पर भरोसा और बिस्वास करने लगे थे। दोनों एक दूसरे के घर आने जाने लगे थे। प्रवीण के बारे में मोहन के दादाजी को पता नहीं था वो नहीं जानते थे की प्रवीण गरीब है और उनके दहलीज़ पर कदम रख चुका है। प्रवीण नाम का कोई शख्स मोहन का दोस्त है मोहन के दादाजी के लिए ये सिर्फ एक रहस्य है। मोहन और मोहन के परिवार वाले दादाजी से अब तक इस रहस्य को छुपाते आ रहे है। शायद उनके मन में और मोहन के भी मन में एक डर है एक खौफ है कि अगर दादाजी को पता चला की प्रवीण नाम का एक गरीब बच्चा मोहन का दोस्त है तो बहुत बुरा हो जाएगा। हो सकता है दोनों की दोस्ती भी टूट जाये। प्रवीण की एक बहन भी है कृतिका। मोहन कृतिका को पसंद करता है लेकिन वो कृतिका से प्रेम नहीं करता। कृतिका मोहन को पसंद भी करती है और प्रेम भी। पर अभी कृतिका का प्रेम एकतरफा है। कृतिका मोहन से अभी तक कैह नहीं पाई है कि वो उसे प्रेम करती है। बस अपने मन में ही वो मोहन को पसंद और प्रेम करती है। मोहन इस बात से बिल्कुल ही अनजान है। मोहन कृतिका को उस नजरिये से नहीं देखता जिस नजरिये से कृतिका उसे देखती है। मोहन कृतिका को सिर्फ अपना दोस्त समझता है। लेकिन तीनों का दोस्ती तभी तक सलामत था जब तक की मोहन के दादाजी को पता नहीं चल जाता की दोनों गरीब बच्चे है। और दोनों मोहन के दोस्त है। मोहन के दादाजी परिवार के मुखिया है इशिलिये घर के सभी सदस्यों को उनका बात मानना पड़ता है। उनका फैसला मानना पड़ता है। और उनके फैसलों को मानना सभी परिवार वालो का मजबूरी भी है। क्योंकि जब तक उनको पेंशन मिलता है वो काम धेनु गाय की तरह है। मोहन को भी खुद के अमीर होने का घमंड है। लेकिन वो भली भांति जानता है कि अगर वो प्रवीण के रहस्य को सबसे छुपाकर न रखे तो शायद वो प्रवीण को खो देगा। मौके पर मोहन प्रवीण को भी घमंड दिखाने से पीछे नहीं हटता था। मोहन की इस आदत की वजह से प्रवीण धीरे-धीरे समझने लगता है की भेद-भाव क्या होता है। फर्क क्या होता है ईर्ष्या क्या होता है। धीरे-धीरे प्रवीण को सब समझ आने लगता है, वो समझने लगता है कि अमीर लोग हमेसा गरीब को नीचा दिखाते है। अपमान करते है जलील करते है और मज़ाक उड़ाते है। प्रवीण अब मोहन से कैहने लगा था, वो उसे समझाने लगा था की घमंड मत करो। किसी को नीचा मत दिखाओ किसी का अपमान मत करो। नहीं तो तुम्हारा सब कुछ खो जाएगा। तुम्हारे सारे रिश्ते टूटकर बिखड़ जाएंगे। और तुम्हारे पास कुछ नहीं बचेगा। लेकिन मोहन पर इस सब का कोई असर नहीं पड़ता था। उसे तो बस एक मौका चाहिए होता था अपने आप को अमीर दिखाने का। अपने आप को अमीर दिखाना और बताना कोई गुनाह नहीं है। अमीर गर्व से कैह सकते है कि हम अमीर है। अपने मेहनत के दम पर अपने परिश्रम के दम पर हम अमीर है। वो अपने आप पर बेझिझक घमंड कर सकते है कोई रोक नहीं है। पर उन्हें गरीब को भी इंसान ही समझना चाहिए। उन्हें गरीबो का अपमान नहीं करना चाहिए। और इस बात का मोहन को तब एहसास हुआ जब उसने अपने दोस्त प्रवीण को खो दिया। मोहन अपने दोस्त के साथ वक़्त बिताता था और खुश रैहता था यहाँ तक कि अपने दोस्त प्रवीण से वो प्रेम भी करता था। अपने दोस्त को खो देने के बाद मोहन को सब कुछ अच्छे से समझ में आ गया था। मोहन ने प्रवीण को तब खो दिया जब प्रवीण एक दिन मोहन के घर पर आया था। और दादाजी को पता चल गया कि प्रवीण गरीब है। फिर क्या था लगे वो चिल्लाने वो मोहन को कोसने लगे। और गरीब प्रवीण को जलील करने लगे अपमानित करने लगे। गरीब और गरीबी का मज़ाक उड़ाने लगे। वो अपना पूरा नफरत का ज़हर मोहन और प्रवीण पर उगलने लगे। प्रवीण को उस समय बहुत बुरा लग रहा था। बात उसे खटक गई थी। उसके दिल को बहुत ठेस पहुँचा। उसके आंखों से आँसू छलक पड़े। और उसने उसी समय मोहन से दोस्ती तोड़ लिया। मोहन ने उसे रोकने और समझाने की कोशिश की। अरे प्रवीण भाई रुको कहाँ जा रहे हो दादाजी तो वैसे ही बोलते रैहते है ऐसा उनका हर रोज़ का आदत है मोहन ने रुकने का सिफारिश करते हुए कहा। अरे सठिया गया है बुढ़बा लगता है सारा दुनिया का धन इसी के पास है। तेवर त अइसन दिखाता है की अम्बानी का बाप हो। कहूँ अकेले में भेंटा गया न त ईटा उठा के कपार फार देंगे बता देते है। गुस्से में तमतमाते हुए प्रवीण ने कहा। अरे प्रवीण भाई गुस्सा काहे कर रहे हो दादाजी की तरफ से हम तुमसे माफी मांगते है। गुस्सा थूक दो हमसे दोस्ती मत तोड़ो हमें छोड़कर मत जाओ तुम्हारे अलावा मेरा कोई दोस्त भी नहीं है जिसके साथ मैं वक़्त बिताऊंगा। शर्म और ग्लानि की नज़र से मोहन ने कहा। माफ करना मोहन अब मैं तुम्हारा दोस्त नहीं हूँ। अरे तुम दोस्त बनने के लायक ही नहीं हो। और थूकना तो दूर तुम्हारी दहलीज़ पर मैं मूतना भी पसंद नहीं करूँगा कहीं अमीरी की गर्मी से आग न लग जाये। जाते-जाते प्रवीण ने कहा। फिर कभी आओगे न प्रवीण सहमे से आवाज़ में मोहन ने प्रश्न किया। हाँ कभी लौटूंगा अपने इस अपमान का बदला लेने। जाते-जाते दूर से ही प्रवीण ने जवाब दिया और चला गया। अब मोहन का सब कुछ टूटकर बिखड़ गया था। चंद ख़ुशी के पल जो उसकी जिंदगी में आये थे वो भी उससे छीन गया था। अब मोहन फिर से उसी जिंदगी को जीने लगा था जो वो पहले कभी जीया करता था। मोहन के एक गलती ने उससे ख़ुशी छीन लिया उससे उसका मुस्कुराहट छीन लिया। बेचारा अब वो भी क्या करता। अपने मन में कुछ ख्वाब सजाया अपने ही घर में कैद भरा जीवन जीने लगा। अब तक मोहन का भूलने का बीमारी काफी हद तक ठीक हो चुका था। अब वो बहुत कम भूलता था। मोहन को अपना दोस्त प्रवीण याद था। लेकिन उसे प्रवीण का वो बातें याद नहीं था जो जाते-जाते प्रवीण उससे कैह गया था। मोहन काफी अमीर परिवार से था इशिलिये वो जल्दी ठीक हो गया। अब उसका भूलने का बीमारी पूरे तरीके से ठीक हो चुका था। उसके परिवारवालों ने पैसा को पैसा नहीं समझा। उन्होंने पैसा को पानी की तरह बहा दिया। और अब मोहन पूरी तरह से ठीक हो चुका था।
अब मोहन के जिंदगी में ख़ुशी का वो लम्हा करीब आता जा रहा था। मोहन के मामा जी का शादी तय हो गया था। और मोहन को उस में शामिल होना था। अब वो वक़्त करीब आता जा रहा था जब मोहन को अपने नानी के घर अपने नानी के गांव आना था। मोहन के घर में तैयारियां होने लगी थी। मोहन के मन में ख्वाब सजने लगे थे। और समय के साथ वो वक़्त आ भी गया। अरे बेटा चौधरी तुमने अशोक को फ़ोन किया की नहीं कहाँ पर है वो कब पहुँचेगा अरे बच्चों को देर हो रहा है। हड़बड़ाए हुए अंदाज़ में मोहन की दादी ने कहा। अरे माता जी तुम चिंता काहे कर रही हो हम फ़ोन कर दिए है बस दस मिनट में पहुँच जाएगा। बड़े इतमिनान से चौधरी ने कहा। (चौधरी मोहन के पापा है)। अरे यहाँ बेड पर मैंने अपना पिला वाला शर्ट रखा था कहाँ गया। परेशान मोहन ने कहा। अरे बेटा क्या जरूरत है दो सेट कपड़ा तो रख ही चुके हो कोन सा वहाँ जिंदगी बिताने जा रहे हो एक दो दिन में तो वापस आ ही जाओगे फिर आराम से ढूंढ लेना। समझाते हुए चौधरी ने कहा। अरे ले जाने के लिए नहीं पहनने के लिए रखे थे पापा। मोहन ने जबाब दिया। पिला शर्ट मोहन का लकी शर्ट था। मोहन की दादी मोहन की शर्ट लेकर आई और मोहन को दिया। अरे बेटा नाश्ता कर लिए हो न और ये अंजलि कहाँ चली गई तैयार हुई कि नहीं अभी तक। अंजलि बेटे कहाँ हो तुम। मोहन की दादी ने घबरायें हुए अंदाज़ में कहा। दादी मैं नहा रही हूँ। बाथरूम से अंजलि की आवाज़ आई। अब तक अशोक भी गाड़ी लेकर आ चुका था। मोहन और अंजलि झटपट तैयार हो गए थे। और अब वो अपने नानी के घर आ रहे थे। मोहन के नानी का घर भगवानपुर में है। बिहार के वैशाली जिले में स्थित गांव भगवानपुर। वो भगवानपुर जहाँ अधिकतर किसान लोग बसते थे। एक दूसरे के सुख-दुःख को समझने वाले लोग बसते थे। एक दूसरे का मदद करने वाले लोग बसते थे। वो भगवानपुर जहाँ थोड़ा शांति और थोड़ा हलचल का माहौल था। अपने आप को शहर का रूप दे रहा ये भगवानपुर वाकई खूबसूरत था। यहाँ पर अतिथियों को देवता का दर्जा दिया जाता था। और यहाँ के लोग एक दूसरे से मिलकर प्रेमपूर्वक रैहते थे। इसी गांव में था मोहन के नानी का घर। जहाँ मोहन और अंजलि आने वाले है।
एक बात बोले भइया ई पापा हमलोग को बंद गाड़ी में काहे भेजते है समझ में नहीं आता है। शांत मन से मोहन ने सवाल किया। अब तुम्हारा बाप तुमको बंद गाड़ी में काहे भेजता है हमको क्या पता। चुपचाप शांति से बैठो नहीं तो कान पकड़कर नीचे उतार देंगे फिर जाइते रह जाएगा नानी घर और नाना घर। एक सांस में ड्राइवर अशोक ने गुस्से के साथ जबाब दिया। मोहन भी चुप रैहना ही सही समझा। और चुपचाप सफर का मज़ा लेने लगा। मोहन के नानी के घर के बगल में ही है एक गरीब किसान का घर जहाँ पल रहा है एक पंद्रह साल का बच्चा गोपाल। गोपाल भी औरो की तरह आम बच्चा है। उसे भी अच्छा कपड़ा पहनने का शौक है, अच्छा खाना खाने का शौक है। लेकिन गोपाल का कुछ शौक वाकई तारीफें काबिल है। गोपाल को प्रकृति से काफी लगाव है। वो भी फूलों से प्रेम करता है और पेड़ पौधे लगाने में रुचि रखता है। यह आदत तो शायद लगभग लोगों में होती है। सीधा-सादा गोपाल किताबों में अपनी दुनिया देखता है। दरअसल गोपाल को किताबों से ज्यादा लगाव है। खेती-बाड़ी में अपने पिता की मदद करने वाला मन लगाकर पढ़ाई करने वाला गोपाल को कहानियां पढ़ने का शौक है। वो हमेसा किसी न किसी का कुछ न कुछ कहानी पढ़ता रैहता है। कविताएँ और शायरी पढ़ता रैहता है। और गोपाल इसी उम्र से कहानी भी लिखता है। लेकिन अभी उसका कहानी उसके डायरी तक ही सीमित है। क्योंकि इस विषय में अभी गोपाल को कोई जानकारी नहीं है कि वो अपना कहानी लिखकर कहाँ भेजे या किसको दे। लेखक बनने का सपना लेकर जीने वाला गोपाल अपने पिता से बहुत परेशान रैहता है। गोपाल के पिता हमेसा गोपाल को कोसते रैहते है। एक दिन सुबह-सुबह गोपाल किताब लेकर बैठा था। काम करने के लिए कैहते है त एक्को गो काम नहीं करता है पढ़ने का बहाना करके किताब लेके बैठ जाता है अभी तक माल-जाल के कुट्टी पानी नहीं किया है, किताबें पढ़ने से पेट भर जाएगा तुम्हारा। किताबें से भोजन चलेगा। एकदम गुस्से में दीपक बाबू बोले। दीपक बाबू गोपाल के पिता है। खेती-बाड़ी देखने के साथ-साथ गाय पालते है। किसी भी तरह जद्दोजहद करके अपना परिवार चलाते है। और उसी में गोपाल के पढ़ाई का खर्चा भी जोड़ते है। कइसे कर रहे है काम्बा हम नहीं करते है त और कौन करता है। खेतबो में खटबे करते है आपके साथ थोड़ा कहानी पढ़ने बैठ गए है त कोन सा पहाड़ टूट गया है आपपर। सहमे से आवाज में गोपाल ने कहा। अरे कुछो नहीं मिलने वाला है कविता कहानी लिखने पढ़ने से। पढ़ाई कर ले अच्छी नौकरी मिलेगी। नहीं पढोगो त कछु नहीं मिलेगा तोहका हमारी तरह खेतबे में खटेगा। फिर से एक सांस में दीपक बाबू ने कहा। अरे पापा नसीब में घास छीलना लिखल होगा त घासें छीलेंगे। नौकरी नहीं मिलेगा। ई बिहार है पापा ईहां बी.ए पास वाला भी घसबे छिलता है। सहमे से आवाज में गोपाल ने कहा और पिता की नजरों से दूर होना ही उसने उचित समझा। कैहने के बाद गोपाल अपने पिता के पहुँच से दूर भाग गया था। बाप से जवान लड़ाता है एतना जवान हो गया है ई देख लेंगे कहानीए से पेट भर जाएगा से। लेखक बनेंगे हुह दीपक बाबू गुस्से में बड़बड़ाए। अपने पिता से ही ये सब सुनकर गोपाल को बहुत दुःख होता था। उसके दिल पर चोट पहुँचता था। सोंचता था जब मेरा बाप ही मुझे बद्दुआ दे रहा है तो फिर मैं क्या लेखक बन पाऊंगा। अपने पिता द्वारा बोले गए वाक्य पर गोपाल को बहुत गुस्सा आता था। लेकिन। अपने पिता को वो क्या जबाब देता। कभी-कभी गोपाल अकेले बैठकर घंटों सोचता रैहता था की क्या सच में मैं लेखक नहीं बन पाऊंगा। क्या सच में कहानी लिखने से कुछ नहीं मिलता। खैर ये सब सोचने के बाद भी गोपाल अपने मन में दृढ़ निशचय करके बैठा था की वो लेखक बनेगा। गोपाल को कहानी लिखने से कुछ मीले या न मिले वो चाहता था कि लोग उसे पढ़े। लेखक बनकर गोपाल नाम कामाना चाहता था। लोकप्रियता हासिल करना चाहता था। गोपाल ने सोच लिया था कि वो लेखक बनेगा और दुनिया को अपना नया रूप दिखाएगा। लेकिन शायद उसके किस्मत को ये मंजूर नहीं है। शायद उसका किस्मत उसे कही और ले जाना चाहती है।
घर के बगल में शादी का रिसेप्सन है। गोपाल को भी न्योता पड़ा है। गोपाल को भी तो उस शादी के रिसेप्सन में जाना है। रिसेप्सन एक दिन बाद है। गोपाल और बच्चों की तरह उत्साहित होने के बजाय अपने घर पर किताब पढ़ने में व्यस्त है। मोहन और अंजलि अपने नानी के घर पहुँच चुके है। मोहन को काफी अच्छा लग रहा है। चारों तरफ खुला-खुला माहौल देखकर उसे अच्छा महसूस हो रहा है। मोहन और अंजलि दोनों उत्साहित है। ख़ुशी से दोनों फुले नहीं समा रहे है। इधर-उधर भाग दौड़ लगा रहे है। झूम रहे है घूम रहे है जी भर के खेल रहे है। इस समय मोहन का ख़ुशी का ठिकाना नहीं है। खुली हबा में खुलकर ऐसे सांस ले रहा है जैसे ये ख़ुशी उसे एक अरसे के बाद मिली हो। मोहन अपने इस पल को वाकई खुलकर जी रहा है। ऐसा लगता है जैसे वर्षों से पिंजरे में बंद पंछी को किसी ने आज़ाद कर दिया हो। न कोई बोलने वाला न कोई पूछने वाला और न ही कोई रोकने वाला। ये मोहन के लिए वो पल था जिसमें उसे एक नई जिंदगी मिल गई थी। और मोहन इस जिंदगी को जी भर के जी लेना चाहता था। मोहन जनता था कि उसकी ये खुशी पल दो पल की ही है। क्योंकि फिर से घर जाकर उसे कैदी जीवन ही बिताना है। लेकिन प्रकृति को शायद ये मंजूर नहीं था। प्रकृति शायद मोहन को आजादी का पाठ पढ़ाना चाहती थी। और इसमें किस्मत और कुदरत दोनों प्रकृति का साथ दे रहे थे। शायद इशिलिए मोहन और गोपाल एक दूसरे से मिले थे।
अगले रात शादी के रिसेप्सन का भोज था। बिहार की संस्कृति में पार्टी को भोज बोला जाता है। गोपाल को भी न्योता था गोपाल भी गया था भोज में। और यही मोहन और गोपाल का मुलाकात हुआ था। गोपाल एक तरफ आराम से कुर्सी पर बैठा हुआ था। तभी मोहन भी वहाँ आकर बैठ गया और बाते करने लगा। तुम्हारा घर किधर है, तुम दूर से आए हो या यहीं आस-पास के हो। संकोचित मन से मोहन ने प्रश्न किया। मेरा घर यही पर है बगल में। पर तुम नए लगते हो कहीं दूर से आए हो। गोपाल ने जबाब के साथ ही अपना सवाल दाग दिया। हाँ मैं पटना से आया हूँ ये मेरी नानी का घर है। और जिनकी शादी हुई है वो मेरे मामा है। मोहन ने थोड़ा अकड़ के साथ जबाब दिया। वो अच्छा ठीके है मज़ा करो खाओ पियो मस्त रहो। वैसे एक बात बताओ और कोई नहीं मिला था तुमको दिमाग चाटने के लिए की हमारे पास चले आए हो। गोपाल ने थोड़ा गुस्सा और थोड़ा प्यार दिखाते हुए कहा। नहीं तुम मुझे अच्छे लगे थे तो हम तुम्हारे पास चले आए सोंचा थोड़ा बातचीत करेंगे तो दोस्ती हो जाएगा बस इशिलिए इसमें दिमाग चाटने वाला कोई बात नहीं था। मोहन ने थोड़े शर्मीले अंदाज़ में कहा। वो सब त ठीके है लेकिन अच्छा लगने का क्या मतलब है कैहना का चाहते हो तुम। गोपाल ने संदेह से पूछा। अरे छोड़ो वो सब फालतू की बाते चलो खाना खाते है जाकर। मोहन ने एकाएक कैहकर गोपाल का हाथ पकड़ा और उसे खिंचकर खाना खाने ले गया। दोनों मिलकर खाना खाएं दोनों में थोड़ी बहुत और भी बाते हुई। दोनों ने एक दूसरे का नाम पूछा फिर खाना खाने के बाद गोपाल अपने घर वापस आ गया। मोहन और अंजलि भी अपने घर पर सो गए। कल सुबह ही मोहन को अपने घर पटना जाना था। सुबह उठते ही मोहन बहुत उदास था क्योंकि उसे जाना था। और वो ऐसा नहीं चाहता था। वो चाहता था कि वो कुछ और दिन अपने नानी के घर ही गुजारे। लेकिन स्कूल भी छूट रहा था। पढ़ना भी बहुत जरूरी था। और स्कूल जाना भी। शायद मोहन के दिल की पुकार ऊपरवाले ने सुन लिया। कुछ प्राकृतिक आपदा की वजह से मोहन को अपने नानी के घर पर ही रुकना पड़ा। पटना में बाढ़ आ चुका था जिसकी वजह से कुछ दिनों के लिए स्कूल बंद कर दिए गए थे। अब मोहन हँसी खुशी कुछ और दिन आज़ाद जिंदगी जी सकता था। मोहन अपना बचा-खुचा छुट्टी अपने नए दोस्त गोपाल के साथ बिताना चाहता था। शायद वो पैहली नज़र से ही गोपाल को पसंद करने लगा था। वो गोपाल के घर आने-जाने लगा। गोपाल के साथ खेतों में काम करने लगा खेलने लगा। और वो गोपाल के साथ किताबें पढ़ने लगा। और यही से दोनों के बीच प्रेम पनप उठा। यही से दोनों का प्रेम कहानी शुरू हुआ। अभी जब मोहन गोपाल के घर आया था तब पाँचवाँ दिन था। दोनों बैठे आपस में एक दूसरे से बाते कर रहे थे। तभी गोपाल की माँ चिल्लाई गोपाल तुम्हारे लिए फ़ोन है। गोपाल ने फ़ोन हाथों में लेकर बात किया और झटपट फ़ोन फेंक दौड़ता हुआ कही चला