जमुना किनारे, कन्हैया पधारे
जमुना किनारे, कन्हैया पधारे ।
वृंदावन घाट पे बंसी पुकारे ॥
मनमोहिनी तान जब मधुबन में गूंजे;
थिरकती पवन को दिशा भी न सूझे ।
हर जीव के मन में मुरली रच जाये;
मोहन के मोह से कैसे बचा जाये ?
गाय बछ्ड़े गोपाल के पास आकर बैठ गये;
मोर प्रेम वर्षा में सहज ही झूम गये ।
पक्षियों का स्वर भी संगीत के साथ में;
भंवरे भी मधु छोड़ माधव के पास में ॥
ग्वाल बाल खेल रोक नाच रहे हर्ष से ;
गोपियां घर-बार त्याग दौड़ आईं गांव से ।
कण-कण में आकर्षण जागृत है कृष्ण का;
भूल चुका हर कोई समय लोक धर्म क्या ?
ज्यों ही सांवरे ने सुर को विराम दिया ;
कमलनयन खोलकर जब विस्मय से प्रश्न किया ।
"आप सब यहां कैसे ? मुझसे ना छुपायें"
तब माया से ग्रस्त प्राणी, मायाधारी को क्या बतायें ?
---*--- - आद्या "कात्यायनी"