एक दिन मैं बाज़ार में खड़ी थी। अचानक एक प्यारी सी आवाज़ मां-मां कहती हुए मुझसे लिपट गई। देखा तो एक चार साल की बच्ची थी। तभी एक और आवाज़ आई। माफ कीजिएगा! कुछ महीने पहले इसकी मां गुजर गई। आपका चेहरा उससे कुछ मिलता है। इसीलिए शायद ये आपको अपनी मां समझ के लिपट गई। मैने प्यार से मुस्कुराते हुए उस बच्ची की तरफ देखा और कहा कोई बात नहीं। फिर मैं घर चली आई।
अचानक उस बच्ची को याद करते हुए मैं अपने बचपन में खो गई। पांच साल की थी, जब मेरी मां गुजर गई। सभी ने कहा बच्चे को संभालने के लिए कोई होना चाहिए। तो पापा ने दूसरी शादी कर ली। मैं बहुत खुश थी कि मुझे नई मां मिल गई। पर ये खुशी कुछ दिनों में ही चली गई। मां ने ना ही मुझे कभी अपनी गोद में बिठाया। और ना ही कभी प्यार से बुलाया। जैसे तैसे बस दिन कट रहे थे।
एक साल बाद मेरा भाई पैदा हो गया। नई मां के लिए मैं अब बोझ बन गई थी। वो हर वक्त मुझसे चिड़ी हुई रहती। किसी तरह कुछ साल गुजरे। फिर ग्रेजुएशन करने के बाद मैं दूसरे शहर चली आई। यहां हॉस्टल में रहने लगी। फिर यही एक एम.एन.सी में नौकरी मिल गई। पापा नहीं चाहते थे, मैं घर से दूर जाऊं। पर मुझे यही सही लगा।
कुछ महीनों बाद मैंने एक फ्लैट किराए पर ले लिया। कुछ दिन हुए नए फ्लैट में, मैने फिर उस बिन मां की बच्ची को देखा। उसका नाम रिद्धि था। वो भी उसी बिल्डिंग में अपने पापा और दादी के साथ रहती थी। मुझे देख कर रिद्धि मेरे पास आ गई।
छः महीने हुए, रिद्धि और उसके पापा राजेश ज्यादातर मुझे शाम को बगीचे में सैर करते हुए मिल जाते। हम लोग खूब बातें करते और रिद्धि को खूब खिलाते। वो मुझसे बहुत घुल-मिल गई थी। अकसर मेरा उसके घर जाना होता था। वो मुझे अभी भी कभी-कभी मां बुलाती थी। मुझे भी उसकी खुशी में खुशी मिलती थी। तो मैंने उसे कभी मां बुलाने से मना नहीं किया।
एक दिन वो दौड़ती हुई मेरे पास आई। बोली की मेरी नई मां आ रही है। तो उसकी दादी ने बताया कि मेरी भी तबियत ठीक नहीं रहती। कब तक घर संभाल पाऊंगी। तो मैने कहा कि राजेश जी का इस बारे में क्या कहना है। उसकी दादी बोली वो तो मना ही करता है। पर औरत के बिना घर चल पाया है क्या। मेरी जिद्द के आगे ज्यादा कुछ बोलता नहीं। बस रिद्धि की चिंता है।
एक अच्छी लड़की मिल भी गई है। पर उसकी ये शर्त है कि रिद्धि को हॉस्टल भेज दिया जाए। मैने पूछा आप हॉस्टल भेजने के लिए मान गई। वो बोली और कोई रास्ता भी कहां है। राजेश का घर तो फिर से बसाना ही पड़ेगा। कोई भी लड़की आएगी तो रिद्धि को अपना कहां पाएगी। सोतेली मां तो सौतेली ही रहती है। अच्छा है रिद्धि हॉस्टल चली जाए। कुछ दिन में संभल ही जाएगी। ऐसा कहकर वो चली गई।
मैं रात भर सो नहीं पाई। यही सोचती रही इतनी छोटी बच्ची हॉस्टल में कैसे रहेगी। मां तो पहले से ही नहीं है। अब पिता से भी दूर हो जाएगी। जो मेरे साथ हुआ इसके साथ ना हो।
अगले दिन मैने रिद्धि के पापा से बात की। पूछा वो क्यू ऐसी लड़की से शादी करने को मान गए जो उनकी बेटी को हॉस्टल भेजना चाहती है। वो कहने लगे मैं मजबूर हू। मां के आगे मेरी एक नहीं चलती। तो मैंने कहा फिर ऐसी लड़की से शादी करो जो आपकी बेटी को अपना ले। वो कहने लगे ऐसी कौन सी लड़की होगी जो अपनी सौतेली बेटी को अपनाएगी।
मैं घर आकर सोचने लगी। क्या ऐसी कोई लड़की नहीं होगी जो रिद्धि को अपनाकर उसकी मां बन जाए। मैं उसका बचपन अपनी तरह खराब नहीं होने देना चाहती थी, बिन मां का। तो जवाब तो मेरे पास ही था।
मैं उसी समय उठी और रिद्धि के घर पहुंच गई। दरवाज़ा राजेश ने ही खोला। मैने कहा अगर आपको ऐतराज ना हो तो मैं बनूंगी रिद्धि की नई मां। और वो हॉस्टल नही जाएगी। हमारे साथ इसी घर में रहेगी। राजेश की आंख ने आंसू थे, और उन्होंने उसी समय मुझे गले से लगा लिया। मैं जानती थी कि पापा नाराज होंगे। पर मैं उन्हें मना लूंगी।
कुछ दिनों बाद मैं रिद्धि की "नई मां" बनके उसके घर आ गई।