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पंडित श्री लाल शुक्ल के बारे में

श्रीलाल शुक्ल का जन्म 31 दिसंबर, 1925 को लखनऊ जिले के एक कस्बे अतरौली में हुआ था। वह कस्बा भौगोलिक रूप से तो लखनऊ जनपद का हिस्सा था,लेकिन वास्तव में जनपद सीतापुर और हरदोई के सांझी संस्कृति के कस्बे के रूप में जाना जाता रहा है। इसी जनपद के एक छोटे खेतिहर के परिवार में श्री लाल शुक्ल का जन्म हुआ था। उनके पितामाह संस्कृत, उर्दू और फारसी के ज्ञानी थे, तथा एक विद्यालय में के अध्यापक के रूप में कार्यरत थे। श्रीलाल शुक्ल के पिता संगीत के शौकीन थे और पितामह द्वारा एकत्र की गई खेती से ही जीवन यापन करते थे।1946 में उनके पिता का देहांत हो गया था। श्रीलाल शुक्ल का विवाह गिरिजा देवी से हुआ था,और उनके चार बच्चे थे। लखनऊ का गौरव ‘विश्वनाथ त्रिपाठी’ ने हरिशंकर परसाई के लेखन को ‘स्वतंत्र भारत की आवाज़’ कहा है। श्रीलाल शुक्ल जी का स्वर मिला लें तो यह आवाज़ और प्रखर व पुख्ता होती है। वैसे तो वे पूर भारत उन पर गर्वकरता था, लेकिन वे लखनऊ के ख़ास गौरव थे। उन्हें नई पीढ़ी भी सबसे ज़्यादा पढ़ती है। वे नई पीढ़ी को सबसे अधिक समझने और पढ़ने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे थे। श्रीलाल जी का लिखना और पढ़ना रुका तो स्वास्थ्य के गंभीर कारणों के चलते। श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व बड़ा सहज था। वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे।लेकिन अपनी बात बिनाहिचकि चाहट के कहते थे। श्री लाल शुक्ल ने प्रयाग में बी० ए० की शिक्षा ग्रहण की। अपने पिता की मृत्यु के बाद 1947 में श्रीलाल शुक्ल अपने आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय आ गये और 1948 में एम० ए०. करने के बाद यही से ही कानून की पढ़ाई की। कानून की पढ़ाई के दौरान ही उनका विवाह कर दिया गया जिसके कारण उनकी की पढ़ाई पूरी ना हो सकी। श्रीलाल शुक्ल जी ने शिवपालगंज के रूप में अपनी अद्भुत भाषा शैली, मिथकीय शिल्प और देशज मुहावरों से गढ़ा था। त्रासदियों और विड

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पंडित श्री लाल शुक्ल की पुस्तकें

श्री लाल शुक्ल की व्यंग्यात्मक रचनाएँ

श्री लाल शुक्ल की व्यंग्यात्मक रचनाएँ

श्रीलाल शुक्ल को लखनऊ जनपद के समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात साहित्यकार माने जाते थे। उन्होंने 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 1949 में राज्य सिविल सेवासे नौकरी शुरू की। 1983 में भारतीय प

28 पाठक
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श्री लाल शुक्ल की व्यंग्यात्मक रचनाएँ

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राग दरबारी

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श्रीलाल शुक्ल जी का राग दरबारी एक ऐसा उपन्यास है जो गांव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता अनावृत करता है। उनका सबसे लोकप्रिय उपन्यास राग दरबारी 1968 में छपा। राग दरबारी का पन्द्रह भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी में भी अनुवाद प्र

7 पाठक
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श्री लाल शुक्ल की प्रसिद्ध  कहानियाँ

श्री लाल शुक्ल की प्रसिद्ध कहानियाँ

श्रीलाल शुक्ल (जन्म-31 दिसम्बर 1925 - निधन- 28 अक्टूबर 2011) समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात साहित्यकार माने जाते थे। उन्होंने 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 1949 में राज्य सिविल सेवा से न

