"पद"
राह चलत जल गगरी
छलके, पनघट चुनर भिगाना।
लाज शरम की रहन
हमारी, मैँ छोरी बरसाना।।
गोकुल ग्वाला बाला
छलिया, हरकत मन बचकाना।
घूरि- घूरि नैना
मलकावें, बात करत मुसुकाना।।
अब नहिं फिर मधुबन
को आऊँ, तुम सौ कौन बहाना।
रास रचाना बिनु
राधा के, और जिया पछिताना।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी