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माननीय साध्वी जी के मस्जिद को ले कर विवादित बयान का जवाब मेरी कलम से

25 जुलाई 2015

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साध्वी जी का बयान सुना के मस्जिदों में। हथियार रखे जाते है। सुबह फजर में ट्रेनिंग दी जाती है। आतंकवादी बनाये जाते है। बस फिर क्या में भी सबूत ढूंढने में लग गया। के इतनी बड़ी साध्वी जी झूठ थोड़ी बोलती होंगी बस में लग गया रिपोर्टर की तरह दिन भर लगा रहा कई मस्जिदे देखि पर कुछ नहीं मिला रात को जब सोया। उसके बाद रात में किसी वक्त एक आवाज़ आई। अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर। काफी देर तक और काफी कुछ आवाज़े आई। मुझे लगा कोड वर्ड में शायद बुलाया जा रहा है। ट्रेनिंग के लिए। में उठा। सोचा आज ऐसे जाता हु जैसे मुझे कुछ पता ही नहीं है। के दीन क्या है। और जाने लगा। देखा तो काफी लोग इधर उधर से मस्जिद में आ रहे थे। में सोचा सब शायद ट्रेनिंग के लिए जा रहे है। जब मस्जिद में पंहुचा। तो वहा सब लोग हाथ मुह धो रहे थे। एक आदमी से पूछा ये क्या कर रहे है। तो उसने बताया ये वुज़ू कर रहे है। मुझे लगा शायद ये भी ट्रेनिंग हो। कुछ करने की। खैर में भी बैठ गया। और सब की तरह वुज़ू किया। फिर अंदर गया। तो वहा चटाईयां बिछी हुई थी। सब लोग लाइन से बैठे थे। में सोचा शायद अब हथियार गन बन्दुके ला कर सब को दिए जायेंगे। इतने में एक शख्स आया। जिसकी दाढ़ी थी। और सर पे कुछ बंधा हुआ था। वो सब से आगे की चटाई पे बैठ गए मेने एक से पूछा ये क्या बांध रखा है। और ये कोंन है। वो बोला ये इमाम है और इन्होंने साफ़ा बांध रखा है। मुझे लगा शायद यही सबसे बड़े है। जो आतंकी बनाने की ट्रेनिंग देते है। फिर उन के पीछे से एक शख्स खड़े हुए। मुझे लगा अब ट्रेनिंग होगी। वो खड़े हुए और वही कहने लगे जो मेने रात में सुना था। अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर। और कई अलग अलग कलमे पढ़े। सब लोग उनके कलम सुन के खड़े हुए में भी खड़ा हो गया। मुझे लगा बस अब हथियार आने वाले है। और सबको सिखाये जायेंगे। फिर जो इमाम थे। अल्लाह हु अकबर कहा और अपने हाथ पेट पे बांध लिए मुझे लगा उन्होंने वहा कोई पिस्तौल या तमंचा