विश्व के प्राचीनतम नगरों में से एक है,काशी.आईये काशी के कोतवाल से मिलते हैं.
वाराणसी के विशेश्वरगंज में स्थित है काल भैरव का मंदिर.कहते हैं,काशी में किसी प्रशासनिक पद पर रहना है तो यहाँ के कोतवाल कीअनुमति लेनी अनिवार्य है.कौन हैं काल भैरव ?
एक बार ऋषियों ने सुमेरु पर्वत पर ब्रह्माजी से मिलकर जिज्ञासा प्रकट की,इस ब्रह्मांड को चलायमान रखने वाली सर्वशक्तिमान सत्ता किसके पास है?
ब्रह्माजी बोले,मेरे सिवा और कौन हो सकता है?इसपर विष्णुजी ने प्रतिवाद किया.तर्क-वितर्क होने लगा परन्तु कोई परिणाम नहीं निकला.
जब वेदों से उनकी सम्मति जाननी चाहीतो उन्होंने निर्विवाद रूप से भगवान् शिव को ही सर्वश्रेष्ठ बताया.इसपर ब्रह्मा के पांचवें मुख(अहंकार) ने शिव
के बारे में काफी बुरा-भला कहा.इससे सारे वेद दुखी हो गये.तत्क्षण शिव वहाँ ज्योतिपुंज स्वरुप रूद्र रूप में प्रकट हुए.ब्रह्मा ने आदेशात्मक स्वर में कहा-रूद्र,तुम्हारा जन्म मेरे ही सिर से हुआ है.मेरी सेवा में आ जाओ.
शिव ने क्रोधित होकर अपना विकराल काल भैरव स्वरुपप्रकट किया जो अपने वाहन श्वान पर विराजमान था.
शिव ने उसे ब्रह्मा पर शासन करने का आदेश दिया.काल भैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को अपने बाएं हाथ कीसबसे छोटी अंगुली के नाखूनों से काट डाला.परन्तु उनपर ब्रह्महत्या का पाप लगा जिससे मुक्ति काशी आकरही मिली.रूद्र ने काल भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त किया.आज भी इनके दर्शन किये बिना काशी विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है.
विनय कुमार सिंह