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समर शेष है

4 मार्च 2016

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ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,

किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?

किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,

भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?


कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?

तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान ।


फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !

ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले!

सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है,

दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है ।


मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,

ज्यों का त्यों है खड़ा, आज भी मरघट-सा संसार ।


वह संसार जहाँ तक पहुँची अब तक नहीं किरण है

जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर वरण है

देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्त:स्थल हिलता है

माँ को लज्ज वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है


पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज

सात वर्ष हो गये राह में, अटका कहाँ स्वराज?


अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है?

तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है?

सबके भाग्य दबा रखे हैं किसने अपने कर में?

उतरी थी जो विभा, हुई बंदिनी बता किस घर में


समर शेष है, यह प्रकाश बंदीगृह से छूटेगा

और नहीं तो तुझ पर पापिनी! महावज्र टूटेगा


समर शेष है, उस स्वराज को सत्य बनाना होगा

जिसका है ये न्यास उसे सत्वर पहुँचाना होगा

धारा के मग में अनेक जो पर्वत खडे हुए हैं

गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अडे हुए हैं


कह दो उनसे झुके अगर तो जग मे यश पाएंगे

अड़े रहे अगर तो ऐरावत पत्तों से बह जाऐंगे


समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो

शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो

पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोडेंगे

समतल पीटे बिना समर कि भूमि नहीं छोड़ेंगे


समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर

खण्ड-खण्ड हो गिरे विषमता की काली जंजीर


समर शेष है, अभी मनुज भक्षी हुंकार रहे हैं

गांधी का पी रुधिर जवाहर पर फुंकार रहे हैं

समर शेष है, अहंकार इनका हरना बाकी है

वृक को दंतहीन, अहि को निर्विष करना बाकी है


समर शेष है, शपथ धर्म की लाना है वह काल

विचरें अभय देश में गाँधी और जवाहर लाल


तिमिर पुत्र ये दस्यु कहीं कोई दुष्काण्ड रचें ना

सावधान हो खडी देश भर में गाँधी की सेना

बलि देकर भी बलि! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे

मंदिर औ' मस्जिद दोनों पर एक तार बाँधो रे


समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध

रामधारी सिंह 'दिनकर'

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नमन करूँ मैं

4 मार्च 2016
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तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ मैं।मेरे प्यारे देश! देह या मन को नमन करूँ मैं?किसको नमन करूँ मैं भारत, किसको नमन करूँ मैं?भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है,एक देश का नहीं शील यह भूमंडल भर का है।जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर

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सूरज का ब्याह

4 मार्च 2016
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उड़ी एक अफवाह, सूर्य की शादी होने वाली है,वर के विमल मौर में मोती उषा पिराने वाली है।मोर करेंगे नाच, गीत कोयल सुहाग के गाएगी,लता विटप मंडप-वितान से वंदन वार सजाएगी!जीव-जन्तु भर गए खुशी से, वन की पाँत-पाँत डोली,इतने में जल के भीतर से एक वृद्ध मछली बोली-"सावधान जलचरो, खुशी में सबके साथ नहीं फूलो,ब्याह

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समर शेष है

4 मार्च 2016
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ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान ।फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !ओ रेशम

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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

4 मार्च 2016
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है !उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ ?मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;और लाखों बार तुझ-से पागलों को भीचाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते ।आदमी का स्वप्न ? है वह बुलबुल

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हमारे कृषक

4 मार्च 2016
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जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं पर शिशु का क्य

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