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नमन करूँ मैं

4 मार्च 2016

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तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ मैं।

मेरे प्यारे देश! देह या मन को नमन करूँ मैं?

किसको नमन करूँ मैं भारत, किसको नमन करूँ मैं?


भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है,

एक देश का नहीं शील यह भूमंडल भर का है।

जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,

देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर है!

निखिल विश्व की जन्म-भूमि-वंदन को नमन करूँ मैं?

किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?


उठे जहाँ भी घोष शान्ति का, भारत स्वर तेरा है,

धर्म-दीप हो जिसके भी कर में, वह नर तेरा है।

तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने जाता है,

किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है।।

मानवता के इस ललाट-चंदन को नमन करूँ मैं?

किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?

रामधारी सिंह 'दिनकर'

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नमन करूँ मैं

4 मार्च 2016
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तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ मैं।मेरे प्यारे देश! देह या मन को नमन करूँ मैं?किसको नमन करूँ मैं भारत, किसको नमन करूँ मैं?भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है,एक देश का नहीं शील यह भूमंडल भर का है।जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर

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सूरज का ब्याह

4 मार्च 2016
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उड़ी एक अफवाह, सूर्य की शादी होने वाली है,वर के विमल मौर में मोती उषा पिराने वाली है।मोर करेंगे नाच, गीत कोयल सुहाग के गाएगी,लता विटप मंडप-वितान से वंदन वार सजाएगी!जीव-जन्तु भर गए खुशी से, वन की पाँत-पाँत डोली,इतने में जल के भीतर से एक वृद्ध मछली बोली-"सावधान जलचरो, खुशी में सबके साथ नहीं फूलो,ब्याह

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समर शेष है

4 मार्च 2016
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ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान ।फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !ओ रेशम

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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

4 मार्च 2016
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है !उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ ?मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;और लाखों बार तुझ-से पागलों को भीचाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते ।आदमी का स्वप्न ? है वह बुलबुल

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हमारे कृषक

4 मार्च 2016
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जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं पर शिशु का क्य

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