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नदी के किनारे रेत के घर बनाया करते थे बचपन में , बडे जतन से स्वप्न सजाया करते थे बचपन में, फिर उन्ही घरों को सपनो को खिल-खिलाकर मिटाया करते थे बचपन मे | बड़ी विडंबना हे, समय नही हे आज उनके लिये, जिनकी अन्गुली पकड़ गली भर दोड़ लगाया करते थे बचपन में | आज व्यस्ततम जिन्द्गी में तरस जाते हे वो हमारी झलक पाने को , पर याद हे मुझे वो दिन जब थोडी देर माँ-पिता से दूर होने पर बडी जोर से चिल्लाया करते थे बचपन में ||

21 जून 2015

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main khoju tujhko yha

5 अप्रैल 2015
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main khoju tujhko yha- vha, sb se tera pta puchta, hr kshn tujhe khojta hu ,tu kha hai mere rachiyata. tu ek anokha hai ,tu "ansh" usi ka hai, vo nirvikar hai tere bhitr , tu swapna usi ka hai. main khoya hu khud se khud me, trsta hua apne mn se, jb-tb vyakul ho peeda se, tujhe khojta hu is van me.

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main khoju tujhko yha- vha, sb se tera pta puchta, hr kshn tujhe khojta hu ,tu kha hai mere rachiyata. tu ek anokha hai ,tu "ansh" usi ka hai, vo nirvikar hai tere bhitr , tu swapna usi ka hai. main khoya hu khud se khud me, trsta hua apne mn se, jb-tb vyakul ho peeda se, tujhe khojta hu is van me. is dgdh hridya ko lekr chlta, sagar ki lahron sa cancal, shankatit hua khud se , ab chau main tera anchal.

5 अप्रैल 2015
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khoj

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निर्माण

21 जून 2015
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नदी के किनारे रेत के घर बनाया करते थे बचपन में , बडे जतन से स्वप्न सजाया करते थे बचपन में, फिर उन्ही घरों को सपनो को खिल-खिलाकर मिटाया करते थे बचपन मे | बड़ी विडंबना हे, समय नही हे आज उनके लिये, जिनकी अन्गुली पकड़ गली भर दोड़ लगाया करते थे बचपन में | आज व्यस्ततम जिन्द्गी में तरस जाते हे वो हमारी झलक पाने को , पर याद हे मुझे वो दिन जब थोडी देर माँ-पिता से दूर होने पर बडी जोर से चिल्लाया करते थे बचपन में ||

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नदी के किनारे रेत के घर बनाया करते थे बचपन में , बडे जतन से स्वप्न सजाया करते थे बचपन में, फिर उन्ही घरों को सपनो को खिल-खिलाकर मिटाया करते थे बचपन मे | बड़ी विडंबना हे, समय नही हे आज उनके लिये, जिनकी अन्गुली पकड़ गली भर दोड़ लगाया करते थे बचपन में | आज व्यस्ततम जिन्द्गी में तरस जाते हे वो हमारी झलक पाने को , पर याद हे मुझे वो दिन जब थोडी देर माँ-पिता से दूर होने पर बडी जोर से चिल्लाया करते थे बचपन में ||

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बचपन में

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