गया। मोहन ये सब नज़ारा देखकर एकदम सन्न था। गोपाल के लौटकर आने पर मोहन ने पूछा। क्या हुआ था कोन था फ़ोन पर और तुम इतने घबराए हुए भागते हुए कहाँ चले गए थे। अरे कुछ न मेरा दोस्त था अमरपाल उसने अपना हाथ काट लिया था बस उसी को डॉक्टर के पास ले जाना था इशिलिये भाग कर गया था। हाँ मैं थोड़ा घबरा गया था कि कही उसने ज्यादा तो नहीं काट लिया अपना हाथ। दिलासा देते हुए गोपाल ने कहा। अच्छा वो तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त है। संकोच से मोहन ने पूछा। हाँ जब हम आठ साल के थे तब से अमरपाल के घर आ जा रहे है। साथ-साथ खेले है। तो वो मेरा अच्छा दोस्त है। दिलासा दिलाते हुए गोपाल ने कहा। अच्छा ठीक है मैं भी तो तुम्हारा अच्छा दोस्त हूँ न। मोहन ने तुरंत अपना प्रश्न दागा। हाँ हो सकते हो तुम भी हो सकते हो। आश्चर्य से गोपाल ने कहा। ऐसे ही बातचीत में भगदौड़ करते हुए किताब पढ़ते हुए दिन बीत गए थे। रात का समय था गोपाल मोबाइल पर गेम खेल रहा था। तभी एक अननोन नंबर से फ़ोन आया। गोपाल फ़ोन उठाकर जैसे ही हेलो बोला वैसे ही मोहन की आवाज आई। क्या गोपाल क्या चल रहा है कैसे हो। तुमसे एक बात कैहना था। अरे मोहन बोलो अभी तो कुछ कर नहीं रहा हूँ। सोच रहा था थोड़ा अमरपाल के घर घूम आए। गोपाल ने सीधे-सीधे जबाब दिया। अच्छा अमरपाल को छोरों हमको जो कहना है वो सुनो जल्दी करो मेरा नाना बूढ़ा आ जाएगा त मोबाइल छीन लेगा। मोहन ने बड़े हड़बड़ी में कहा। अरे ह-ह बोलो क्या बोलना है। गोपाल ने पूछा। हम तुमसे कैहना चाह रहे है की हम तुमसे प्रेम करने लगे है। मोहन ने सीधे सब्द में गोपाल से अपने दिल का बात कैह दिया। अच्छा सुनो न अमरपाल के घर मत जाना अच्छा अब हम फ़ोन रखते है कल आएंगे त बात करेंगे। मोहन ने कैहकर फ़ोन काट दिया। मोहन की बाते सुनकर गोपाल एकदम सन्न था। उसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है। और वो क्या करें। यही सब सोच विचार करते हुए गोपाल को रात भर नींद नहीं आया। सुबह ही वो अमरपाल के घर चला गया। अमरपाल से कुछ बातचीत किया। अच्छा अमरपाल एक बात पूछे अगर तुमको बुरा नहीं लगेगा तो। गोपाल ने संकोच पूर्ण पूछा। अरे ह-ह गोपाल पूछो हमसे का शरमा रहा है। बचपन से हम दोनों एक दूसरे को अपना पर्सनल बाते बताते आए है। इसमें बुरा मानने का कोई बात नहीं। बड़े धैर्यपुरबक अमरपाल ने कहा। अच्छा एक बात है क्या एक लड़का एक लड़के से प्रेम कर सकता है। गोपाल ने अपना प्रश्न पूछा। हाँ क्यों नहीं कर सकता है बिल्कुल कर सकता है। जब एक लड़का एक लड़के से प्रेम करता है तब वो एक भाई हो सकता है। तब वो एक चाचा हो सकता है। और वो एक अच्छा दोस्त भी हो सकता है। अमरपाल ने सीधे-सीधे सब्द में प्रेम का अर्थ समझा दिया था। गोपाल ने अमरपाल को अपने नए दोस्त के बारे में बताया। किस तरह मुलाकात हुआ कैसे दोस्ती हुई मोहन ने गोपाल से कल रात क्या कहा वो सब कुछ। इसमें बुरा क्या है गोपाल दोस्त-दोस्त से बेझिझक प्रेम कर सकता है। मैं भी तो तुमसे प्रेम करता हूँ क्योंकि तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। इसमें इतना टेंशन लेने का क्या बात है। कभी हमको भी मिलबाओ अपने नए दोस्त से। अमरपाल ने समझाते हुए कहा। इसी तरह एक दूसरे को हँसाना रुलाना सताना। एक दूसरे से मिलना मिलबाना चलता रहा। और इसी में छुट्टी के सत्ताईस दिन बीत गए। अठाइसबा दिन जब मोहन अपने घर को जाने वाला था वो गोपाल से मिलने आया। आज मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ। आज मैं अपने घर चला जाऊंगा और हम दोनों बिछड़ जाएंगे। उससे पहले मैं तुम्हें एक सच बताना चाहता हूँ। जो मैंने आज तक तुमसे छुपाकर रखी है। पता नहीं तुम मेरे बारे में क्या सोचोगे। लेकिन सच तो यही है कि मैं तुमसे दोस्ती वाला प्रेम नहीं करता हूँ। बल्कि मैं तुमसे किसी और तरीके का प्रेम करता हूँ। गोपाल मैं तुमसे दूर नहीं जाना चाहता। मैं तुम्हारे बिना रैह नहीं पाऊंगा। मोहन ने सब कुछ एक साथ कैह दिया। मोहन की ये बात सुनकर गोपाल फिर से थोड़ी देर के लिए सन्न रैह गया था। ये कैसे संभव है एक लड़के को लड़के से कैसे प्रेम हो सकता है। लड़की लड़के को प्रेम करते सुना है देखा भी है। पर मेरी जिंदगी में मैं ये पैहली बार सुन रहा हूँ की एक लड़का को एक लड़के से प्रेम हो गया। गोपाल ने आश्चर्य से कहा। मैं जानता हूँ गोपाल तुम बहुत किताबें पढ़ते हो और तुम काफी समझदार हो । मुझ जैसे वेवकूफ को समझदार बनाने में तुम्हारा ही हाथ है। मैं तुमसे जो कहूँगा हो सकता है उसे सुनकर तुम एक बार फिर दंग रैह जाओगे लेकिन मेरी सच्चाई यही है की मैं (समलैंगिक) गे हूँ। और मैं सिर्फ तुम्ही से प्रेम करता हूँ। मोहन ने अपने दिल का बात कैह दिया।
मैं नहीं जानता कि तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो। या तुम मुझे किस नज़रिए से देखते हो। लेकिन मैं तुम्हें अपना दोस्त समझता हूँ। मैं तुम्हें सिर्फ दोस्ती के नज़रिए से देखता हूँ। गोपाल ने समझाते हुए कहा। मैं जानता हूँ तुम मेरी तरह नहीं हो। मैं जानता हूं की लड़का लड़की में प्रेम होता है। लेकिन गांव की दुनिया से शहर की दुनिया परे है गोपाल। लड़का लड़का से बिल्कुल प्रेम कर सकता है। हो सकता है की मैं तुमसे ये सब कुछ कैह रहा हूँ तो तुम मुझे पागल या वेवकूफ समझोगे। लेकिन सच्चाई यही है कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। मैं नहीं जानता कि ये सब कब हुआ कैसे हुआ और क्यों हुआ। मैं नहीं जानता हूँ की मैं तुम्हे क्यों प्रेम करता हूँ। लेकिन मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ। और मैं तुमसे दूर नहीं जाना चाहता हूँ। तुमसे जुदा नहीं होना चाहता हूँ। तुम्हारे बिना मुझपे क्या गुजरेगी तुम जानते भी नहीं हो। मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगा गोपाल। मोहन ने एक साथ अपना दास्तान सुना दिया। मैं मानता हूँ की तुम मुझसे प्रेम करते हो। (गे) होने का मतलब भी मैं अच्छे से जनता हूँ। लेकिन जरा सोचो कभी किसी गाँव मे ऐसा होते हुए सुना या देखा है। नहीं न। मैं तो तुम्हें सिर्फ अपना दोस्त समझता रहा लेकिन तुम्हारे मन में मेरे लिए कुछ और भावनाएं थी। तुम्हारी भावनाओं का मैं कदर करता हूँ। लेकिन जरा सोचो तब क्या होगा जब गांव के लोगों को इस प्रेम के बारे में पता चलेगा। वो क्या सोचेंगे हमारे लिए। कितना कुछ भला-बुरा बोलेंगे हमारे लिए। क्या लोग हमें इस समाज में जीने देंगे। मैं जानता हूँ समानान्तर होना(समलैंगिक gay) होना कोई गुनाह नहीं है। लेकिन गांववाले ये सब नहीं जानते। ये शहर नहीं है मोहन। गांव का समाज गांव का संस्कृति शहर से परे है। सोचो तब क्या होगा जब समाज को पता चलेगा कि हम समानान्तर(गे) है तो कितना जुर्म दाहेंगे वो हम पर। हमें कितना अपमानित होना पड़ेगा। हमें कितना जलील होना पड़ेगा। और क्या हम इस अपमान को बर्दाश्त कर पाएंगे। समझाते हुए गोपाल ने कहा। मैं कुछ नहीं जानता लोग क्या बोलेंगे। लोग क्या सोचेंगे उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। समाज से मुझे कोई लेना-देना नहीं है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता की समाज हमारे बारे में क्या सोचेगी। क्या बोलेगी। मैं बस इतना जनता हूँ की मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। तुम्हें मेरे प्रेम को स्वीकार करना होगा मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ। मैंने अपना तन-मन सब कुछ तुम पर समर्पित कर दिया है। और जरूरत पड़ने पर तुम्हारे लिए मैं अपने आप को फना भी कर सकता हूँ। चिरचिरेपन से मोहन ने कहा। जानता हूँ मोहन तुम मुझसे बहुत प्रेम करते हो लेकिन मैं तुम्हारे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकता क्योंकि मुझे यहाँ के समाज में रैहना है। और तुम मुझसे छोटे भी हो और मैं तुम्हारी तरह भी नहीं हूँ। मैं एक लड़का हूँ। तुम्हे किसी लड़की से प्रेम करना चाहिए था न की लड़के से। गोपाल ने फिर समझाया। मैं जानता हूँ मैं एक लड़का होकर एक लड़के से प्रेम करता हूँ तो मैं पागल या मूर्ख हूँ। लेकिन एक बात याद रखो मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ। तुम्हारे प्रेम में पागल हूँ। मोहन ने गुस्से में लाल-पिला होते हुए कहा। ठीक है कोई बात नहीं तुम मुझसे प्रेम करते हो बेशक करो। मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं। लेकिन अभी हम दोनों को बिछड़ना ही पड़ेगा। अलग होना ही पड़ेगा। तुम्हें अपने घर जाना ही होगा क्योंकि तुम्हारी स्कूल खुल गई है। और पढ़ना बहुत जरूरी है। गोपाल ने फिर समझाते हुए कहा। मैं तुम्हारे बिना नहीं रैह पाऊंगा। मुझे तुम्हारी याद आएगी। मैं कैसे काटूंगा तुम्हारे बिना एक-एक पल। एक-एक दिन। मैं मर जाऊंगा तुम्हारे बिना। कैहते हुए मोहन की आंखें नम थी। तुम्हें मेरे बिना रैहना होगा। तुम मेरी जुदाई में कोई गलत कदम नहीं उठाना। एक बार अपने माता-पिता के बारे में सोचो। तुम ऐसा कुछ नहीं करना जिससे की तुम्हारे माता-पिता को तकलीफ हो। तुम ऐसा कोई कदम नहीं उठाना जिससे की मुझे तकलीफ हो। तुम्हें जिना होगा दोस्त। तुम्हें मेरी दोस्ती के लिए जीना होगा। तुम्हें मेरे प्रेम के लिए जीना होगा। गोपाल ने फिर समझाया। तुम मुझे भूलोगे तो नहीं न। तुम मेरा इंतज़ार करोगे न। मोहन ने प्रश्न किया। नहीं दोस्त मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगा। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा जरूर करूँगा। गोपाल ने जबाब दिया। तुम भी वादा करो की तुम भी कोई गलत कदम नहीं उठाओगे। प्रेम के लिए मरते सब है लेकिन तुम्हें मेरे प्रेम के लिए जीना होगा। तुम करो वादा मेरा दिल न तोड़ोगे। प्यार की खातिर कभी दुनिया न छोड़ोगे। मोहन ने उत्साहित मन से कहा। गोपाल ने भी वादा कर लिया। दोनों एक वादे पर एक कसम पर जिंदा रैहने के लिए मजबूर थे। गोपाल से आखिरी मुलाकात के बाद मोहन अपने घर, अपने शहर पटना को चला गया। मोहन गोपाल से प्रेम करता था इस बात को उनदोनों के अलावा कोई नहीं जानता था। दोनों इस बात को सबसे छुपा रहे थे।
गोपाल का मैट्रिक का परीक्षा भी करीब आ रहा था। उसे परीक्षा का तैयारी भी करना था। वो अपनी परीक्षा की तैयारी में जुट गया। लेकिन मोहन से बिछड़ने के बाद उसे मोहन का काफी याद आने लगा था। उसे अपने जिंदगी में कुछ कमी सा महसूस होने लगा। गोपाल अब अपने आप को अकेला सा महसूस करने लगा था। उसे कुछ अच्छा नहीं लगता था। अब किताब पढ़ने में भी उसका मन नहीं लगता था। वो अकेला रैहने लगा था। अपने आप से बाते करने लगा था। गोपाल समझ ही नहीं पा रहा था की आखिर उसे हो क्या गया है। उसे अपने आस-पास मोहन का छवि दिखाई देने लगा था। गोपाल पागल सा हो गया था। कभी- कभी गोपाल अपना मन भुलाने के लिए अमरपाल के यहाँ चला जाया करता था। गोपाल को एहसास हो गया था की उसे भी मोहन से प्रेम हो गया था। यही सब में गोपाल का मन पढ़ाई से भटक गया था। और गोपाल ने अपने दोस्त अमरपाल को भी खो दिया।
एक दिन जब गोपाल अपने दोस्त अमृत के घर गया। वहां कुछ लड़के बैठे आपस में बाते कर रहे थे। अरे गोपाल बहुत देर से आये हो आओ बैठो। अमरपाल ने स्वागत करते हुए कहा। गोपाल उनलोगों के साथ बैठकर गप्पें लड़ाने लगा। तभी बौना ने प्यार मोह्हबत का बात छेड़ दिया। बौना अमरपाल का पड़ोसी है। आज सब अपने-अपने प्यार के बाड़े में बताएगा। बौना ने बड़े जोश के साथ कहा। हाँ-हाँ पहले बौना अपने प्यार के बारे में सबको बताएगा। बात यही सुरु किया है तो पहले यही बताएगा। पोलाद ने एक तीर से दो शिकार करते हुए कहा। पोलाद रिश्ते में अमृत का भांजा लगता है। वो बचपन से ही अपने नानी के घर ही रैह रहा है। हाँ बौना बताओ-बताओ। उत्तेजित होते हुए अमरपाल ने कहा। बौना बताने के लिए मजबूर हो गया। उसने सबको अपने प्यार के बारे में बताया की वो किसी ज्योति नाम के लड़की से प्रेम करता था। लेकिन उस लड़की ने उसे धोखा दे दिया। बौना की बात सुनकर सब मज़े ले रहे थे। अब पोलाद की बारी है पोलाद अपनी बाली के बारे में बताएगा। पलटवार करते हुए बौना ने कहा। देखो एक लड़की को तो हम पसंद करते थे लेकिन उससे कभी मेरा सेटिंग नहीं हुआ। मैं कैह नहीं पाया उसको की मैं उसे पसंद करता हूँ। इस इस तरह मेरा प्यार एकतरफा रैह गया। पोलाद ने शर्माते हुए कहा। अब अमरपाल बताएगा पोलाद ने फिर हवा में तीर चलाते हुए कहा। देखो भई मैं तो एक चांदनी नाम के लड़की से प्रेम करता था। लेकिन उस लड़की को इंसान से ज्यादा पैसो से प्रेम था। इशिलिये मैंने उसे भूल जाना ही सही समझा। अमरपाल ने भी अपना दास्तान सुना दिया। अरे भई गोपाल भी कुछ बोलेगा की चुप्पे बइठल रहेगा। खाली सुन-सुन के मज़ा लईत रहेगा। अमरपाल ने गोपाल की तरफ इशारा करते हुए कहा। अरे हाँ-हाँ भाई गोपाल तुम भी बताओ कुछ। सब एक साथ बोल पड़े। अरे नहीं नहीं तुम सब बुरा मान जाओगे। तुम सबको अच्छा नहीं लगेगा मेरे प्यार के बारे में सुनकर। तुम सब मेरा मज़ाक उड़ाओगे। गोपाल ने भारी मन से कहा। इसमें बुरा मान जाने या मज़ाक उड़ाने की क्या बात है गोपाल। अभी तो प्यार पर ही चर्चा हो रहा है और सभी ने अपना कहानी भी सुनाया। और एक तुम हो की बताने के लिए तैयार ही नहीं हो। कैसा आदमी हो भूतनी के। गुस्से में झुंझलाते हुए बौना ने कहा। अच्छा ठीक है जब तुम लोग नहीं मान रहे हो, तुम लोग इतना जिद कर ही रहे हो तो बताते है। मैं मोहन नाम के एक लड़के से प्रेम करता हूँ। संकोच के साथ गोपाल ने कहा। अरे यहाँ कोई मज़ाक नहीं हो रहा है गोपाल। यहाँ प्यार मोह्हबत की बाते हो रही है लड़की की बाते हो रही है न की एक दोस्त की। बीच में ही टपाक से बौना ने कहा। शार बौना मैं अपने प्यार के बारे में ही बता रहा हूँ। मैं एक लड़का से प्यार करता हूँ इसका मतलब ये नहीं की वो मेरा दोस्त है। उससे मेरा रिश्ता कुछ और है। गोपाल ने खीजते हुए कहा। अरे तुम लोग गोपाल का मज़ाक काहे उड़ा रहे हो गोपाल सही तो कह रहा है। गोपाल हमलोग की तरह नहीं है। गोपाल समलैंगिक(गे) है। और ऐसा होना कोई जुर्म नहीं है। ये जरूरी नहीं की प्यार सिर्फ लड़की से हो प्यार लड़का से भी हो सकता है। प्यार तो अनमोल है किसी से भी हो सकता है। इसमें क्या बुराई है की गोपाल एक लड़का से प्यार करता है। गुस्से में सबको समझाते हुए पोलाद ने कहा। लेकिन गोपाल मुझे नहीं लगता की अब मुझे तुम्हारे साथ रैहना या वक़्त बिताना चाहिए। तुम गे हो तुम बुरे हो गंदे हो तुम। चिरचिरेपन से अमपाल ने कहा। कोई बात नहीं अमरपाल तुम मुझसे बात नहीं करना चाहता मत करो। मैं मानता हूँ मैं गे हूँ। लेकिन बुरा और गंदा नहीं। और एक वादा करो मुझसे की तुम सबसे छुपकर रखोगे की मैं गे हूँ। बड़े ही नम्रता से गोपाल ने कहा। अमरपाल ने भी दोस्ती का फर्ज निभाते हुए बात को राज़ ही रैहने दिया। वहाँ जितने भी थे सबने गोपाल से वादा किया। लेकिन गोपाल क्या तुम मोहन के साथ वो सब कर पाओगे जो एक लड़की के साथ करते है। क्या तुम मोहन से शादी कड़ोगे? तुम्हारा बंश आगे कैसे बढ़ेगा। आश्चर्य से अमरपाल ने पूछा। अमरपाल जरूरी नहीं की जहाँ प्रेम है वहाँ शारीरिक संबंध हो। बिना टच किए हुए भी प्रेम होता है। और यही सच्चा और पवित्र प्रेम होता है। हाँ मैं मोहन से प्रेम करता हूँ। लेकिन आज तक मैंने उसे गलत इरादे से टच नहीं किया है। फिर भी मैं उसके बिना नहीं रैह सकता। और मैं मोहन से शादी थोड़ी न कर रहा हूँ की तुम इतना दूर का सोच रहे हो। गोपाल ने एक बार में ही प्रेम का अर्थ समझा दिया। सब चुप हो गए। अरे यार छोरों हमलोगों का प्यार तो हाँसील होने से रहा। लेकिन गोपाल का प्यार जैसा भी है सलामत है और हाँसिल है। आज गोपाल सबको पार्टी देगा। चुप्पी भंग करते हुए बौना ने कहा। सब जोर-जोर से हँसने लगे। ह-ह हम आज सबको पार्टी देंगे शाम को चलते है चौक पे। गोपाल ने सबको दिलासा दिलाते हुए कहा।