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पंडित श्री लाल शुक्ल के लेख

एक चोर

26 जुलाई 2022
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माघ की रात। तालाब का किनारा। सूखता हुआ पानी। सड़ती हुई काई। कोहरे में सब कुछ ढँका हुआ। तालाब के किनारे बबूल, नीम, आम और जामुन के कई छोटे-बड़े पेड़ों का बाग। सब सर झुकाए खड़े हुए। पेड़ों के बीच की जमीन

गँजहों के गाँव का लोकतंत्र

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तहसील का मुख्यालय होने के बावजूद शिवपालगंज इतना बड़ा गाँव न था कि उसे टाउन एरिया होने का हक मिलता। शिवपालगंज में एक गाँव-सभा थी और गाँववाले उसे गाँव-सभा ही बनाए रखना चाहते थे ताकि उन्हें टाउन एरियावाल

कुंती देवी का झोला

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अंगद का पाँव

26 जुलाई 2022
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>वैसे तो मुझे स्टेशन जा कर लोगों को विदा देने का चलन नापसंद है, पर इस बार मुझे स्टेशन जाना पड़ा और मित्रों को विदा देनी पड़ी। इसके कई कारण थे। पहला तो यही कि वे मित्र थे। और, मित्रों के सामने सिद्धांत

कलिदास का संक्षिप्त इतिहास

26 जुलाई 2022
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 लोक - कथाओं के आधार पर कालिदास का जन्म एक गड़रिए के घर में हुआ था। उनके पिता मूर्ख थे। उपन्यासकार नागार्जुन ने जिस वीरता से अपने पिता के विषय में ऐसा ही तथ्य स्वीकार किया है, वह वीरता कालिदास में न थ

साहब का बाबा

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चपरासी ने अदब से परदा उठा कर गोल कमरे में मेरा प्रवेश करा दिया। मैं सोफे पर बैठ गया तो उस कमरे में पहुँचाने के एहसान का बदला पाने की गरज से बड़ी मित्रता-सी दिखाते हुए उसने पूछा, 'बिजली के छोटे इंजीनिय

दो आदमी पुराने

26 जुलाई 2022
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कुछ दिन हुए, रामानंदजी और राकेशजी अपने-अपने पेशे से रिटायर हो कर सिविल लाइन्स में बस गए थे। अपने यहाँ का चलन है कि रिटायर होने के बाद और इस लोक से ट्रांसफर होने के पहले बहुत से लोग सिविल लांइस में बँग

प्रभात-समीरण उर्फ सुबह की हवाएँ

26 जुलाई 2022
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(एक ऐसी प्रेम-कथा, जो कई फिल्मों के आधार पर बनी है और जिसके आधार पर कई फिल्में बनी हैं। उसमें दो फिल्मों का परिचय इस प्रकार दिया जा सकता है:) 'एक महान देश के अतीत की महान सांस्कृतिक विभूतियों को चित्

पुराना पेंटर और नई कलम

26 जुलाई 2022
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प्रोफेसर पन्नालाल निशात थिएट्रिकल कंपनी के प्रसिद्ध चित्रकार रह चुके हैं। उनके रंगे हुए पर्दों की रंगीनी देखने के लिए किसी जमाने में लोग बंबई से कलकत्ता जाते थे और यदि कंपनी बंबई में हुई तो कलकत्ता से

सकल बन ढूँढ़ूँ : एक सांगीतक

26 जुलाई 2022
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बाबा अंबिकानंदनशरण ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए गदगद कंठ से कहा, 'धन्य है! धन्य है प्रभु, आपने ऐसा संगीत सुनाया है कि धन्य है! धन्य है!' इसके पहले नगर की प्रसिद्ध गायिका सुरमादेवी ने लगभग घंटे-भर त

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