छुपा के रखा होगा। फिर सब ने वैसे ही किया और अपने अपने हाथ बांध लिए। फिर इमाम ने कुछ देर तक कुछ पढ़ा शायद वो कोई कोड में कुछ सीखा रहे थे। फिर सब इमाम के साथ घुटनो तक झुके फिर खड़े हुए में भी सबके साथ ऐसा ही कर रहा था। फिर सब निचे ज़मीन पर झुक गए। फिर खड़े हुए। फिर दूसरी बार भी यही सब हुआ। और आखिर में इमाम साहब ने पहले सीधी तरफ मुह फेरा फिर बायीं तरफ बाद में हाथ उठा के कुछ कुछ पढ़ रहे थे। फिर सब लोग जाने लगे। मैंने अपने पास बैठे एक शख्स से पूछा भाई ये क्या था जो इमाम और सब लोग पहले सीधी तरफ देखा फिर बायीं तरफ और बाद में सब ने हाथ उठा के कुछ पढ़ा। वो बोले के जो पहले सीधी फिर बायीं तरफ देखा वो सलाम था और जो हाथ उठाया और कुछ पढ़ा वो पूरी कौम गरीबो मज़लूमो अपने वतन में अम्न चैन सुकून के लिए। दुआ मांगी थी। फिर मेने कहा अच्छा हथियार वगैरा कहा है आज आये नहीं क्या। तो वो मेरे मुह को देखने लगे और बोले दिमाग तो खराब नहीं है। ये मस्जिद है अल्लाह का घर है। यहाँ हम चप्पल या गंदे कपडे पेहेन कर नहीं आते। हथियार तो बहुत दूर की बात है। कोंन हो और क्या करने आये थे। मेने कहा भाई में भी मुसलमान हु। सुना था के यहाँ हथियार लाये जाते है। और आतंकवादी बनाए की ट्रेनिंग दी जाती है। वो बोले जी आप सही जगह आये है। यहाँ हथियार इखट्टे किये जाते है। अभी जितने लोग आये थे यहाँ उन सब ने अपन अपना हथियार नमाज़ यहाँ इखट्टा किया और रोज़ करते है। और सब मोमिनो के दिलो में अपने रब का डर फैलाते है। और आपस में भाईचारे जैसा आतंक फैलाते है। हर जगह मोहब्बत के बम फोड़ते है। मज़लूमो की मदद की फायरिंग करते है। एक अल्लाह की किताब है। क़ुरआन जिसमे ये सारे तरिके बता दिए है। के मोहब्बत के बम कैसे फोड़े मज़लूमो गरीबो की मदद की फायरिंग कैसे करे। और इस किताब में यहाँ तक लिखा है के जिससे भी मिलो सबसे पहले उसे सलाम की गोली मारो। जो सीधी उसके दिल पे लगती है। में सब समझ गया। और वापिस आकर यही सोचता रहा के कैसे कैसे लोग है। जो बिलकुल अक़्ल दिमाग से पैदल है। और ऐसी गलत गलत वाहियात बाते फैलाते है। एक बार पढ़े ज़रूर बड़ी महनत से लिखा है। शुक्रिया हकीम दानिश की कलम से
ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