गोपाल अब अपना सारा समय पार्टी-शॉर्टी और आवारागर्दी में गुजारने लगा। इस बीच वो अपने परीक्षा के तैयारी को भूल गया। एक दिन मोहन को लेकर गोपाल को अमरपाल से झगड़ा भी हो गया था। दोनों का दोस्ती टूट गया था। दोनों एक दूसरे से बात नहीं करते थे। गोपाल हमेसा घूमते रैहता था और आवारागर्दी करते रैहता था। जिस कारण से उसका ध्यान पढ़ाई से भटक गया था। न पढ़ने की वजह से गोपाल मैट्रिक में फेल हो चुका था। लोग गोपाल पर हँस रहे थे। उसका मजाक उड़ा रहे थे। गोपाल के घरवालों ने भी अच्छी तरह खबर ली थी उसकी। दीपक बाबू लाठी से लगातार गोपाल को पीटते जा रहे थे। साथ ही साथ गुस्से से भनभना भी रहे थे। ई कुकर्मी खाली पैसा बर्बाद करता है। न घर पर कोनों काम करता है न पढ़ता है। एकरा खाली कहानी पढ़ने के लिए चाहिए और कछु नहीं। अरे पापा अब मत मारिये मर जाऊंगा मैं। अरे चुप कर पहिले त कहानियों पढ़ लेता था अब त उहो नहीं पढ़ता है। खाली लफुआ सब के साथ रहके बिगड़ गया है तू। आज तोहर खूने कर देंगे हम। गुस्से में बिलबिलाते हुए दीपक बाबू बोले। देखो पापा अब एक्को लाठी लगा न त बहुते बुरा हो जाएगा बता रहे है। चुप कर आज हम तुमको सुधारिये देंगे। दीपक बाबू ने कहा। गोपाल किसी भी तरह अपने पिता से पीछा छुड़ाया। गोपाल बिल्कुल टूट चुका था। शर्म से उसका सर नीचे झुक गया था। वो अपने आप से ही सर्मिन्दा था। और वो सोंच रहा था की आत्महत्या कर लूँ। उसने इसकी पूरी तैयारी भी कर ली थी। लेकिन जब वो आत्महत्या करने गया उसे वो वादा याद आ गया जो उसने मोहन से किया था। अपने प्रेम के लिए उसे जिंदा रैहना था। उसे मोहन के लिए जीना था। अंततः उसने अपना फैसला बदल लिया। फैसला बदलकर उसने आत्महत्या तो नहीं किया लेकिन एक ऐसा कदम उठाया जिसकी किसी ने कभी कल्पना भी नहीं किया था। और मोहन का यही गलत कदम उसके जिंदगी का सबक बन गया। गोपाल अपना घर छोड़कर भाग गया।
मोहन का भी हालत कुछ ठीक नहीं था। गोपाल से जुदा हो जाने के बाद वो हमेसा उसकी ही यादों में डूबा रैहता था। वो हर पल उस दिन को याद करता रैहता था जो उसने अपने नानी के घर बिताया था। वो हमेसा यही ताक में रैहता था की कब स्कूल की छुट्टी पड़े और मैं नानी के घर जाकर गोपाल से मिल सकूँ। मोहन को अब अच्छे से समझ में आ गया था की आज़ादी क्या होता है। वो जब भी अपना आजादी भरा पल याद करता था उसके आंख भर आते थे। अब उसका भी मन पढ़ाई से भटक गया था। वो अपने कमरे में अकेले बैठे बस सोचता रैहता था। खाना-पीना भी भूल गया था वो। उसके माता पिता को लगता था की उसे कुछ हो गया है। उन्होंने मोहन को अच्छे से अच्छे डॉक्टरों से दिखाया। लेकिन इस सब का मोहन पर कोई असर नहीं था। अब मोहन के माता पिता को लगने लगा था की उस पर कोई भूत प्रेत का साया चढ़ गया है। उन्होंने बहुत से ओझा तांत्रिक को बुलाकर झाड़-फूँक भी करवाया। लेकिन मोहन पर उसका भी कोई असर नहीं हुआ। उसके सारे परिवार वाले ये जानने के लिए बेचैन थे की आखिर उसे हुआ क्या है। किसी को कुछ पता नहीं चल रहा था। सबने ढूंढना शुरू कर दिया। सब पता लगाने में जुट गए की आखिर मोहन को हुआ क्या है।
एक दिन मोहन अपने कमरे में अकेले बैठा रो रहा था। तभी मोहन के पापा(चौधरी) कमरे में आ गए। वो मोहन के पास जाकर बैठ गए। उन्होंने अपना हाथ मोहन के सर पे रखा और प्यार से मोहन का बाल सैहलाते हुए पूछे- क्या बात है बेटा रो क्यों रहे हो। और आजकल ये तुम्हें हो क्या गया है। क्यों पागलों जैसी हरकतें करने लगे हो। नहीं पापा मुझे नहीं लगता की अब मैं जी पाऊंगा मैं मर जाऊंगा पापा। दर्द भड़ी आवाज़ में मोहन ने कहा। घबराओ नहीं बेटा साफ-साफ बोलो बात क्या है। डरो मत मैं कुछ नहीं करूँगा। दिलासा दिलाते हुए चौधरी जी बोले। पापा मुझे डर लग रहा है। मुझे समझ नहीं आ रहा है की मैं आपसे कैसे कहूँ। माथे पर चिंता और डर का लकीर लिए हुए मोहन ने कहा। बेटा मैं तुम्हारा पापा हूँ दुश्मन नहीं जो तुम मुझसे दर रहे हो। मैं तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं करूँगा बात क्या है बताओ। समझाते हुए चौधरी जी बोले। पापा मैं आपको बहुत दिनों से बताना चाहता था लेकिन मेरा हिम्मत नहीं हो रहा था की मैं आपको बताऊँ। पापा मैं समलैंगिक(गे) हूँ। सहमे से आवाज़ में मोहन ने कहा। अबे चल बे मीठे तो ये बात था। तो इसमें डरने का कोन सा बात है। तू जैसा भी है है तो मेरा बेटा न। मजाक की मूड में आते हुए चौधरी जी बोले। पापा एक और बात है जो मैं आपको कैहना चाहता हूँ। मोहन ने डरते हुए कहा। और वो क्या है तू घरजमाई लाने वाला है। या तू माँ बनने वाला है। हँसते हुए चौधरी जी बोले। नहीं पापा वो बात नहीं है जब मैं नानी घर गया था तब मुझे गोपाल नाम का लड़का मिला था। मैं उससे प्रेम करने लगा हूँ। मैं उससे मिलना चाहता हूँ पापा। कैहते हुए मोहन सिसक-सिसक कर रोने लगा। तो ये बात थी कोई बात नहीं बेटा इसमें कोई बुराई नहीं है। सबको प्रेम करने का हक है। अच्छा तुम थोड़ी देर रो लो तुम्हारा दिल हल्का हो जाएगा। समझाते हुए चौधरी जी बोले और कमरे से बाहर आ गए। चौधरी के कमरे से बाहर आते ही उत्सुकता से चौधराइन बोली- क्या हुआ जी मोहन ठीक है न। उससे कुछ बात हुई आपकी। भाग्यवान हमारा बेटा गे है। उदास मन से चौधरी जी ने कहा। क्या! मोहन गे है। हे भगवान हमने कोन सी गलती की थी जिसकी सज़ा हमको मील रहा है। चौधराइन ने सर पीटते हुए कहा। इसमें सर पीटने वाली कौन सी बात है वो जैसा भी है हमारा बेटा है। अच्छा तुम तैयारी करो हमें अभी भगवानपुर निकलना होगा। चौधरी ने समझाते हुए कहा। क्या भगवानपुर जाकर मोहन ठीक हो जाएगा। चौधराइन ने उदास मन से कहा। हाँ वहाँ के किसी गोपाल नाम के लड़के से मोहन प्रेम करता है। उसके साथ चार पांच दिन रहेगा तो शायद ठीक हो जाये। और इसी बहाने हमलोग भी गोपाल से मील लेंगे। चौधरी जी ने कहा।
दोनों मोहन और अंजलि को लेकर भगवानपुर आ गए। अपने नानी के घर पहुँचते ही मोहन सरपट गोपाल के घर की तरफ भगा। उसके चेहरे पर एक अजीब सा चमक था। एक अजीब सा ख़ुशी झलक रहा था उसके चेहरे पर। लेकिन तब उसका सारा खुशी मायूसी में बदल गया। जब वो गोपाल के घर पहुँचा।
वहाँ जाकर उसने देखा दीपक बाबू मायुषः हैरान और परेशान अपने सिर पर हाथ रखे एक कोने में बैठे है। गोपाल की माँ बस रोये जा रही है। लोगों की भीड़ लगी हुई है। सब गोपाल की माँ को सांत्वना दे रहे है। समझा रहे है। यही आकर मोहन को पता चला की गोपाल घर छोड़कर भाग गया है। अभी उसके गए हुए बस दो दिन ही हुए है। सब परेशान है। हर तरफ लोग गोपाल को ढूंढ रहे है। मोहन उदास और मायुषः हो गया। वो अपने सर पर हाथ रखकर घुटनो के बल बैठ गया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। लोग हैरानी से मोहन की तरफ देखने लगे। लोगों को समझ ही नहीं आ रहा था की ये क्यों रो रहा है। लोग क्या जाने अपने प्रेम को खो देने का क्या दर्द होता है। अभी मोहन पर जो बीत रहा है उसका व्याख्या कोई नहीं कर सकता। मोहन बस रोता रहा और सब उसे देखते रहे। कुछ देर रोने के बाद मोहन घर चला गया।
अब मोहन अच्छा महसूस कर रहा था। जी भर के रो लेने से शायद उसका दिल हल्का हो गया था। मोहन के पापा मोहन से कुछ बाते करने लगे।
तुम काहे रो रहे थे बेटा। चौधरी जी बड़े प्यार से बोले। कुछ नहीं पापा वो गोपाल की वजह से। प्रेम करता था मैं उससे और उसे खो देने का गम मैं सह नहीं पाया और रो पड़ा। मोहन ने कहा। कोई बात नहीं बेटा ऐसा होता है। आशा करता हूँ गोपाल जल्दी लौट आये। चौधरी जी बोले। मैं इंतज़ार करूँगा पापा। मैं उसके लौटने का इंतज़ार करूँगा। मोहन ने कहा। अब तुम्हारी तबियत तो ठीक है बेटा। चौधरी जी बोले। हाँ मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मोहन ने कहा। अब तुम घर चल सकते हो ना। चौधरी जी ने पूछा। अभी आए है त चार-पांच दिन और रुक जाइये। और इसी बीच अगर गोपाल लौट आया तो मैं मिल भी लूंगा उससे। मोहन ने जबाब दिया। चौधरी जी मोहन की बात मान गए। उन्हें भी लगा की जब गोपाल का गुस्सा ठंडा होगा तो शायद वो लौट आए। इसी बहाने मोहन की भी उससे मुलाकात हो जाएगी। तब हम अपने घर लौट सकते है। इसीलिए उन्होंने मोहन से किसी प्रकार का ज़िद करना अच्छा नहीं समझा। यहाँ मोहन गोपाल का राह ताक रहा है। और गोपाल को किसी का कोई फिक्र नहीं है। न तो उसे अपने माँ बाप का फिक्र है और न ही अपने प्रेम मोहन की। और न ही उसे अपनी जिंदगी की परवाह है। और न ही उसे अपना भविष्य खराब होते हुए दिख रहा है। वो तो बस गुस्से में चला जा रहा है। उसे भी ठीक से पता नहीं है की वो जिंदगी के किस मोड़ पर जा रहा है। अपने घर से भागकर गोपाल दिल्ली जा रहा है। वो दिल्ली पहुँच भी गया है। बड़ा ही भीड़-भाड़ है इस शहर में। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा है की वो जाए तो कहाँ जाए। अभी-अभी तो स्टेशन से बाहर निकला है। टैक्सी वाले पूछ रहे है, ओटो वाले पूछ रहे है। अरे भाई साहब कहाँ जाओगे मैं छोड़ दूंगा। गोपाल किसी को क्या जबाब दे। यहाँ तो वो पैहली बार आया है। उसे क्या पता कहाँ कोन सा गली है। और कहाँ कोन सा शहर है। और ऊपर से उसके पास पैसे भी तो नहीं है। घर से थोड़ा बहुत पैसा चुराकर भगा था वो तो ट्रैन और टिकट में खत्म हो गया था। बेचारे गोपाल को भूख और प्यास भी लग रहा था। प्यास के मारे उसका गला सूखा जा रहा था। स्टेशन पर उतरा और सीधा बाहर आ गया था। हैरान परेशान गोपाल की आंखे इधर-उधर पानी ढूंढ रही थी। पैदल चलते-चलते ही गोपाल बस स्टैंड पहुँचा। वहाँ नलका लगा हुआ था। उसने पानी पिया और वही यात्री पड़ाव में बैठकर सुस्ताने लगा। वहीं पास में ही एक बूढ़ा आदमी बैठा हुआ था। और वो काफी देर से गोपाल को ही घूरे जा रहा था। जब उस बूढ़े से रहा नहीं गया तब उसने गोपाल से पूछ दिया-अरे बेटा कहाँ जाओगे।
कहीं नहीं दादाजी। गोपाल ने कहा। तुम्हारा नाम क्या है बेटा। बूढ़े ने पूछा। मेरा नाम गोपाल है। गोपाल ने जबाब दिया। कहाँ रैहते हो। बूढ़े ने फिर पूछा। ऐसे ही इधर-उधर रैह लेता हूँ। सचाई छुपाते हुए गोपाल ने जबाब दिया। तुम्हारा कोई घर नहीं है बूढ़े ने फिर से एक प्रश्न दाग दिया। मैं अनाथ हूँ। गोपाल ने जबाब दिया।
वो बूढ़ा आदमी देखने में ही बेशर्म लग रहे थे। वो गोपाल के और करीब आकर बैठ गए। और उन्होंने अपना हाथ गोपाल के जांघ पर रख दिया। गोपाल एकदम से घबरा गया। डर गया। गोपाल ने वहाँ से उठकर जाने में ही अपना भलाई समझा। गोपाल वहाँ से उठकर आगे बढ़ गया। जाते-जाते रास्ते में उसे कुछ ख्याल आने लगा। वो सोचने लगा घर पर कितना सुरक्षित था मैं। अभी भूख से मेरा दम निकला जा रहा है और कोई पूछने वाला नहीं है। घर पर माँ हमेसा खाने को ही पूछती रैहती थी। सोचते-सोचते गोपाल का आंख भर गया। उसे अपने माता-पिता का उसे अपने घर का याद आने लगा। उसने घर लौटने का सोचा भी लेकिन लौटे भी तो कैसे पैसे तो है ही नहीं उसके पास। पंद्रह साल का बच्चा गोपाल दिल्ली की गलियों में भटक रहा है। उसने सोचा भी नहीं की उसके जाने के बाद उसके माँ बाप का क्या होगा। क्या बीतेगी उनपर। कैसे रैह पाएंगे वो अपने बेटे के बिना। अपने इकलौते बेटे को खो देने का दुःख क्या होता है यह अभी गोपाल के माँ बाप ही जानते है। गोपाल की माँ खाना पीना का ध्यान रखना भूल गई है। वो हमेसा अपने बेटे को ही याद करती रैहती है। धीरे-धीरे वो कमज़ोर होती जा रही है। दो दिनों से अन्न का एक दाना भी नही रखी है अपने मुंह में। थोड़े बहुत पानी पीकर अपने बेटे की राह देख रही है। और अपने आप को कोस रही है की काश फेल होने पर मैं उसे डाँती न होती। काश की उसके पिता उसे लाठी से मारे न होते। तो वो आज मेरे पास होता। आज वो ये कदम उठाया न होता। गोपाल की माँ का चिंता जाइज़ था। कभी-कभी माता पिता से भी गलती हो जाता है। जिससे बच्चे गलत कदम उठा लेते है। फेल होने के बाद मार-पीट करने के बजाए माता पिता अपने बच्चे को प्यार से समझाए तो शायद बच्चे गलत कदम न उठाएं। और वो समझ भी जाएंगे। अब तो मोहन भी थक चुका था गोपाल का राह ताकते-ताकते। वो अपने घर लौट जाने का तैयारी कर रहा था। वो अपने घर वापस पटना तो जा रहा था लेकिन अभी भी उसके दिल में गोपाल की यादें थी। वो चाहकर भी गोपाल को भूल नहीं पा रहा था। प्रेम जो करता था वो गोपाल से। मोहन अपने घर वापस पटना चला गया। वो अभी भी यही सोच रहा था की गोपाल कैसा होगा, किस हाल में होगा। वो जिंदा भी होगा या नहीं। कही वो मुझे भूल तो नहीं जाएगा। मोहन के मन में अनेकों सवाल था। और इन सवालों का कोई जवाब नहीं था उसके पास। मोहन करता भी तो क्या करता। गोपाल तो अपना सब कुछ छोड़कर जा चुका था। पटना अपने घर चले जाने के बाद मोहन भी पढ़ाई लिखाई में व्यस्त हो गया। वो कोसिश तो कर रहा था गोपाल को भूलने का लेकिन वो भूल नहीं पा रहा था। वो रोज़ स्कूल जाता पहले की ही तरह चार-चार ट्यूशन पढ़ता। अपने आप को व्यस्त रखने के लिए उसने वो अपना पुराना जीवन फिर से स्वीकार कर लिया था। अपने जीवन में पूरी तरह व्यस्त होने के वावजूद भी वो गोपाल को भूल नहीं पा रहा था। उसके दिल और दिमाग में बस गोपाल ही बस गया था।
मोहन का दोस्त प्रवीण अपनी बेइज़्ज़ती के बाद पटना शहर छोड़कर जा चुका था। प्रवीण अब अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली में रैह रहा था। प्रवीण अब खूब मन लगाकर पढ़ रहा था। वो खूब मेहनत कर रहा था। मोहन के दादाजी से उसे अपने अपमान का बदला लेना था। इसीलिए वो दिन दोगुना और रात चौगुना मेहनत कर रहा था। उसके दिमाग में एक ही बात घर करके बैठ गया था। की मुझे अमीर बनना है। कृतिका भी अब शायद मोहन को भूल चुकी थी। दिल्ली आ जाने के बाद शायद उसे मोहन का कोई कमी महसूस नहीं हो रहा था। कृतिका भी अपने जीवन में ख़ुश मस्त और व्यस्त थी। अपने दिल में मोहन के लिए एकतरफा प्यार को शायद वो भूल चुकी थी।
गोपाल के घर पर भी सब कुछ धीरे-धीरे सुधर रहा था। लेकिन माँ अभी भी घर के बाहर झरोखे में बैठती थी और गोपाल का इंतज़ार करती थी। हर रोज़ का यही कहानी था। और इधर गोपाल दिल्ली की सड़कों पर अपना जिंदगी तलाश रहा था। भूखा प्यास गोपाल चलते-चलते एक मंदिर के पास पहुँचता है। वहाँ काफी भीड़ था। लोगों को बुला-बुलाकर प्रसाद बांटा जा रहा था। एक आदमी ने गोपाल को भी वहाँ बुलाया और प्रसाद खिलाया। गोपाल भी भूखा था उसने पेट भर के प्रसाद खाया। प्रसाद खाने के बाद गोपाल को नींद आने लगा। वो वहीं मंदिर के बाहर बरामदे में सो गया। गोपाल ने रात भी वहीं उसी मंदिर में बिताया। जब सुबह हुई तो गोपाल वहाँ से चल दिया। गोपाल अब घर लौटना चाहता था। लेकिन घर लौटने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। गोपाल को किसी भी तरह पैसो का बंदोबस्त करना था। गोपाल अब अपने लिए काम की तलाश करने लगा। चलते-चलते भटकते-भटकते वो पहुँच गया शालीमार बाघ के सिंगलपुर गाँव में। ये जगह बड़ा ही अजीब था। यहाँ के लोग भी जगह की तरह अजीब थे। लेकिन सभी लोग दिलवाले थे। सिंगलपुर में अधिकतर बिहारी लोग बसते थे। यहाँ के लोग बहुत ज्यादा दयालु भी थे। यही गोपाल को एक जूस बेचने वाले भईया मिले। गोपाल ने अपनी तरफ से झूठी कहानी बनाई की मैं अनाथ हूँ मेरा कोई नहीं है। मैं काम की तलाश कर रहा हूँ मुझे काम पर रख लीजिए। गोपाल ने कहा। जूस वाले भईया बिहार के ही थे। उन्हें गोपाल पर दया आ गया। उन्होंने गोपाल को अपने साथ ही रख लिया। अच्छा ठीक है आज से तुम मेरे साथ रैहना और जूस का कारोबार करना। हल्का काम है तुम्हें कोई भीड़ भी नहीं पड़ेगा। जूस बाले ने कहा। क्या मैं अभी से ही काम कर सकता हूँ। गोपाल ने पूछा। नहीं अभी तुम डेरे(कमरा)पर चलो। काम तुम कल से करना। जूस वाला गोपाल को अपने डेरे पर ले गया। छोटी और सकड़ी गली में था उनका डेरा। एक बड़ा सा था घर जैसा था। और उसमें छः छोटा-छोटा कमरा था। जिसमें दोनों तरफ तीन-तीन था और बीच मे लंबा पतला सा बरामदा था। यहाँ छः लोगों के लिए एक ही बाथरूम था। गोपाल जैसे ही जूस वाले के साथ वहाँ पहुँचा एक अजीब सी दुर्गंध उसे महसूस हुआ। गंध ऐसा था जैसे नाक फट जाए। लेकिन गोपाल किसी भी तरह अपने नाक को इस दुर्गंध को सहने लायक बना लिया। जूस वाले ने गोपाल को कमरा दिखाया। और उसने गोपाल को डेरे पर ही आराम करने के लिए कहा। और वो किसी काम से बाहर चला गया। एक कोने में एक छोटे से कमरे में दिलीप जी रैहते थे। वो अपना घर परिवार चलाने के लिए छपरा से दिल्ली आकर मजदूरी कर रहे थे। उन्हीं के कमरे के बगल में पांडे जी का कमरा था। पांडे जी भी बिहार के लालगंज से आये थे। पांडे जी अपने पूरे परिवार के साथ यहाँ दिल्ली में रैह रहे थे। पांडे जी का एक लड़का भी था जिसका नाम दीपक था। ठीक पांडे जी के कमरे के बगल में एक और कमरा था जिसमें मुझफहरपुर से आई एक औरत रैहती थी। उस औरत को सब रेडियो बुलाते थे। क्योंकि दिन हो या रात कभी उसका मुंह बंद नहीं होता था। वो हमेसा बजते रैहती थी। बोलते रैहती थी। एक तरफ के कमरे में गोपाल और जूस वाला। और ठीक उसके बगल में नंदन जी का कमरा था। नंदन जी पांडे जी का ही रिश्तेदार थे। दोनों एक ही गाँव से थे। गोपाल को अभी सभी से परिचय होना बाकी था। गोपाल जूस वाले के साथ रैहने लगा। दोनों दिन भर घूम-घूमकर जूस बेचते थे। और अपना गुजर बसर करने लायक पैसा कमा लेते थे। गोपाल अपने पास एक भी पैसा नहीं रखता था। कुछ ही दिनों में दोनों एक दूसरे से घुल मिल गए। और बाकी लोगों से भी गोपाल का परिचय हो गया। सभी लोगों को गोपाल से अच्छी दोस्ती हो गई। पांडे जी के बेटे दीपक से भी गोपाल की अच्छी दोस्ती हो गई थी। एक दिन जूस वाले भैया न्यूज़ देख रहे थे तभी उनको गोपाल के बारे में सब कुछ पता चल गया। उस समय उनके साथ गोपाल भी था। गोपाल का नज़र शर्म से निचे झुक गया था। अब वो जूस वाले के सामने कुछ बोलने लायक नहीं बचा था। जूस वाले ने भी गोपाल पर गुस्सा नहीं किया और उसे प्यार से समझाया।
