दोस्त पड़ते पड़ते खुश है हम लिखते लिखते
और लिखते है जिसके लिए वो नाम से ही चिढ़ते है
हकीम
पडेगा हम सभी को अब जंग-ए-मैदान मे आना,
घरों मे बात करने से ये मसले हल नही होंगे।
हकीम
ना बिका हूँ ना ही कभी बिक पाऊंगा,
ये ना समझना मै भी हज़ारो जैसा हूँ।
हकीम
कदम पाक थे तेरे फिर तुझे ये क्या हुआ,
रुख भी वही का किया जहाँ नापाकी बहुत थी।
हकीम
इस गफ़लत में ना रह कि तेरे वास्ते में जाग रहा हूँ,
नींद मेरी आँखों से नही मेरे मुक्कदर से उडी हुई है।
हकीम
हम समझ जाते हैं बात तेरे लहजे से "हकीम''
आप भी उधरे के हैं हम भी वही के है साहब ।
जितनी सुनने में मज़ा है शायरी
ऎ दोस्त उतनी लिखने में नहीं
कौन पढ़ता है इस दौर में उर्दू के अखबार
वक़्त पे काम नहीं आते ये अब के रिश्तेदार
हकीम दानिश
घर में सो जाते हो इतनी जल्दी ये माज़रा क्या है,
कहीँ ये तेज़ी कई सवाल न खड़े कर दे तुम पर
हकीम
एक दो शेर क्या चुरा लिए इलज़ाम पा गए
चलो इसी बहाने उनकी नज़रो में तो आ गए