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पंडित दीनदयाल उपाध्याय

Farhan shibli

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3 मार्च 2022 को पूर्ण की गई

पंडित दीनदयाल उपाध्याय लेखक-फरहान शिबली प्रथम संस्करण वर्ष-2022 पंडित दीनदयाल उपाध्याय Published by- sabtimenews@gmail.com Facebook Page - witimedia Copyright ©Farhan shibli 2022 Twitter- shibliprime Instagram- shibliprime Farhan shibli Asserts the moral Rights to be Identified as the Author of this work. All rights reserved .no part of the material protected by the copyright notice may be produced of utilized in any from or by any means, electronic or mechanical, including photocopying, recording or by any unformation storage and retrieval system, whitout permission from the copyright holder. -प्रस्तावना- हिंदी में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की एक संक्षिप्त प्रमाणिक जीवनी की मांग रही है। उसी जानकारी को देने के लिए इस पुस्तक का लेखन कार्य शुरू किया था। और अब आपके सामने इस पुस्तक को प्रकाशित किया जा रहा है। इस पुस्तक का लेखन कार्य काफी जानकारी प्राप्त करने के बाद ही शुरू किया गया था। हमें पूर्ण आशा है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की यह संक्षिप्त जीवनी हिंदी भाषा में विभिन्न प्रदेशों के बीच लोकप्रियता अर्जन करेगी। हम संपूर्ण रूप से कोशिश करते रहेंगे की आपको पुस्तक पसंद आएगी इस पुस्तक को सरल भाषा में लिखा गया है। - अनुक्रमाणिका - बालक दीना का बचपन पंडित दीनदयाल उपाध्याय की शिक्षा राजनीति एवं समाज सेवा दीनदयाल जी की विचारधारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या पंडित दीनदयाल उपाध्याय की कृतियां पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनमोल वचन इनके नाम से चलने वाली सेवाएं व संस्थाए अन्य पर विचार। 1} बालक दीना का बचपन आज हम एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करेंगे जो आदर्श,कर्म योगी, महान दार्शनिक,विलक्षण विचारक,और दूरदर्शी राजनेता,की। नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय जो एक महान नेता थे और एक अच्छे व्यक्ति थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म इनका जन्म 25 सितंबर सन 1916 में नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। जिसे अब मथुरा जिले के फराह कस्बे के पास दीनदयाल धाम कहा जाता है। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश में है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी जब मां के गर्भ में थे। तब इनकी माता श्रीमती रामप्यारी जी अपनी मां के यहां आई हुई थी। वही अपने नाना के घर पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म हुआ था। दीनदयाल उपाध्याय का परिवारिक नाम 'दीना' था। बचपन में सभी उन्हें स्नेह से दीना कहकर ही पुकारते थे। दीना के जन्म के लगभग दो वर्ष बाद इनकी माता रामप्यारी ने एक और पुत्र को जन्म दिया। इस बालक का नाम 'शिवदयाल' रखा गया तथा पारिवारिक नाम दिया गया-'शिव'। इनके पिता भगवती प्रसाद एक ज्योतिषी थे। जो कि रेलवे में बतौर एक सहायक स्टेशन मास्टर की तौर पर काम किया करते थे। इनकी माता रामप्यारी धार्मिक महिला थी। वहीं पिता की मौत के कुछ सालों बाद ही इनकी माँ का भी स्वर्गवास हो गया था। जिसके बाद इनका और इनके छोटे भाई का लालन पालन इनके नाना श्री चुन्नलाल और मामा द्वारा किया गया था। पंडित दीनदयाल के मन में कुछ आत्मविश्वास कुछ करने का उग्र रहा था कठिनाइयां लाख थी पर अब इरादा कर लिया था। उन्होंने हर स्थिति से लड़ने का आगे की ओर बढ़ने का आगे चलकर, यही कारण उनके विचारों वह आवाजों में भी शामिल हो गई थी। समस्त समाज के संपूर्ण कल्याण की चिंता होने लगी यही चिंता है आगे चलकर उनके राष्ट्रीय चिंतन की आधार बनी और इसी तरह यह आगे बढ़ते चले गए। 