जा ए करेजा ई का कईल तू घर छोड़ के भागल बारअ अब त लोग भगोड़ा कहिहें तोहके। जा एतना समझदार होके भी काहे अइसन गलती कर देलअ। दिलीप जी बोले।
गोपाल माता पिता डांटे या गुस्सा करें इसका मतलब यह तो नहीं की तुम घर छोड़कर भाग जाओ। उनपर क्या बीत रहा होगा तुमको पता भी है। और मेरा बेटा क्या सीखेगा तुम्हें देखकर। तुमसे यह उम्मीद नहीं था गोपाल। पांडे जी बोले। जाओ गोपाल घर से भाग आया कोई बात नहीं लेकिन तुम झूठ भी बोले कितने गलत हो तुम। अब जो हो गया वो सब छोड़ो और घर पर फ़ोन करके बता दो की तुम सुरक्षित हो कम से कम तुम्हारे माता पिता को तसल्ली तो हो जाएगा। नंदन जी बोले।
गोपाल का सर अब भी शर्म से नीचे झुक हुआ था। उसके आंखों में पश्चाताप के आंसू थे। अरे कोई बात नहीं गोपाल तुम्हें अभी घर नहीं जाना है मत जाना तुम्हारा जब मर्ज़ी करें तभी जाना पर अभी घर पर बता दो की तुम सही सलामत हो। दिलीप जी समझाते हुए बोले। जूस वाले ने भी गोपाल को समझाया। तुम मुझे अगर सच बताते तो क्या मैं तुम्हें अपने पास नहीं रखता। होता है गोपाल अधिकतर बच्चों के साथ ऐसा होता है। कुछ तो आत्महत्या तक कर लेते है। तुम तो बहुत बुद्धिमान और बहादुर बच्चे हो जो आत्महत्या का नहीं सोंचा। लेकिन इतना समझदार होने के वावजूद भी तुमने अपना घर छोड़कर भागने का वेवकूफी कर दिया। और भाग कर आने के बाद भी तुम झूठ बोलते रहे। भईया मैं डर गया था मुझे लगा कहीं मुझे कुछ हो न जाये। रोते-रोते गोपाल बोला। कोई बात नहीं मैं तुम्हारे घरवालों को फोन करके सब कुछ बता देता हूँ। कोई बात नहीं तुमको घर जाने का मन नहीं है मत जाना। तुम जब तक चाहो मेरे साथ रैह सकते हो। जूस वाले ने कहा।
गोपाल ने हाँ में सिर हिलाया। जूस वाले ने गोपाल के घर फ़ोन करके सब कुछ बता दिया। जैसे ही जूस वाले ने फ़ोन पर गोपाल के बाड़े में कहा गोपाल की माँ फ़ोन पर ही फफककर रो पड़ी। जूस वाले ने गोपाल की माँ को समझाया और सांत्वना दिया। फिर गोपाल ने अपनी माँ से बात किया। माँ ने गोपाल को प्यार से समझाया और लौट जाने को कहा। गोपाल ने भी अपनी माँ को समझाया और दो तीन महीने में लौटने का वादा किया। अब गोपाल का भी परेशानी दूर हो गया था। और घर पर भी सब एक प्रकार से चिंता मुक्त हो गए थे। घर पे तो बस गोपाल के लौटने का इंतज़ार हो रहा था।
इधर मोहन को लग रहा था की गोपाल कभी नहीं लौटेगा। वो सोच रहा था की शायद उसने गोपाल को खो दिया है। अब उसे अपने नानी के घर से नफरत होने लगा था। चिढ़ होने लगा था। कोई उसे नानी के घर जाने को कैहता तो वो कुढ़ जाता था। वो अपने आप को व्यस्त रखकर गोपाल को भूलने का कोशिश कर रहा था। लेकिन गोपाल से उसे इतना लगाव था की चाहकर भी वो उसे भूल नहीं पा रहा था। भूले भी कैसे प्रेम जो करता था वो गोपाल से।
गोपाल भी खुशी-खुशी दिल्ली में रह रहा था। वो रोज की तरह दिन भर जूस बेचता था। और शाम को पांडे जी का लड़का दीपक के साथ पार्क में घूमने जाता था। दीपक से गोपाल की अच्छी दोस्ती थी। गोपाल प्रतिदिन घर पर फ़ोन करके अपने माँ से बात करता था। उसके जिंदगी का यही कहानी था। एक दिन गोपाल पार्क में अपने घर फ़ोन करके अपनी माँ से बातें कर रहा था। और दो बच्चे गोपाल के पास खड़ा होकर गोपाल की बातें सुन रहे थे। और दोनों गोपाल की बातों पर हँस रहे थे। दरअसल गोपाल का बिहारी भाषा उनदोनों के समझ में नहीं आ रहा था। इसीलिए वो दोनों गोपाल पर हँस रहे थे। गोपाल यह सब देख रहा था। जब गोपाल से रहा न गया तब गोपाल ने उन दोनों से पूछ दिया। का बात है हमार बुथी अइसे काहे निहार रहे हो। और ये दाँत फार-फार कर काहे हँस रहे हो। गोपाल ने कहा। आप क्या बोल रहे हो,क्या बाते कर रहे हो समझ में नहीं आ रहा। एक बच्चे ने कहा। अच्छा ई बात है। उ हम अपने घर पर बात कर रहे थे। हमरी माँ हिंदी नहीं समझती बिहारी भाषा में बात कर रहे थे। गोपाल ने कहा। गोपाल भी फ़ोन पर बात कर चुका था और वो दोनों बच्चे भी गोपाल के पास आकर बैठ गए थे। तीनों आपस मे बाते करने लगे। उस समय दीपक भी गोपाल के साथ ही था। आपका नाम क्या है। एक बच्चे ने पूछा। मेरा नाम गोपाल है और तुम्हारा। गोपाल ने जबाब के साथ ही अपना सवाल पूछा। मेरा नाम यश है। मैं भी बिहारी हूँ। बच्चे ने कहा। अच्छा बिहार में कहा से हो तुम। गोपाल ने फिर से सवाल किया। सहरसा जिला से यश ने कहा। कइसन आदमी हो तुम बिहार का होकर बिहारी भाषा नहीं जानते हो। गोपाल ने कहा। ऐसा नहीं है मैं थोड़ा बहुत समझ जाता हूँ। लेकिन हमारे यहाँ मैथिली बोला जाता है। और आप कोई और भाषा बोल रहे है। इसीलिए समझ नहीं पा रहे है। मैथिली भी मैं बहुत कम ही जनता हूँ। बचपन से ही शहर में रहता हूँ बस इसीलिए। यश ने एक साथ अपना सारा जवाब दिया। अच्छा ठीक है मेरे साथ कुछ वक्त बिताओगे तो सिख जाओगे। मैं सीखा दूँगा मुझे मैथिली बोलने आता है। गोपाल ने कहा। अच्छा आप यहाँ कमाने आए हो। यश ने संदेह से पूछा। नहीं मैं यहाँ घूमने आया हूँ। गोपाल ने कहा। ये क्या बताएंगे यश जी झूठ बोल रहे है ये। न तो ये यहाँ कमाने आए है और न ही घूमने। ये तो अपने घर से भागकर आये है। भगोड़े है ये। दीपक ने बीच में ही कहा। दीपक की बातों से गोपाल को बहुत गुस्सा आ रहा था। लेकिन गोपाल ने गुस्से को दबाते हुए दीपक को समझने का प्रयत्न किया। हाँ तो पूरा दिल्ली बालों को बताने का क्या जरूरत है। आप जानते है की हम भागकर आये है। तो बात को तुम खुद तक सीमित रखो न। वैसे भी कुछ दिनों की ही बात है। मैं घर लौट जाऊंगा। गोपाल ने समझाते हुए कहा। दीपक समझ गया था की उसकी बातों से गोपाल कुढ़ गया है। यश भी लगातार गोपाल के चेहरे को देख रहा था। थोड़ी देर तक सब चुप थे। गोपाल ये तो कड़वा सच है जो तुम्हें स्वीकार करना पड़ेगा। बहुत से लोग तुम्हें भगोड़ा कहेंगे। गांव में भी लोग तुम्हारा मज़ाक उड़ाएँगे और तुम उनको कोई जवाब नहीं दे पाओगे। तुम्हें ऐसे चिढ़ना नहीं चाहिए। मैंने तुम्हें अगर भगोड़ा कैहकर अपमानित किया है। तो मैं तुमसे हाथ जोड़कर क्षमा मांगता हूँ। उदारता के साथ दीपक बोला। ठीक है। दीपक कोई बात नहीं। अपने गुस्से को सांत करते हुए गोपाल ने कहा। कोई बात नहीं कभी कभी समझदार बेक्ति भी गलती कर देता है। और सुबह का भुला अगर शाम को घर लौट आये तो उसे भुला नहीं कैहते। यश ने कहा। गोपाल ने दूसरे बच्चे के बारे में यश से पूछा। यश ने उस बच्चे के बारे में गोपाल को बताया। दूसरा बच्चा भूटान का था। तीनों साथ में बातें किये खेले समय बिताए और फिर अपने-अपने ठिकाने चल दिए। हर बार की तरह गोपाल अगले दिन भी पार्क में पहुँचा। आज गोपाल को दोनों में से सिर्फ एक ही बच्चा दिखा। दूसरा बच्चा अपने शहर भूटान को चला गया था। यहाँ सिर्फ यश ही था। यश और गोपाल बैठकर आपस में बाते करने लगे। दोनों साथ-साथ रैहने लगे। खेलने और समय बिताने लगे। देखते ही देखते दोनों में अच्छा दोस्ती हो गया। दोनों एक दूसरे को सगे भाई से भी ज्यादा प्यारे हो गए। दोनों एक दूसरे को अपना भाई समझते थे। बहुत गैहरी दोस्ती थी दोनों में। दोनों अगर एक दिन भी एक दूसरे से नहीं मिलते तो उदास हो जाते थे। दोनों एक साथ ही खेलते लड़ते झगड़ते थे। यश प्यार से गोपाल को जयसूर्या पुकारने लगा था। गोपाल का भी यश सबसे अच्छा दोस्त था। यश को गोपाल दीपक से भी अच्छा दोस्त मानता था। हालांकि हर वक़्त दीपक ही गोपाल के साथ रैहता था। फिर भी गोपाल के लिए यश ही अच्छा था। दोनों की दोस्ती ऐसी थी की अगर चोट यश को लगे तो दर्द गोपाल को होता था। दोनों एक दूसरे को अपने दोस्त के रूप में पाकर बहुत खुश थे। लेकिन दोनों की दोस्ती को शायद किसी की नज़र लग गई। यश की माँ नहीं चाहती थी कि यश गोपाल के साथ रहे। क्योंकि गोपाल उनके लिए अजनबी था। और यश उनका इकलौता बेटा था। तो शायद वो डरती थी। उन्होंने यश को गोपाल के साथ रैहने से मना कर दिया। अगले दिन यश ने गोपाल को ये सारी बाते बताई तो गोपाल को बहुत दुःख हुआ। गोपाल अंदर ही अंदर रो पड़ा। लेकिन उसने यश से आंसू छुपा लिया। यश भी समझ रहा था की उस समय गोपाल पर क्या बीत रहा था। उस दिन तो यही सब बातों में दोनों उलझकर रैह गए। लेकिन अगले दिन जो हुआ वो वाकई दोस्ती का मिसाल बनेगा। अगले दिन गोपाल शराब पी कर आ गया। वो पार्क के एक किनारे में एक सीमेंट का बना हुआ बेंच पर जाकर बैठ गया। गोपाल के मुहँ से शराब का बदबू आ रहा था। जब यश को पता चला कि गोपाल ने शराब पी है तब वो हक्का-बक्का रैह गया। उसने गोपाल से पूछा तुमने सराब पी है। हाँ मैंने पी है। मैंने शराब पी है। गोपाल ने जिद्दी होते हुए कहा। पहले से ही पीते हो या आज ही। यश ने आश्चर्य से पूछा। नहीं आज पैहला दिन है। आज मैंने पैहली बार शराब पी है। गंभीर होते हुए गोपाल ने जवाब दिया। लेकिन तुमने शराब पिया ही क्यों है। यश ने गुस्से से पूछा। सुना है शराब पीने के बाद इंसान के मुँह से झूठ नहीं निकलता। वो सच बोलता है। आज मुझे भी सच बोलना है। कैहते हुए गोपाल के आंख छलक पड़े। अच्छा! वो तो तुम बिना पिये भी बोल सकते थे। सच क्या है तुम्हारी गर्लफ्रैंड ने धोखा दे दिया तुम्हें। यश ने व्यंग कसते हुए कहा। नहीं वो बात नहीं है। गोपाल ने धीमा स्वर में कहा। तो फिर बात क्या है बताओ मुझे। यश ने आश्चर्य से पूछा। तुमसे दूर होना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। मैं तुमसे दूर नहीं होना चाहता। लेकिन क्या करूँ मैं मजबूर हूँ। तुम मेरे सबसे प्यारे और सबसे अच्छे दोस्त हो। ज्यादा वक्त दीपक मेरे साथ रैहता है पर मैं उसे महत्व नहीं देता। मेरे लिए तुम बेस्ट हो। मेरे लिए तुम्हारा महत्व है। मैं तुम्हें अपना भाई जैसा मानता हूँ। कल मैं अपने गांव जा रहा हूँ। मैं तुमसे बिछड़ जाऊँगा। यह मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता। मैं जानता हूँ पंद्रह साल के उम्र में शराब पीना सही नहीं है। लेकिन मैं क्या करूँ मैं तुम्हें भूलने का कोसिस कर रहा हूँ। पर सच तो यही है की मैं तुम्हें कभी भूल नहीं पाऊंगा।
इतना सुनने के बाद यश गोपाल के गले से लिपट गया। और रोने लगा। यश ने रोते-रोते गोपाल से कहा। मेरे बहुत से दोस्त है। बहुत से दोस्त मेरे साथ रैहते है। मेरा मान आदर भी करते है। पर वो तुम्हारी तरह नहीं सोचते है। तुमने मेरे लिए शराब पी लिया। मुझे भूलने के लिए शराब पी लिया। दोस्त सच में तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो। सच्चा मित्र के बारे में अब तक सिर्फ कहानियों में पढ़ा था। और आज जीता जागता साबुत मेरे आंखों के सामने है। सच में तुम्हारी दोस्ती तारीफ ए काबिल है। तुम्हारे अलावा मेरा सच्चा दोस्त कोई हो ही नहीं सकता। तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। तुम सच में बहुत महान हो। नशे में धुत्त गोपाल बस यश को सुनता जा रहा था। दोनों में एक दूसरे के प्रति इतना लगाव था की दोनों के आँसू रोके नहीं रुक रहे थे। फिर भी दोनों अपने आप को संभाले हुए दोस्ती की असीम दुनिया में खोए हुए थे। देखने से प्रतीत होता था की वर्षों से बिछड़े कृष्ण और सुदामा का मिलन हो रहा हो। जयसूर्या शराब पीना गलत बात है दोस्त। तुम्हें क्या लगता है सिर्फ तुम ही मुझे प्यार करते हो सिर्फ तुम ही मुझे अच्छा और सच्चा दोस्त मानते हो। तुम भी मेरे लिए सच्चा और अच्छा दोस्त हो। मैं भी तुम्हें प्यार करता हूँ। मैं भी तुमसे बिछड़ना नहीं चाहता। मुझे छोड़कर मत जाओ। अपना फैसला बदल दो। मत जाओ मुझसे दोस्ती तोड़कर। रोते-रोते यश ने कहा। माफ कर दो मुझे। मुझे जाना पड़ेगा। मैं मजबूर हूँ। तीन महीने के अंदर ही माँ को घर लौटने का वादा किया था। और तुम्हारे साथ मैं इतना घुल मिल गया की आठ महीना कब बीत गया पता ही नहीं चला। गोपाल ने धीमी आवाज़ में अपने आप को और यश को संभालते हुए कहा। ठीक है तुम्हें जाना है तुम्हारी मर्ज़ी। मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी। कभी मौका मिले तो वापस दिल्ली जरूर आना। अब घर चलो 9 बज गया है। पार्क बंद होने बाला है। प्यार से यश ने कहा। चलो चलते है। तुम मेरा ध्यान रखना। मैं नशे में हूँ कहीं कुछ हो न जाए। गोपाल ने लड़खड़ाते हुए कहा। दोनों पार्क से अपने-अपने ठिकाने की ओर चल देते है। गोपाल उस दिन बहुत ज्यादा नशे में था। वो यश के साथ चल तो रहा था। पर वो कदम कहीं और रखता था और जाता कहीं और था। अपने-अपने ठिकाने पहुँचने के लिए उन्हें दिल्ली का टु लाइन एन एच भी पार करना था। दोनों सड़क के पास पहुँच गए थे। सड़क पर गाड़ियां अपनी रफ्तार में लगातार दौड़ रही थी। बहुत ही व्यस्त सड़क था। इस सड़क को काफी सोंच समझकर पार करना पड़ता था। लेकिन गोपाल को इस सबसे क्या। गोपाल तो नशे में धुत बस चलता जा रहा था। उस दिन यश न होता तो शायद गोपाल न होता। यश ने ही हाथ पकड़कर गोपाल को सड़क पार कराया। ये सब देखकर गोपाल के दिल में यश के लिए प्यार और बढ़ गया। गोपाल ने यश से वादा किया की वो आज के बाद शराब को कभी हाथ नहीं लगाएगा। एक बार फिर दोनों एक दूसरे के गले से लिपट गए। दोनों अपने-अपने ठिकाने को चले गए। गोपाल नशे में धुत सीधा जाकर सो गया। जूस वाले भईया समझ चुके थे की गोपाल ने पी रखी है। उस समय गोपाल को टोकना उन्होंने ठीक नहीं समझा। उन्होंने सोचीं की कल सुबह ही इसका खबर लेंगे। वो भी बिना खाना खाएं ही सो गए। वो गोपाल को अपने छोटे भाई से भी बढ़कर समझते थे। और छोटा भाई भूखे सो जाए तो बड़े भाई को निवाला कंठ से नीचे क्या जाए। दोनों ही रात का खाना बिना खाए ही सो गए थे।
सुबह में जब गोपाल की आंखें खुली। गोपाल अपने बिस्तर पर ही बैठा था तभी जूस वाले भईया आकर गोपाल के पास बैठ गए। उन्होंने गोपाल के हाथ में टिकट दिया। और गोपाल के सर पर हाथ रखकर गोपाल के बालों को सहलाने लगे। इसी बीच दीपक, पांडे जी, नंदन और दिलीप जी भी गोपाल के कमरे में आ गए। मैं जानता हूँ तुम गांव लौटना नहीं चाहते। हमें छोड़कर जाने का तुम्हें दुःख है। लेकिन जाना तो तुम्हें है ही। जूस वाले भईया ने कहा। आपलोगों की बहुत याद आएगी मुझे। गोपाल ने कहा। तुम्हारे जाने का हमलोगों को भी दुःख होगा। हमलोगों को भी तुम बहुत याद आओगे गोपाल। अभी भी वक़्त है पढ़ाई कर लेना। मैं चाहता हूँ की जब तुम अगली बार हमसे मिलो तुम्हारा रुतबा कुछ और हो। पांडे जी ने कहा। मैं जानता हूँ गोपाल तुम मेरे अपने नहीं हो लेकिन तुम्हारे साथ इतना दिन रैहने के बाद तुम मुझे अपने जैसे लगने लगे हो। जूस बाले भईया ने कहा। कभी तुम्हारा मन हो दिल्ली आने का तो जरूर आना। नंदन ने कहा। मैं तुम्हें कभी भूल नहीं पाऊँगा गोपाल मैं तुम्हें अच्छा दोस्त मानता हूँ तुम मुझसे मिलने आते रैहना। दीपक ने कहा। मैं जरूर आऊंगा दीपक। गोपाल ने जबाब दिया। हम सब तुम्हें याद करेंगे फ़ोन पर बाते करते रैहना। सब एक साथ बोले। गोपाल को सबने प्यार से समझाया की शराब पीना गलत बात है। गोपाल ने भी सभी लोगों से वादा किया की वो फिर कभी शराब को हाथ नहीं लगाएगा। सारी तैयारी करने के बाद गोपाल गांव लौटने के लिए तैयार था। भईया गोपाल को स्टेशन तक छोड़ने आए। भईया ने जरूरत के हिसाब से गोपाल को कुछ पैसे भी दिए। और उन्होंने गोपाल को हिम्मत भी दिया। की जब तुम गांव से अकेले दिल्ली आ सकते हो तो यहाँ से अकेले गांव क्यों नहीं जा सकते। अपने दिल में भईया का दिया हिम्मत और अपने दोस्तों से बिछड़ जाने का गम लिए गोपाल ट्रैन में बैठ गया था। और ट्रेन भी धीरे-धीरे रवाना होने लगी। टिकट कंफर्म नहीं था जिसके वजह से गोपाल को काफी जद्दोजहद करना पर रहा था। लेकिन गोपाल को इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। क्योंकि घर से भागकर इसी तरह से वो दिल्ली पहुँचा था। एक गेट के पास खड़ा गोपाल काफी गहराई से सोच विचार कर रहा था। उसके दिमाग में अभी भी यश का ही ख्याल घूम रहा था। और रह-रह कर भईया का भी उसे याद आ रहा था। और साथ में ही गांव पहुँचने का एक लालसा लिए गोपाल लौट रहा था। घर पर सब खुश थे। गोपाल की माँ भी बहुत खुश थी। दीपक बाबू भी थोड़े बहुत खुश थे। पूरे गांव में चर्चाएँ हो रही थी की भागा हुआ गोपाल वापस आ रहा है। लोग तो बात का बतंगर बनाते ही है। थोड़ा में बहुत जोड़कर एक नया कहानी बना देना लोगों की पुरानी आदत है। गोपाल पर भी अलग-अलग कथाएं बनाई जा रही थी। कुछ लोग गोपाल को सही बता रहे थे तो कुछ लोग गलत। एक तरीके से गोपाल गलत भी था। गोपाल के लौटने का खबर मोहन के नानी के द्वारा मोहन तक भी पहुँच गया। बस क्या था। मोहन भी अपने दिल में गोपाल से मिलने का अरमान लिए आ रहा था अपने नानी के घर।
