डॉ. नरेन्द्र वाल्मीकि द्वारा संपादित 'ओमप्रकाश वाल्मीकि : व्यक्तित्व और कृतित्व' शीर्षक पुस्तक में विविध आयामों के अंतर्गत प्रतिष्ठित आलोचकों द्वारा जो विश्लेषणात्मक मूल्यांकन किया है वह हमें ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को सही ढंग से जानने/समझने में मदद तो करता ही है, साथ ही दलित साहित्य की विचारधारा को एक नई दिशा भी प्रदान करता है। जब भी दलित साहित्य की बात/चर्चा चलती है तो बिना ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के दलित साहित्य की चर्चा करना बेमानी-सा लगता है, दलित साहित्य की परिकल्पना संभव ही नहीं है। वाल्मीकि जी पर लिखना स्वयं को परिष्कृत करने जैसा है क्योंकि वे भारतीय दलित साहित्य के बड़े हस्ताक्षर हैं। अपने साहित्यिक योगदान से उन्होंने जातीय अपमान और उत्पीड़न के अनछुए सामाजिक पहलुओं को व्यक्त किया, जिसमें आत्मकथा 'जूठन' तो दलित साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती है। उन्हें आर्थिक, सामाजिक और मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ा। दलित अस्मिता के साथ-साथ ओमप्रकाश वाल्मीकि के लेखन की व्यापक और गहरी चिंताएँ रही हैं। प्रस्तुत पुस्तक में देश, धर्म, जाति और विमर्श के संदर्भ में विभिन्न आलोचकों के विचार अत्यंत महत्त्वपूर्ण और सामयिक हैं। यहाँ तक कि इस पुस्तक में संकलित कुछ विद्वान साथी तो ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के सानिध्य में काम कर चुके हैं, जिनके अविस्मरणीय संस्मरण बन पड़े हैं जो भविष्य में शोध छात्रों व नई पीढ़ी को दलित साहित्य की समझ व परख विकसित करने में एक नई दृष्टि प्रदान करेंगे।डॉ. नरेन्द्र वाल्मीकि द्वारा संपादित 'ओमप्रकाश वाल्मीकि : व्यक्तित्व और कृतित्व' शीर्षक पुस्तक में विविध आयामों के अंतर्गत प्रतिष्ठित आलोचकों द्वारा जो विश्लेषणात्मक मूल्यांकन किया है वह हमें ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को सही ढंग से जानने/समझने में मदद तो करता ही है, साथ ही दलित साहित्य की विचारधारा को एक नई दिशा भी प्रदान करता है। जब भी दलित साहित्य की बात/चर्चा चलती है तो बिना ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के दलित साहित्य की चर्चा करना बेमानी-सा लगता है, दलित साहित्य की परिकल्पना संभव ही नहीं है। वाल्मीकि जी पर लिखना स्वयं को परिष्कृत करने जैसा है क्योंकि वे भारतीय दलित साहित्य के बड़े हस्ताक्षर हैं। अपने साहित्यिक योगदान से उन्होंने जातीय अपमान और उत्पीड़न के अनछुए सामाजिक पहलुओं को व्यक्त किया, जिसमें आत्मकथा 'जूठन' तो दलित साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती है। उन्हें आर्थिक, सामाजिक और मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ा। दलित अस्मिता के साथ-साथ ओमप्रकाश वाल्मीकि के लेखन की व्यापक और गहरी चिंताएँ रही हैं। प्रस्तुत पुस्तक में देश, धर्म, जाति और विमर्श के संदर्भ में विभिन्न आलोचकों के विचार अत्यंत महत्त्वपूर्ण और सामयिक हैं। यहाँ तक कि इस पुस्तक में संकलित कुछ विद्वान साथी तो ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के सानिध्य में काम कर चुके हैं, जिनके अविस्मरणीय संस्मरण बन पड़े हैं जो भविष्य में शोध छात्रों व नई पीढ़ी को दलित साहित्य की समझ व परख विकसित करने में एक नई दृष्टि प्रदान करेंगे
-श्याम निर्मोही
महासचिव : साहित्य चेतना मंच
बीकानेर, राजस्थान।
ओमप्रकाश वाल्मीकि : व्यक्तित्व और कृतित्व | संपादक : डॉ. नरेन्द्र वाल्मीकि | प्रकाशक : क़लमकार पब्लिशर्स प्रा.लि., नई दिल्ली। Omprakash Valmiki: Personality and Creativity | Editor: Dr. Narendra Valmiki