पूछा राही ने वृक्ष से - "क्यों फलों से सजा है ?
तू नीम है, तेरी कड़वाहट तो सजा है ।
फिर क्यों बार-बार निबौली बनाते हो ?
अपनी शक्ति को इसमें क्यों लगाते हो ?"
नीम ने कहा - "जैसे गुलाब और कांटों का किस्सा है,
तुम्हारे लिये बेकार ये निबौली भी मेरा हिस्सा है ।
अनुशासित व्यवहार तो समय के साथ निखरता है
पर सदैव स्वभाव पर हमारा बस नहीं चलता है ।।
गुणों की खोज में अवगुण अपनाने पड़ते हैं
वर्षा की सुंदरता में कितने बादल सिसकते हैं ?
मुझसे छाया, स्वास्थय, औषध ले लो तुम,
पर केवल निबौली के लिये मुझे न कोसो तुम !!"
-----*----- -- आद्या "कात्यायनी"