गांव पहुँचकर गोपाल को एक नया अनोखा और अजीबोगरीब नाम मिलने वाला था। “भगोड़ा”। इस बात से अनजान गोपाल बिल्कुल ही बेपरवाह बेखबर मस्ती में सफर कर रहा था। उसे नहीं पता था की गांव जाकर उसे जो सुनने को मिलेगा वो एक बार फिर उसके दिल को झकझोरकर रख देगा। सफर के दौरान गोपाल की मुलाकात होती है एक अजीबोगरीब इंसान से। मुंह में पान भरे हुए बड़े-बड़े बाल और नाखून। देखने में बिल्कुल पागल सा ही प्रतीत होता था। एक तरह से वो शख्स पागल ही था। ट्रैन में बैठकर ट्रैन ड्राइविंग गेम खेलना उसके दिल को इतना सुकून देता था की क्या कहें। उसका हरकत भी पागल जैसा ही था। गोपाल काफी देर से उसी इंसान को देखे जा रहा था। जब गोपाल से रहा न गया तब गोपाल ने उसे टोका। दोनों में काफी देर तक बाते हुई। उस इंसान ने गोपाल को बैठने के लिए सीट भी दिया। और अपना दर्द भरा दस्ता भी सुनाया। वो देखने में जरूर पागल जैसा था पर वो पागल नहीं था। वो तो वक़्त और हालात का मारा था। ट्रैन ड्राइवर बनना उसका सपना था लेकिन उसका वो सपना टूट चुका था। जिसकी वजह से उसकी कुछ हरकतें पागलों जैसी थी। पर वो इंसान बड़ा ही सीधा सादा और नेक दिल था। उसी इंसान के साथ हँसते बोलते गोपाल का सफर कटा। गोपाल अब घर पहुँच चुका था। गोपाल के घर पर लोगों की भीड़ लग गई थी। सब गोपाल को देखने आए थे। अनेकों प्रकार के लोग थे। और अनेकों प्रकार के बाते बोल रहे थे। कोई कैह रहा था देर आया दुरुस्त आया। तो कोई कैहता गोपाल क्या लेकर आया। कोई कैहता भागा हुआ गोपाल लौट आया। तो कोई पूछता गोपाल परदेश का सफर कैसा रहा। तो कुछ लोग गोपाल को भगोड़ा कैहकर चिढ़ा रहे थे। कुछ भी हो पर इस दिन गोपाल की माँ बहुत खुश थी। उनका बेटा जो लौट आया था। जूस वाले भईया का भी जमकर तारीफ हो रहा था। उन्हें धन्यवाद दिया जा रहा था। लोग कैह रहे थे अगर वो न होता तो गोपाल का क्या होता। उस समय का माहौल ऐसा था की गोपाल के माता पिता जूस वाले को फ़ोन करके धन्यवाद देना भूल गए। और गोपाल को भी याद न रहा। गोपाल तो अपना नया और अजीबोगरीब नाम सुनकर हैरान था। इससे पहले उसे सिर्फ दीपक ने भगोड़ा कहा था। आज गांव वाले कैह रहे थे। गोपाल के दिमाग में अचानक दीपक द्वारा बोला गया एक-एक सब्द घूमने लगा। गोपाल ज़ोर से चिल्लाया मुझे अकेला छोड़ दो। एकाएक सन्नाटा पसर गया। सब के सब चुप हो गए। कोई कुछ बोल नहीं रह था। गोपाल कमरे में चला गया। इतने में ही मोहन आ गया गोपाल से मिलने। गोपाल को लौट आया देख मोहन बहुत खुश था। वो गोपाल के पास जाकर बैठ गया। और गोपाल से कुछ बाते करने लगा। मोहन ने गोपाल से घर छोड़कर जाने का कारण पूछा तो गोपाल ने उसे सारा कहानी बताया की कैसे वो फेल होने के बाद मरने जा रहा था। लेकिन उसने किसी के लिए अपना फैसला बदल लिया और आत्महत्या न करके घर छोड़कर भाग गया। गोपाल ने मोहन से कहा तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। हमारे बीच रिश्ता दोस्ती का नहीं है। मैं प्रेम करता हूँ तुमसे। हमारे इस रिश्ते को दोस्ती का नाम मत दो। मोहन ने गोपाल से कहा। मोहन की बात सुनकर गोपाल थोड़ी देर चुप रह गया। वो समझ ही नहीं पा रहा था की मोहन को उससे किस तरह का प्रेम चाहिए। गोपाल भी मोहन से प्रेम करता था लेकिन उस तरीके का नहीं जैसा मोहन चाहता था। और ये रिश्ता दोस्ती का भी हो सकता है। गोपाल अपने बारे में जनता था की वो समलैंगिक(गे) है। लेकिन वो ये नहीं जानता था की मोहन भी बिल्कुल उसकी तरह ही है। इसीलिए गोपाल हमेसा से अपने प्रेम को छुपाता रहा। आखिर कब तक गोपाल छुपाता। घुमा फिराकर उसने मोहन से पूछ ही दिया।
हमारे इस रिश्ते को दोस्ती का नाम मत दो। अरे मतलब क्या है तुम्हारा। कैहना क्या चाहते हो तुम। गोपाल ने पूछा। तुम यही समझते हो की मैं तुमसे प्रेम करता हूँ तो हमारा रिश्ता दोस्ती का है। नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैं तुम्हें किसी और रूप में चाहता हूँ। मैं तुम्हें किसी और रूप में प्रेम करता हूँ। दोस्ती से हटकर भी कुछ रिश्ते होते है। मैं तुम्हें उस तरह का प्रेम नहीं करता जिस तरह का तुम मुझे करते हो। मोहन ने कहा। क्या मतलब अब कौन सा प्रेम होता है दो लड़कों के बीच। कौन सा प्रेम करते हो तुम मुझसे। गोपाल ने पूछा। उस तरीके का प्रेम जो एक लड़की एक लड़के के साथ करती है। मोहन ने जबाब दिया। पर तुम तो लड़की नहीं हो तो उस तरीके का प्रेम कैसे। गोपाल ने फिर पूछा। मैं जानता हूँ मैं लड़की नहीं हूँ। पर मैं जो हूँ वो शायद तुम कभी नहीं समझोगे। मोहन ने जबाब दिया। क्या मतलब गोपाल ने आश्चर्य से पूछा। मैं समलैंगिक(गे) हुँ। मोहन ने कहा। ये क्या होता है क्या मतलब होता है इसका। गोपाल ने पूछा। मतलब तुम इतनी आसानी से नहीं समझोगे। समलैंगिक होने का मतलब यह होता है की मैं वो नहीं हूँ जो तुम देख रहे हो। मैं कुछ और हूँ। मोहन ने कहा। तुम्हारे कैहने का मतलब। गोपाल ने पूछा। कैहने का मतलब यह है की मैं लड़का होते हुए भी लड़की हूँ। मेरी भावनाएं लड़कियों जैसी है। मैं ऐसा क्यों हूँ मैं नहीं जानता। मेरी सोंच मेरी भावनाएं मेरा शौक लड़कियों वाली क्यों है मैं नहीं जानता। मैं बस इतना जनता हूँ की मैं समलैंगिक हूँ। और मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। मैं जानता हूँ ये सब जानने के बाद तुम मुझे पागल समझोगे। हो सकता है तुम मुझसे प्रेम नहीं करोगे। दूर हो जाओगे तुम मुझसे। क्योंकि तुम मेरी तरह समलैंगिक नहीं हो। हाँ अब तुम सच जान गए हो तो शायद मेरा प्रेम हार जाएगा। लेकिन मेरे हारने का अंदाज़ कुछ ऐसा होगा की तुम जीतकर भी पछताओगे। मोहन ने मतलब समझते हुए कहा। ये समलैंगिक जो होता है वो नपुसंक होता है क्या? गोपाल ने पूछा। मुझे पता था अब तुम भी यही कहोगे। मेरी तरह जो होते है उसका कितना मज़ाक बनता है तुम क्या जानो। न जाने क्या-क्या सब्द सुनने पड़ते है। अजीबोगरीब और नए-नए नाम दिए जाते है। जब मेरे पापा को पता चला की मैं समलैंगिक हूँ तो उनसे भी मुझे बहुत ताने सुनने पड़े। कभी छक्का कभी हिजड़ा। नचनियां, मीठा और भी बहुत कुछ। कभी-कभी तो वो मुझको ये कैहकर मज़ाक उड़ाते थे की बेटा तू प्रेग्नेंट तो नहीं है। कभी-कभी यहाँ तक कैहते थे की मैं तो सोंचता था मेरा बेटा बहु लाएगा। लेकिन नहीं ये तो घरजमाई लाएगा। यह सब सुनकर मेरा दिल दुखता था। काफी तक़लीफ होती थी मुझे। लेकिन मैं सब कुछ सैहता रहा बस तुम्हारे लिए। और हाँ ये जरूरी नहीं की मैं समलैंगिक हूँ तो मैं नामर्द हूँ। मैं नामर्द बिल्कुल भी नहीं हूँ। मैं औरो की तरह ही सामान्य हूँ। मोहन ने अच्छे से समझाते हुए कहा। लेकिन मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ। मैं तुम्हारे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकता। तुम्हें कोई तुम्हारी ही तरह का लड़का ढूंढ लेना चाहिए। जो तुमसे प्रेम करेगा। तुम्हारी हर ईक्षा को पूरा करेगा। मैं माफी चाहता हूँ मैं तुम्हें वो खुशी नहीं दे सकता जिसकी तुम मुझसे उम्मीद रखते हो। गोपाल ने मोहन को समझाया। नहीं मैंने सिर्फ तुमसे प्रेम किया है। तुम्हारे अलावा मेरे जहन में मेरे दिल में कोई नहीं आएगा। मैं तुम्हें पाने के लिए कोई भी हद से गुजर जाऊंगा। मैं कुछ भी कर सकता हूँ तुम्हारे लिए। तुम सिर्फ मेरे हो सिर्फ मेरे। मोहन ने कहा। तुम नादान हो अब तक जो तुमने मेरे साथ किया वो तुम्हारी नादानी थी। मज़ाक था। तुम्हें सब कुछ भूल जाना होगा। मैं चाहकर भी तुम्हारी ईक्षा पूर्ण नहीं कर सकता। मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ। और मैं तुमसे बड़ा भी हूँ। गोपाल ने समझाया। मैं जानता हूँ तुम मुझसे दो साल बड़े हो। मैं यह भी जनता हूँ तुम मेरी तरह समलैंगिक नहीं हो। तुम मेरी ईक्षा पूर्ण करो या न करो। तुम मुझसे प्रेम करो या न करो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं तो बस इतना जनता हूँ की मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। और करता रहूंगा। मोहन ने कहा। अपनी गलती स्वीकारने का हौसला रखो। एकतरफा प्रेम है तुम्हारा एकतरफा रखो। गोपाल ने कहा।
सफर से आने के बाद गोपाल काफी थका हुआ था। वो अपने बिस्तर पर लेट गया। मोहन भी उसके कंधे पर सिर रखकर उसके साथ ही लेट गया। मोहन की यही कोशिश थी की गोपाल अपने सारे मर्यादाओं को अपने सारे सीमाओं को लांघ दे। लेकिन गोपाल ने ऐसा नहीं किया। गोपाल का प्रेम सच्चा और पवित्र था। वो शारीरिक संबंध के लिए प्रेम नहीं करता था मोहन से। थका हारा गोपाल जल्द ही नींद के आगोश में चला गया। शाम को जब गोपाल की नींद खुली तो मोहन उसके साथ ही था। मोहन की तरह गोपाल भी मोहन से प्रेम करता था। लेकिन गोपाल अपने प्रेम को मोहन से छुपा रहा था। और जमाने से भी। शाम को सोकर उठने के बाद गोपाल नहाया नाश्ता किया और अपने गांव में घूमने गया। उसके कुछ दोस्त उसे देखकर एकदम चुप थे। तो कुछ उसका मजाक उड़ा रहे थे। कोई कैह राह था देख भगोड़ा आ गया। तो कोई कैह रहा था क्या बात है किताबी कीड़ा अब किताबें नहीं पढ़ता है। किताबों की बात सुनकर गोपाल को अपने लक्ष्य के बारे में ख्याल आया। लेकिन अब वो किताब नहीं पढ़ता था। और न ही पढ़ना चाहता था। लेखक बनने का सपना धीरे-धीरे उसके सीने में दफन होता जा रहा था। शाम के समय में मोहन अपने नानी के घर जा चुका था। दोनों घर आस-पास में ही थे। एक दूसरे से मिलने के लिए दो घरों का फासला तय करना पड़ता था। गोपाल भी अपने गांव में घुमा। कई दोस्तों से मिला और कई लोगों से मिला। बहुत से लोगों ने गोपाल को अच्छी सीख भी दी। तो कइयों ने मज़ाक भी उड़ाया। रात को गोपाल घर लौटा खाना खाया और सो गया। सुबह जब गोपाल अपने बिस्तर पर ही था तभी उसके कानों में एक आवाज़ सुनाई दिया। वेक अप, वेक अप। वो आवाज़ मोहन का था मोहन गोपाल को जगा रहा था। गोपाल ने जब अपना आंख खोला तो वो अपने सामने मोहन को पाया। गोपाल को डायरी लिखने का शौक था। वो हर रात सोने से पहले डायरी लिखता था। गोपाल के सिरहाने डायरी और कलम यूं ही पड़ा हुआ था। मोहन ने गोपाल से पूछा क्या मैं इसे पढ़ सकता हूँ। गोपाल ने ह में सिर हिलाया। मोहन गोपाल का डायरी पढ़ रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे डायरी में लिखा एक-एक घटना उसके सामने घटित हो रहा है।
मैं गोपाल हूँ। मुझे लोगों से मिलकर रैहना और दोस्तों के साथ खेलना अच्छा लगता है। मेरे पापा किसान है वो काफी गरीब है। लेकिन किसी भी तरह से वो मेरे पढ़ाई का खर्चा निकालकर मुझे पढ़ा रहे है। मेरे पापा औरो के पापा की तरह अच्छे तो नहीं है पर बुरे भी नहीं है। वो काफी मेहनती है। मुझे कहानियों में विशेष रुचि है। कहानी पढ़ना मुझे अच्छा लगता है। मैं बड़ा होकर लेखक बनना चाहता हूँ। लेकिन मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है की मैं लेखक बन सकूँ। मैं हमेसा कुछ न कुछ कोई न कोई कहानी का किताब पढ़ता रैहता हूँ। मुझे पढ़ते देखकर मेरे पापा बहुत खुश होते है। वो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं है इसीलिए वो समझ नहीं पाते है की मैं क्या पढ़ रहा हूँ। लेकिन जब उन्हें पता चलता है की मैं कहानी पढ़ता हूँ तो वो मुझे बहुत डांटते है। आज मैंने अपनी खुद की कहानी लिखी है। मेरे स्कूल के दोस्तों ने उसे पढ़ा उन्हें वो कहानी अच्छा लगा। मेरे कुछ दोस्तों ने मुझसे कहा की मैं लेखक बनूंगा। उस समय मुझे बहुत खुशी हो रहा था। बहुत गर्ब महसूस हो रहा था। मैं मन लगाकर पढ़ाई कर रहा था और हमेशा ही अव्वल आता था। स्कूल के कुछ दोस्तों से मेरी बनती नहीं थी तो कुछ मेरे खास थे। मेरे खास दोस्त पढ़ाई में भी मेरी मदद करते थे और मेरे साथ खेलते भी थे। वैसे ज्यादातर मैं अकेले रैहना पसंद करता था। जब भी मैं अकेला होता था मैं अपने आप से ही बाते करता था। मेरी इस आदत की वजह से कुछ लोग मुझे पागल समझते थे। मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। मेरी ईक्षा थी की कच्ची उम्र में ही मैं लेखक बन जाऊं। पर शायद मेरी ये ईक्षा पूरी नहीं होने बाली है। मैं तो जानता भी नहीं हूँ की लेखक कैसे बन सकता हूँ। मैंने अपनी बहुत सारी कहानी लिखा लेकिन सब रद्दी बाला ही ले गया। मैं धीरे-धीरे बड़ा होता जा रहा हूँ और लिखने पढ़ने का मेरा शौक बढ़ता जा रहा है। अभी गांव के स्कूल से मैं पास हो गया हूँ। अब हाईस्कूल में मैंने अपना नाम लिखबा लिया है। मैं रोज़ स्कूल तो नहीं जाता पर कभी-कभी चला जाता हूँ। अब स्कूल जाने में मेरा मन उतना नहीं लगता जितना की कहानी पढ़ने में लगता है। कहानी का किताब खरीदने के लिए स्कूल का बहाना करके मैं स्टेशन तक भी चला जाता हूँ। लेखक बनने का भूख मुझमें इतना बढ़ गया है की अब स्कूल की पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगता। मेरे पापा को यह बात पता चल चुका है की मैं लेखक बनना चाहता हूँ। लेकिन इसके बारे में वो भी ज्यादा नहीं जानते वो मेरी मदद करें भी तो कैसे करें। मेरी ये ईक्षा धीरे-धीरे मेरे दिल में दबती जा रही है। ऐसा लग रहा है की शायद मैं कभी लेखक नहीं बन पाऊंगा। मेरी माँ भी कमाल की है कैहती है की कहानी लिखने से कुछ नहीं मिलेगा। उनकी बातें सुनकर मुझको बहुत तकलीफ होता है। लेकिन मैं उनको कैसे समझाऊँ। और मैं उनको बोलूं भी तो क्या बोलूं। काश की मैं किसी अमीर परिवार में जन्म लेता तो शायद अब तक लेखक बन चुका होता। मैं जानता हूँ मुझे इसके लिए काफी संघर्ष करना पड़ेगा। मुझसे जो मुमकिन होगा करूँगा। दूसरे स्कूल में जाकर मेरे कुछ नए दोस्त भी बन गए है। वो लोग बहुत ही फालतू है। हमेसा गाली गलौज करते रैहते है। और वो लोग नशा भी करते है। जो मुझे अच्छा नही लगता। इतने में गोपाल की माँ चाय लेकर आ जाती है। मोहन झट से डायरी बंद कर देता है। गोपाल सुबह आंख खुलते ही चाय पीना पसंद करता है। गोपाल की माँ गोपाल को चाय देकर चली जाती है।
क्या हुआ मेरी माँ के आते ही तुमने डायरी क्यों बन्द कर दिया। मेरी माँ जानती है की मैं डायरी लिखता हूँ। तुम उनके सामने भी पढ़ सकते थे कोई दिक्कत नही है। मेरी माँ कभी मेरी डायरी नही पढ़ती और न ही पापा पढ़ते है। तुम पहले इंसान हो जो मेरा डायरी पढ़ रहा है। गोपाल ने कहा। कल रात तुमनें डायरी में किसके बारे में लिखा है मोहन ने पूछा। कल रात मैंने मेरे दोस्त यश के बारे में लिखा है। गोपाल ने जबाब दिया। तुमनें अपनी डायरी में मेरे बारे में नही लिखा है। मोहन ने कहा। नही मैंने तुम्हारे बारे में नही लिखा। जब तुम मेरा बिस्वास जीत लोगे तब मैं तुम्हारे बारे में भी लिखूंगा या हो सकता है मैंने तुम्हारे बारे में लिख दिया हो। जब तुम डायरी को शुरू से अंत तक पढ़ते जाओगे तब तुम्हें सब कुछ समझ में आ जाएगा। चाय सुड़कते हुए गोपाल ने कहा। क्या मैं इस डायरी को अपने साथ ले जा सकता हूँ। मोहन ने पूछा। नही तुम्हे जो पढ़ना है यही पढ़ लो। अगर तुम ये डायरी लेकर चले जाओगे तो मैं लिखूंगा किस चीज़ में। चाय का प्याला नीचे रखते हुए गोपाल ने कहा। अरे मैं ये डायरी तुमसे हमेसा के लिए नही मांग रहा हूँ। मैं जब तक यहाँ अपने नानी के घर हूँ तब तक इसे रख नही सकता। गोपाल का मूहँ देखते हुए मोहन ने पूछा। ठीक है जल्दी लौटा देना लेकर भाग मत जाना। गोपाल ने हामी भरते हुए कहा। गोपाल अपने पापा के साथ खेत में काम करने चला गया। खाली समय में कहानी पढ़ना पसंद करने वाला गोपाल आज खेतों में काम कर रहा है। वक़्त और गरीबी ने उसे मजदूर बना ही दिया। अपने पापा के साथ खेतों में मजदूरी करके गोपाल थोड़ा बहुत पैसे कमा ही लेता है। गोपाल ने पढ़ाई छोड़ दिया है। और उसके परिवार की भी इस्तिथि इतनी अच्छी नही है की वो आगे पढ़ाई कर सके। गोपाल के सिर पर अभी से ही परिवार चलाने का बोझ है।
