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निखिल और अणिमा

14 जनवरी 2024

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निखिल और अणिमा

दोनों सहेलियां उधेड़बुन में थीं कि होने वाले बच्चे का नाम क्या हो.लड़की हो तो क्या और लड़का हुआ तो क्या.अणिमा को आधुनिकता से प्रेम है और ललिता अपनी भारतीय संस्कृति पर मुग्ध.बात ने धीरे-धीरे विवाद का रूप लेलिया.”नाम में क्या रखा है’’ शेक्सपियर ने कहा है,ग़ुलाब को किसी भी नाम से पुकारो,उसकी ख़ुशबू पर कोई फर्क नहीं पड़ता,अणिमा ने ‘रोमियो और जूलियट’ से उद्धरण दिया.ललिता ने प्रतिवाद किया,तुमने किसी माता-पिता को अपने बालक-बालिका का नाम इतिहास-पुराण के किसी ऐसे पात्र के नाम पर रखते देखा है जिनकी भूमिका
नकारात्मक रही हो.और तुम्हारे परिवार वालों की भी तो सहमति आवश्यक है.ललिता ने सामयिक पत्रिका का पन्ना पलटकर अणिमा को दिखाते हुये कहा, इस कहानी का सबक़ क्या है?दरअसल यह कहानी केरल के उच्च न्यायालय में विचार के लिये आये एक ऐसे मामले के बारे में थी जिसमें दो अलग मत को मानने वालों के बीच आपसी सहमति से  विवाह के बाद होने वाले बच्चे के नाम रखने पर विवाद हो गया और उन्हें न्यायालय की शरण लेनी पड़ी.अब बिना नाम के तो इस संसार में गुजारा नहीं हो सकता था,और दोनों ही अपने मत की पहचान बच्चे के नाम के साथ जोड़कर
रखना चाहते थे,नगरपालिका में दोनों ने जन्म प्रमाणपत्र के लिये अलग-अलग आवेदन किया.दोनों के परिवार वाले इस विवाह से नाराज तो थे, परन्तु घर में अगली पीढ़ी के आगमन ने सारे गिले-शिकवे भुलाकर दोनों परिवारों को मिला दिया.अब यह नामकरण नयी मुसीबत लेकर आया.मामला इस हद तक बढ़ा कि दोनों ने अलग होने के लिये तलाक़ की अर्जी दे दी और अलग-अलग रहने लगे.न्यायालय ने बच्चे को माता को सौंप दिया और पिता को कभी-कभी बच्चे के साथ रहने की अनुमति मिली.

अणिमा की सास अपने पोते का नाम आदित्य रखना चाहती है और पोती के लिये शाम्भवी नाम सोच रखा है.परन्तु उसे और निखिल को यह नाम कुछ ख़ास पसंद नहीं.आजकल वैसे भी ‘उ’कारान्त नामों का चलन है.निखिल को तो अपना नाम भी अनाकर्षक लगता है.एक बार माँ से इस बात पर उसकी बहस भीहो चुकी है.अणिमा का मानना है कि माँ होने के नाते अपने बच्चे का नाम रखने का हक़ तो उसका है,पर यदि बाद में बच्चे को अपना नाम पसंद नहीं आया तो क्या होगा? निखिल को अणिमा ने ही झुम्पा लाहिड़ी के उपन्यास ‘नेमसेक’ के बारे मेंबताया था.अणिमा को पुस्तकों से बड़ा प्रेम है,यात्रा के दौरान और पुस्तक मेलों से खरीदकर उसने अपना घरेलु पुस्तकालय तैयार कर लिया है.खाली समय
में उपन्यास और कहानियों के बीच ही उसका समय बीतता है.’नेमसेक’ उपन्यास में कहानी का पात्र उसका हमनाम निखिल अपनी माँ के द्वारा जन्म के समय अस्पताल में जल्दबाजी में रखे नाम के कारण परेशान रहता है और उससे पीछा छुड़ाना चाहता है.

