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विवेक

22 अगस्त 2024

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विवेक और मैं प्रियंका। हम बचपन से स्कूल में साथ पड़ते थे। ज्यादा समय एक दूसरे के साथ बिताते थे। इतनी गहरी दोस्ती की एक दूसरे के दिल की हर बात समझते थे। विवेक जनता था कि जब मैं उदास होती हूं तो मुझे हंसाना कैसे है। वो हमेशा मेरा मूड अच्छा कर देता था। विवेक मुझे प्रिया बुलाता था।

इंजीनियरिंग के बाद विवेक को यू.एस.ए में बहुत अच्छी नौकरी मिल गई। पर वो मुझे छोड़ कर जाना नही चाहता था। वो मुझसे मिले बिना एक दिन भी नहीं रह पाता था। हम हमेशा साथ में घूमते थे। सबको लगता था कि हम शादी करेंगे। पर हमारा रिश्ता वैसा नहीं था। एक पवित्र रिश्ता था। जिसे दोस्ती का रिश्ता कहते है।

फिर मेरी शादी के लिए एक रिश्ता आया। सब बहुत बढ़िया था और अविनाश के साथ मेरी शादी तय हो गई। विवेक जोर शोर से मेरी शादी की तैयारी में लग गया। कुछ दिन बाद मेरी शादी हो गई। अविनाश बहुत अच्छा था। मेरा खूब ध्यान रखता था। मैं भी हर तरह से उसको खुश रखने की कोशिश करती थी। मैने विवेक से भी अविनाश को मिलवाया।

विवेक और मै अभी भी पहले की तरह ही मिलते थे। खूब हंसी मजाक, लड़ाई - झगड़ा। कुछ महीने तक सब अच्छा चलता रहा। धीरे-धीरे अविनाश को मेरा विवेक से मिलना, बात करना, उसका घर आना परेशान करने लगा। अविनाश मुझसे उखड़ा हुआ रहने लगा। मैं कुछ समझ नही पा रही थी।

एक दिन अविनाश ने मुझसे कह दिया कि या तो उसके साथ रहो या मेरे। दोनो में से एक को चुन लो। मैं उदास रहने लगी। समझ नही आ रहा था कैसे अविनाश को समझाऊं। शायद विवेक सब समझ गया था। उसने मुझसे पूछा क्या हुआ और मैं उससे झूठ ना बोल पाई। फूट फूट कर रोने लगी और उसे सब बता दिया।

विवेक ने मुझसे कहा कि तुम चिंता मत करो। मैने यू.एस.ए की नौकरी स्वीकार कर ली है। मैं हमेशा के लिए यहां से जा रहा हूं। उसके जाने के बाद हमारी बात भी बंद हो गई।

धीरे धीरे अविनाश भी ठीक हो गया। खूब हंसता मुस्कुराता। मैं भी हंस देती। मुझसे कहने लगा तुम भी आजकल बहुत खुश नज़र आती हो। हां मैं बाहर से खुश नजर आती थी। पर मेरे अंदर के दर्द को कोई नहीं समझता था। क्युकी मेरे अंदर की उदासी को पढ़ने वाला तो बहुत दूर जा चुका था। 

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत मार्मिक लगा पहला भाग बहन बहुधा पति लोगों को अपनी पत्नी के पुरुष मित्र रास नहीं आते हैं वो ये न समझना चाहते हैं कि पत्नी का भी स्वस्थ रिश्ता किसी पुरुष से हो सकता है,वे उसे स्वीकार न कर पाते हैं और पत्नी के समक्ष चुनाव रख दिया जाता है एक किसी एक को चुनने का ये स्थिति बहुत कष्टकारी होती है क्योंकि पत्नी को पति को ही चुनना होता है और दोस्त को छोड़ना 😣😣

7 सितम्बर 2024

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रचनाएँ
सामाजिक विवशताएं
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हमारे समाज में कुछ भ्रांतियां फैली हुई है। जिन्हें मैं इन लघु कहानियों के रूप में बयां करना चाहती हूं। बहुत से लोगों ने कहीं न कहीं ऐसी विवशता का सामना किया होगा। और वो अपने आप को इनसे जुड़ा पाएंगे।
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विवेक

22 अगस्त 2024
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नई मां

22 अगस्त 2024
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एक दिन मैं बाज़ार में खड़ी थी। अचानक एक प्यारी सी आवाज़ मां-मां कहती हुए मुझसे लिपट गई। देखा तो एक चार साल की बच्ची थी। तभी एक और आवाज़ आई। माफ कीजिएगा! कुछ महीने पहले इसकी मां गुजर गई। आपका चेहरा उसस

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मुक्ति

23 अगस्त 2024
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आनंद कॉलेज में पढ़ता था। जहां हर तरह का नया फैशन था। जिनमे से एक नशाखोरी था। कुछ युवा इसमें डूबते ही जाते है। कुछ पहले इसे शौंकिया तौर पर लेते है। फिर बाद में इस दलदल में फस ही जाते है। आनंद भी उनमें

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परिवार

13 सितम्बर 2024
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अंकिता की शादी को कुछ साल ही हुए थे। उसने सोचा क्यों ना इस बार दिवाली का त्यौहार अपने मायके में मनाए। उसके पति ने भी उसे इस बात की इजाज़त दे दी। और उसने जाने की सब तैयारियां भी कर ली। जब उसकी सास

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