मोहन गोपाल के जिंदगी में झांकना चाहता था। शायद वो गोपाल को अच्छे से समझना चाहता था। और चाहे भी क्यूँ न प्रेम जो करता है वो गोपाल से। और शायद इशिलिये वो गोपाल का डायरी पढ़ना चाहता है। गोपाल का डायरी लेकर मोहन अपने नानी के घर पहुँचा और जल्दी से उसने डायरी को छुपा दिया। हाथ मुँह धोया नाश्ता किया और फिर चाय के साथ डायरी लेकर बैठा। मोहन नाश्ते के बाद चाय पीना पसंद करता था। चाय पीते-पीते मोहन डायरी पढ़ने लगा। उसने वही से पढ़ना शुरू किया था जहाँ से उसने छोड़ा था।
वो लोग नशेबाज तो जरूर है पर धोखेबाज़ नही। जब भी मुझपर कोई मुसीबत आती है वो लोग अपनी जान की बाज़ी लगा देते है। लेकिन उनलोगों में भी एक बुरी आदत है और लोगों की तरह वो भी मेरा मज़ाक उड़ाते है। उन्हें भी लगता है की मैं पागल हूँ। लेकिन जो भी हो उनकी बातों का मैं कभी बुरा नही मानता हूँ वो मेरे दोस्त है। आज मैं स्कूल में ही था हिंदी की पढ़ाई हो रही थी। उनलोगों ने कक्षा में ही मुझसे शायरी बोलबा दिया। मुझे शिक्षक से काफी डांट मिला और सज़ा भी मिला। फिर भी मैं दुःखी नही था। मैं ऐसा इंसान था जो सुख में भी हँसते रैहता था और दुःख में भी। उनलोगों से मेरी दोस्ती बनी रही। उनलोगों ने कई बार मुझे नशा खिलाने का प्रयास किया लेकिन मैंने हर बार साफ-साफ इंकार कर दिया। समाज की नज़र में मैं बिल्कुल सीधा सादा और साफ सुथरा लड़का हूँ। मेरी 9वी कक्षा की परीक्षा हो चुकी है। और अब मैं 10वी कक्षा में पढ़ रहा हूँ। इन दिनों मैं अपने दोस्त कनिस्क को बहुत याद करता हूँ। मेरा दोस्त रांची में रैहता है। वो मेरे बचपन का दोस्त है। वो मुझे दुनिया में सबसे प्यारा है। मुझे मेरे दोस्त से मिलने का दिल तो करता है लेकिन क्या करूँ मैं उससे दूर हूँ। और वो भगवानपुर कभी-कभी ही आता है। आपने पापा की वजह से वो भी मजबूर है। 10वी कक्षा में मेरा पढ़ने में मन तो लगता है लेकिन गणित और विज्ञान मेरे समझ से बाहर है। मुझे गणित और विज्ञान पढ़ने का मन ही नही करता मुझे तो बस हिंदी में मन लगता है। जब भी हिंदी का पढ़ाई होता है मैं कहानियों में डूब जाता हूँ। अगर किसी विषय से मुझे प्रेम है तो वो है हिंदी। हिंदी मैं बिना मतलब के भी पढ़ते रैहता हूँ। मेरा मैट्रिक का परीक्षा करीब आ रहा है और मैंने कोई तैयारी भी नही की है। मैंने अपना सारा समय कहानी में ही गवा दिया है। और अब भी मैं कहानी में ही उलझा रैहता हूँ। क्या करूँ मुझे कहानी पढ़ने में ज्यादा रुचि है तो। मेरे घर का पड़ोसी है धौर्य उनका शादी होने बाला है। धौर्य भईया एक भाई के साथ-साथ मेरे शिक्षक भी है। वो स्कूल में मुझे पढ़ा चुके है। उनकी शादी होने बाली है बहुत ख़ुशी की बात है। पर मैं उतना उत्साहित नही हूँ । मेरा तो सारा समय किताब पढ़ने में बीत जाता है। आज उनके घर दो बच्चा आया है। दोनों ऐसे उत्साहित है की कुछ समझ नही आ रहा वो लगातार खेल ही रहे है। खेलते देखने से ऐसा लगता है की जन्म जन्मांतर से उन्हें कोई खेलने न दिया हो। पाता नही पागल से लगते है दोनों। शहरी है न यहाँ की तरह खुली हवा कहाँ नसीब होता होगा। अपनी आजादी का मज़ा ले रहे है। मेरा क्या मैं तो रात को उनके घर जाऊंगा खाना खाऊंगा और अपने घर लौट जाऊंगा। मुझे भी न्योता मिला है। मुझे अकेले जाना है क्योंकि पापा अब कही पार्टी फंक्शन में नही जाते। मैं अकेला जाता हूँ तो थोड़ी बहुत मस्ती भी कर लेता हूँ। पापा साथ नही होते है तो शरारत करने का मौका मिल जाता है। मेरे गाँव बाले भी मेरा बहुत मान आदर करते है। मेरी शरारत की वजह से उनका कुछ नुकसान भी हो जाता है तो वो मेरे पापा से शिकायत नही करते। दिन भर इधर उधर घूम लेने के बाद किताबें पढ़ लेने के बाद शाम को मैं धौर्य भईया के घर आया हूँ। अभी खिलाने पिलाने का कार्यक्रम शुरू नही हुआ है। लोग आए हुए है। कुछ लोग इधर-उधर टहल रहे है। तो कुछ कुर्शी से चिपककर बैठे है। मैं भी एक तरफ कुर्शी पर बैठ कार्यक्रम के शुरू होने का इंतज़ार कर रहा हूँ। मुझे काफी तेज भूख भी लगी है। पड़ोसी होने के नाते घर पर भी शाम को नाश्ता नही बना है। मैंने कुछ नाश्ता नही किया है तो मेरे पेट में चूहे कूद रहे है। मैं इंतज़ार में हूँ की कब मौका मिले और मैं पेट भर के खा सकूँ। मैं बैठा ये सब सोंच ही रहा था की एक लड़का मेरे पास आकर बैठ गया। ये वही लड़का था जो दिन में पागलों की तरह खेल रहा था। उस लड़के ने थोड़ा देर मुझसे बात किया और फिर हम दोनों साथ ही खाना खाएं थे। हम दोनों एक दूसरे को अपना-अपना नाम भी बता दिए है। हमने थोड़ी बहुत शरारत भी की है। और अब मैं अपने घर आ गया हूँ और हमेसा की तरह डायरी लिखने के बाद सोने जा रहा हूँ।
मोहन ने इतना पढ़ने के बाद डायरी बन्द कर दिया। और उसे फिर से छुपा दिया। मोहन बहुत उत्साहित था होली का समय चल रहा था। दो दिन बाद ही था और गोपाल के साथ होली खेलने के लिए मोहन बहुत उत्साहित था। गोपाल को होली तो बहुत पसंद था लेकिन वो होली खेलता नही था। होली के दिन गोपाल दिन भर न तो अपने घर पर दिखाई देता था और न ही गाँव में। उस दिन उसका अता पता ही नही रैहता था। पता नही वो कहाँ लापता हो जाता था वो इस दिन। दरअसल गोपाल के गांव में होली खेलने वाले एक दूसरे का कपड़ा फार देते थे। फिर कीचड़ मिट्टी और गोबर से होली खेलते थे। और ये सब गोपाल को पसंद नही था। शायद इशिलिये वो दिन भर दिखाई नही देता था। होली करीब था लेकिन गोपाल के परिवार में वो उत्सुकता वो उत्साह दिखाई नही देता था जो उत्साह मोहन को और उसके परिवारवालों में था। गोपाल के परिवार की हालत कुछ ऐसी थी की एक दिन कोई सौ रुपए न कमाए तो भूखा मरने का नौबत आ जाता था। फिर भी अपने पिता के साथ मेहनत करके किसी भी तरह जद्दोजहद करते हुए पर्व की तैयारी कर रहा था। गोपाल का घर का हालत भी कुछ ठीक नही था फूस का घर था बेचारे के पास। गरीबी इतना ज्यादा था की नया घर भी नही बन सकता था। जितना बाप बेटे मिलकर कमाते नही थे उससे ज्यादा खर्च हो जाता था। दिन पर दिन गोपाल और उसके परिवारवाले कर्ज़ तले डूबते जा रहे थे। काफी सारा जमीन भी बिक गया था। बचे हुए जमीन में खेती बाड़ी करके किसी भी तरह परिवार का खर्चा चल रहा था। गोपाल अपने खेत में काम कर ही रहा था तभी फिर मोहन उसके पास आ गया और उससे बातें करने लगा।
होली आने वाला है तुम मेरे साथ होली खेलोगे न। मोहन ने पूछा। अगर तुम्हारे नसीब में मेरे साथ होली खेलना लिखा होगा तो जरूर खेलूँगा। गोपाल ने जबाब दिया। ऐसे क्यों बोल रहे हो कैहने का मतलब क्या है तुम्हारा। मोहन ने आश्चर्य से कहा। कुछ नही गोपाल ने कहा। दोनों में काफी देर तक बातें होता रहा। खेत में ही कभी दोनों एक साथ खेलते तो कभी काम करते। कभी-कभी दोनों थक हारकर पेड़ की छांव में बैठ जाते। दिन बीत चुका था शाम ढल चुकी थी। खेत से दोनों अपने-अपने घर लौट आये थे। गोपाल को हमेसा अपने परिवार का चिंता रैहता था। बेचारा गोपाल हमेसा यही सोचता रैहता था की कब उस पर से गरीबी का बदल छटेगा। कब वो सुख चैन और ऐसों आराम की जिंदगी जी पाएगा। और अपनी हर जरूरत हर ईक्षा को पूर्ण कर पाएगा। गोपाल बाहर से तो बहुत खुश दिखता था लेकिन अंदर ही अंदर उसे चिंता खाए जा रहा था। तनाव के कारण दिन पर दिन वो कमज़ोर होता जा रहा था। वहीं ऐसों आराम में जीने बाला मोहन चिंता फिक्र से दूर अपनी छुट्टियों का भरपूर आनंद उठा रहा था। हमेसा की तरह रात को खाना पीना कर लेने के बाद मोहन अपने बिस्तर पर लेट गया और फिर से उसने गोपाल का डायरी पढ़ना शुरू किया।
सुबह-सुबह जब मेरी आँख खुली है मैं अपने सामने मोहन को पाया हूँ। सुबह उठने के बाद अपना सारा क्रियाकर्म कर लेने के बाद मैं चाय के साथ किताब पढ़ने बैठा हूँ। आज मोहन भी मेरे साथ किताब पढ़ रहा है। हम दोनों साथ-साथ रैहने खेलने और किताब पढ़ने लगे है। कभी-कभी मोहन मेरे गालों को भी चुम लेता है तो कभी मेरे गले से लिपट जाता है। उसे ऐसा करना क्यों अच्छा लगता है मैं नही जानता और मैं उसे ऐसा करने से रोकता भी नहीं हूँ। हमदोनों में अच्छी दोस्ती हो गई है। हमदोनों शरारत भी करते रैहते है। मैं कभी-कभी मार पीटकर मोहन को रुला भी देता हूँ पर उसे बुरा नही लगता। मेरे झगड़ा करने के बाद भी वो मेरे साथ रैहता है। शायद मोहन अच्छा लड़का है। आज वो अपने शहर पटना वापस जाने वाला है। क्योंकि उसका स्कूल खुल गया है। उसके बिना कुछ दिन तक मेरा भी मन नही लगेगा। पर मैं धीरे-धीरे उसे भूल जाऊंगा। आज मोहन ने मुझसे वो बात कही है जिसकी मैंने कभी उम्मीद नही की थी। मोहन मुझसे प्रेम करता है। मैं जानता हूँ की मोहन समलैंगिक(गे) है। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है सिर्फ बारह वर्ष के उम्र में कोई कैसे जान सकता है की वो समलैंगिक है। मुझे लगता है ये उसका बचपना है शायद बड़ा होकर वो सबकुछ समझ जाए। वैसे मैं भी मोहन की तरह ही हूँ। और मैं भी मोहन से प्रेम करता हूँ। लेकिन मैं मोहन को बता नही सकता और न ही मैं मोहन के प्रेम को स्वीकार कर सकता हूँ। क्योंकि मैं उससे बड़ा हूँ। अगर मैं उसके प्रेम को स्वीकार करूँ भी तो शायद ये प्रेम नही गुनाह होगा। आज मोहन अपने शहर पटना जा चुका है। मेरी मैट्रिक की परीक्षा भी करीब आ गई है। मोहन मेरे दिमाग पर इस प्रकार हावी हो चुका है की पढ़ने में मेरा मन नही लग रहा है। ऐसा महसूस हो रहा है की सब कुछ छोड़ कर मैं मोहन के पास चला जाता। पता नही मुझे ये क्या हो गया है। शायद मैं पागल हो गया हूँ। किसी भी काम में मेरा मन नही लग रहा है। मैं परीक्षा कैसे दूँगा मैंने कोई तैयारी नही की है। आखिर आज वही हुआ जिसका मुझे डर था। मैं मैट्रिक में फेल हो चुका हूँ। मेरे सारे दोस्त मेरा मज़ाक उड़ा रहे है। कैह रहे है किताबी कीड़ा फेल हो गया कहानियां लिखकर आया होगा परीक्षा की कॉपी में। मेरी माँ भी मुझे बहुत डाँटी है। कैह रही थी कविता कहानी के चक्कर में रहेगा तो फेल ही होगा। उनका कैहना है की कविता कहानी से पेट नही भरता। वो चाहते थे की मैं न लिखूं। वो मेरी कला को दबा देना चाहते थे। मेरे पापा आज मुझे बहुत मारे है। मेरा एक हाथ और एक पैर मुचक चुका है। काफी दर्द हो रहा है। शर्म और डर के मारे मैं पापा को बोल भी नही पा रहा हूँ। आज मैं काफी शर्मिंदगी महसूस कर रहा हूँ। गाँव बाले भी मेरा मज़ाक उड़ा रहे है। मुझे बहुत बुरा लग रहा है। मरने के अलावा मुझे कोई रास्ता नही दिख रहा है। मैं मारने जा रहा हूँ। मैंने सारा इंतज़ाम कर लिया है। लेकिन ये क्या मैंने तो किसी से वादा किया है की मैं नही मरूँगा। फिर मैं मरने क्यूँ जा रहा हूँ। नही-नही मुझे अपना फैसला बदलना होगा। और मैंने अपना फैसला बदल भी लिया है। अब मैं नही मरूँगा। लेकिन परिस्थिति ऐसी है की मैं गाँव बालो को अपना मुँह नही दिखा सकता। मैं एक काम करता हूँ अपना घर अपना गाँव छोड़कर चला जाता हूँ। हाँ यही सही रहेगा। मैंने पापा की जेब से कुछ पैसे चूड़ा लिए है और अब मैं गाँव छोड़कर कही दूर जा रहा हूँ। किसी भी तरह बचते बचाते मैं स्टेशन पहुँच गया हूँ। मुझे यह भी पता नही है की टिकट कैसे खरीदूँ और कौन से ट्रेन से कहाँ जाऊँ। मैं ऐसे ही बिना टिकट प्लेटफार्म पर आ गया हूँ। यहाँ बहुत शोर है। एक अजीब सा हलचल है। और यहाँ घोषणा भी की जा रही है की कौन सी ट्रैन कब और कहाँ जाएगी। जानकारी प्राप्त होने के बाद मैं टिकट काउंटर की तरफ भगा और जल्दी-जल्दी में दिल्ली जाने वाली ट्रेन का टिकट खरीद लिया है। मैंने टिकट तो खरीद लिया है पर पता नही सीट मिलेगा या नही। टिकट तो जनरल बोगी का है और सुना है जनरल बोगी में काफी भीड़ होता है। मैं प्लेटफार्म पे ही था ट्रैन आ चुकी थी सभी को ट्रेन में चढ़ने की जल्दी थी। मैं भी किसी भी तरह अपने हाथ पैर का दर्द लिए हुए एक बोगी में चढ़ गया। मुझे नही पता था की वो जनरल बोगी नही था। मुझे सीट नही मिला था तो मैं गेट के पास ही एक कोने में बैठा था और सफर कर रहा था। लोग मुझपर कुछ ज्यादा ध्यान नही दे रहे थे। उस समय मैं लंगड़ा भी रहा था और मेरे कपड़े का हालत भी कुछ ठीक नही था। तो लोगों को शायद यही लग रहा था की मैं भिखारी हूँ। ऐसे ही मांगने वांगने के लिए ट्रेन में चढ़ गया हूँ। एक बृद्ध बेक्ति काफी देर से मुझे देख रहे थे। शायद उन्हें मुझपर दया आ रही थी। एक दो स्टेशन पार हो जाने के बाद एक काला कोर्ट वाला आदमी मेरे पास आकर खड़ा हो गया और मुझसे टिकट मांगने लगा। मैंने उसे अपना टिकट दिखाया तो वो मुझे डाँटने लगा। मैं बहुत डर गया था। उस समय मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे आंख से आँसु ही निकल जाएगा। और मैं अकेला भी था तो मुझे बहुत डर लग रहा था। वो काला कोर्ट वाला आदमी मुझसे बोला ये तो जनरल टिकट है तू यहाँ इस बोगी में क्या कर रहा है। मैंने डर के मारे घबराए हुए हड़बड़ी में कैह दिया वो ट्रैन चल पड़ी थी तो मैं हड़बड़ी में इसी में चढ़ गया था। उन्होंने अपने कलम से मेरे टिकट पर कुछ लिखा। उन्होंने टिकट तो मुझे लौटा दिया पर वो मुझे अपने साथ ले जाने लगे। उस समय मैं बहुत डरा हुआ था। प्यास से मेरा गला भी सुख रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था की कहीं वो मुझे जेल न भेज दे। लेकिन उन्होंने मेरे साथ कुछ बुरा नही किया उन्होंने मुझे जनरल बोगी में ले जाकर बैठा दिया। अब जाकर मेरी सांस में सांस आई। थोड़े बहुत पैसे मेरे पास बचें हुए थे जिससे खाना पानी की व्यवस्था करते हुए किसी भी तरह मैं दिल्ली पहुँचा। अब तक मेरे सारे पैसे भी खत्म हो चुके थे और खाना पानी भी। और मेरा भूख और प्यास भी इतना ज्यादा बढ़ गया था मानों मेरी जान लेकर ही छोड़ेगा। मैं स्टेशन से बाहर निकला। चारों तरफ हलचल और गाड़ियों का शोर है। हर तरफ आदमियों का छीना छोड़ी चल रहा है। ऐसा लगता था गाड़ी चलाने बाले जबरदस्ती आदमियों को अपनी गाड़ी में बैठा लेंगे। मुझे भी एक भाई साहब ने पूछा लेकिन मैं उसे क्या कैहता मेरे पास पैसे ही नही थे। मैं यूं ही आगे बढ़ गया। मेरी निगाहें पानी ढूंढ रही थी। चलते-चलते मैं एक बस स्टैंड पर पहुँचा। संयोग से वहाँ नलका लगा हुआ था मैंने अपना प्यास बुझाया और वहीं बैठकर सुस्ताने लगा। और सोचने लगा की अब मैं कहाँ जाऊँ। क्योंकि वहाँ मैं भी नया था और वो शहर भी मेरे लिए नया था। मैं वहाँ बैठा सोंच विचार कर ही रह था तभी एक दादाजी मेरे पास आकर बैठ गए और वो मुझसे बातें करने लगे। बातों ही बातों में उन्होंने अपना हाथ मेरे जांघ पर रख दिया। मैं बहुत डर गया था उस समय। मैंने उनका हाथ हटाने का कोसिस किया तो उन्होंने अपना एक हाथ मेरे सीने पर रखकर ज़ोर से…………………………………………। मैंने किसी भी तरह उनसे पीछा छुड़ाया और आगे बढ़ गया। अब मुझे मेरे घर का याद आने लगा था। अब मैं अपनें घर लौटना चाहता था लेकिन मैं मजबूर था क्योंकि लौटने के लिए मेरे पास पैसा नही था। मैं काम की तलाश करने लगा क्योंकि मुझे घर लौटना था और उसके लिए पैसे चाहिए थे। भला हो दिल्ली में बसे सरदारों और मंदिरों का जिसकी वजह से मैं जिंदा था। अगर ये न होते तो शायद मैं उस अजनबी शहर में भूखा मर जाता। मैं मंदिरों में ही खाता और सोता था और काम की तलाश करता था। एक दिन एक जूस वाले भईया से मेरी मुलाकात हुई। मैं उन्ही के यहाँ रैहने और काम करने लगा। इन्हीं दिनों प्रवीण और यश से मेरी जान पहचान हुई थी। प्रवीण यश का पड़ोसी है। प्रवीण पटना से दिल्ली आया है। प्रवीण दिन रात एक करके पूरी मेहनत से पढ़ाई कर रहा है। किसी ने उसका अपमान किया है वो उससे बदला लेना चाहता है। प्रवीण बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता है इशिलिये वो पूरी लगन से मेहनत कर रहा है। प्रवीण की एक बहन है कृतिका। यश से मेरी अच्छी खासी दोस्ती है। मेरा दोस्त यश कृतिका को पसंद करता है। बहुत दिन बीत गए है आज यश की माँ ने यश से जो कहा है उसकी वजह से मैं परेशान हूँ। अब मैंने फैसला कर लिया है की मैं यश से दूर हो जाऊंगा। मैं अपने घर अपने गाँव लौट जाऊंगा। आज मैं बहुत परेशान हूँ। मैंने शराब भी पी लिया है। यश से दूर होना मुझे बर्दाश्त नही हो रहा है। लेकिन मैं क्या करूँ न चाहते हुए भी मुझे उससे दूर होना ही पड़ेगा। आज मैं यश से मिला हूँ हमारे बीच बाते भी हुई है।
आज मैं अपने गाँव लौटने के लिए निकल पड़ा हूँ। मैं यश को ढूंढ रहा हूँ लेकिन वो मुझे मील नही रहा है। मजबूरन मुझे यश से मिले बिना ही लौटना पड़ रहा है। मेरे पास यश का न तो कोई फ़ोटो है और न कोई फ़ोन नंबर। पता नही मैं भविष्य में उससे मील पाऊँगा या नही। आठ महीने बाद मैं अपने गाँव अपने घर वापस लौट गया हूँ। सब बहुत खुश है।