हकीम दानिश भाई, बहुत अच्छे ख्याल हैं आपके. मैं तो आपकी तस्वीर से आपकी उम्र का अंदाजा लगाता हूँ और फिर आपके लेख पढता हूँ...और तहे दिल से सोचता हूँ कि काश एक ऐसा वक़्त आ जाये जब इंसान को उसकी जाति और मज़हब के बजाय बस एक इंसान की तरह जाना जाए. आप जानते होंगे कि हमारे देश की सशस्त्र सेना की हर कमान में हर मज़हब को मानने वाले सिपाही होते हैं जहाँ सबका एक मज़हब होता है, देश की प्राण-प्रण से सेवा और हिफाज़त. एक-दूसरे के प्रति भाई-चारे की भावना, सम्मान और सहिष्णुता हमारी एकता और अखंडता के लिए अत्यंत आवश्यक है. अंतिम पंक्तियों में, 'अपना हथियार नमाज़', 'अपने रब का डर', और 'मोहब्बत के बम' जैसी उपमाएं ठीक नहीं लगीं...बाक़ी लेख बहुत अच्छा है, आपकी सोच अच्छी है.

25 जुलाई 2015

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सब दहेज़ पे तो लिख ही रहे थे मेने सोचा थोडा सा हट के पोस्ट बनाया जाये इसलिए इस मुद्दे पे बनाया सब कुछ मैंने नहीं लिखा है बहुत कुछ गूगल से भी लिया है दहेज़ लेना और देना ये दोनों ही इस्लाम कि नज़र में गुनाह है और ये सब जानते हैं पर क्या आप जानते हैं के निकाह के आजकल के प्रोसेस में हम एक और बदतरीन ज़ुल्म

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नेपाल और भारत में भूकंप

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मुझे शायरी का बहुत शोक है में जब फ्री होता हु तब शायरी लिखने बैठ जाता हु

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एक छोटी सी लापरवाही से बड़ा नुकसान हो सकता है

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1 मई 2015
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आज हम सफलता के विषय में बात करते हैआज के वक्त में सफल व्यक्ति वही है जो सुबह उठकर पहले यह तय करता है कि आज उसे क्या-क्या काम करने है। और रात तक वह उन सारे कामों को कई परेशानियों के बाद भी पूरा कर लेता है | और हा दुनिया आपको मुफ्त में कुछ नहीं देती | सफलता जैसी बेशकीमती चीज तो बिलकुल नहीं | अतः सफलत

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कुछ नयी लाईने

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आप दोस्तों की दुआओ से आज फिर एक ग़ज़लज अ लिखा है। देखिये पढ़िए और हा अभी बहुत सी गलतिया भी निकलेंगी क्या है। न अभी तो सीख़ ही रहा हु। तो पेशे खिदमत है। न जाने कब तलक मुझको वोे युही सताएगी, कब अपने दिल का हाल वो मुझे बताएगी। एक दौर था जब उसकी हर साँस पे नाम मेरा था, क्या आज भी वो मेरे ही लिखे गीत

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सूरत सिंह जी खालसा इंसाफ के लिए ज़िन्दगी से लड़ते हुए।

19 जुलाई 2015
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यह जो फोटो में दिखाई दे रहे है ना ये है सरदार सूरत सिंह जी खालसा... में भी आपकी तरह इनको नही जानता था जान अब्दुल्लाह भाई ने इनका फोटो अपने प्रोफाइल पे लगाया आपकी तरह मेरे मन में भी सवाल आया को आखिर है कौन ये महाशय..? सो पूछ लिया अब्दुल्लाह जान भाई से , पर इनके बारे में जानते ही

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साध्वी जी का बयान सुना के मस्जिदों में। हथियार रखे जाते है। सुबह फजर में ट्रेनिंग दी जाती है। आतंकवादी बनाये जाते है। बस फिर क्या में भी सबूत ढूंढने में लग गया। के इतनी बड़ी साध्वी जी झूठ थोड़ी बोलती होंगी बस में लग गया रिपोर्टर की तरह दिन भर लगा रहा कई मस्जिदे देखि पर कुछ नहीं मिला रात को जब सोया। उ

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कॉपी पेस्ट को ले कर लोगो की भावनाये।

25 जुलाई 2015
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आज का पोस्ट एक ऐसे मुद्दे पर है। जो अक्सर लोगो के सामने आता है। तो आइये सुनिये वो मुद्दा क्या है। मुद्दा है। एक इंसान का दूसरे इंसान पे यक़ीन करना। सबसे पहले एक कहानी सुनिए। आप वही पहुच जायेंगे जहा पहुचाना चाहता हु। सुनिए एक गांव में एक राज मिस्त्री था। उसी गांव में एक और आदमी भी था। जो बिलकुल नकार

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अब आप भी लिखिए अपने पोस्ट आर्टिकल आपके मुह से बोलकर हाथो को दीजिये आराम आप जो बोलेंगे वो आपके सामने लिखा जायेगा

9 नवम्बर 2015
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क्या आप भी चाहते हैं कि जो आप बोलो वह सारा कुछ लिखा जाए अगर आप चाहते हैं तो यह पोस्ट पूरा पढ़े और भी जानकारी ले और आप भी आज के बाद लिखना बंद करें और आप वही करो जो यहां पर आप जो भी बोलेंगे आपका वह सारा कुछ यहां पर लिखा जाएगा आपको यह पोस्ट अपने मुंह से बोलकर लिख सकते है तो कितना अच्छा रहेगा अगर ऐसा हो

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