यह बात प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दूं की ‘महाजन’ शब्द से अभिप्राय केवल ब्याज़ पर पैसों के लेन-देन करने वालों से है.साठ-सत्तर की दशक के वालीवुड फिल्मों का विलेन एक सूदखोर महाजन हो सकता था जो गाँव के ग़रीब भोले-भाले लोगों से उनकी जमीन, गहने गिरवी रखकर अनाज व रूपये उधार देता था और सादे काग़ज पर अंगूठे का निशान ले लेता था.एक बार लालाजी के चक्कर में फंसा व्यक्ति फिर जीवन भर गुलामी,बंधुआ मजदूरी के बंधन में बंध जाता था.कई बार तो उसकी भरपाई उनके अगली पीढ़ी को भी करनी पड़ती थी. वक्त बदला और सरकार ने 19 जुलाई 1967 को 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया.अब सूद पर पैसों के लेन-देन के लिये सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों के दरवाजे खुले थे.वालीवुड की कहानियों का वह पात्र अतीत में खो गया.आखिर कहाँ गये वे सूदखोर महाजन.जैसे पुरानी बीमारियां दवाओं से लड़ने की प्रतिरोधात्मक क्षमता से लैस होकर वापस लौट आती हैं, वैसे ही पुराने शेठ-लालाजी नये अवतार लेकर आये हैं.
आर्थिक अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि विश्व बाज़ार में उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति बढ़ी है.तेजी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुएं (FMCG) हों अथवा घरेलू इस्तेमाल में आने वाले बिजली के उपकरण(WHITE GOODS),मोबाइल फ़ोन,कार व मोटर साइकिल और न जाने क्या-क्या,बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अंधाधुंध उत्पादन कर रही हैं और उपभोक्ताओं को इसके क्रय हेतु विज्ञापन के माध्यम से लुभाती है. इसके लिये बड़े-बड़े फ़िल्मी हस्तियों, खेल जगत के सितारों का सहारा लिया जाता है.आपके जेब में पैसे नहीं हों, कोई बात नहीं.आप को जरूरत हो या न हो, बस एक बार आपने फ़ोन पर या ई-मेल पर जिज्ञासा प्रकट की अथवा आपके ऑन-लाइन बिहेवियर को पहचान कर कम्पनियां आपके पास ऑफरों की भरमार लेकर पहुँच जायेंगी.बार-बार डिस्काउंट (बट्टा),कैश-बैक,एक पर एक फ्री ऑफर,लॉटरी के कूपन आदि का लालच देकर आपको उत्पाद के क्रय हेतु विवश कर देंगी.और आपने एक बार उधार पर ख़रीदारी का मन बना लिया तो दुकान पर विक्रेता के साथ-साथ ये नए महाजन आपका स्वागत करेंगे. इनका नाम किटी फाईनेंस या ऐसा ही कुछ भी हो सकता है.
आगे,आपने उत्पाद का चयन किया,मोल-भाव किया व खरीदने की सहमति दी,फाईनेंस कम्पनी के एजेंट आपके मोबाईल नं से ही आपके बैंक एकाउंट और आय की जानकारी प्राप्त कर उधार (लोन) को एप्रूव कर देगा. आपको बस फॉर्म में कुछ हस्ताक्षर करने होंगे.यह लगभग अंगूठा लगाने के समान ही होगा.क्योंकि इसमें लिखी नियम व शर्तें इतनी बारीक लिखाई में होंगी कि आप उन्हें सप्रयास भी शायद नहीं पढ़ पायेंगे.सूदखोर महाजनों को भी मात दे ऐसी ब्याज दरों पर यह उधार होगा जिसके रिकवरी के लिये रिकवरी एजेंट तक नियुक्त होते हैं.लगभग 13-14% ब्याज़ तो सामान्य ही माना जायेगा जबकि क्रेडिट कार्ड से की गई ख़रीदारी पर तो 3% प्रति माह अर्थात 36% प्रति वर्ष का ब्याज लगता है.इससे बचने की जरूरत है. कहा भी गया है, अपनी पहुँच विचार के,करतब करिये दौर.तेते पांव पसारिये जेती लांबी सौर.
विनय कुमार सिंह