कथा के चरित्र अशोक ने एम आई टी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी औरआशिमा गांगुली से कोलकाता में परिवार की रजामंदी से विवाह कर कैम्ब्रिज,मैसाचुसेट्स में यह दम्पत्ति रहता था जहाँ अशोक सहायक प्रोफेसर था.यहाँ अस्पतालमें बच्चे के जन्म के बाद बिना नाम पंजीकरण के छुट्टी नहीं मिल सकती थी.नर्स जबजल्दी कोई नाम बताने के लिये आग्रह करने लगी तो उसे एक ही नाम याद आया,उसके प्रियलेखक ‘गोगोल’का.अशोक की एक ट्रेन यात्रा के दौरान जब गाड़ी बेपटरी हो गयी थी तो ‘’द कलेक्टेड स्टोरीज़ ऑफ़ निकोलाई गोगोल’’ पुस्तक ने ही बचाव दल को उस तक पहुँचने में मदद की थी.तब से गोगोल उसके प्रिय लेखकों की सूची में सबसे ऊपर थे.सोचा,नामकरण संस्कार कोलकाता में हो और माँ कोई सुरुचिपूर्ण नाम बताये,तब तक गोगोल नाम ठीक रहेगा.माता-पिता विद्यालय भेजते समय बच्चे को नामकरण संस्कार(जो सनातन संस्कृति के सोलह संस्कारों मेंपांचवें क्रम पर आता है) में ‘निखिल’ नाम देते हैं.परन्तु ‘गोगोल’ नाम उसका पीछा नहीं छोड़ता.स्कूल में उसे इसी नाम से बुलाया जाता है.उसे इस नाम से नफ़रत होने लगती है.आख़िर क्या सोचकर उसकी माँ ने यह नाम चुना.यह तो उसकी संस्कृति से मेल नहींखाता.उसे अपने पिता की ट्रेन यात्रा के दौरान दुर्घटना और उसमें बमुश्किल ज़िंदाबचने की घटना के बारे में पता नहीं है.आख़िर अठारह वर्ष का होने पर कानूनी रूप से वह अपना नाम निखिल रखता है क्योंकि उसके जन्म प्रमाणपत्र में अभी तक उसका नाम ‘’गोगोल’’ही दर्ज है.निखिल उसे एक शक्तिशाली नाम लगता है,क्योंकियह अक्षुण्ण,सर्वसमावेशी और सम्पूर्ण का पर्यायवाची है.अणिमा से यह कथा जानकार अबनिखिल को अपना नाम बुरा नहीं लगता है.माँ से शिकायत भी दूर हो गयी है.कभी मजाक में उसने कहा,कहाँ मैं निखिल,और कहाँ तुम अणिमा,छोटी सी.आप मेरेनाम का मतलब जानते हो?यह हठयोग है,योगी मुनियों की अष्ट सिद्धि में पहली सिद्धि,जिससे आप अंतर्धान हो सकते हो.इसमें आप
छोटापन कैसे देख रहे हैं.

निखिल और अणिमा ने भी घरवालों की सहमति से प्रेम विवाह किया है.उनका मिलना किसी चलचित्र की कथा से कम रोमांचक नहीं.भारत के पश्चिमी और दक्षिण छोर पर बसे राज्यों ने मेडिकल औरइंजीनियरिंग की उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है और इसे एकउद्योग की भांति चलाया जाता है.बारहवीं के बाद निखिल ने आगे की पढ़ाई के लिये चेन्नई स्थित एक इंजीनियरिंग महाविद्यालय में दाख़िला लिया और हावड़ा से ट्रेन में वहाँ के लिये चला.थोड़ी ही देर में उसने एक लड़की को अपने सामान के साथ बदहवास हालात में टिकटपरीक्षक के पीछे एक कोच से दूसरे कोच में घूमते देखा. उसका टिकट कन्फर्म नहीं हो पाया था.परन्तु टिकट परीक्षक ने विवशता प्रकट की क्योंकि उस दिन गाड़ी में कोई सीट खाली न थी.लड़के ने सीट साझा करने का प्रस्ताव रखा जिसे बड़े झिझक के साथ लड़की ने
स्वीकार कर लिया और दोनों ने बिना एक शब्द आपस में बात किये यात्रा पूरी की.अगले दिन कॉलेज के प्रांगण में वही लड़की पुनः दिखी. शायद उसे भी इसी कैम्पस में दाख़िलालेना था. बात आयी-गयी हो गई.

अगले दिन अपनी कक्षा में उसे देखकर निखिल भौंचक्का रह गया.लड़की ने आगे बढ़कर अपना परिचय दिया और उसके बारे में जानना चाहा.वह गुवाहाटी से थी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये वहाँ आयी थी.निखिल ने बताया कि वह बिहार से है और वहाँ उच्च शिक्षा की बेहतर व्यवस्था नहीं होने के कारण उस जैसे लाखों छात्रों को अपना घर छोड़कर माता-पिता से दूर पढ़ाई के लिये बाहर जाना पड़ता है.उसने पढ़ा है,कभी बिहार में नालन्दा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय सारे विश्व के छात्रों के अध्ययन का केंद्र हुआ करता था.

धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो गयी और इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी होने पर किसी आई टी कम्पनी में नौकरी मिलते ही अपने परिवारों से इस रिश्ते के लिये हामी भरवा ली.दोनों परिवारों की सहमति से विवाह संपन्न हो गया.प्रणय-परिणय  के उपरान्त अब जीवन में प्रथम प्रसून के खिलने का अवसर आया था.कम्पनी ने अणिमा को घरसे काम करने और यथासमय मातृत्व अवकाश की अनुमति दे दी थी.गुवाहाटी में अपनी सहेली ललिता के साथ इसी बात पर विमर्श हो रहा था कि बच्चे का नाम क्या रखा जाये,परन्तु कोई निष्कर्ष नहीं निकला.आख़िर दोनों ने ललिता की दादी माँ से मिलकर सलाह करने की सोची.

दादी माँ ने बताया कि बालक-बालिका का नाम ख़ूब सोच-विचार कर रखना चाहिये.इसके लिये अपनी भारतीय संस्कृति में नामकरण संस्कार का विधान था,जिसे आजकल के आधुनिक ख़याल वाला समाज महत्वहीन मानता है.आख़िर नाम से क्या फर्क पड़ता है,अणिमा ने प्रतिवाद किया.’तुमने अजामिल की कथा सुनी है’,दादी माँ ने पूछा.अणिमा ने अनभिज्ञता जाहिर की.उन्हौंने तुलसीदास की दोहावली से उद्धृत किया, तुलसी निज करतूति बिनु मुकुत जात जब कोइ. गयो अजामिल लोक हरि नाम सक्यो नहिं धोइ.

अजामिल कान्यकुब्ज के एक सदगृहस्त का पुत्र था.एक दिन वन से समिधा, पुष्प,फल लाते समय उसने एक स्त्री को वारुणी के आगोश में मस्त पुरुष के संग देखा.इस कुसंग को देखकर उसके चित्त में आसक्ति ने घर कर लिया. शीलवान,सदाचारी और विनम्र अजामिल का जीवन एक क्षण में बदल गया.उस रूपाजीवा के मोह में उसने अपने पुरखों की धन-सम्पदा को दोनों हाथों से लुटाया और उसके खर्चे पूरे करने के लिये लूटपाट करने लगा.उसकी बुद्धि कुण्ठित हो चुकी थी.अब वह न ऋषि-मुनियों का आदर करता,न ही अतिथि सत्कार.इसी प्रकार कई वर्ष बीत गये.समाज में उसका कोई आदर न था,किन्तु लोग उसकी दुष्टता से भयभीत रहते थे.

एक दिन कुछ महात्मा उसके घर पधारे.नौकरों ने रात्रि विश्राम और भोजन की व्यवस्था तो कर दी परन्तु अजामिल उन्हें नहीं मिला.अगली सुबह महात्माओं ने अजामिल से मिलना चाहा तो नौकरों ने झिड़क दिया,यहाँ से दान पाने की आशा न करना.महात्मा बोले,हम कुछ पाने की आशा नहीं करते बल्कि आथित्य सत्कार के बदले कुछ देना चाहते
हैं.अपने मालिक से कहो, अपने होने वाले बच्चे का नाम नारायण रखें, कल्याण होगा.अजामिल ने इसे स्वीकार किया.

वृ्द्ध अजामिल को नारायण से मोह हो गया था.मृत्यु की घड़ी आने पर यमराज के दूतों ने उसे पकड़ कर ले जाना चाहा तो अजामिल चिल्लाने लगा,नारायण मुझे बचाओ, नारायण मुझे बचाओ,तो भगवान् विष्णु के पार्षदों ने उसे यमदूतों से उसे मुक्त करा लिया.जब यमदूतों ने विरोध किया और कहा कि वह भगवान विष्णु नहीं वरन अपने पुत्र को पुकार रहा था तो पार्षदों ने स्पष्ट किया, जैसे इंधन अग्नि के स्पर्श से भष्म हो जाता है,वैसे ही नारायण के इन चार अक्षरों वाले नाम के स्मरण से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.नारायण नाम के बार-बार स्मरण से अजामिल के सारे पाप नष्ट हो गये हैं.

अणिमा को इस कहानी में बड़ा मजा आया.उसने निखिल से इस बारे में चर्चा की तो पता चला कि सद्गुरु के व्याख्यानों में वह इस कथा को एकाधिक बार सुन चुका है. समय आने पर अणिमा ने एक बालक को जन्म दिया,ललिता ने क्षितिज नाम सुझाया.अणिमा दादी माँ की कहानी से प्रभावित थी,बोली इसमें धरती और आकाश कभी नहीं मिलते,बस उनके मिलन का आभास होता है.दादी माँ ने बालक का नाम शाश्वत रखा है. माता-पिता और परिवार के सभी लोग संतुष्ट है.

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