अंकिता की शादी को कुछ साल ही हुए थे। उसने सोचा क्यों ना इस बार दिवाली का त्यौहार अपने मायके में मनाए। उसके पति ने भी उसे इस बात की इजाज़त दे दी। और उसने जाने की सब तैयारियां भी कर ली।
जब उसकी सास को पता चला तो वो बहुत नाराज़ होने लगी। कहने लगी कि त्यौहार के दिन कौन जाता है मायके। त्यौहार तो अपने ही घर पर मनाया जाता है। और अपने बेटे को भी बुरा भला कहने लगी कि पत्नी की बातों में आ जाता है। ये सब सुनकर अंकिता ने मायके जाने का विचार छोड़ दिया।
दिवाली से दो दिन पहले अंकिता की ननंद अपने बच्चो के साथ ये कहते हुए आ जाती हैं कि दिवाली तो इस बार मायके में ही मनाऊंगी। तो अंकिता की सास बहुत खुश हो जाती हैं। बेटी की बहुत आव भगत करने लगती हैं।
कुछ देर बाद ननंद के पति का फोन आता है। वो उस पर त्यौहार के दिन मायके जाने पर नाराज़ हो रहा था। और उससे झगड़ा कर रहा था। दामाद की बाते सुनकर अंकिता की सास दामाद पर नाराज़ होने लगी। और कहने लगी कि वो तो है ही बुरा जो त्यौहार के दिन बेटी को मायके जाने से रोकता है। अंकिता ये सब देख रही थी पर फिर भी चुप थी।
शाम को अंकिता की मम्मी का फोन आता है। वो कह रही थीं कि उन्होंने उसके आने की सब तैयारियां कर ली है। और सब बहुत खुश है कि शादी के बाद वो पहली बार दिवाली यहां सबके साथ मनाएगी। तो अंकिता कहती है कि वो इस बार नहीं आ पा पाएगी। उसे कुछ जरूरी काम है यहां पर। तो उसकी मम्मी कहती है कि अचानक से कौन सा काम निकल आया। क्या किसी ने उसे कुछ कहा है। और जाने के लिए मना किया है। तो अंकिता हंस कर कहती है कि उसे कौन कुछ बोलेगा। बस जरूरी काम की वजह से वो नही आ पाएगी। मम्मी को समझाकर वो फोन काट देती है।
अंकिता ने मम्मी को तो समझा दिया। पर उसका मन अभी भी उदास था। वो जाकर खिड़की के पास बैठ जाती है और सोचने लगती है कि ये कैसा समाज है, जहां पर बहु और बेटी के लिए अलग अलग नियम बनाएं गए है। वो क्या कहती मम्मी से आखिर अब यही उसका परिवार है। और उसे यही इसी परिवार में रहना है। और समाज में अपने परिवार का मान तो रखना ही होगा।