2} पंडित दीनदयाल उपाध्याय की शिक्षा दीनदयाल उपाध्याय जी ने अपने जीवन की परेशानियों का असर कभी भी अपनी पढ़ाई पर पड़ने नहीं दिया और इन्होंने हर परिस्थिति में अपनी पढ़ाई जारी रखी। पंडित दीनदयाल जीने सीकर के कल्याण राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सीकर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। और इंटरमीडिएट स्तर की शिक्षा इन्होंने राजस्थान के पिलानी में स्थित बिड़ला कॉलेज से प्राप्त की थी। इन्होंने दोनों ही कक्षा में गोल्ड मेडल प्राप्त किया। सीकर के महाराजा ने दीनदयाल की प्रतिभा को देखकर उन्हें छात्रवृत्ति भी दी। राजस्थान से इंटरमीडिएट स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने उत्तर प्रदेश के कानुपर में स्थित सनातन धर्म कॉलेज में प्रवेश ले लिया था। और साल 1939 में इस कॉलेज से प्रथम स्थान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। स्नातक स्तर की पढ़ाई करने के बाद इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर करने के लिए आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज में दाखिला लिया था। लेकिन किन्हीं कारणों के चलते इन्हें अपनी ये पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी। बीमार बहन रामादेवी की शुश्रूषा में लगे रहने के कारण उत्तरार्द्ध न कर सके। बहन की मृत्यु ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। मामाजी के बहुत आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक परीक्षा दी, उत्तीर्ण भी हुए। किन्तु अंगरेज सरकार की नौकरी नहीं की। इसके बाद वह पूर्ण रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मे शामिल हो गए सन 1942 से वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक के आजीवन प्रचारक बन गए। 3} राजनीति एवं समाज सेवा "आर्थिक योजनाओं तथा आर्थिक प्रगति काम आप समाज के ऊपर की सीढ़ियों पर पहुंचे हुए व्यक्ति नहीं बल्कि सबसे नीचे के स्तर पर विद्यमान व्यक्ति से होगा''! 1937 में कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज में छात्र होने के दौरान, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आए। उन्होंने 1942 से आरएसएस में पूर्णकालिक कार्य शुरू किया। उन्होंने लखीमपुर जिले के लिए प्रचारक के रूप में काम किया और 1955 से उत्तर प्रदेश के संयुक्त प्रधान प्रचारक (क्षेत्रीय आयोजक) के रूप में काम किया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्र के लिए एक प्रकाशन की स्थापना की यहां से उन्होंने मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म का आरंभ किया। इन्होंने इस पत्रिका का आरंभ सन 1940 में लखनऊ से शुरू किया। हिंदुत्व राष्ट्रवाद की विचारधारा फैलाने के लिए था। बाद में उन्होंने साप्ताहिक पंचंज्या और दैनिक स्वदेश शुरू किया। 21 सितंबर सन 1951 में जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ पार्टी की स्थापना की तो आर एस एस द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय को पार्टी में भेजा गया। उत्तर प्रदेश शाखा के महासचिव के बाद मे अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया गया 15 वर्ष तक वह संगठन के महासचिव रहे। दीन दयाल का जीवन दो भागों में बट गया एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दूसरा भारतीय जनसंघ पार्टी की तरफ सन 1952 में पंडित दीनदयाल को जंक्शन का महामंत्री नियुक्त किया गया। 1952 से 1967 तक जनसंघ के सहयोग में रहे। इसी दौरान जनसंघ पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी कार्य अपनी सच्चाई व मेहनत से करते रहे। पंडित दीनदयाल जी कभी भी चुनावी अखाड़े में नहीं उतरना चाहते थे लेकिन हालात के कारण उन्होंने पहली बार और आखरी बार चुनाव 1963 में लड़ा । पंडित दीनदयाल उपाध्याय को 1967 में भारतीय जनसंघ पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया (भारतीय अधिवेशन कालीकट) में हुआ था। 4} दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी इन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में कई लेख लिखे। यह दर्शन शरीर, मन और बुद्धि और प्रत्येक इंसान की आत्मा के एक साथ और एकीकृत कार्यक्रम की वकालत करता है। दीनदयाल उपाध्याय को आश्वस्त किया गया कि भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में व्यक्तिगत विचारों, लोकतंत्र, समाजवाद, साम्यवाद या पूंजीवाद जैसी पश्चिमी अवधारणाओं पर भरोसा नहीं कर सकता है। पंडित दीनदयाल एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति थे जिन्होंने अपने विचारों से लोगों का दिल जीता एवं कई पुस्तकें एवं कई ऐसी कृति लिखी जो बहुत ही अच्छी रही। 5} पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या दिसंबर 1967 में, उपाध्याय जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे। 