डायरी पढ़ते-पढ़ते सुबह हो गया। मोहन अपने बिस्तर से उठा और अपना सारा क्रियाकर्म से निपुण होने के बाद वो गोपाल के घर डायरी लौटने गया। गोपाल अभी भी सो रहा था। मोहन ने गोपाल को जगाया और उसके गले से लिपटकर रोने लगा। उसने गोपाल के गालों को भी चूमा। गोपाल ने अपना हाथ मोहन के सर पे रखा और प्यार से सहलाने लगा।
क्या हुआ तुम्हारी आँखों में आँसू। गोपाल ने पूछा। कितने अच्छे हो तुम। कितना संघर्ष किया तुमने। सच में तुमने बहुत कष्ट झेला है और बदनामी भी। अगर तुम्हारे जगह पर मैं होता तो शायद मैं मर गया होता। मैं जानता हूँ गोपाल तुम मेरी तरह ही समलैंगिक हो और तुम भी मुझसे बहुत प्रेम करते हो। फिर तुमने मुझसे अपने प्रेम को क्यों छुपाया गोपाल। क्यों। मोहन ने सवाल किया। क्योंकि मैं डरता हूँ। मैं डरता हूँ लोगों से इस समाज से। इस समाज के रीति रिवाज से और इस ज़माने से। ये ज़माना ये समाज ये लोग कभी हमारे प्रेम को स्वीकार नही करेंगे। और तुम मुझसे छोटे भी हो इशिलिये मैं तुम्हारे साथ वो सब नही कर सकता। गोपाल ने जबाब दिया। मैं जानता हूँ मैं तुमसे छोटा हूँ। लेकिन तुम भी मुझसे ज्यादा बड़े नही हो सिर्फ तीन साल का ही तो अंतर है हम दोनों में। और समाज को हमारे प्रेम से क्या लेना देना। गोपाल मैं जानता हूँ की मैं तुमसे प्रेम करता हूँ और ये जरूरी नही की प्रेम में वो सब हो। प्रेम तो अनमोल है प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है। एक दूसरे को छुए बिना भी अटूट प्रेम हो सकता है। मेरी वो भावना नही है जो तुम समझ रहे हो और मैं तुमसे वैसा चाहता भी नही हूँ। मैं बस इतना जनता हूँ की मुझे तुमसे प्रेम है। मोहन ने समझाते हुए कहा। लेकिन मोहन तुम तो समलैंगिक हो तो तुम तो वो सब भी एक लड़के के साथ ही करना पसंद करोगे और शायद शादी भी लड़के से ही करोगे। गोपाल ने सवाल किया। मैं ऐसा हूँ तो हूँ कोई फर्क नही पड़ता। मैं अच्छी तरह जानता हूँ तुम्हारी भावनाओ को मेरी भी भावनाएं यही थी। मैं भी चाहता था की हमदोनों एक हो जाए। मोहन ने जबाब दिया। लेकिन हम दोनों एक नही हो सकतें हमदोनों में शादी नही हो सकता। गोपाल ने कहा। मैं जानता हूँ की हमदोनों एक दूसरे से शादी नही कर सकते क्योंकि वंश तुम्हे भी चाहिए और मुझे भी। गोपाल मैं बस इतना चाहता हूँ की तुम जीवन भर मेरा साथ दो। मोहन ने कहा। और वो तुम्हारा जीवन भर का साथ मैं कैसे दे सकता हूँ। गोपाल ने सवाल किया। गोपाल मुझे सिर्फ तुम्हारा प्रेम चाहिए और तुम्हारा प्रेम मुझे दोस्ती के रूप में भी मिल सकता है। मैं जानता हूँ यश तुम्हारा बहुत अच्छा दोस्त था और तुम्हे उससे बिछड़ जाने का दुःख है। मैं यश तो नही हूँ पर यश जैसा बनने का कोसिस जरूर करूँगा। मोहन ने जबाब दिया। क्या बात है तुम इतने समझदार कब से हो गए हँसते हुए गोपाल ने कहा। मेरे समझदार होने का वजह तुम हो गोपाल। अगर किसी ने मुझे इतना समझदार बनाया है तो वो सिर्फ और सिर्फ तुम हो। और मुझे गर्व है की मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। मुझे गर्व है की मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। मोहन ने कहा। हाँ-हाँ चलो बहुत हो गया तेरा रोना धोना चुपचाप डायरी वापस करो और चलते बनो मुझे खेतों में काम पर जाना है। गोपाल ने थोड़ा प्यार और थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा। इतना कैहने के बाद गोपाल ने अपना डायरी संभाल लिया। गोपाल तुमसे एक चीज़ माँगू मना नही न करोगें। तुम मेरे लिए उतना तो जरूर कर सकते हो तुम मुझे एक दोस्त समझकर और इसे मेरी आखिरी ईक्षा समझकर पूरा कर दो। संकोच के साथ मोहन ने कहा। बताओ क्या है तुम्हारी आखिरी ईक्षा अगर पूरा होने वाला होगा तो मैं जरूर पूरा करूँगा। तुम्हारी ईक्षा पूर्ण करते हुए मुझे खुशी होगी। गोपाल ने मोहन का संकोच दूर करते हुए कहा। जब से मैं तुमसे मिला तब से लेकर आज तक मैं ही तुम्हारे गले से लिपटते आया हूँ। और मैं ही हमेसा से तुम्हारे गालों को चूमते आया हूँ। मेरी ईक्षा है की तुम खुद मुझे एक बार गले से लगाकर मेरे गालों को चूम लो। दो कदम पीछे हटते हुए मोहन ने कहा। गोपाल ने दो कदम आगे बढ़ाकर मोहन को गले से लगा लिया और उसके गालों को चूम लिया। कुछ देर तक दोनों एक दूसरे के आंखों में देखते रहें। मोहन को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसे जन्नत की खुशी मिल गई हो। आज पैहला दिन था जब गोपाल खुद से उसे गला लगाया और उसके गालों को चूमा था। आखिर मोहन के तपस्या का फल उसे मिला। किसी और रूप में न सही पर दोस्ती के रूप में उसे गोपाल का प्यार मिल ही गया।
थोड़ी देर बाद गोपाल मोहन को छोड़कर खेतों पर अपना काम करने चला गया। मोहन भी खुशी-खुशी अपने घर लौट चुका था। एक दिन बाद ही जब मोहन सुबह-सुबह गोपाल के घर गया तो गोपाल अपने बिस्तर पर नही था। मोहन सोंच में पड़ गया था की जो इंसान देर तक सोता रैहता था वो आज इतनी सुबह कैसे उठ गया और कहाँ गायब हो गया। मोहन ने गोपाल को खेतों में भी ढूंढा और पूरे गाँव में भी लेकिन उसे गोपाल कहीं नहीं मिला। मोहन बहुत उत्साहित होकर और अपनें दिल में अनेकों भावनाएं लिए हुए गोपाल से होली खेलने गया था। लेकिन उसका ये आशा निराशा में तब बदल गया जब उसे गोपाल मिला ही नही। गोपाल के साथ होली खेलने का सपना सजाकर मोहन जितना खुश था उसका खुशी उतना ही मयूसी में बदल गया।
उसके साथ होली खेलने का मज़ा ही कुछ और है जिससे हम प्रेम करते है। उस समय जो खुशी जो सुकून मिलता है शायद उसकी कोई व्याख्या भी नही कर सकता। एक तरफ मोहन को होली से इतना ज्यादा लगाव है तो वहीं दूसरी तरफ गोपाल को होली के इस त्योहार से चिढ़ और नफरत है। होना भी चाहिए। दरअसल गोपाल को होली से नही होली खेलने वाले लोगों से नफरत है। इंसान का इज़्ज़त तभी है जब उसके तन पर कपड़ा है। और जब इंसान का वो कपड़ा ही फाड़ दिया जाए तो सोचिए इंसान कितना पानी-पानी हो जाएगा। गोपाल को होली का इसी नियम से चिढ़ था इशिलिये वो सुबह से ही गायब था। गोपाल कहाँ था इसका खबर उसके माता पिता को भी नही था। हालांकि वो अपने घर पर बता कर गया था की वो आज दिन भर दिखाई नही देगा इशिलिये घर पर उसका कोई परवाह नही कर रहा था। मोहन अपने दिल में गोपाल के साथ होली खेलने का आस लिए उसे ढूंढता रहा लेकिन वो गोपाल का कोई अता पता नही लगा पाया। मोहन का अभिलाषा उसके सीने में ही दबकर रह गया था। शाम ढल चुका था थक हारकर मोहन अपने घर लौट चुका था तभी उसके घर पर किसी का आगमन हुआ। ये गोपाल था।
होली में शाम को लोग गुलाल से होली खेलते थे। जिसमें लोग अपने से बड़े लोगों के पैरों पर गुलाल डालकर उनसे आशीर्वाद लेते थे। और अपने से छोटे को लोग गले लगाकर आशीर्वाद देते थे। साथ ही साथ बड़े लोग अपने से छोटे लोगों को किशमिश मुनक्का नारियल और खजूर प्रसाद के रूप में देते थे। पड़ोसी होने के नाते गोपाल भी अपने से बड़े लोगों का आशीर्वाद लेने गया था। वहीं मोहन से उसका मुलाकात हुआ। दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और एक दूसरे को प्रसाद खिलाया। दोनों ने गुलाल से ही जमकर होली खेली। ऐसा लग रहा था जैसे मोहन ने अपने सारे अरमान पूरे कर लिए हो। थोड़ी देर दोनों में बातें भी हुई फिर गोपाल अपने घर लौट गया।
होली का त्योहार बीत गया। कुछ दिन बीत जाने के बाद मोहन अपने शहर पटना लौट चुका था। और गोपाल भी अपना दिन सुधारने के लिए फिर से दिल्ली चला गया था। जिस जूस वाले पर भरोसा करके गोपाल दिल्ली गया था आखिर उसी ने गोपाल को जुर्म के दलदल में धकेल दिया। गोपाल पैसा तो बहुत कमाने लगा लेकिन उसका जिंदगी कुत्ते जैसा हो गया था। कब किधर से मौत आ जाए कुछ पता नही था। उस जूस वाले ने गोपाल को चरस और गांजा बेचने के काम में फसा दिया था। गोपाल नशा बेचते-बेचते खुद नशेरी हो गया था और पुलिस से भी बचता फिर रहा था। जूस वाले के लिए काम करना गोपाल के लिए मजबूरी बन गया था। गोपाल इस काम को छोड़ना चाहता था लेकिन चाहकर भी वो इस काम को छोड़ नही सकता था। गोपाल अब लिखना पढ़ना बिल्कुल भूल गया था। लेखक बनने का सपना बस उसके दिल में दबकर रह गया था। गोपाल अपने दिल की बात किसी को बताना चाहता था। जिसके लिए वो यश से मिलने गया लेकिन यश से वो मिल न सका। पड़ोसी प्रवीण से पता चला की यश अपने गाँव सहरसा चला गया है और अब तक लौटकर नही आया है। प्रवीण के पास भी यश का कोई अता पता और फ़ोन नंबर नही था। गोपाल प्रवीण को ही अपने दिल की बात बताता गया। प्रवीण उसकी बातें सुनता था। गोपाल को जुर्म के दलदल में फँसे पंद्रह साल बीत गए।
प्रवीण भी अब बहुत बड़ा आदमी बन गया था। अपनी मेहनत से उसने तैयारी की थी और वो जिला कलेक्टर बन गया था। गोपाल भी नशा बेचते-बेचते बहुत अमीर आदमी बन गया था और बहुत बड़ा क्रिमिनल भी। लाखों का इनाम भी था उसके सर पर। हालांकि गोपाल का असली चेहरा पुलिस और लोगों के बीच नही आया था। ऐसे ही गोपाल और प्रवीण एक दिन एक दूसरे से बातें कर रहे थे। दोनों पंद्रह साल तक एक दूसरे के साथ रहे और एक दूसरे को सुख दुःख की बातें बताते रहे। जिसके कारन दोनों में अच्छी दोस्ती थी। प्रवीण गोपाल को समझा रहा था।
गोपाल अब तुम ये काम छोड़ दो भूल जाओ जो हुआ उसे। अब तुम एक नई जिंदगी का शुरुआत करो। पंद्रह साल से तुम घर भी नही लौटे हो तुम्हारी माँ तुम्हारा इंतज़ार कर रही होगी। और फिर तुम्हे अपना घर भी तो बसाना है। समझाते हुए प्रवीण ने कहा।
हाँ मुझे ये काम छोड़ना ही पड़ेगा और मैं छोड़ भी रहा हूँ। लेकिन एक बात बोलूं प्रवीण बुरा मत मानना। कभी भी आंख मूंदकर किसी पर भरोसा मत करना दोस्त धोखा खा जाएगा। कितना भरोसा किया था मैंने जूस वाले पे अपनो जैसा मानता था। अपने बड़े भाई जैसा समझता था। और बदले में उसने मुझे क्या दिया जुर्म का दलदल। अब तक मैंने अपने इतने चेहरे बदले है दोस्त की मैं अपने आप को भी भूल गया हूँ। मैं भूल गया हूँ की मैं वो गोपाल हूँ जो कभी खेतों में अपने पापा का हाथ बटाया करता था। मैं भूल गया हूँ की मैं वो गोपाल हूँ जिसे कभी पढ़ने लिखने का शौक हुआ करता था। दोस्त मैं भूल गया हूँ की मैं वो गोपाल हूँ जो कभी लेखक बनने का सपना देखा करता था। मैं भूल गया हूँ की मैं वो गोपाल हूँ जो कभी सुबह भटक जाने पर शाम को वापस घर लौट जाता था। कैहते-कैहते गोपाल फुट-फुट कर रोने लगा। तुम थोड़ी देर रो लो तुम्हारा दिल हल्का हो जाएगा। गोपाल के कंधे पर हाथ रखते हुए प्रवीण ने कहा।
गोपाल थोड़ी देर तक रोता रहा। जब गोपाल का मन हल्का हुआ तब वो इस काम को छोड़ देने का सोच विचार करने लगा। लेकिन गोपाल इस काम को छोड़कर जाता कहाँ किसी दूसरे काम में उसका मन ही नहीं लगता। और जब गोपाल के बारे में लोग सच जानेंगे की गोपाल नशे का, मौत का व्यापार करता था तब क्या होगा। क्या गोपाल अपना नया जीवन शुरू कर पाएगा। क्या गोपाल अपना घर बसा पाएगा। गोपाल जानता था की गोपाल का सच लोगों के सामने आने के बाद गोपाल पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा। गोपाल अपनें जिंदगी का अनेकों किरदार निभाते-निभाते थक चुका था। अब वो हारने लगा था। गोपाल अब अपने गाँव लौट जाना चाहता था और एक नया जिंदगी का शुरुआत करना चाहता था। लेकिन वो अब भी डरता था की गाँव वलों को उसके बारे में पता चलेगा तो एक बार फिर से उसका जिंदगी बर्बाद हो जाएगा। गोपाल जुर्म के उस दलदल में फसा था जिससे बाहर निकलना इतना आसान नही था।
और खुद नशा करने की वजह से गोपाल का भी हालत पतला था। नशा करने की वजह से गोपाल अपना एक गुर्दा गवा चुका था। और अनेकों प्रकार का रोग अपने शरीर में पालकर रखा था। वो अब तक पैसो के बदौलत जिंदा था। हालांकि अब धीरे-धीरे गोपाल ने नशा करना कम कर दिया था। लेकिन क्या फायदा अब क्या पछताना जब चिड़िया चुग गई खेत। लेकिन फिर भी गोपाल धीरे-धीरे सुधर रहा था। और एक नई जिंदगी का शुरुआत करने जा रहा था। जिसमें प्रवीण उसका बखूबी साथ निभा रहा था। प्रवीण अपने शहर पटना वापस आ गया था गोपाल भी उसके साथ था। प्रवीण अपनें स्कूल में घूमने गया अपनें सारे शिक्षकों से मिला और उन्हें धन्यवाद दिया। क्योंकि आज प्रवीण जो कुछ भी है उसमें उनलोगों का भी हाथ है। प्रवीण ने अपने बहुत सारे यादगार जगहों का भ्रमण किया। फिर वो मिलने गया अपने अमीर और घमंडी दोस्त से। मोहन से। वही मोहन से जो कभी प्रवीण का दोस्त हुआ करता था और गोपाल से प्रेम किया करता था। प्रवीण और गोपाल दोनों मोहन के घर एक साथ गए थे। जब दोनों मोहन के घर गए और उन्होंने मोहन की हालत को देखा तो ज़ोर से हँस पड़े। प्रवीण बोला घमंड था जिसे अमीर होने का उसका भी क्या दिन आ गया। उड़ा करता था कभी जो हवा में वो भी जमी पे आ गया। कैहकर प्रवीण और गोपाल दोनों ठहाका मारकर हँस रहे थे। मोहन दोनों को पैहचान नही पा रहा था। पंद्रह साल में वो दोनों का चेहरा भूल चुका था पर दोनों का नाम उसे बखूबी याद था। मोहन को ये अच्छे से याद था की कभी प्रवीण नाम का उसका कोई दोस्त हुआ करता था। और उसे अच्छे से याद था की एक समय में वो किसी गोपाल नाम के लड़के से प्रेम किया करता था।
मोहन तभी तक अमीर था जब तक उसके दादाजी का पेंशन था। और उसका घमंड तभी तक था जब तक उसके दादाजी थे। दादाजी खत्म मोहन का अमीरी और घमंड दोनों खत्म। अब मोहन का सारा घमंड मिट्टी में मिल चुका था। वो अब पाई-पाई के लिए मौताज़ था। डॉक्टर बनने का भूख ने उससे उसका सबकुछ छीन लिया था। सारा जमीन जायदाद बिक चुका था। यहाँ तक की उसका घर भी बिक चुका था फिर भी वो डॉक्टर नही बन पाया था।
भारे के मकान में रह रहा मोहन अपने माता पिता और बहन, अपने परिवार के गुजर बसर के लिए बिजली स्पेयर पार्ट का दुकान खोलकर बैठा था। अब मोहन के सर पर बहुत बोझ था। अपने बूढ़े माँ बाप और दादी को संभालने का बोझ और साथ ही साथ बहन की शादी का बोझ। प्रवीण और गोपाल लगातार मोहन का मज़ाक उड़ाते रहे लेकिन मोहन ने कुछ नही कहा। क्योंकि वो कुछ कैहने के लायक भी नही था। सच में किसी के साथ बुरा करने का खामियाजा हमें कभी न कभी भुगतना ही पड़ता है। और जो मोहन के दादाजी ने प्रवीण के साथ किया था वो आज उनके ही पोते तक लौट आया था। गरीब से नफरत करने वाला आज खुद गरीब बनकर बैठा था।
अरे भाई मोहन इतनी दूर से हमलोग आए है बैठने के लिए भी नही पूछा तुमनें। इतने बदल गए हो की पानी तक नही पिलाओगे। प्रवीण ने नम्रता पूर्वक कहा। कौन हो तुम दोनों मोहन ने आश्चर्य से पूछा। तुमनें मुझे नही पहचाना पंद्रह साल के लिए दूर क्या हुए तुम हमें ही भूल गए। अपने दोस्त को ही भूल गए तुम। प्रवीण ने कहा। कौन? प्रवीण या गोपाल मोहन ने फिर आश्चर्य से पूछा। मैं प्रवीण हूँ भाई। प्रवीण ने कहा। और साथ में कौन है मोहन ने गोपाल के तरफ इशारा करते हुए पूछा। ये मेरा दोस्त है गोपाल दिल्ली में हमारी मुलाकात हुई थी। तभी से हम दोनों में जान पहचान है। प्रवीण ने जबाब दिया। कहीं तुम वही गोपाल तो नही हो जो मैट्रिक फेल होने के बाद घर छोड़कर भाग गया था। भगवानपुर वाला गोपाल। मोहन ने संकोचित मन से पूछा। आखिर तुमने पहचान ही लिया मुझे। गोपाल ने मुस्कुराते हुए कहा।
मोहन लपककर गोपाल के गले से लिपट गया। और उसने गोपाल को वो शारा हाल सुनाया जो उसके साथ हुआ। किस तरह वो जब अपने नानी के घर जाता था तो गोपाल को ढूंढता था और गोपाल उसे नही मिलता था। किस तरह उसके दादाजी के मर जाने के बाद उसका अहंकार मिट्टी में मिल गया। किस तरह डॉक्टर बनने के जुनून में उसका सबकुछ बर्बाद हो गया और आज वो पाई-पाई के लिए मौताज़ है। मोहन ने दोनों को बैठाया और चाय नाश्ता मँगवाया फिर तीनों में बाते होने लगी।
तुमने शादी की गोपाल ने मोहन से पूछा। नही अभी तक तो नही पर जल्दी ही कर लूंगा। मोहन ने जबाब दिया। तो तुम समलैंगिक नही हो बचपन में जो तुम मुझसे प्रेम करते थे वो तुम्हारा बचपना था नादानी था। गोपाल ने मोहन की तरफ देखते हुए कहा। नही ऐसा बिल्कुल भी नही है। मैं आज भी वही हूँ जो पहले था और तुम अच्छे से जानते हो की मैं किसलिए मजबूर हूँ। आज भले ही मैं शादी कर लूँ लेकिन तुम मेरा पहला प्रेम हो। मैं पहले भी तुम्हे प्रेम करता था आज भी करता हूँ और अपनी शादी के बाद भी मैं तुम्हे प्रेम करता रहुँगा। मोहन ने समझाते हुए कहा। झूठ काहे बोल रहे हो मैं तुम्हारा पैहला नही दूसरा प्यार हूँ गोपाल ने कहा। मोहन मुस्कुराते हुए चुप था। तुम दोनों समलैंगिक हो राम राम छी-छी-छी कितना घटिया हो तुम दोनों। हे भगवान कैसे-कैसे लोग है इस दुनिया में। प्रवीण ने दोनों का मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
