आप दोस्तों की दुआओ से आज फिर एक ग़ज़लज अ
लिखा है। देखिये पढ़िए और हा अभी बहुत सी गलतिया भी निकलेंगी क्या है।
न अभी तो सीख़ ही रहा हु। तो पेशे खिदमत है।
न जाने कब तलक मुझको वोे युही सताएगी,
कब अपने दिल का हाल वो मुझे बताएगी।
एक दौर था जब उसकी हर साँस पे नाम मेरा था,
क्या आज भी वो मेरे ही लिखे गीत गायेगी।
जब पूछूँगा ऐ सनम क्या है बता दिल में तेरे,
क्या हर बात वो मुझे सच में बता पायेगी।
में जानता हु वो भी करती है मोहब्बत बेपनाह,
क्या साथ मेंरे अपनी वो ज़िन्दगी बिताएगी।
वो करना चाहे तो करे या ना करे तो ना करे,
पर उसकी हर अदा मुझे तो याद बहुत आएगी।
करती थी जब वो मेसेज पढ़के जो सुकु मिलता,
गुज़री हुई घडी वो शायद ही वापस आएगी।
उसको तो याद हर वक्त में हर घडी करूँगा,
एक बार तो वो मेरी क़ब्र पर ज़रूर आएगी।
शायर ~ हकीम दानिश रुद्रपुरी
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