10 फरवरी 1968 की शाम को लखनऊ में उन्होंने पटना के लिए सियालदाह एक्सप्रेस में प्रवेश किया। ट्रेन लगभग 3:45 बजे मुगलसराय पहुंची लेकिन उपध्याय ट्रेन में नहीं मिले थे। यात्रा के दौरान 11 फरवरी 1968 को रहस्यमय परिस्थितियों में उसकी हत्या कर दी गई थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय मात्र 43 दिन जनसंघ के अध्यक्ष रहे। सहायक स्टेशन मास्टर को खंबा नंबर 1276 के पास कंकड़ पर पड़ी लाश की सूचना मिली। शव को प्लेटफार्म पर लाकर रखा गया। और उसकी पहचान की गई तब पता चला कि वह भारतीय जनसंघ पार्टी के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय है पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। सीबीआई जांच दल ने दावा किया कि- ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन में प्रवेश करने से ठीक पहले उपाध्याय को कोच से बाहर कर दिया गया था। एमपी सिंह नामक एक यात्री उसी कोच के आस-पास के केबिन में यात्रा करने वाले ने एक आदमी को देखा (बाद में भरत लाल के रूप में पहचाना गया)। अकेले भारत लाल को मृतकों के सामान की चोरी का दोषी पाया गया था। 70 से अधिक सांसदों ने सत्य को उजागर करने के लिए जांच आयोग की मांग की। भारत सरकार ने तत्काल इस पर सहमति व्यक्त की और बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचुड आयोग के एकमात्र सदस्य के रूप में नियुक्त किया। मृत्यु का सही कारण के लिए अभी केस कोर्ट में है अंत में, न्यायाधीश ने कहा: “मैं कुछ निश्चित विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मेरे सामने जो कुछ भी नहीं आया है, वह इस आरोप का समर्थन कर सकता है। कि श्री उपाध्याय की हत्या में कोई राजनीति थी। निस्संदेह, उनके पास राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों थे। लेकिन उनकी मृत्यु मे अविवेकी और संदिग्ध चोरो का हाथ है। “ सीबीआई ने कहा कि देखभाल और निष्पक्षता के साथ जांच आयोजित की गई थी। 2017 में, उपाध्याय की भतीजी और कई नेताओं ने उनकी हत्या में एक नई जांच की मांग की है। अभी भी न्याय नहीं मिल पाया है ऐसे महान व्यक्तित्व को जिन्होंने अपने देश को अपना हृदय समझा था "धन्य हो ऐसे महापुरुष ।। 6} पंडित दीनदयाल उपाध्याय की कृतियां पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक अच्छे लेखक और एक पत्रकार भी थे। जिन्होंने अनेकों कृतियां लिखी। जिनके नाम नीचे दिए गए हैं। भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन सम्राट चन्द्रगुप्त दो योजनाएँ राजनीतिक डायरी जगद्गुरु शंकराचार्य एकात्म मानववाद राष्ट्र जीवन की दिशा एक प्रेम कथा उनकी अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में ‘सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘जगतगुरू शंकराचार्य’, ‘अखंड भारत क्यों हैं’, ‘राष्ट्र जीवन की समस्याएं’, ‘राष्ट्र चिंतन’ और ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’ आदि हैं। 7} पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनमोल वचन स्वतंत्रता तभी सार्थक होती है जब वो हमारी संस्कृति की अभिव्यक्ति का साधन बनती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय | Pandit Deendayal शक्ति हमारे गलत व्यवहार में नही बल्कि सही कारवाई में समाहित होती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय | Pandit Deendayal Upadhyaya मानवीय ज्ञान सभी की अपनी सम्पत्ति है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय | Pandit Deendayal Upadhyaya हमे सही व्यक्ति को वोट देना चाहिए न की उसके बटुए को, पार्टी को वोट दे किसी व्यक्ति को भी नही, किसी पार्टी को वोट न दे बल्कि उसके सिद्धांतो को वोट देना चाहिए । पंडित दीनदयाल उपाध्याय | Pandit Deendayal Upadhyaya भारत जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उसका मूल कारण इसकी ‘राष्ट्रीय पहचान ’ की उपेक्षा है। Pundit Deendayal Upadhyaya| पण्डित दीनदयाल उपाध्याय 8.}इनके नाम से चलने वाली सेवाएं व संस्थाए अन्य पर विचार। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन रेलवे स्टेशन (पहले मुग़ल सराय जंक्शन) ------पहले मुग़ल सराय जंक्शन---- …...पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन रेलवे स्टेशन…. पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय, सीकर राजस्थान में विश्वविद्यालय 3.Pandit Deendayal Upadhyay Medical College - [PDUMC], Rajkot - Admission Details 2020 पंडित दीनदयाल उपाध्याय मेडिकल कॉलेज राजकोट गुजरात 4. Pt. Deendayal Upadhyay Memorial Health Sciences पंडित दीनदयाल उपाध्याय मेमोरियल हेल्थ साइंस 5. pandit deen dayal hospital aligarh पंडित दीनदयाल उपाध्याय हॉस्पिटल अलीगढ़ you just finished FARHAN SHIBLI पंडित दीनदयाल उपाध्याय Rate this book 🌟 🌟 🌟🌟🌟 SHARE THIS  

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