प्रवीण का ये बात गोपाल और मोहन दोनों को बुरा लग गया। दोनों एक साथ प्रवीण को डाँटने लगे। प्रवीण ने भी दोनों के बीच तांग अड़ाना उचित नही समझा। मोहन से मिलने के बाद प्रवीण दिल्ली लौट गया। और गोपाल भी अपने गाँव भगवानपुर लौटकर अपने बूढ़े माँ बाप का सेबा करने लगा। हर बूढ़े माँ बाप की ईक्षा होती है की वो अपने पोते पोतियों को अपने गोद में खिलाए। गोपाल के माँ बाप की भी यही ईक्षा थी। लेकिन उनकी ये ईक्षा पूर्ण नही होने वाली थी। शादी के रिश्ते आने पर गोपाल मना कर देता था। क्योंकि गोपाल जानता था की वो ज्यादा दिन जिंदा नही रह पाएगा इशिलिए गोपाल शादी नही करना चाहता था। गोपाल किसी का जिंदगी बर्बाद नही करना चाहता था।
नशा धीरे-धीरे इंसान को खोखला कर देता है। ये वो जहर है जो धीरे-धीरे करके इंसान को मार देता है। इशिलिये नशा न करे। नशा करने से आपका सबकुछ बर्बाद हो सकता है जैसा की कहानी में गोपाल के साथ हुआ।
Tobacco causes painful deth
Quit today call 1800-11-2356
लेकिन शादी तो गोपाल को करना ही था। उसे अपनी नई जिंदगी का शुरुआत तो करना ही था। शादी करना गोपाल का मजबूरी भी है खानदान को आगे बढ़ाने के लिए बंस तो चाहिए ही। सुबह-सुबह गोपाल अपने दरवाजे पर कुर्सी पर बैठा अखबार पढ़ रहा है। सामने के मेज़ पर चाय का प्याला रखा हुआ है। बगल में ही खटिया पर लेटे हुए दीपक बाबू खाँसते हुए भनभनाए जा रहे है। पैसा कमाने दिल्ली गया पागल हो के आया है वहाँ से शादी करने के लिए बोलते है तो वो भी नही करता। अच्छा खासा तो अगुआ आएल था रिश्ता लेकर उसे भी भगा दिया। पता नही इसकी महतारी का क्या होगा। महतारी जब बीमार पड़े तब पता चले इसको। इतना काहे बोल रहे है चुप नही रहा जाता क्या आपसे अब अखबार भी नही पढ़ने दे रहे। गोपाल दीपक बाबू के तरफ घूरते हुए बोला। तो शादी काहे नही करता अगर कोनों के प्रेम पचीसी में पड़ गया है तो कम से कम उसे भी तो ले आता ब्याह के दीपक बाबू एकदम से गुस्से में फूट पड़े। और उनकी आँखें डबडबा गई। ये आँसू गुस्से का था या अपने पुत्र के प्रति स्नेह का कुछ समझ में नही आया। दीपक बाबू के मुख से प्रेम का नाम सुनकर गोपाल के आँखों में आरोही का चेहरा तैर गया। अखबार को मेज़ पर रखकर वो आरोही के बारे में सोचने लगा। एक आरोही ही तो थी जिसे मैं स्कूल के दिनों से ही पसंद करता था। अब तक तो कितना बदल चुकी होगी वो। शायद अब तक उसने शादी भी कर लिया होगा। उसके एक दो बच्चे भी होंगे। इसी तरह आरोही का और उसके बच्चों का काल्पनिक चेहरा गोपाल के दिमाग में बनता रहा। क्या हुआ कहाँ खो गया। कोना के बारे में सोचने लगा। अगर है कोनों तो ले आओ ब्याह कर हम रोके थोड़ी है। एकदम से कड़क भड़ी आवाज़ में दीपक बाबू ने कहा। दीपक बाबू की बाते सुनकर गोपाल एकदम से सकपका गया। आप ऐसे ही पैतरा देते रैहते है कुछ भी बक देते है अपने आप को बचाते हुए गोपाल ने कहा। जवान लड़ाने की आदत अब तक गई नही तेरी अचानक से दीपक बाबू की आवाज़ धीमी पड़ गई। उनकी आंखों में पंद्रह साल के गोपाल का चेहरा तैर गया। कितना खुश रैहता था मेरा बेटा। खेतों में काम करता था कहानी पढ़ता था। कितना चंचल था हमेसा शरारत करता था। अब गोपाल पहले वाला गोपाल नही है। कितना बदल गया है गोपाल कितना बदल गया है मेरा बेटा। गलती मेरी ही है कम उम्र से ही मैंने उस पर जिम्मेदारी का बोझ लाद दिया। सोचते हुए स्नेह का आँसू दीपक बाबू के आंखों से गालों तक बैह आया। गोपाल ने जब दीपक बाबू का चेहरा देखा तो एकदम से घबरा गया। अरे बापू को क्या हो गया इतनी सी बात पर रोने लगे। बूढ़ा हो गए लेकिन अकल नही आया अब तक मर्द लोग भी कभी रोता है क्या। लेकिन वो रो क्यों रहे है मैंने ऐसा क्या कैह दिया मैंने ऐसा क्या कर दिया। कहीं मैं शादी नही कर रहा इशिलिये तो नही रो रहे। गोपाल के मन में ढेर सारा सवाल उमड़ आया। गोपाल अपने कुर्सी से उठा और खाट पर दीपक बाबू के बगल में आकर बैठ गया। अपनें अंगूठे से उसने दीपक बाबू का ऑंसू पोंछा। और कैहने लगा आप भी न उल्टा सीधा बात सोचकर रोने लगते है। जानते नही है क्या अब हम कमाते नही है और जो नही कमाता उसको अच्छी जननी नही मिलती बिहार जो है। न अच्छा नैकरी मिलता है और न ही अच्छी छोकरी। गोपाल की बाते सुनकर दीपक बाबू ने उसे अपने सीने से सटा लिया और प्यार से फुट पड़े। गोपाल को भी अपनी किस्मत पर फुट-फुट कर रोने का मन हो रहा है लेकिन रोए भी तो कैसे। एक पल सोचता की बापू को सब सच बता दे लेकिन उसका हिम्मत नही करता। बापू को पता चलेगा तो क्या होगा कही उनको हार्ट अटैक न आ जाए। कही वो मेरी गंभीर बीमारी के बारे में सुनकर मर न जाए। सोचते हुए गोपाल आँसुओ को भीतर ही भीतर पिता रहा। कुछ देर बाद गोपाल अपने कमरे में चला गया। गोपाल अपने कमरे को निहारे जा रहा है। किताबों को चूहों ने कुत्तर दिया है। इधर-उधर मकड़ी के जाले लगे है। जहाँ तहाँ धूल मिट्टी पड़ा है। कितना बदल गया है मेरा कमरा। अचानक से गोपाल का नज़र उसके बैग पर पड़ा। एक पल में ही उसे उसके डायरी का याद आने लगा। बैग से उसने अपना डायरी निकाला और पन्ने उलटकर देखने लगा। एक बार फिर बचपन का दिन उसके मन में तैर गया। कितना अच्छा दिन था वो मेरा कितना खुश रैहता था मैं हमेसा पढ़ाई में भी अव्वल आता था। फिर मोहन आया मेरी जिंदगी में। जब तक हम दोस्त थे तब तक सबकुछ ठीक था। जब हम दोनों में प्रेम हो गया तो मेरी बर्बादी सुरु हो गई। कितना मनहूस घड़ी में वो आया था मेरी जिंदगी में। मैं क्या था और वो मुझे क्या बना गया। मोहन की वजह से मैं बर्बाद हो गया। मोहन के प्रेम ने मुझे कही का नही छोड़ा। उसने मेरा जिंदगी खराब कर दिया। मोहन के प्रति ऐसे ही ढेर सारा अनर्गल बाते गोपाल के दिमाग में घूम गया। धम्म..! धम्म की आवाज़ के साथ गोपाल ने डायरी को दीवार से दे मारा। गोपाल कमरे से बाहर निकला। माँ आंगन में बैठी तरकारी काट रही है। मम्मी। लाड़ हो रहा है। बहुत ज्यादा लाड़ में वो माँ को मम्मी ही तो कैहता है। मम्मी। हुम्म….। ये कमरे का सफाई नही होता क्या कभी। मम्मी भड़क गई। अरे कहाँ से करूँ सफाई कैसे करूँ मेरा भी शरीर थक गया अब। मुझसे नही होगा काम वाम। शादी ब्याह तो तुम करते नही हो बुढ़ापे में भी माँ को ही खटबा रहे हो। लेकिन माँ सफाई तो मज़दूर से भी करवा लेती पैसे देकर। माँ के गुस्से के साथ ही गोपाल का लाड़ टूट गया और वो मम्मी से माँ पर आ गया। हाँ तो मैं जाऊंगी मज़दूर ढूँढने अपने बाप को काहे नही बोलता जाकर गुस्से से भन्नाते हुए माँ बोली। माँ आज सुबह से ही बापू पर गुस्सा है। पता नही किस बात को लेकर अन्न-बन्न हुई है दोनों में। अब बुढ़ापे में भी ये लोग बाज़ नही आते। गोपाल का मन यूं ही सोचने लगा। मैं जाकर मज़दूर भेज देता हूँ सफाई करबा लेना। और पैसे मेरे बैग में रखे है। मुझे आने में जरा सी देर हो जाएगी तुम खाना खा लेना। भूखी प्यासी मेरा राह नही ताकते रह जाना कैहते हुए गोपाल घर से बाहर निकल गया।
गोपाल जब तक खाना नही खाता तब तक माँ नही खाती। यही तो माँ का स्नेह है अपने बेटे के प्रति। जल्दी लौट जाना रात मत कर देना चिल्लाते हुए माँ बोली। गोपाल अपने गाँव की बस्ती की तरफ निकल गया। वो रामलाल के घर पहुँचा। रामलाल अपने दरवाजे पर ही बैठा कुट्टी काट रहा है। अरे रामलाल। रामलाल अचानक मुड़ा। अरे मालिक कहिए गरीब के घर कैसे-कैसे आना हुआ। अरे रामलाल आज मेरे घर जाकर साफ सफाई कर देना। गोपाल खड़े-खड़े ही बोला। अरे मालिक खड़े काहे है बैठिए न अरे राजू कुर्सी ले आओ मालिक आए है। घर की तरफ मुँह करते हुए रामलाल ने कहा। अरे नही-नही रामलाल मैं रुकूँगा नही थोड़ा जल्दी में हूँ। कैहते-कैहते गोपाल को खासी आ गई। अपने मुँह पर रुमाल रखकर गोपाल खाँसने लगा। खाँसते ही सारा रुमाल लाल-लाल हो गया। अरे मालिक ये क्या आपके मुँह से खून! आश्चर्य से गोपाल को देखते हुए रामलाल ने पूछा। अरे कुछ नही रामलाल मैं ठीक हूं। घर पे जाकर साफ सफाई कर देना याद से। गोपाल ने बात बदलते हुए कहा। नही मालिक आप जरूर कुछ छुपा रहे है। इस गरीब की कसम खाकर कहिए की आपको कुछ नही हुआ आप बिलकुल ठीक है। गोपाल का हाथ अपने सर पर रखते हुए रामलाल ने कहा। मैं ठीक नही हूँ रामलाल मैं बहुत बीमार हूँ। मेरी जिंदगी बस दो से चार दिन की है मुझे ब्लड कैंसर है रामलाल। कैहते हुए गोपाल के सब्द भरर्रा गए। ये क्या हो गया मालिक ये कैसे हुआ कैहते हुए रामलाल की आँखें छलछला आई। रोओ नही रामलाल मेरे जैसा मालिक अभी बहुत है तुम्हारा। जनता हूँ मालिक आप जैसा बहुत है पर आपसे अच्छा कोई नही। कैहते हुए रामलाल गोपाल की कदमों में गिर आया। रामलाल ये क्या कर रहे हो उठो तुम्हारी जगह यहाँ है भला। भर्राती हुई आवाज़ के साथ कड़कपन था। अच्छा रामलाल मेरा एक आखिरी काम करोगे। हुक्म कीजिये मालिक जान तक न्यौछाबर कर देंगे।
गोपाल ने अपने जेब से पाँच सौ का नोट निकाला और रामलाल के हाथों में रख दिया। रामलाल तुम्हे मेरी कसम है इसे रख लो और हाँ मेरे घर पे किसी को कुछ मत बताना। कैहते हुए गोपाल की भी आँखें छलछला गई। रामलाल से नज़रे बचाते हुए गोपाल अपने रास्ते को चल दिया। आँखें अब भी छलक रही है। मेरे जाने के बाद बूढ़े माँ बाप का क्या होगा। सोंच सोचकर सर फटा जा रहा है। मन कर रहा है की फुट-फुट कर रोए। पर रोया भी नही जा रहा। गोपाल अंदर ही अंदर घुटता रहा और चलता रहा। चलते-चलते गोपाल गाँव के बीचोबीच एक बरगद के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया। दिमाग है की बूढ़े माँ बाप की चिंता कर रहा है। उलझन बढ़ता ही जा रहा है। सर दर्द है जो रुकने का नाम नही ले रहा। एक बार को मन हो रहा है की जाकर अपने सारे दोस्तों से मिल आऊँ। फिर मन कर रहा है कहीं वो लोग अब गाँव में नही रैहते होंगे। बैठा-बैठा गोपाल ढेर सारी बात सोंच रहा है। नही मैं अपने दोस्तों से मिल ही आता हूँ। और फिर आरोही! गोपाल अचानक से बोल पड़ा। गोपाल उठकर सड़क की तरफ जाने लगा। गोपाल सड़क पर पहुँचा बस आ गई गोपाल बस में चढ़ गया। फँन्न से बस चल पड़ा। कुछ दो चार मिनट भी नही बीते होंगे की गोपाल को एक आवाज़ सुनाई दिया। इमादपुर उतारिए। बस कंडक्टर बस को पिटता हुआ बोल रहा था। गोपाल बस से नीचे उतर गया और धूल उड़ाती हुई बस चली गई। गोपाल आगे बढ़ा दरवाज़े पर लाल रंग की मारुति एस्प्रेसो खड़ी थी। घर का मेंन डोर अंदर से बंद था। दीवार के किनारे-किनारे छोटा-छोटा बगीचा लगा हुआ था। जिसमें सूंदर-सूंदर फूल खिले हुए थे। डोर के पास पहुँचकर गोपाल ने किवारी खटखटाया। चर्र की आवाज़ करते हुए दरवाजा खुला। सामने एक युवक खड़ा है। ये क्या ये तो ऋषभ है। लेकिन ये यहाँ क्या कर रहा है। क्या आरोही कार चलती है। क्या रफीक ने अपना घर बेच दिया अब वो यहाँ नही रैहता। आरोही अपने पूरे परिवार के साथ यही रैहती है। उसने शादी कर लिया क्या रफीक से। गोपाल के मन में ढेर सारा सवाल उमड़ पड़ा। पापा कोई अंकल आए है। कौन है बेटा घर के अंदर से आवाज़ आई। पता नही मैंने तो इन्हें कभी नही देखा। मैं तो इन्हें जनता भी नही। मेरा नाम गोपाल है मैं भगवानपुर से आया हूँ। मुझे रफीक से मिलना था। टूटे-फूटे आवाज़ में गोपाल ने कहा। पापा कोई गोपाल अंकल है भगवानपुर से आए है आपसे मिलने। अच्छा बेटा उन्हें अंदर ले आओ। ऋषभ गोपाल को अंदर ले गया।
एक कमरे में रफीक बिस्तर पर लेटा है। बगल में टेबल पर कुछ नए पुराने अखबार जमाए रखे है। दीवार पर कहीं सीसे में भरा पेंटिंग टंगा है तो कहीं फ़ोटो। अरे गोपाल आओ बैठो कहो कैसे आना हुआ। रफीक ने बैठने का इशारा करते हुए कहा। मुझे कुछ आरोही के बारे में जानना था और सोंचा की तुमसे भी मिल लूँगा। बैठते हुए गोपाल ने कहा। लेकिन आरोही तो….. । बोलते हुए रफीक का सब्द जैसे जहाँ का तहाँ अटक गया। क्या मतलब आरोही तो। अब खुलकर बताओ कैहना क्या चाह रहे हो। गोपाल रफीक के चेहरे की तरफ देखते हुए बोला। देखो गोपाल मैं जानता हूँ की तुम स्कूल के दिनों से ही आरोही को पसंद करते थे। मैं तुम्हे सबकुछ बताऊँगा ये सब बात अकेले की है। रफीक ने बोलते हुए ऋषभ की तरफ मुँह करके जाने का इशारा कर दिया। ऋषभ कमरे से बाहर निकल गया। देखो गोपाल आरोही तो अब इस दुनिया में नही है। बहुत बुरा हुआ उस बेचारी के साथ। कृष्णा की जगह अगर तुम होते तो शायद आरोही जिंदा होती। रफीक ने कहा। क्या हुआ था आरोही के साथ। गोपाल ने पूछा। देखो गोपाल आरोही शिवम को पसंद करती थी। लेकिन वो उसे पा न सकी। फिर उसने कृष्णा से प्रेम किया लेकिन कृष्णा ने उसे धोखा दे दिया। आरोही इस बात को सह न सकी। और उसने अपना नस काटकर आत्महत्या कर लिया। आरोही का मरना माँ को बर्दाश्त न हो सका और वो हार्ट अटैक से मर गई। दोनों के मर जाने के बाद बेचारा ऋषभ अनाथ हो गया तो मैंने उसे गोद ले लिया। तो गोपाल अंकल दीदी को पसंद करते थे। दीदी बीमारी से नही मरी थी दीदी ने आत्महत्या कर लिया था। एक पल में मरी हुई माँ का चेहरा आँखों के सामने उमड़ आया। लोगों की भीड़ लगी है। सफेद कपड़ा ओढ़ाए एक तरफ दीदी को सुलाया है एक तरफ माँ को। सब लोग रो रहे है। झन्न…। हाथ में पकड़ा केतली झन्न से नीचे गिर गया। और आँखें छलक आई।
रफीक किचन की तरफ भगा। रफीक के पीछे-पीछे गोपाल भी। क्या हुआ बेटा क्या गिरा दिया देखकर ध्यान से करो। रफीक बोला। आवाज़ में बिल्कुल भी गुस्सा नही था। ऋषभ चुप था उसके आंखों में आँसू थे। क्या बेटा बीस साल के हो गए हो तब भी लड़कियों की तरह रो रहे हो। कोई बात नही टूट गया तो टूट गया। रफीक ऋषभ को समझाने लगा। पापा आज मत रोकिए आज मैं जी भर के रो लेना चाहता हूँ। जब मैं दो साल का था तभी पापा मर गए थे। तब भी तो नही रोया था मैं। जब सात साल का हुआ तो माँ और दीदी एक साथ मर गई। तब भी तो नही रोया था मैं। आज मैं जी भर के रो लूँ आज मत रोकिए मुझे। भर्राती हुई आवाज़ में ऋषभ बोला। रफीक ने उसे अपने सीने से सटा लिया। एक तुम ही तो हो मेरा सब कुछ। कैहते हुए रफीक के भी सब्द भरर्रा गए। तुमनें शादी नही किया क्या अब तक। गोपाल ने धीरे से पूछा। किया था मेरा एक प्यारा सा बेटा भी था। लेकिन अब नही है। अब ऋषभ ही मेरा सबकुछ है। रफीक ने जवाब दिया। क्या मतलब आश्चर्य से गोपाल ने पूछा। देखो गोपाल मेरा तलाक हो चुका है। मेरे बेटे ने अपने माँ का साथ चुना। मेरी पत्नी ने दूसरी शादी भी कर ली है। वो कोलकत्ता में रैहती है। वो अपनी जिंदगी में बहुत खुश है। रफीक ने अपना सारा आपबीती सुना दिया। अच्छा मैं जो असल काम से आया था वो तो तुम्हे बताना ही भूल गया। गोपाल ने कहा। हाँ-हाँ बोलो गोपाल क्या बात है। रफीक गोपाल के चेहरे पर देखते हुए बोला। ये कुमार नही रैहता क्या अब यहाँ। गोपाल ने पूछा। कुमार को तुम कैसे जानने लगे। रफीक ने आश्चर्य से पूछा। जब मैं पैहली बार भागकर दिल्ली गया था तभी मुलाकात हुआ था। बहुत अच्छा इंसान है कुमार। गोपाल ने बताया। हाँ अच्छा तो बहुत है लेकिन उसके लिए तो तुम्हे बेलकुंडा जाना परेगा। वो तो शुरू से ही अपने नानी घर ही बस गया है। यहाँ कभी-कभी आता है शायद संयोग। रफीक ने कहा। मुझे उससे मिलना है बहुत जरूरी बात करनी है। गोपाल ने कहा। क्या बात है गोपाल ऐसा कौन सा जरूरी बात है जो मैं जान नही सकता। रफीक ने आश्चर्य से पूछा। देखो रफीक मुझे ब्लड कैंसर है मुझे हप्ते में खून बदलवाना परता है। मुझे खून की बहुत जरूरत है। गोपाल ने कहा। हाँ तो मैं दे दूँगा तुम्हे खून रफीक ने दिलासा दिलाते हुए कहा। नही रफीक तुम्हारा ग्रुप मैच नही करेगा कुमार से मेरा ग्रुप मैच करता है। गोपाल ने कहा। तुम बच तो जाओगे न गोपाल। रफीक ने आश्चर्य से पूछा। हाँ तीन साल के कोर्स के बाद मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊँगा। अभी शुरुआत ही हुआ था। सही समय पर इलाज करवाने लगा अगर लास्ट स्टेज में पहुँच जाता तो शायद। गोपाल ने कहा।
रफीक ने चाय बनाया दोनों ने चाय पिया और बेलकुंडा कुमार से मिलने आ गए। कुमार ने भी गोपाल का मदद किया। तीन साल लगातार वो गोपाल को खून देता रहा। तीन साल में गोपाल बिल्कुल ठीक हो गया। गोपाल ने नशा करना छोड़ दिया और मोहन को भूलकर उसने नया जिंदगी का शुरुआत किया। एक साल के बाद ही गोपाल का घर आँगन बालक की किलकारियों से गूंज उठा। गोपाल किराना का दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण करता है। वो अपने छोटे से परिवार में बहुत खुश है।